इस्कोन के संस्थापकाचार्य - ए. सी. भक्तिवेदन्त स्वामी प्रभुपाद की कृपा से, इनकी श्रीमदूभगवदूगीता और श्रीमदू भागवत् की शिक्षों से प्रेरित होकर, बरोडा, गुजरात में स्थित कुछ गृहस्थ कृष्ण भक्त इस बात को समझ गये कि आधुनिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो एक जहर के समान है जो हमारे बच्चों को संपूर्ण रूप से कत्ल कर देती है। यह शिक्षा जहर से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जहर तो मात्र शरीर को कत्ल करता है परन्तु यह शिक्षा तो आत्मा को भी नरक में भेजकर फिर पशु योनि में जन्म लेने को मजबूर करती है और इस तरहसे अतिदुर्लभ मनुष्य जीवन का ध्येय नष्ट कर देती है । मनुष्य जीवन का ध्येय है जन्म, मृत्यु, बुढापा और बिमारी के चक्कर से छूटकर ऐसे अस्तित्व को प्राप्त करना जिसमें कभी समाप्त न होने वाला आनन्द है और कोई दुःख नहीं है । हमारे शास्त्र हमें ऐसा जीवन जीने का प्रशिक्षण देते हैं जिससे मृत्यु उपरान्त हमें जीवन का ध्येय प्राप्त हो । आज के स्कूलों में इस बात को जड़ से हि उखाड़ दिया जाता है यह सिखाकर कि जीवन तो मात्र रसायणों का संयोजन है और मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है; पुनर्जन्म की बातें सब कोरी कल्पना और अन्धविश्वास है; वेद शास्त्र मात्र कलनपा है; हमारे पूर्वज
+
इस्कोन के संस्थापकाचार्य - ए. सी. भक्तिवेदन्त स्वामी प्रभुपाद की कृपा से, इनकी श्रीमदूभगवदूगीता और श्रीमदू भागवत् की शिक्षों से प्रेरित होकर, बरोडा, गुजरात में स्थित कुछ गृहस्थ कृष्ण भक्त इस बात को समझ गये कि आधुनिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो एक जहर के समान है जो हमारे बच्चों को संपूर्ण रूप से कत्ल कर देती है। यह शिक्षा जहर से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जहर तो मात्र शरीर को कत्ल करता है परन्तु यह शिक्षा तो आत्मा को भी नरक में भेजकर फिर पशु योनि में जन्म लेने को मजबूर करती है और इस तरहसे अतिदुर्लभ मनुष्य जीवन का ध्येय नष्ट कर देती है । मनुष्य जीवन का ध्येय है जन्म, मृत्यु, बुढापा और बिमारी के चक्कर से छूटकर ऐसे अस्तित्व को प्राप्त करना जिसमें कभी समाप्त न होने वाला आनन्द है और कोई दुःख नहीं है । हमारे शास्त्र हमें ऐसा जीवन जीने का प्रशिक्षण देते हैं जिससे मृत्यु उपरान्त हमें जीवन का ध्येय प्राप्त हो । आज के स्कूलों में इस बात को जड़़ से हि उखाड़ दिया जाता है यह सिखाकर कि जीवन तो मात्र रसायणों का संयोजन है और मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है; पुनर्जन्म की बातें सब कोरी कल्पना और अन्धविश्वास है; वेद शास्त्र मात्र कलनपा है; हमारे पूर्वज