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| मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन तन्मन्त्रः॥ | | मन्यते ज्ञायते आत्मादि येन तन्मन्त्रः॥ |
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| + | पं० श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार- |
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| + | मंत्र वह है जिसमें मानसिक एकाग्रता एवं निष्ठा का समुचित समावेश हों, परिष्कृत व्यक्तित्व की परिमार्जित वाणी से जिसकी साधना की जाय। जिसकी रहस्यमय क्षमता पर गहन श्रद्धा हो तथा जिसका अनावश्यक विज्ञापित न करके गोपनीय रखा जाय।<ref>आचार्य श्री राम शर्मा- मन्त्र शक्ति के चमत्कारी परिणाम, अखण्ड ज्योति वर्ष ४१, अंक ४ (पृ० २८)।</ref> |
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| == मन्त्र योग == | | == मन्त्र योग == |
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| === मंत्रयोग के उद्देश्य === | | === मंत्रयोग के उद्देश्य === |
| + | मन को तामसिक वृत्तियों से मुक्त करना तथा मंत्रजप द्वारा व्यक्तित्व का रूपान्तरण ही जपयोग का मुख्य उद्देश्य है। |
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| === मंत्रयोग की उपयोगिता तथा महत्व === | | === मंत्रयोग की उपयोगिता तथा महत्व === |
| + | मंत्रयोग अभ्यास से समस्त मानसिक क्रियाएँ सन्तुलित हो जाती हैं। जप के समय साधक श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करता है जिसके द्वारा नकारात्मक विकार नष्ट होकर सकारात्मक विचारों में वृद्धि होती है। |
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| ==मन्त्र के प्रकार== | | ==मन्त्र के प्रकार== |
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| अग्नि पुराण के अनुसार-<blockquote>उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः। जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः॥( अग्नि पु० २९३/९८)</blockquote>ऊँचे स्वर मेंकिये जाने वाले जाप की अपेक्षा मन्त्र का मूक जप दसगुणा विशिष्ट है। जिह्वा जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस जप हजार गुणा उत्तम है। अग्नि पुराण में वर्णन है कि मंत्र का आरम्भ पूर्वाभिमुख अथवा अधोमुख होकर करना चाहिये। समस्त मन्त्रों के प्रारम्भ में प्रणव का प्रयोग करना चाहिये। साधक के लिये देवालय, नदी व सरोवर मन्त्र साधन के लिये उपयुक्त स्थान माने गये हैं। | | अग्नि पुराण के अनुसार-<blockquote>उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः। जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः॥( अग्नि पु० २९३/९८)</blockquote>ऊँचे स्वर मेंकिये जाने वाले जाप की अपेक्षा मन्त्र का मूक जप दसगुणा विशिष्ट है। जिह्वा जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस जप हजार गुणा उत्तम है। अग्नि पुराण में वर्णन है कि मंत्र का आरम्भ पूर्वाभिमुख अथवा अधोमुख होकर करना चाहिये। समस्त मन्त्रों के प्रारम्भ में प्रणव का प्रयोग करना चाहिये। साधक के लिये देवालय, नदी व सरोवर मन्त्र साधन के लिये उपयुक्त स्थान माने गये हैं। |
| === मंत्र की शक्ति === | | === मंत्र की शक्ति === |
− | ऋषि हमें बताते हैं कि हमारी मूल प्रकृति सत्य, चेतना और आनंद है। मन्त्र शब्द की उत्पत्ति (निघण्टु के अनुसार) मनस् से बताया गया है। जिसका अर्थ है आर्ष कथन सामान्य रूप से मनन् से मन्त्र की उत्पत्ति माना गया है। मननात् मन्त्रः। | + | ऋषि हमें बताते हैं कि हमारी मूल प्रकृति सत्य, चेतना और आनंद है। मन्त्र शब्द की उत्पत्ति (निघण्टु के अनुसार) मनस् से बताया गया है। जिसका अर्थ है आर्ष कथन सामान्य रूप से मनन् से मन्त्र की उत्पत्ति माना गया है। मननात् मन्त्रः।<blockquote>तज्जपस्तदर्थ भावनम् ।(यो०सू० १/१८)</blockquote>मंत्र का जप अर्थ सहित चिन्तन पूर्वक करना चाहिये। जिस देवता का जप कर रहे हों, उसका ध्यान और चिन्तन करते रहने से एकाग्रता में वृद्धि होती है एवं लक्ष्य की शीघ्र ही सिद्धि होती है। |
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| + | मन्त्र विद्या ध्वनि तरंगों पर आधारित है। रेडियो, टेलीविजन, राडार की भांति प्राचीन काल के आविष्कारों में यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा चमत्कारी खोज थी। मन्त्र, ध्वनि विज्ञान का सूक्ष्मतम विज्ञान है। इसके अनुसार जो कार्य आधुनिक यन्त्रों के माध्यम से हो सकते हैं वे मन्त्र के प्रयोग से भी संभव हैं। |
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| + | पदार्थ की तरह अक्षरों तथा अक्षरों से युक्त शब्दों में बहुतशक्ति का भण्डार मौजूद है। पिछले दिनों ध्वनि विज्ञान पर अमेरिका, प जर्मनी में कितनी ही महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं। साउण्ड थेरेपी |
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| + | एक नयी उपचार पद्धति के रूप में विकसित हुई है। ध्वनि कम्पनों के आधार पर मारक शस्त्र भी बनने लगे हैं। ब्रेन वाशिंग के अनगिनत प्रयोगों में ध्वनि विद्या का प्रयोग होने लगा है। |
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| == मन्त्र ध्यान साधना == | | == मन्त्र ध्यान साधना == |
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| == मन्त्र चिकित्सा एवं आधुनिक अनुसंधान == | | == मन्त्र चिकित्सा एवं आधुनिक अनुसंधान == |
| + | चिकित्सा प्रणाली व्यक्ति के स्वास्थ्य को ही बेहतर नहीं बनाती बल्कि उनके व्यवहार एवं मनःस्थिति को भी बेहतर बनाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में रोगी की चिकित्सा औषधियों के साथ-साथ दैवव्यपाश्रय चिकित्सा के द्वारा भी होती है। मंत्र चिकित्सा दैवव्यपाश्रय का एक महत्त्वपूर्ण है। |
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| + | अक्षरसमूहः यस्योच्चारेण व्याधिरूपशाम्यति देवादस्यश्च प्रसन्ना भवति। |
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| + | मंत्रोच्चार की नियमित प्रक्रिया दुहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है। एक आभ्यन्तरिक एवं दूसरी बाह्य। इससे उत्पन्न इन्फ्रासोनिक स्तर का ध्वनि प्रवाह जहाँ शरीरमें स्थित सूक्ष्म चक्रों में शक्ति संचार करता है वहीं दूसरी ओर इन ध्वनि प्रकंपनों से वातावरण में एक विशेष प्रकार का स्पंदन उत्पन्न होता है। मंत्र विज्ञान पर अनुसंधानरत वैज्ञानिकों ने पाया है कि मंत्रोच्चारण के पश्चात् उसकी आवृत्तियों से उठने वाली ध्वनि तरंगें पृथ्वी के आयन मंडल को घेरे विशाल भू चुम्बकीय प्रवाह शूमेन्स रेजोनेन्स से टकराती और परावर्तित होकर सम्पूर्ण पृथ्वी के वायुमण्डल में छा जाती है।<ref>आचार्य श्री राम शर्मा - व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान, अखण्ड ज्योति, वर्ष १९८९, अंक (पृ० 34/35)।</ref> |
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| ==उद्धरण॥ References== | | ==उद्धरण॥ References== |