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| साथ ही चिन्मय मिशन सांस्कृतिक मूल्यों को | | साथ ही चिन्मय मिशन सांस्कृतिक मूल्यों को |
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− | पुनर्जीवित कर रहा है...५००० से भी अधिक गाँवों में व्यापक रूप से समाज सेवा का कार्य कर रहा है । ८० स्कूलों और ७ कॉलेजों में शिक्षा प्रदान कर रहा है । बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु के लोगोंं को सृजनात्मक तरीके से वेदान्त का ज्ञान दे रहा है । | + | पुनर्जीवित कर रहा है...५००० से भी अधिक गाँवों में व्यापक रूप से समाज सेवा का कार्य कर रहा है । ८० स्कूलों और ७ कॉलेजों में शिक्षा प्रदान कर रहा है । बच्चोंं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु के लोगोंं को सृजनात्मक तरीके से वेदान्त का ज्ञान दे रहा है । |
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| चिन्मय बाल विहार | | चिन्मय बाल विहार |
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− | इसके अंतर्गत, प्रशिक्षित शिक्षकों की देखरेख में ५ से १३ वर्ष की आयु के बच्चे चिन्मया मिशन केन्द्रों या घरों में सप्ताह में एक बार मिलते हैं । बाल विहार का उद्देश्य है बच्चों में निखार लाना, उन्हें विकसित करना, और मनोरंजन गतिविधियों के ज़रिये मूल्यों को उनके मन- मस्तिष्क में बिठाना । बाल विहार बच्चों के व्यक्तित्व को शारीरिक, भावात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर,समग्र रूप से विकसित करता है । | + | इसके अंतर्गत, प्रशिक्षित शिक्षकों की देखरेख में ५ से १३ वर्ष की आयु के बच्चे चिन्मया मिशन केन्द्रों या घरों में सप्ताह में एक बार मिलते हैं । बाल विहार का उद्देश्य है बच्चोंं में निखार लाना, उन्हें विकसित करना, और मनोरंजन गतिविधियों के ज़रिये मूल्यों को उनके मन- मस्तिष्क में बिठाना । बाल विहार बच्चोंं के व्यक्तित्व को शारीरिक, भावात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर,समग्र रूप से विकसित करता है । |
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| लक्ष्य वाक्य (मिशन स्टेटमेंट) | | लक्ष्य वाक्य (मिशन स्टेटमेंट) |
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− | बच्चों को मनोरंजन के साथ-साथ मूल्य सिखाने में सहायता करना ताकि वो चाँद की तरह खुश रहें और सूरज की तरह चमके |
| + | बच्चोंं को मनोरंजन के साथ-साथ मूल्य सिखाने में सहायता करना ताकि वो चाँद की तरह खुश रहें और सूरज की तरह चमके | |
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− | बाल विहार बच्चों को सही दृष्टिकोण और नैतिकता के गुण देने का उद्देश्य रखता है ताकि जीवन की विविध चुनौतियों का सामना करने के लिए बच्चों को तैयार किया जा सके ! यहाँ बच्चों को सरल गीतों, कहानियों, खेलों और कला-कौशल के ज़रिये आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य दिये जाते हैं । इसके अलावा बच्चों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय बाल विहार पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है । | + | बाल विहार बच्चोंं को सही दृष्टिकोण और नैतिकता के गुण देने का उद्देश्य रखता है ताकि जीवन की विविध चुनौतियों का सामना करने के लिए बच्चोंं को तैयार किया जा सके ! यहाँ बच्चोंं को सरल गीतों, कहानियों, खेलों और कला-कौशल के ज़रिये आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य दिये जाते हैं । इसके अलावा बच्चोंं के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय बाल विहार पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है । |
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| चिन्मय विज़न प्रोग्राम(CVP) | | चिन्मय विज़न प्रोग्राम(CVP) |
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| चिन्मय मिशन ने सी वी पी, शिक्षा-कार्यक्रम आरम्भ किया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में, उनके सामान्य पाठ्यक्रम में एक पूरक के रूप में जोड़ा गया है । चिन्मय विज़न प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि भारत में ५०० से अधिक स्कूलों ने, जो चिन्मय मिशन से संबद्ध नहीं हैं, अपनी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया है । | | चिन्मय मिशन ने सी वी पी, शिक्षा-कार्यक्रम आरम्भ किया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में, उनके सामान्य पाठ्यक्रम में एक पूरक के रूप में जोड़ा गया है । चिन्मय विज़न प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि भारत में ५०० से अधिक स्कूलों ने, जो चिन्मय मिशन से संबद्ध नहीं हैं, अपनी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया है । |
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− | सी वी पी एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम है,जो यह विचार करता है कि शैक्षणिक पद्धति ट्वारा,बच्चों को केवल एक साक्षर (literate) व्यक्ति के रूप में ही बाहर नहीं लाना है,बल्कि उसे सच्चे अर्थों में एक शिक्षित,संतुलित और संतुष्ट व्यक्ति बनाना है । | + | सी वी पी एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम है,जो यह विचार करता है कि शैक्षणिक पद्धति ट्वारा,बच्चोंं को केवल एक साक्षर (literate) व्यक्ति के रूप में ही बाहर नहीं लाना है,बल्कि उसे सच्चे अर्थों में एक शिक्षित,संतुलित और संतुष्ट व्यक्ति बनाना है । |
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| सी वी पी को चार भागों में बाँटा गया है -- | | सी वी पी को चार भागों में बाँटा गया है -- |
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− | (क) संपूर्ण विकास ( इंटीग्रल डेवलपमेंट) : बच्चों के शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए । | + | (क) संपूर्ण विकास ( इंटीग्रल डेवलपमेंट) : बच्चोंं के शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए । |
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− | (ख) धार्मिक संस्कृति : बच्चों को भारत की समृद्ध संस्कृति का विस्तृत विवरण देने के लिए । | + | (ख) धार्मिक संस्कृति : बच्चोंं को भारत की समृद्ध संस्कृति का विस्तृत विवरण देने के लिए । |
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− | (ग) राष्ट्र भक्ति : बच्चों में राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाने और उन्हें नागरिकता के पाठ पढ़ाने के लिए । | + | (ग) राष्ट्र भक्ति : बच्चोंं में राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाने और उन्हें नागरिकता के पाठ पढ़ाने के लिए । |
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− | (घ) सर्वव्यापी दृष्टिकोण : विश्व की समस्याओं और पर्यावरण के प्रति बच्चों को कृतज्ञ और संवेदनशील बनाना; चिन्मय विज़न प्रोग्राम (CVP)के मार्गदर्शन में चिन्मय मिशन निम्नलिखित स्कूल चला रहा है : | + | (घ) सर्वव्यापी दृष्टिकोण : विश्व की समस्याओं और पर्यावरण के प्रति बच्चोंं को कृतज्ञ और संवेदनशील बनाना; चिन्मय विज़न प्रोग्राम (CVP)के मार्गदर्शन में चिन्मय मिशन निम्नलिखित स्कूल चला रहा है : |
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| ==== १. हरि हर स्कूल ==== | | ==== १. हरि हर स्कूल ==== |
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− | गाँव के बच्चों के लिए ये निशुल्क चलाये जाने वाले स्कूल हैं । | + | गाँव के बच्चोंं के लिए ये निशुल्क चलाये जाने वाले स्कूल हैं । |
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− | ये स्कूल, अकादमिक (academic)पाठयक्रम के साथ जोड़ कर व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) भी प्रदान करते हैं । व्यावसायिक शिक्षा, बच्चों को बड़े होने पर, स्थानीय कच्चे माल का उपयोग कर अपना स्वयं का शिल्प-उद्योग प्रारंभ करने में सहायक होती है । | + | ये स्कूल, अकादमिक (academic)पाठयक्रम के साथ जोड़ कर व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) भी प्रदान करते हैं । व्यावसायिक शिक्षा, बच्चोंं को बड़े होने पर, स्थानीय कच्चे माल का उपयोग कर अपना स्वयं का शिल्प-उद्योग प्रारंभ करने में सहायक होती है । |
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| ==== २. चिन्मय विद्यालय ==== | | ==== २. चिन्मय विद्यालय ==== |
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| ईशा फाउंडेशन के ९ ग्रामीण स्कूल तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश में चलते हैं जहाँ ७१५८ बच्चे पढ़ते हैं । ६१% छात्रों को पूर्ण छात्रवृति मिलती है और शेष छात्रों से रियायती शुल्क लिया जाता है । | | ईशा फाउंडेशन के ९ ग्रामीण स्कूल तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश में चलते हैं जहाँ ७१५८ बच्चे पढ़ते हैं । ६१% छात्रों को पूर्ण छात्रवृति मिलती है और शेष छात्रों से रियायती शुल्क लिया जाता है । |
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− | इसके अलावा, तमिल नाडु के ६० ग्रामीण सरकारी स्कूलों में विशेष और महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान कर ४०,००० से भी अधिक बच्चों को लाभ पहुँचाया जाता है । | + | इसके अलावा, तमिल नाडु के ६० ग्रामीण सरकारी स्कूलों में विशेष और महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान कर ४०,००० से भी अधिक बच्चोंं को लाभ पहुँचाया जाता है । |
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− | ईशा फाउंडेशन अपने ईशा विद्या स्कूलों के माध्यम से ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है । निशुल्क शिक्षा देकर ग्रामीण बच्चों में उच्च शिक्षा या नौकरी पाने की संभावना बढ़ जाती है। ईशाविद्या ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं और समाज एवं असंख्य स्वयंसेवकों और दानदाताओं का सहयोग उन्हें मिलता है । | + | ईशा फाउंडेशन अपने ईशा विद्या स्कूलों के माध्यम से ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है । निशुल्क शिक्षा देकर ग्रामीण बच्चोंं में उच्च शिक्षा या नौकरी पाने की संभावना बढ़ जाती है। ईशाविद्या ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं और समाज एवं असंख्य स्वयंसेवकों और दानदाताओं का सहयोग उन्हें मिलता है । |
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| भारत की ७५% जनता गाँवों में रहती है, लेकिन अपनी खोयी हुई क्षमता के कारण गाँव के अधिकतर लोग देश के योगदान में सहयोग नहीं दे पाते । उनकी इस क्षमता | | भारत की ७५% जनता गाँवों में रहती है, लेकिन अपनी खोयी हुई क्षमता के कारण गाँव के अधिकतर लोग देश के योगदान में सहयोग नहीं दे पाते । उनकी इस क्षमता |
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− | आरम्भ किये गये ईशा होम स्कूल की संकल्पना का आधार जानने को मिला । यह सदू गुरु द्वारा आरम्भ किया गया, शिक्षा के क्षेत्र में बेशक एक अनूठा प्रयोग है पर भारत भर में इसे फैलाना संभव नहीं है ऐसा सद्गुरु स्वयं कहते हैं । जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर को दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा होम स्कूल जैसे और स्कूल खोलना संभव नहीं हो पायेगा, हांलाकि वो चाहते हैं कि भारत में दक्षिण के अलावा उत्तर,पश्चिम और पूर्व में कम से कम तीन और स्कूल खुलें । इसका कारण है कि आज भारत ही नहीं,विश्व भर में ऐसे समर्पित व्यक्ति दुर्लभ हो गये हैं...जो एक अच्छे शिक्षक बन सकें । वर्तमान में एक बहुत बड़ी चुनौती है । मेरे अपने विचार से ईशा होम स्कूल का प्रभाव आज की तारीख में चार हज़ार बच्चों पर दिखाई दे सकता है लेकिन दसवीं ,बारहवीं क्लास के बाद वो उसी शिक्षा पद्धति से शिक्षा लेंगे जहाँ प्रतिस्पर्धा है । सदू गुरु स्वयं कहते हैं कि शिक्षा पद्धति में स्पर्धा नहीं होनी चाहिए । | + | आरम्भ किये गये ईशा होम स्कूल की संकल्पना का आधार जानने को मिला । यह सदू गुरु द्वारा आरम्भ किया गया, शिक्षा के क्षेत्र में बेशक एक अनूठा प्रयोग है पर भारत भर में इसे फैलाना संभव नहीं है ऐसा सद्गुरु स्वयं कहते हैं । जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर को दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा होम स्कूल जैसे और स्कूल खोलना संभव नहीं हो पायेगा, हांलाकि वो चाहते हैं कि भारत में दक्षिण के अलावा उत्तर,पश्चिम और पूर्व में कम से कम तीन और स्कूल खुलें । इसका कारण है कि आज भारत ही नहीं,विश्व भर में ऐसे समर्पित व्यक्ति दुर्लभ हो गये हैं...जो एक अच्छे शिक्षक बन सकें । वर्तमान में एक बहुत बड़ी चुनौती है । मेरे अपने विचार से ईशा होम स्कूल का प्रभाव आज की तारीख में चार हज़ार बच्चोंं पर दिखाई दे सकता है लेकिन दसवीं ,बारहवीं क्लास के बाद वो उसी शिक्षा पद्धति से शिक्षा लेंगे जहाँ प्रतिस्पर्धा है । सदू गुरु स्वयं कहते हैं कि शिक्षा पद्धति में स्पर्धा नहीं होनी चाहिए । |
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| आज की शिक्षा, सिर्फ़ जानकारी देती है,सक्रिय विवेक नहीं देती । ऐसी जानकारी,सिर्फ़ जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जित करने के उद्देश्य से तो उपयोगी हो सकती है लेकिन आंतरिक शक्ति के विकास के लिए प्रेरणा नहीं देती | (Information vs Inspiration). | | आज की शिक्षा, सिर्फ़ जानकारी देती है,सक्रिय विवेक नहीं देती । ऐसी जानकारी,सिर्फ़ जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जित करने के उद्देश्य से तो उपयोगी हो सकती है लेकिन आंतरिक शक्ति के विकास के लिए प्रेरणा नहीं देती | (Information vs Inspiration). |
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− | शिक्षा में स्पर्धा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । उदाहरण के तौर पर, सदूगुरु कहते हैं मान लीजिए, आपमें और मुझमें तेज़ चलने की स्पर्धा होती है और आप दो कदम पीछे रह जाते हैं. लेकिन अगर आप इस स्पर्धा में नहीं होते तो शायद आप उड़ रहे होते । अर्थात् आपमें उड़ने की जो संभावना है परंतु स्पर्धा के कारण वो खत्म हो गई होती । स्पर्धा को लेकर समाज में एक श्रांति फैली हुई है । स्पर्धा में तो केवल एक ही जीतता है और बाकी हार जाते हैं। बच्चों को स्पर्धा करना मत सिखाइए । इससे उनका विकास नहीं होता । ईशा होम स्कूल में बच्चों की परीक्षाएँ नहीं ली जातीं । लगातार प्रदर्शनों के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती है । | + | शिक्षा में स्पर्धा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । उदाहरण के तौर पर, सदूगुरु कहते हैं मान लीजिए, आपमें और मुझमें तेज़ चलने की स्पर्धा होती है और आप दो कदम पीछे रह जाते हैं. लेकिन अगर आप इस स्पर्धा में नहीं होते तो शायद आप उड़ रहे होते । अर्थात् आपमें उड़ने की जो संभावना है परंतु स्पर्धा के कारण वो खत्म हो गई होती । स्पर्धा को लेकर समाज में एक श्रांति फैली हुई है । स्पर्धा में तो केवल एक ही जीतता है और बाकी हार जाते हैं। बच्चोंं को स्पर्धा करना मत सिखाइए । इससे उनका विकास नहीं होता । ईशा होम स्कूल में बच्चोंं की परीक्षाएँ नहीं ली जातीं । लगातार प्रदर्शनों के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती है । |
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| ईशा होम स्कूल में सबको बराबर का दर्जा दिया जाता है । स्कूल के बगीचे का माली हो या प्रधानाध्यापक रसोइया हो या अध्यापक, सबका स्तर एक ही है न कोई ऊँचा है, न कोई नीचा । | | ईशा होम स्कूल में सबको बराबर का दर्जा दिया जाता है । स्कूल के बगीचे का माली हो या प्रधानाध्यापक रसोइया हो या अध्यापक, सबका स्तर एक ही है न कोई ऊँचा है, न कोई नीचा । |
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− | यहाँ के बच्चे-बच्चे में आपको जीवन के एक निश्चित उद्देश्य के प्रति स्पष्टता दिखाई देती है । उनमें स्वयं को पहचानने की क्षमता आ जाती है । जीवन में खुशी का क्या महत्व है, यह वे समझने लगते हैं । ऐसा आजकल के शहरी स्कूलों के बच्चों में दिखाई नहीं देता । | + | यहाँ के बच्चे-बच्चे में आपको जीवन के एक निश्चित उद्देश्य के प्रति स्पष्टता दिखाई देती है । उनमें स्वयं को पहचानने की क्षमता आ जाती है । जीवन में खुशी का क्या महत्व है, यह वे समझने लगते हैं । ऐसा आजकल के शहरी स्कूलों के बच्चोंं में दिखाई नहीं देता । |
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− | ईशा होम स्कूल में शिक्षा बच्चों पर बोझ नहीं बल्कि उनके लिए तो शिक्षा आनन्द का विषय है। बच्चों में सदा नया कुछ जानने की तीव्र इच्छा रहती है और शिक्षकों में बच्चों को सिखाने का उत्साह और उमंग नज़र आता है । ईशा होम स्कूल का बच्चा-बच्चा फूल की तरह खिलता जाता है। यहाँ शिक्षा एक प्रेरणा है,सीखने का आनन्द है । | + | ईशा होम स्कूल में शिक्षा बच्चोंं पर बोझ नहीं बल्कि उनके लिए तो शिक्षा आनन्द का विषय है। बच्चोंं में सदा नया कुछ जानने की तीव्र इच्छा रहती है और शिक्षकों में बच्चोंं को सिखाने का उत्साह और उमंग नज़र आता है । ईशा होम स्कूल का बच्चा-बच्चा फूल की तरह खिलता जाता है। यहाँ शिक्षा एक प्रेरणा है,सीखने का आनन्द है । |
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− | ईशा होम स्कूल में बच्चों को जीवन से जुड़ी अनेक बातों को, अनेक कलाओं को, जानने-सीखने का मौका मिलता है। यहाँ अध्यापन की अनेक नयी-नयी कल्पनाशील पद्धतियों को अपनाया जाता है,कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है । बच्चे सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं,गाय के थनों से दूध दुहना भी सीखते हैं । वे जंगलों में ले जाकर, मोर देखते हैं, पक्षियों के गीत सुनते हैं, किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम बनते हैं । गीत-संगीत, नृत्य जैसे विषय अनिवार्य हैं । प्रतिदिन एक- एक घंटा, गणित और अंग्रेजी सिखाने के लिए निश्चित किया गया है । | + | ईशा होम स्कूल में बच्चोंं को जीवन से जुड़ी अनेक बातों को, अनेक कलाओं को, जानने-सीखने का मौका मिलता है। यहाँ अध्यापन की अनेक नयी-नयी कल्पनाशील पद्धतियों को अपनाया जाता है,कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है । बच्चे सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं,गाय के थनों से दूध दुहना भी सीखते हैं । वे जंगलों में ले जाकर, मोर देखते हैं, पक्षियों के गीत सुनते हैं, किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम बनते हैं । गीत-संगीत, नृत्य जैसे विषय अनिवार्य हैं । प्रतिदिन एक- एक घंटा, गणित और अंग्रेजी सिखाने के लिए निश्चित किया गया है । |
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− | इस तरह शहरी स्कूली बच्चों की तुलना में ईशा होम स्कूल के बच्चों को दी जानेवाली शिक्षा कहीं अधिक बेहतर है । यहाँ से सीखकर निकलने वाले बच्चों का भविष्य, निश्चय ही उज्चल है । | + | इस तरह शहरी स्कूली बच्चोंं की तुलना में ईशा होम स्कूल के बच्चोंं को दी जानेवाली शिक्षा कहीं अधिक बेहतर है । यहाँ से सीखकर निकलने वाले बच्चोंं का भविष्य, निश्चय ही उज्चल है । |
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| शांति के नये युग के लिए जीवन जीने की कला सिखाते हैं । | | शांति के नये युग के लिए जीवन जीने की कला सिखाते हैं । |
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− | शिक्षा और विद्या पर गायत्री परिवार का फोकस रहता है। स्कूली शिक्षा के लिए बच्चों में नैतिक गुणों और बौद्धिक विकास का एक आदर्श मिश्रण होता है। | + | शिक्षा और विद्या पर गायत्री परिवार का फोकस रहता है। स्कूली शिक्षा के लिए बच्चोंं में नैतिक गुणों और बौद्धिक विकास का एक आदर्श मिश्रण होता है। |
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| देव संस्कृति विश्वविद्यालय : | | देव संस्कृति विश्वविद्यालय : |
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| बाल संस्कार शाला : | | बाल संस्कार शाला : |
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− | ६ से १३ वर्ष के बच्चों के सांस्कृतिक और नैतिक विकास के लिए बाल संस्कार शालाएँ चलायी जाती हैं। | + | ६ से १३ वर्ष के बच्चोंं के सांस्कृतिक और नैतिक विकास के लिए बाल संस्कार शालाएँ चलायी जाती हैं। |
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| ऑनलाइन स्टडी ग्रुप वेब स्वाध्याय : | | ऑनलाइन स्टडी ग्रुप वेब स्वाध्याय : |
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| घरों में शिक्षण | | घरों में शिक्षण |
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− | इस्कोन के संस्थापकाचार्य - ए. सी. भक्तिवेदन्त स्वामी प्रभुपाद की कृपा से, इनकी श्रीमदूभगवदूगीता और श्रीमदू भागवत् की शिक्षों से प्रेरित होकर, बरोडा, गुजरात में स्थित कुछ गृहस्थ कृष्ण भक्त इस बात को समझ गये कि आधुनिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो एक जहर के समान है जो हमारे बच्चों को संपूर्ण रूप से कत्ल कर देती है। यह शिक्षा जहर से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जहर तो मात्र शरीर को कत्ल करता है परन्तु यह शिक्षा तो आत्मा को भी नरक में भेजकर फिर पशु योनि में जन्म लेने को मजबूर करती है और इस तरहसे अतिदुर्लभ मनुष्य जीवन का ध्येय नष्ट कर देती है । मनुष्य जीवन का ध्येय है जन्म, मृत्यु, बुढापा और बिमारी के चक्कर से छूटकर ऐसे अस्तित्व को प्राप्त करना जिसमें कभी समाप्त न होने वाला आनन्द है और कोई दुःख नहीं है । हमारे शास्त्र हमें ऐसा जीवन जीने का प्रशिक्षण देते हैं जिससे मृत्यु उपरान्त हमें जीवन का ध्येय प्राप्त हो । आज के स्कूलों में इस बात को जड़़ से हि उखाड़ दिया जाता है यह सिखाकर कि जीवन तो मात्र रसायणों का संयोजन है और मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है; पुनर्जन्म की बातें सब कोरी कल्पना और अन्धविश्वास है; वेद शास्त्र मात्र कलनपा है; हमारे पूर्वज | + | इस्कोन के संस्थापकाचार्य - ए. सी. भक्तिवेदन्त स्वामी प्रभुपाद की कृपा से, इनकी श्रीमदूभगवदूगीता और श्रीमदू भागवत् की शिक्षों से प्रेरित होकर, बरोडा, गुजरात में स्थित कुछ गृहस्थ कृष्ण भक्त इस बात को समझ गये कि आधुनिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो एक जहर के समान है जो हमारे बच्चोंं को संपूर्ण रूप से कत्ल कर देती है। यह शिक्षा जहर से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जहर तो मात्र शरीर को कत्ल करता है परन्तु यह शिक्षा तो आत्मा को भी नरक में भेजकर फिर पशु योनि में जन्म लेने को मजबूर करती है और इस तरहसे अतिदुर्लभ मनुष्य जीवन का ध्येय नष्ट कर देती है । मनुष्य जीवन का ध्येय है जन्म, मृत्यु, बुढापा और बिमारी के चक्कर से छूटकर ऐसे अस्तित्व को प्राप्त करना जिसमें कभी समाप्त न होने वाला आनन्द है और कोई दुःख नहीं है । हमारे शास्त्र हमें ऐसा जीवन जीने का प्रशिक्षण देते हैं जिससे मृत्यु उपरान्त हमें जीवन का ध्येय प्राप्त हो । आज के स्कूलों में इस बात को जड़़ से हि उखाड़ दिया जाता है यह सिखाकर कि जीवन तो मात्र रसायणों का संयोजन है और मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है; पुनर्जन्म की बातें सब कोरी कल्पना और अन्धविश्वास है; वेद शास्त्र मात्र कलनपा है; हमारे पूर्वज |
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− | बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चों को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चों को ऐसे लोगोंं के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चों का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम् स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था | | + | बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चोंं को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चोंं को ऐसे लोगोंं के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चोंं का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम् स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था | |
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− | अतः छह परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चों को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम् और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चों को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया । | + | अतः छह परिवारों ने अपने बच्चोंं को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चोंं को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम् और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चोंं को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया । |
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| परियोजना के दो विभाग | | परियोजना के दो विभाग |
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− | इस परियोजना के दो विभाग है - १. गुरुकुल, २. वर्णाश्रिम कालेज । बच्चा जब प्रथम यहाँ आता है तो सबसे मुख्य वस्तु भक्ति योग को अंगीकार करना सीखता है और इस समय दिनचर्या एवं सदाचार के नियम सीखता है । साथ ही साथ दो भाषाएँ - हिन्दी एवं संस्कृत सीखता है । इस दौरान बच्चे का स्वभाव परखा जाता है और उसके आधार पर उसका वर्णश्रिम कालेज के अन्तर्गत आने वाला प्रशिक्षण तय किया जाता है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूट्र का प्रशिक्षण । किसी भी समाज को चलाने के लिये जो ढाँचा चाहिये वह इन चारों में आ जाता है । इस तरह बच्चा आगे जाकर अपने स्वभाव के अनुसार इस नन्दग्राम समाज में कार्य कर जीवन यापन करेगा और कृष्ण भक्ति करेगा । गुरुकुल में पढ़ रहे सभी बच्चों को पर्याप्त जमीन एवं व्यवसाय देने की जिम्मेदारी गुरुकुल की है । आज ३ बच्चे खुशी से कृषि सीख रहे हैं और ७ बच्चे शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं । (सूचना : कृपया आप वणश्रिम व्यवस्था के अपने सुने-सुनायें विचारो को छोड़ दे जिसमें जन्म के आधार पर उच्च वर्ग नीच वर्ग का शोषण करता है । वास्तविक वणश्रिम व्यवस्था कृष्ण द्वारा स्थापित है और गुण-कर्म पर आधारित है; इसमें कोई शोषण की वृत्ति नहीं है अपितु सब वर्ण अपने अपने कर्म द्वारा कृष्ण की सेवा करतें है । देखे भ.गीता - ४.१३, १८.४४, १८.४५) | + | इस परियोजना के दो विभाग है - १. गुरुकुल, २. वर्णाश्रिम कालेज । बच्चा जब प्रथम यहाँ आता है तो सबसे मुख्य वस्तु भक्ति योग को अंगीकार करना सीखता है और इस समय दिनचर्या एवं सदाचार के नियम सीखता है । साथ ही साथ दो भाषाएँ - हिन्दी एवं संस्कृत सीखता है । इस दौरान बच्चे का स्वभाव परखा जाता है और उसके आधार पर उसका वर्णश्रिम कालेज के अन्तर्गत आने वाला प्रशिक्षण तय किया जाता है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूट्र का प्रशिक्षण । किसी भी समाज को चलाने के लिये जो ढाँचा चाहिये वह इन चारों में आ जाता है । इस तरह बच्चा आगे जाकर अपने स्वभाव के अनुसार इस नन्दग्राम समाज में कार्य कर जीवन यापन करेगा और कृष्ण भक्ति करेगा । गुरुकुल में पढ़ रहे सभी बच्चोंं को पर्याप्त जमीन एवं व्यवसाय देने की जिम्मेदारी गुरुकुल की है । आज ३ बच्चे खुशी से कृषि सीख रहे हैं और ७ बच्चे शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं । (सूचना : कृपया आप वणश्रिम व्यवस्था के अपने सुने-सुनायें विचारो को छोड़ दे जिसमें जन्म के आधार पर उच्च वर्ग नीच वर्ग का शोषण करता है । वास्तविक वणश्रिम व्यवस्था कृष्ण द्वारा स्थापित है और गुण-कर्म पर आधारित है; इसमें कोई शोषण की वृत्ति नहीं है अपितु सब वर्ण अपने अपने कर्म द्वारा कृष्ण की सेवा करतें है । देखे भ.गीता - ४.१३, १८.४४, १८.४५) |
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| इस ग्राम का आर्थिक आधार कृषि और गोरक्षा है - आप अपना खाना उगाओं और खाओं (खरीदो-बेचों नहीं), कपडा उगाओ, गाय से दूध प्राप्त करो, इस तरह पूरे समाज की आर्थिक आवश्यकतायें आपस में मिल-बाँट कर पूर्ण होती है - किसान उत्पादन का एक भाग गुरुकुल को भी देता है, और कपड़ा बनानेवालों को भी । | | इस ग्राम का आर्थिक आधार कृषि और गोरक्षा है - आप अपना खाना उगाओं और खाओं (खरीदो-बेचों नहीं), कपडा उगाओ, गाय से दूध प्राप्त करो, इस तरह पूरे समाज की आर्थिक आवश्यकतायें आपस में मिल-बाँट कर पूर्ण होती है - किसान उत्पादन का एक भाग गुरुकुल को भी देता है, और कपड़ा बनानेवालों को भी । |
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| हमारे गुरुकुल में बच्चें सेवा करना सीखतें हैं और अपना कार्य स्वयं करना सीखतें हैं - वे रोज बर्तन सफाई करते हैं, आश्रम सफाई करते हैं, अपने कपड़े धोते है, मन्दिर सफाई करते हैं, वगेरा । इस तरह उनका शारीरिक विकास भी अच्छछा होता है । यह गुरुकुल नर्मदा नदी पर जो सरदार सरोवर डेम है उससे १० किलोमीटर दूर साँढिया गाँव में स्थित ३२ एकर जमीन पर है और यहाँ खुल्ली शुद्ध हवा एवं पानी मिलने से शारीरिक एवं मानसिक विकास भी अच्छा होता है - एक बच्चा दिल्ली से आया था जहाँ उस पर कोई आयुर्वेदिक दवाई काम नहीं करती थी और वह हंमेशा बिमार रहता था लेकिन यहाँ थोडा समय रहने के बाद ही उस पर आयुर्वेदिक दवाई काम करने लगी और वह अभी काफी स्वस्थ है । | | हमारे गुरुकुल में बच्चें सेवा करना सीखतें हैं और अपना कार्य स्वयं करना सीखतें हैं - वे रोज बर्तन सफाई करते हैं, आश्रम सफाई करते हैं, अपने कपड़े धोते है, मन्दिर सफाई करते हैं, वगेरा । इस तरह उनका शारीरिक विकास भी अच्छछा होता है । यह गुरुकुल नर्मदा नदी पर जो सरदार सरोवर डेम है उससे १० किलोमीटर दूर साँढिया गाँव में स्थित ३२ एकर जमीन पर है और यहाँ खुल्ली शुद्ध हवा एवं पानी मिलने से शारीरिक एवं मानसिक विकास भी अच्छा होता है - एक बच्चा दिल्ली से आया था जहाँ उस पर कोई आयुर्वेदिक दवाई काम नहीं करती थी और वह हंमेशा बिमार रहता था लेकिन यहाँ थोडा समय रहने के बाद ही उस पर आयुर्वेदिक दवाई काम करने लगी और वह अभी काफी स्वस्थ है । |
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− | बच्चों की दिनचर्या : ०३.३० उठना, स्नान आदि; ०४:३० मंगला आरती (सबसे मुख्य आरती) कीर्तन, ०५:१५ हरे कृष्ण महामन्त्र का जप; ०६:१० सूर्य नमस्कार
| + | बच्चोंं की दिनचर्या : ०३.३० उठना, स्नान आदि; ०४:३० मंगला आरती (सबसे मुख्य आरती) कीर्तन, ०५:१५ हरे कृष्ण महामन्त्र का जप; ०६:१० सूर्य नमस्कार |
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| एवं प्राणायाम; ०६:३० शृंगार आरती कीर्तन; ०७:०० दूध प्रसाद; ०७:२० आश्रम सफाई; ०८:०० कक्षा-१; ०८:४५ कक्षा-र, ०९:३० कक्षा-३; १०:३० भोजन प्रसाद; ११:३० कक्षा-४; १२-१५ आराम, कपड़ा धोना, स्नान; ०२:०० अल्पाहार; ०२:३० स्वाध्याय एवं फ्री समय; ०४-०० रामायण एवं सदाचार कक्षा; ०४:३० खेलने का समय; ०५:४५ शाम का भोजन प्रसाद; ०६:३० बिस्तर लगाना; ०७:०० सन्ध्या आरती; ०७:३० महाभारत कथा (वरिष्ठ भक्तों के साथ) ; ०८:०० दूध प्रसाद; ०८:३० शयन (वर्णाश्रिम कालेज के लड़को के लिये कक्षा-१ से ४ की जगह अपने अपने प्रशिक्षण होते है) | | एवं प्राणायाम; ०६:३० शृंगार आरती कीर्तन; ०७:०० दूध प्रसाद; ०७:२० आश्रम सफाई; ०८:०० कक्षा-१; ०८:४५ कक्षा-र, ०९:३० कक्षा-३; १०:३० भोजन प्रसाद; ११:३० कक्षा-४; १२-१५ आराम, कपड़ा धोना, स्नान; ०२:०० अल्पाहार; ०२:३० स्वाध्याय एवं फ्री समय; ०४-०० रामायण एवं सदाचार कक्षा; ०४:३० खेलने का समय; ०५:४५ शाम का भोजन प्रसाद; ०६:३० बिस्तर लगाना; ०७:०० सन्ध्या आरती; ०७:३० महाभारत कथा (वरिष्ठ भक्तों के साथ) ; ०८:०० दूध प्रसाद; ०८:३० शयन (वर्णाश्रिम कालेज के लड़को के लिये कक्षा-१ से ४ की जगह अपने अपने प्रशिक्षण होते है) |
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| हर आत्मा में दिव्य संभावनाएँ हैं । ईश्वर में श्रद्धा अर्थात् स्वयं में श्रद्धा। स्वयं में विश्वास स्वयं की पहचान ही व्यक्ति की अन्तर्निहित संभावनाओं को दिव्य ऊंचाइयों तक ले जाती है । | | हर आत्मा में दिव्य संभावनाएँ हैं । ईश्वर में श्रद्धा अर्थात् स्वयं में श्रद्धा। स्वयं में विश्वास स्वयं की पहचान ही व्यक्ति की अन्तर्निहित संभावनाओं को दिव्य ऊंचाइयों तक ले जाती है । |
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− | विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय (वी के वी) एक ऐसी ज्ञान-गंगा है जिसका शुभारंभ श्री एकनाथ रानडेजी ने अरुणाचल प्रदेश में किया था । वी के वी भारत के सुदूर क्षेत्रों में आदिवासी बच्चों को समग्र राष्ट्रीय शिक्षा देने के लिए प्रयत्नशील है । इनके निवासी और अनिवासी ऐसे अनेक स्कूल हैं। अरुणाचल में ३४, असम में १७, नागालैंड में १, अंडमान में ९, कर्नाटक में १ और तमिल नाडु में ३ स्कूल हैं । | + | विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय (वी के वी) एक ऐसी ज्ञान-गंगा है जिसका शुभारंभ श्री एकनाथ रानडेजी ने अरुणाचल प्रदेश में किया था । वी के वी भारत के सुदूर क्षेत्रों में आदिवासी बच्चोंं को समग्र राष्ट्रीय शिक्षा देने के लिए प्रयत्नशील है । इनके निवासी और अनिवासी ऐसे अनेक स्कूल हैं। अरुणाचल में ३४, असम में १७, नागालैंड में १, अंडमान में ९, कर्नाटक में १ और तमिल नाडु में ३ स्कूल हैं । |
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| विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय भारत के उत्तर-पूर्व में | | विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय भारत के उत्तर-पूर्व में |
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| संस्कार वर्गों का उद्देश्य है... | | संस्कार वर्गों का उद्देश्य है... |
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− | - बच्चों में देश के प्रति प्रेम भाव जगाना । | + | - बच्चोंं में देश के प्रति प्रेम भाव जगाना । |
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| - उनके अन्दर, सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा जगाना । | | - उनके अन्दर, सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा जगाना । |
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− | - पाँच वर्ष के बच्चों का व्यक्तित्व विकास करना, उनमें छिपी प्रतिभा को बाहर लाना । | + | - पाँच वर्ष के बच्चोंं का व्यक्तित्व विकास करना, उनमें छिपी प्रतिभा को बाहर लाना । |
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| विवेकानन्द केन्द्र की शिक्षा से जुड़ी अन्य गतिविधियाँ : | | विवेकानन्द केन्द्र की शिक्षा से जुड़ी अन्य गतिविधियाँ : |
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| ९. सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल | | ९. सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल |
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− | श्री सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल स्वयं भगवान श्री सत्य साई बाबा की प्रेरणा से इनका शुभारंभ हुआ...वही उनका जीवन. और आत्मा हैं, प्रेरणा और लक्ष्य हैं। बच्चों के मन को सुमन बनाने के लिए, उनके इस मिशन की शुरुआत १५ जून, सन् १९८१ में हुई। | + | श्री सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल स्वयं भगवान श्री सत्य साई बाबा की प्रेरणा से इनका शुभारंभ हुआ...वही उनका जीवन. और आत्मा हैं, प्रेरणा और लक्ष्य हैं। बच्चोंं के मन को सुमन बनाने के लिए, उनके इस मिशन की शुरुआत १५ जून, सन् १९८१ में हुई। |
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| भगवान के शैक्षणिक संस्थानों की शिक्षा पद्धति में, भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। उस काल के गुरु यह जानते थे कि विद्यार्थियों को जीवन-निर्वाह हेतु धन कमाने के लिए, केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता । शिक्षा पाकर उन्हें अपने जीवन में सच्चा आनन्द भी मिलना चाहिए।अतः उन्होंने ऐसे ज्ञान पर जोर दिया, जो समाज की सेवा करने में काम आ सके और छात्र एक सही और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनकर अपना जीवन जी सकें। चरित्र- निर्माण को शिक्षा का आदर्श माना जाता था। | | भगवान के शैक्षणिक संस्थानों की शिक्षा पद्धति में, भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। उस काल के गुरु यह जानते थे कि विद्यार्थियों को जीवन-निर्वाह हेतु धन कमाने के लिए, केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता । शिक्षा पाकर उन्हें अपने जीवन में सच्चा आनन्द भी मिलना चाहिए।अतः उन्होंने ऐसे ज्ञान पर जोर दिया, जो समाज की सेवा करने में काम आ सके और छात्र एक सही और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनकर अपना जीवन जी सकें। चरित्र- निर्माण को शिक्षा का आदर्श माना जाता था। |
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| यह संज्ञा अमेरिका से आयात हुई है इसलिये उसे होम स्कूलिंग के नाम से ही जाना जाता है । परन्तु उसका धार्मिक स्वरूप धीरे धीरे बन रहा है | | | यह संज्ञा अमेरिका से आयात हुई है इसलिये उसे होम स्कूलिंग के नाम से ही जाना जाता है । परन्तु उसका धार्मिक स्वरूप धीरे धीरे बन रहा है | |
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− | भारत में इसकी मूल प्रेरणा अपने बच्चों को प्रचलित शिक्षा पद्धति के दृूषणों से बचाने की इच्छा में है । देश में हजारों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चों को मुख्य धारा की शिक्षा देना नहीं चाहते । इसके अनेक कारण हैं । एक कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा अत्यन्त कृत्रिम है और महानगरों में तो संस्कारशून्य है । दूसरा कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा में अनेक ऐसे विषय हैं जो मातापिता अपने बालक के लिये आवश्यक नहीं समझते, साथ ही आवश्यक हैं वे विषय पढाये नहीं जाते | | + | भारत में इसकी मूल प्रेरणा अपने बच्चोंं को प्रचलित शिक्षा पद्धति के दृूषणों से बचाने की इच्छा में है । देश में हजारों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चोंं को मुख्य धारा की शिक्षा देना नहीं चाहते । इसके अनेक कारण हैं । एक कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा अत्यन्त कृत्रिम है और महानगरों में तो संस्कारशून्य है । दूसरा कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा में अनेक ऐसे विषय हैं जो मातापिता अपने बालक के लिये आवश्यक नहीं समझते, साथ ही आवश्यक हैं वे विषय पढाये नहीं जाते | |
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− | होम स्कूलिंग को भारत में गृहविद्यालय कहना उचित होगा । यद्यपि गृहविद्यालय से - या होम स्कूलिंग से भी - पूर्ण अर्थबोध नहीं होता । आज मुख्य तात्पर्य तो विद्यालय का विकल्प निर्माण करना ही है । घर में मातापिता ही शिक्षक की भूमिका निभाते हैं । यह घर की शिक्षा नहीं है, घर में विद्यालय की शिक्षा है । समविचारी परिवार एकत्र आकर अपने बच्चों को पढ़ाने का प्रयास करते हैं | | + | होम स्कूलिंग को भारत में गृहविद्यालय कहना उचित होगा । यद्यपि गृहविद्यालय से - या होम स्कूलिंग से भी - पूर्ण अर्थबोध नहीं होता । आज मुख्य तात्पर्य तो विद्यालय का विकल्प निर्माण करना ही है । घर में मातापिता ही शिक्षक की भूमिका निभाते हैं । यह घर की शिक्षा नहीं है, घर में विद्यालय की शिक्षा है । समविचारी परिवार एकत्र आकर अपने बच्चोंं को पढ़ाने का प्रयास करते हैं | |
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| ऐसा करने के लिये मातापिता में शिक्षक के गुण और कौशल होना आवश्यक है । हर माता पिता में ये कमअधिक मात्रा में होते हैं इसलिये विभिन्न विषयों के जानकार अन्य शिक्षकों का सहयोग भी लिया जाता है | | | ऐसा करने के लिये मातापिता में शिक्षक के गुण और कौशल होना आवश्यक है । हर माता पिता में ये कमअधिक मात्रा में होते हैं इसलिये विभिन्न विषयों के जानकार अन्य शिक्षकों का सहयोग भी लिया जाता है | |
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| शैक्षिक दृष्टि से देखें तो गृहविद्यालय संकल्पना की बहुत सम्भावनायें है | | | शैक्षिक दृष्टि से देखें तो गृहविद्यालय संकल्पना की बहुत सम्भावनायें है | |
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− | १. दस वर्ष की आयु तक मातापिता ही अपने बच्चों को पढाये यह उचित है । आज जब मातापिता अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी विद्यालय भेजना चाहते हैं तब दस वर्ष की आयु तक घर में पढाने का विषय अस्वाभाविक लग सकता है । परन्तु मातापिताओं को अपने आपको सक्षम बनाना चाहिये और देश की शिक्षा व्यवस्था में मातापिताओं को इसमें प्रेरणा और सहयोग देना चाहिये | | + | १. दस वर्ष की आयु तक मातापिता ही अपने बच्चोंं को पढाये यह उचित है । आज जब मातापिता अपने बच्चोंं को जल्दी से जल्दी विद्यालय भेजना चाहते हैं तब दस वर्ष की आयु तक घर में पढाने का विषय अस्वाभाविक लग सकता है । परन्तु मातापिताओं को अपने आपको सक्षम बनाना चाहिये और देश की शिक्षा व्यवस्था में मातापिताओं को इसमें प्रेरणा और सहयोग देना चाहिये | |
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| २. गृहविद्यालय आज के विद्यालय का ही पर्याय होना पर्याप्त नहीं है । इसमें विद्यालयीन शिक्षा और घर की शिक्षा का समन्वय होना चाहिये | | | २. गृहविद्यालय आज के विद्यालय का ही पर्याय होना पर्याप्त नहीं है । इसमें विद्यालयीन शिक्षा और घर की शिक्षा का समन्वय होना चाहिये | |
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| ६. ऐसा करने के लिये असोसिएशन या संगठन की आवश्यकता रहेगी । पाठ्यक्रमों और पाठन पद्धति के लिये भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता रहेगी । | | ६. ऐसा करने के लिये असोसिएशन या संगठन की आवश्यकता रहेगी । पाठ्यक्रमों और पाठन पद्धति के लिये भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता रहेगी । |
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− | ७. आज तो धनवान मातापिता के बच्चों के लिये केवल महानगरों में यह प्रयोग आरम्भ हुआ है परन्तु इसका प्रसार भी हो सकता है । | + | ७. आज तो धनवान मातापिता के बच्चोंं के लिये केवल महानगरों में यह प्रयोग आरम्भ हुआ है परन्तु इसका प्रसार भी हो सकता है । |
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| संक्षेप में इस संकल्पना को अधिक ठोस बनाने की आवश्यकता है | | | संक्षेप में इस संकल्पना को अधिक ठोस बनाने की आवश्यकता है | |