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४. ऐसे रोगी को कोई स्मरण भी करवाए कि तुम रोगी हो तो हम गुस्सा हो जाते हैं और कहने वाले पर नाराज होते हैं । ठीक वैसे ही कोई हमें हीनताबोध कि बात करता है तो हम उससे सहमत नहीं होते हैं और हम हीनताबोध से ग्रस्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए तर्क देने लगते हैं ।
 
४. ऐसे रोगी को कोई स्मरण भी करवाए कि तुम रोगी हो तो हम गुस्सा हो जाते हैं और कहने वाले पर नाराज होते हैं । ठीक वैसे ही कोई हमें हीनताबोध कि बात करता है तो हम उससे सहमत नहीं होते हैं और हम हीनताबोध से ग्रस्त नहीं हैं यह सिद्ध करने के लिए तर्क देने लगते हैं ।
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५. थोड़ी भी विवेकबुद्धि बची है वे इस रोग को उसकी पूरी भीषणता के साथ देख सकते हैं । वे इसका उपचार करने का भी प्रयास करते हैं । अधिकांश तो वे उनके प्रयासों में यशस्वी नहीं होते हैं । फिर भी वे अपने प्रयास रोक नहीं देते क्योंकि वे आशावान होते हैं । उन्हें लगता है कि हम अभी भी इस रोग से मुक्त हो सकते हैं ।
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५. थोड़ी भी विवेकबुद्धि बची है वे इस रोग को उसकी पूरी भीषणता के साथ देख सकते हैं । वे इसका उपचार करने का भी प्रयास करते हैं । अधिकांश तो वे उनके प्रयासों में यशस्वी नहीं होते हैं । तथापि वे अपने प्रयास रोक नहीं देते क्योंकि वे आशावान होते हैं । उन्हें लगता है कि हम अभी भी इस रोग से मुक्त हो सकते हैं ।
    
६. हीनताबोध का यह रोग हमारे छोटे बड़े सभी व्यवहारों में, व्यवस्थाओं में, आयोजनों में, रचनाओं में दिखाई देता है । वह विभिन्न रूप धारण कर सर्वत्र संचार करता है । उसके ये रूप अनेक बार आकर्षक भी होते हैं । हम उस आकर्षण के पाश से मुक्त होने में असमर्थ हो जाते हैं ।
 
६. हीनताबोध का यह रोग हमारे छोटे बड़े सभी व्यवहारों में, व्यवस्थाओं में, आयोजनों में, रचनाओं में दिखाई देता है । वह विभिन्न रूप धारण कर सर्वत्र संचार करता है । उसके ये रूप अनेक बार आकर्षक भी होते हैं । हम उस आकर्षण के पाश से मुक्त होने में असमर्थ हो जाते हैं ।

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