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१८. उसी प्रकार डाइनिंग टेबल पर बैठकर भोजन करना प्रगति की निशानी मानी जाती है । पैसे वाले के घर में डाइनिंग टैबल न हो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । अब तो लोग नीचे बैठ भी नहीं सकते । लोग घुटनों के दर्द का कारण बताते हैं परन्तु घुटनों का दर्द कारण नहीं परिणाम है ।
१८. उसी प्रकार डाइनिंग टेबल पर बैठकर भोजन करना प्रगति की निशानी मानी जाती है । पैसे वाले के घर में डाइनिंग टैबल न हो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । अब तो लोग नीचे बैठ भी नहीं सकते । लोग घुटनों के दर्द का कारण बताते हैं परन्तु घुटनों का दर्द कारण नहीं परिणाम है ।
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१९. बच्चों ने जन्म से ही नीचे बैठना सीखा ही नहीं होता है । उन्होंने किसीको नीचे बैठे हुए देखा ही नहीं होता है अतः पालथी क्या होती है यह वे जानते ही नहीं हैं । घुटने चलते चलते भूमि पर बैठ तो जाते ही हैं परन्तु बहुत जल्दी यह आदत भूल जाते हैं और पालथी लगाकर बैठना होता है इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ।
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१९. बच्चोंं ने जन्म से ही नीचे बैठना सीखा ही नहीं होता है । उन्होंने किसीको नीचे बैठे हुए देखा ही नहीं होता है अतः पालथी क्या होती है यह वे जानते ही नहीं हैं । घुटने चलते चलते भूमि पर बैठ तो जाते ही हैं परन्तु बहुत जल्दी यह आदत भूल जाते हैं और पालथी लगाकर बैठना होता है इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ।
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२०. कार्यालयों में काम करने के लिए नीचे बैठना होता है ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है । लिखना, संगणक पर काम करना, बैठक करना आदि काम टेबल कुर्सी के बिना नहीं हो सकते । उसी प्रकार विद्यालयों में बेंच और डेस्क तथा टेबल और कुर्सी अनिवार्य माने जाते हैं । छोटे बच्चों के प्लेस्कूल में भी टेबल और कुर्सी प्रगति की निशानी मानी जाती है ।
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२०. कार्यालयों में काम करने के लिए नीचे बैठना होता है ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है । लिखना, संगणक पर काम करना, बैठक करना आदि काम टेबल कुर्सी के बिना नहीं हो सकते । उसी प्रकार विद्यालयों में बेंच और डेस्क तथा टेबल और कुर्सी अनिवार्य माने जाते हैं । छोटे बच्चोंं के प्लेस्कूल में भी टेबल और कुर्सी प्रगति की निशानी मानी जाती है ।
२१. इस प्रकार की व्यवस्था में घर इतने भीड़ वाले हो जाते हैं कि मुक्तता से चलना फिरना भी नहीं होता है । घर छोटे पड़ने लगते हैं । अनेक प्रकार के काम करने में और व्यवस्था बिठाने में कठिनाई होती है ।
२१. इस प्रकार की व्यवस्था में घर इतने भीड़ वाले हो जाते हैं कि मुक्तता से चलना फिरना भी नहीं होता है । घर छोटे पड़ने लगते हैं । अनेक प्रकार के काम करने में और व्यवस्था बिठाने में कठिनाई होती है ।
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३५. जिन्हें अँग्रेजी नहीं आती वे अपने आपको बहुत fea मानते हैं । जो जो बिना अंग्रेज़ी पढ़े डॉक्टर आदि बन गए हैं उन्हें भी अँग्रेजी नहीं पढे होने का दुःख रहता है । वास्तव में उन्हें डोकटरी करने में कोई कठिनाई होती है ऐसा तो नहीं है परंतु अँग्रेजी बोलने वाले डॉक्टरों को देखकर दुःख होता है ।
३५. जिन्हें अँग्रेजी नहीं आती वे अपने आपको बहुत fea मानते हैं । जो जो बिना अंग्रेज़ी पढ़े डॉक्टर आदि बन गए हैं उन्हें भी अँग्रेजी नहीं पढे होने का दुःख रहता है । वास्तव में उन्हें डोकटरी करने में कोई कठिनाई होती है ऐसा तो नहीं है परंतु अँग्रेजी बोलने वाले डॉक्टरों को देखकर दुःख होता है ।
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३६. किसी आदर्शवश जिन मातापिताओं ने अपने बच्चों को मातृभाषा माध्यम में पढ़ाया है उनके बच्चे बड़े होकर हीनताबोध से ग्रस्त हो जाते हैं और मातापिता को कोसते हैं । ऐसे उदाहरण देखके नए मातापिता अपने बच्चों को मातृभाषा माध्यम में पढ़ाने का साहस नहीं करते । इस प्रकार अँग्रेजी बढ़ता ही जाता है ।
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३६. किसी आदर्शवश जिन मातापिताओं ने अपने बच्चोंं को मातृभाषा माध्यम में पढ़ाया है उनके बच्चे बड़े होकर हीनताबोध से ग्रस्त हो जाते हैं और मातापिता को कोसते हैं । ऐसे उदाहरण देखके नए मातापिता अपने बच्चोंं को मातृभाषा माध्यम में पढ़ाने का साहस नहीं करते । इस प्रकार अँग्रेजी बढ़ता ही जाता है ।
३७. जो मातृभाषा के आदर के लिए मातृभाषा में ही व्यवहार करते हैं वे भी बताना नहीं चूकते कि उन्हें अँग्रेजी नहीं आती है ऐसा नहीं है । हर बार अँग्रेजी आती है यह तो बताना ही पड़ता है । इसे सिद्ध करने के लिए अँग्रेजी बोलकर भी दिखाते हैं । इससे तो अँग्रेजी सीधे सीधे बोलना अधिक अच्छा है ।
३७. जो मातृभाषा के आदर के लिए मातृभाषा में ही व्यवहार करते हैं वे भी बताना नहीं चूकते कि उन्हें अँग्रेजी नहीं आती है ऐसा नहीं है । हर बार अँग्रेजी आती है यह तो बताना ही पड़ता है । इसे सिद्ध करने के लिए अँग्रेजी बोलकर भी दिखाते हैं । इससे तो अँग्रेजी सीधे सीधे बोलना अधिक अच्छा है ।
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४२. मुझे संस्कृत नहीं आती यह कहने में किसीको लज्जा का अनुभव नहीं होता परंतु मुझे अँग्रेजी नहीं आती ऐसा कहने में लज्जा का अनुभव होता है । संस्कृत ही क्यों मातृभाषा नहीं आती यह कहने में भी लज्जा का अनुभव नहीं होता ।
४२. मुझे संस्कृत नहीं आती यह कहने में किसीको लज्जा का अनुभव नहीं होता परंतु मुझे अँग्रेजी नहीं आती ऐसा कहने में लज्जा का अनुभव होता है । संस्कृत ही क्यों मातृभाषा नहीं आती यह कहने में भी लज्जा का अनुभव नहीं होता ।
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४३. विश्व की अनेक भाषायें अंग्रेजीपरस्ती के कारण नष्ट होने पर तुली हैं ऐसी शिकायत करने वाले अपने बच्चों को अँग्रेजी ही पढ़ाते हैं । भारत में भी संस्कृत को जर्मन, फ्रेंच जैसी भाषाओं के साथ वैकल्पिक भाषा का स्थान दिया जाता है ।
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४३. विश्व की अनेक भाषायें अंग्रेजीपरस्ती के कारण नष्ट होने पर तुली हैं ऐसी शिकायत करने वाले अपने बच्चोंं को अँग्रेजी ही पढ़ाते हैं । भारत में भी संस्कृत को जर्मन, फ्रेंच जैसी भाषाओं के साथ वैकल्पिक भाषा का स्थान दिया जाता है ।
४४. धर्मपालजी ने एक मजेदार किस्सा बताया है । शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलतर्सिह कोठारी ने अपना अनुभव बताया है कि विश्वविद्यालय के अध्यापकों के लिए आवास बन रहे थे तब अंग्रेज़ कुलपति आवासों में पाश्चात्य पद्धति के शौचालयों के आग्रही थे, भारतीय पद्धति के नहीं । आज अब पाश्चात्य पद्धति के शौचालय हमारी आवश्यकता बन गई है । मानस परिवर्तन कैसे होता है इसका यह उदाहरण है ।
४४. धर्मपालजी ने एक मजेदार किस्सा बताया है । शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलतर्सिह कोठारी ने अपना अनुभव बताया है कि विश्वविद्यालय के अध्यापकों के लिए आवास बन रहे थे तब अंग्रेज़ कुलपति आवासों में पाश्चात्य पद्धति के शौचालयों के आग्रही थे, भारतीय पद्धति के नहीं । आज अब पाश्चात्य पद्धति के शौचालय हमारी आवश्यकता बन गई है । मानस परिवर्तन कैसे होता है इसका यह उदाहरण है ।