सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों द्वारा शिक्षा के धार्मिककरण के प्रयास
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१. चिन्मय मिशन
चिन्मय मिशन, एक वैश्विक आध्यात्मिक संस्था है जिसकी स्थापना स्वामी चिन्मयानंद ने की
थी | २५ देशों में इसके २५० केन्द्र हैं। पचास से भी अधिक वर्षों से चिन्मय मिशन, [[Vedanta_(वेदांतः)|वेदांत]] के माध्यम से समग्र विकास और सुख को प्रोत्साहन देकर, मानवता की सेवा करता आ रहा है ।
साथ ही चिन्मय मिशन सांस्कृतिक मूल्यों को
पुनर्जीवित कर रहा है...५००० से भी अधिक गाँवों में व्यापक रूप से समाज सेवा का कार्य कर रहा है । ८० स्कूलों और ७ कॉलेजों में शिक्षा प्रदान कर रहा है । बच्चोंं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु के लोगोंं को सृजनात्मक तरीके से [[Vedanta_(वेदांतः)|वेदांत]] का ज्ञान दे रहा है ।
चिन्मय बाल विहार
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इसके अंतर्गत, प्रशिक्षित शिक्षकों की देखरेख में ५ से १३ वर्ष की आयु के बच्चे चिन्मया मिशन केन्द्रों या घरों में सप्ताह में एक बार मिलते हैं । बाल विहार का उद्देश्य है बच्चोंं में निखार लाना, उन्हें विकसित करना, और मनोरंजन गतिविधियों के ज़रिये मूल्यों को उनके मन- मस्तिष्क में बिठाना । बाल विहार बच्चोंं के व्यक्तित्व को शारीरिक, भावात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर,समग्र रूप से विकसित करता है ।
लक्ष्य वाक्य (मिशन स्टेटमेंट)
बच्चोंं को मनोरंजन के साथ-साथ मूल्य सिखाने में सहायता करना ताकि वो चाँद की तरह खुश रहें और सूरज की तरह चमके |
बाल विहार बच्चोंं को सही दृष्टिकोण और नैतिकता के गुण देने का उद्देश्य रखता है ताकि जीवन की विविध चुनौतियों का सामना करने के लिए बच्चोंं को तैयार किया जा सके ! यहाँ बच्चोंं को सरल गीतों, कहानियों, खेलों और कला-कौशल के ज़रिये आध्यात्मिक और नैतिक मूल्य दिये जाते हैं । इसके अलावा बच्चोंं के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय बाल विहार पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है ।
चिन्मय विज़न प्रोग्राम(CVP)
चिन्मय मिशन ने सी वी पी, शिक्षा-कार्यक्रम आरम्भ किया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में, उनके सामान्य पाठ्यक्रम में एक पूरक के रूप में जोड़ा गया है । चिन्मय विज़न प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि भारत में ५०० से अधिक स्कूलों ने, जो चिन्मय मिशन से संबद्ध नहीं हैं, अपनी शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया है ।
सी वी पी एक व्यापक शैक्षणिक कार्यक्रम है,जो यह विचार करता है कि शैक्षणिक पद्धति ट्वारा,बच्चोंं को केवल एक साक्षर (literate) व्यक्ति के रूप में ही बाहर नहीं लाना है,बल्कि उसे सच्चे अर्थों में एक शिक्षित,संतुलित और संतुष्ट व्यक्ति बनाना है ।
सी वी पी को चार भागों में बाँटा गया है --
(क) संपूर्ण विकास ( इंटीग्रल डेवलपमेंट) : बच्चोंं के शारीरिक,मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए ।
(ख) धार्मिक संस्कृति : बच्चोंं को भारत की समृद्ध संस्कृति का विस्तृत विवरण देने के लिए ।
(ग) राष्ट्र भक्ति : बच्चोंं में राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाने और उन्हें नागरिकता के पाठ पढ़ाने के लिए ।
(घ) सर्वव्यापी दृष्टिकोण : विश्व की समस्याओं और पर्यावरण के प्रति बच्चोंं को कृतज्ञ और संवेदनशील बनाना; चिन्मय विज़न प्रोग्राम (CVP)के मार्गदर्शन में चिन्मय मिशन निम्नलिखित स्कूल चला रहा है :
१. हरि हर स्कूल
गाँव के बच्चोंं के लिए ये निशुल्क चलाये जाने वाले स्कूल हैं ।
ये स्कूल, अकादमिक (academic)पाठयक्रम के साथ जोड़ कर व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) भी प्रदान करते हैं । व्यावसायिक शिक्षा, बच्चोंं को बड़े होने पर, स्थानीय कच्चे माल का उपयोग कर अपना स्वयं का शिल्प-उद्योग प्रारंभ करने में सहायक होती है ।
२. चिन्मय विद्यालय
भारत भर में आठ चिन्मय विद्यालय (रेग्युलर स्कूल) चलाये जा रहे हैं और त्रिनिदाद में एक स्कूल जो या तो ऑल इंडिया सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकंडरी एज्युकेशन (सी बी एस ई) से सम्बद्ध है या उनके स्थानीय स्टेट बोर्ड से सम्बद्ध है । वर्तमान में अस्सी हज़ार विद्यार्थी इन स्कूलों में अपना नाम लिखा रहे हैं ।
संपर्क :
सी सी एम टी एज्युकेशन सेल, चिन्मय गार्डन्स, नलुर वायुल पोस्ट, सिरुवानी रोड, कोयम्बतूर ६४१ ११४ तमिल नाडु, भारत
फोन : +९१(४२२)२६१ ५६६३, २६१३४९५
ई-मेल : ccmtec@gmail.com
वेबसाइट : www.chinmayavidya.org
चिन्मय इंटरनेशनल रेसिडेन्शियल स्कूल (CIRS)
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मंडली, उच्च शिक्षा के लिए एक ऐसा शैक्षणिक मंच प्रदान करेंगे जिसका उद्देश्य होगा भारत की प्राचीन ज्ञान,परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण करना, उसकी खोज करना और उसे साझा करना ।
गुरुकुल मॉडेल (प्रतिमान) प्राचीन गुरुकुल प्रणाली, गुरु शिष्य परंपरा पर आधारित....
चिन्मय विद्यापीठ का विद्यार्थी, न केवल अपने चुने हुए विषय का विशेषज्ञ हो जायेगा बल्कि वह स्वयं को भी समझ सकेगा और गुरुकुल में निवास के दौरान ग्रहण किये हुए मूल्यों का मूर्त रूप हो जायेगा ।
चिन्मय विश्वविद्यापीठ में गुरुकुल और यूनिवर्सिटी मॉडेल का सम्मिश्रण.
गुरुकुल प्रणाली के. फलस्वरूप, चिन्मय विश्वविद्यापीठ अपने विद्यार्थियों के जीवन में गतिशील परिवर्तन लायेगा । इस. विश्वविद्यापीठ के प्रेरणास्रोत.... स्वामी चिन्मयानंदजी
कुलाधिपति(चांसलर) ... स्वामी तेजोमयानंद्जी
कुलपति (वाइस-चांसलर)... प्रोफेसर पी. महादेवन
चिन्मय विश्वविद्यापीठ के बुनियादी सिद्धान्त :
शुचिता, व्यावहारिकता, आध्यात्मिकता. और नयी खोज,नयी प्रद्धति
चिन्मय शिक्षा दर्शन :
सात सूत्र देखें -
www.chinmayauniversity.ac.in/
Chinmay siksa darsnam
(चिन्मय मिशन...आगे शिक्षा संबंधी. विस्तृत जानकारी के. लिए... कृपया... वेबसाइट. देखें www.chinmayamission.org)
२. इईशा फाउन्डेशन
ईशा फाउंडेशन के ९ ग्रामीण स्कूल तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश में चलते हैं जहाँ ७१५८ बच्चे पढ़ते हैं । ६१% छात्रों को पूर्ण छात्रवृति मिलती है और शेष छात्रों से रियायती शुल्क लिया जाता है ।
इसके अलावा, तमिल नाडु के ६० ग्रामीण सरकारी स्कूलों में विशेष और महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान कर ४०,००० से भी अधिक बच्चोंं को लाभ पहुँचाया जाता है ।
ईशा फाउंडेशन अपने ईशा विद्या स्कूलों के माध्यम से ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है । निशुल्क शिक्षा देकर ग्रामीण बच्चोंं में उच्च शिक्षा या नौकरी पाने की संभावना बढ़ जाती है। ईशाविद्या ज़मीनी स्तर पर काम करते हैं और समाज एवं असंख्य स्वयंसेवकों और दानदाताओं का सहयोग उन्हें मिलता है ।
भारत की ७५% जनता गाँवों में रहती है, लेकिन अपनी खोयी हुई क्षमता के कारण गाँव के अधिकतर लोग देश के योगदान में सहयोग नहीं दे पाते । उनकी इस क्षमता
का विकास शिक्षा द्वारा ही संभव है पर भारत के ९५% सरकारी स्कूलों का संचालन ठीक से नहीं हो पा रहा । अतः स्थानीय भाषा में शिक्षा पानेवाले अधिकतर विद्यार्थियों में आधारभूत कुशलता(बेसिक स्किल््स) की कमी होती है और वे न तो नौकरी पाने के योग्य हो पाते हैं और न ही उनमें उच्च शिक्षा पाने का सामर्थ्य होता है ।
भारत की २००७ की शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (ASER... Annual Status of Education Report) दर्शाती है ....
१, क्लास २ के ४०% से अधिक बच्चे, बेसिक शब्द भी नहीं पढ़ पाते ।
२. क्लास ३ के ४०% से अधिक बच्चे, १० से अधिक का अंक नहीं पहचान पाते और क्लास ३ के आधे से भी कम बच्चे, घटाने के सरल सवाल हल कर पाते हैं ।
३. तमिल नाडु में तीसरी से पाँचवीं कक्षा के ५०% से भी कम विद्यार्थी अपनी भाषा में सरल वाक्य पढ़ पाते हैं
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आरम्भ किये गये ईशा होम स्कूल की संकल्पना का आधार जानने को मिला । यह सदू गुरु द्वारा आरम्भ किया गया, शिक्षा के क्षेत्र में बेशक एक अनूठा प्रयोग है पर भारत भर में इसे फैलाना संभव नहीं है ऐसा सद्गुरु स्वयं कहते हैं । जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक शेखर कपूर को दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईशा होम स्कूल जैसे और स्कूल खोलना संभव नहीं हो पायेगा, हांलाकि वो चाहते हैं कि भारत में दक्षिण के अलावा उत्तर,पश्चिम और पूर्व में कम से कम तीन और स्कूल खुलें । इसका कारण है कि आज भारत ही नहीं,विश्व भर में ऐसे समर्पित व्यक्ति दुर्लभ हो गये हैं...जो एक अच्छे शिक्षक बन सकें । वर्तमान में एक बहुत बड़ी चुनौती है । मेरे अपने विचार से ईशा होम स्कूल का प्रभाव आज की तारीख में चार हज़ार बच्चोंं पर दिखाई दे सकता है लेकिन दसवीं ,बारहवीं क्लास के बाद वो उसी शिक्षा पद्धति से शिक्षा लेंगे जहाँ प्रतिस्पर्धा है । सदू गुरु स्वयं कहते हैं कि शिक्षा पद्धति में स्पर्धा नहीं होनी चाहिए ।
आज की शिक्षा, सिर्फ़ जानकारी देती है,सक्रिय विवेक नहीं देती । ऐसी जानकारी,सिर्फ़ जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जित करने के उद्देश्य से तो उपयोगी हो सकती है लेकिन आंतरिक शक्ति के विकास के लिए प्रेरणा नहीं देती | (Information vs Inspiration).
शिक्षा में स्पर्धा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । उदाहरण के तौर पर, सदूगुरु कहते हैं मान लीजिए, आपमें और मुझमें तेज़ चलने की स्पर्धा होती है और आप दो कदम पीछे रह जाते हैं. लेकिन अगर आप इस स्पर्धा में नहीं होते तो संभवतः आप उड़ रहे होते । अर्थात् आपमें उड़ने की जो संभावना है परंतु स्पर्धा के कारण वो खत्म हो गई होती । स्पर्धा को लेकर समाज में एक श्रांति फैली हुई है । स्पर्धा में तो केवल एक ही जीतता है और बाकी हार जाते हैं। बच्चोंं को स्पर्धा करना मत सिखाइए । इससे उनका विकास नहीं होता । ईशा होम स्कूल में बच्चोंं की परीक्षाएँ नहीं ली जातीं । लगातार प्रदर्शनों के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती है ।
ईशा होम स्कूल में सबको बराबर का दर्जा दिया जाता है । स्कूल के बगीचे का माली हो या प्रधानाध्यापक रसोइया हो या अध्यापक, सबका स्तर एक ही है न कोई ऊँचा है, न कोई नीचा ।
यहाँ के बच्चे-बच्चे में आपको जीवन के एक निश्चित उद्देश्य के प्रति स्पष्टता दिखाई देती है । उनमें स्वयं को पहचानने की क्षमता आ जाती है । जीवन में खुशी का क्या महत्व है, यह वे समझने लगते हैं । ऐसा आजकल के शहरी स्कूलों के बच्चोंं में दिखाई नहीं देता ।
ईशा होम स्कूल में शिक्षा बच्चोंं पर बोझ नहीं बल्कि उनके लिए तो शिक्षा आनन्द का विषय है। बच्चोंं में सदा नया कुछ जानने की तीव्र इच्छा रहती है और शिक्षकों में बच्चोंं को सिखाने का उत्साह और उमंग नज़र आता है । ईशा होम स्कूल का बच्चा-बच्चा फूल की तरह खिलता जाता है। यहाँ शिक्षा एक प्रेरणा है,सीखने का आनन्द है ।
ईशा होम स्कूल में बच्चोंं को जीवन से जुड़ी अनेक बातों को, अनेक कलाओं को, जानने-सीखने का मौका मिलता है। यहाँ अध्यापन की अनेक नयी-नयी कल्पनाशील पद्धतियों को अपनाया जाता है,कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है । बच्चे सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं,गाय के थनों से दूध दुहना भी सीखते हैं । वे जंगलों में ले जाकर, मोर देखते हैं, पक्षियों के गीत सुनते हैं, किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम बनते हैं । गीत-संगीत, नृत्य जैसे विषय अनिवार्य हैं । प्रतिदिन एक- एक घंटा, गणित और अंग्रेजी सिखाने के लिए निश्चित किया गया है ।
इस तरह शहरी स्कूली बच्चोंं की तुलना में ईशा होम स्कूल के बच्चोंं को दी जानेवाली शिक्षा कहीं अधिक बेहतर है । यहाँ से सीखकर निकलने वाले बच्चोंं का भविष्य, निश्चय ही उज्चल है ।
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३. अखिल विश्व गायत्री परिवार
शांति के नये युग के लिए जीवन जीने की कला सिखाते हैं ।
शिक्षा और विद्या पर गायत्री परिवार का फोकस रहता है। स्कूली शिक्षा के लिए बच्चोंं में नैतिक गुणों और बौद्धिक विकास का एक आदर्श मिश्रण होता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय :
मानव-निर्माण के उद्देश्य को लेकर आरम्भ हुआ है ये अनोखा विश्वविद्यालय.
बी.एस.जी.पी.- विद्यार्थियो: को सुसंस्कृत बनाना :
विद्यार्थियों को आदर्श मार्ग पर चलते रहने और उन्हें अच्छे कार्यों को करते रहने के लिए प्रेरणा देते रहना, साथ ही उन्हें चरित्र-निर्माण की शिक्षा देना।
इनके २०,००० से भी अधिक स्कूलों में हर वर्ष ४० लाख से भी अधिक विद्यार्थी, परीक्षाओं में बैठते हैं।
बाल संस्कार शाला :
६ से १३ वर्ष के बच्चोंं के सांस्कृतिक और नैतिक विकास के लिए बाल संस्कार शालाएँ चलायी जाती हैं।
ऑनलाइन स्टडी ग्रुप वेब स्वाध्याय :
इस स्टडी ग्रुप के माध्यम से विद्यार्थियों को नकारात्मक विचारों और भावनाओं से मुक्त रखा जाता है । प्रेरणादायक साहित्य के अध्ययन के लिए स्काइप के ज़रिये वेब स्वाध्याय के कार्यक्रम को नियमित रूप से चलाया जाता है।
ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार
शांतिकुंज, हरिद्वार, +९१- १३३४ - २६०६०२
ई मेल : shantikunjawgp.org
४. वेद विज्ञान संस्थान
वेद विज्ञान संस्थान
वेद विज्ञान गुरुकुलम् और वेद विज्ञान शोध संस्थानम् का संक्षिप्त विवरण :
वेद विज्ञान गुरुकुलम, बैंगलोर, वैदिक ज्ञान में शिक्षा और शोध से जुड़ा एक संस्थान है। यह संस्थान पिछले ३० वर्षों से शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में काम कर रही संस्था जन सेवा ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित है। ट्रस्ट का ऐसा मानना है कि व्यापक वैदिक ज्ञान भावी पीढ़ियों को हस्तांतरित करना हमारी ज़िम्मेदारी है और उनका विश्वास है कि पारंपरिक शास्त्र परंपरा केवल गुरुकुल की पारंपरिक पद्धति द्वारा ही फल-फूल सकती है।. यह. संस्थान. वैज्ञानिक पहलुओं ,सामाजिक ज़िम्मेदारियों के विकास,अच्छे व्यक्तित्व और ब्रह्मबल (स्पिरिच्युअल माइट) जैसे विषयों में भी शिक्षा भी प्रदान करता है।
स्थापना के बाद अब तक के ९ वर्षों में ६० से भी अधिक स्नातक बाहर आ चुके हैं। वे या तो गुरुकुल में आचार्य की सेवा दे रहे हैं या गुरुकुल से संबद्ध अन्य संस्थानों में सेवारत हैं, या संस्कृत संस्थानों में;विश्वविद्यालयों में,शोध संस्थानों में या विदेशों में कार्यरत हैं, या फिर रिसर्च स्कॉलर हैं।
उद्देश्य
वेद विज्ञान गुरुकुलम् की स्थापना, निम्नलिखित उद्देश्यों को लेकर की गयी थी :
* वेद, शास्त्र(विज्ञान)और योग की परम्पराओं के मौलिक स्वरूप का संरक्षण।
* संस्कृत के माध्यम से शास्त्रों को सिखाना और संस्कृत में संभाषण का प्रसार करना।
* गुरुकुल की परम्परा को बनाये रखना और यह
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सातों दिन सुबह ४. ३० बजे उठकर रात के ९.३० बजे सोने तक की दिनचर्या का समावेश है ।
विद्यार्थियों को विश्व के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से आये हज़ारों लोगोंं के सामने अपनी योग्यता दूशनि के बहुआयामी अवसर प्राप्त होते हैं ।
प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को पूज्य गुरुदेव की दिव्य उपस्थिति में अपनी योग्यता दिखाने का और साथ ही विभिन्न देशों की यात्रा करने का अवसर भी मिलता है । ऐसे विद्यार्थी जो एस एस एल सी (१०वीं कक्षा) की परीक्षा में बैठना चाहते है उन्हें यह संस्थान प्रशिक्षण प्रदान करता है ।(कर्नाटक के बाहर से आये विद्यार्थियों को इस परीक्षा में बैठने के लिए कम से कम ५ वर्षों तक यहाँ रहना होता है ।)
वरिष्ठ बैच के विद्यार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जाती है।
पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विषय रखे गये हैं :
१. ऋग्वेद
२. यजुर्वेद(शुक्ल और कृष्ण)
३. सामवेद
४. अथर्व वेद
५. अंग्रेज़ी
६. कम्प्यूटर्स
७. संस्कृति एवं धरोहर
८. खेल
९... संगीत (कर्नाटका वोकल)
१०, आर्ट एक्सेल,येस प्रोग्राम्स(युथ एम्पावरमेंट एंड स्किल्स सेमिनार और युथ एम्पावरमेंट एंड स्किल्स वर्कशॉप ) , अंतर्ज्ञान प्रक्रिया (इंट्यूशन प्रोसेस ) द्वारा विद्यार्थियों की आध्यात्मिक प्रगति को सहज बनाया जाता है ।
प्रवेश की शर्तें :
. ९ से १४ वर्ष के पुरुष उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं:
. उम्मीदवार के लिए ब्रह्मोपदेश(उपनयन संस्कार) करा कर आना होगा (गुरुकुल, इसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेगा 1)
. उम्मीदवार को इनमें से कम से कम एक या उससे अधिक भाषाओं में पढ़ना और लिखना आना ही चाहिए; १.संस्कृत २. हिन्दी ३. कन्नड
अधिक विवरण के लिए संपर्क करें :
वेद आगम संस्कृत महा पाठशाला
वेद विभाग - वेद विज्ञान महा विद्यापीठ
श्री श्री गुरुकुल,ट्रेन्टीफर्स्ट किलोमीटर,कनकपुरा रोड,उदयपुरा,बैंगलोर-५६० ०८२. फोन ०८०-६७२६२८५३, ई मेल : gurukulvvmvp.org
वेबसाइट - http://www.srisrigurukul.org
६. नन्दग्राम : एक वैदिक ग्राम की परियोजना
घरों में शिक्षण
इस्कोन के संस्थापकाचार्य - ए. सी. भक्तिवेदन्त स्वामी प्रभुपाद की कृपा से, इनकी श्रीमदूभगवदूगीता और श्रीमदू भागवत् की शिक्षों से प्रेरित होकर, बरोडा, गुजरात में स्थित कुछ गृहस्थ कृष्ण भक्त इस बात को समझ गये कि आधुनिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा तो एक जहर के समान है जो हमारे बच्चोंं को संपूर्ण रूप से कत्ल कर देती है। यह शिक्षा जहर से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि जहर तो मात्र शरीर को कत्ल करता है परन्तु यह शिक्षा तो आत्मा को भी नरक में भेजकर फिर पशु योनि में जन्म लेने को मजबूर करती है और इस तरहसे अतिदुर्लभ मनुष्य जीवन का ध्येय नष्ट कर देती है । मनुष्य जीवन का ध्येय है जन्म, मृत्यु, बुढापा और बिमारी के चक्कर से छूटकर ऐसे अस्तित्व को प्राप्त करना जिसमें कभी समाप्त न होने वाला आनन्द है और कोई दुःख नहीं है । हमारे शास्त्र हमें ऐसा जीवन जीने का प्रशिक्षण देते हैं जिससे मृत्यु उपरान्त हमें जीवन का ध्येय प्राप्त हो । आज के स्कूलों में इस बात को जड़़ से हि उखाड़ दिया जाता है यह सिखाकर कि जीवन तो मात्र रसायणों का संयोजन है और मृत्यु के बाद सब समाप्त हो जाता है; पुनर्जन्म की बातें सब कोरी कल्पना और अन्धविश्वास है; वेद शास्त्र मात्र कलनपा है; हमारे पूर्वज
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बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चोंं को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चोंं को ऐसे लोगोंं के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चोंं का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम् स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था |
अतः छह परिवारों ने अपने बच्चोंं को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चोंं को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम् और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चोंं को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया ।
परियोजना के दो विभाग
इस परियोजना के दो विभाग है - १. गुरुकुल, २. वर्णाश्रिम कालेज । बच्चा जब प्रथम यहाँ आता है तो सबसे मुख्य वस्तु भक्ति योग को अंगीकार करना सीखता है और इस समय दिनचर्या एवं सदाचार के नियम सीखता है । साथ ही साथ दो भाषाएँ - हिन्दी एवं संस्कृत सीखता है । इस दौरान बच्चे का स्वभाव परखा जाता है और उसके आधार पर उसका वर्णश्रिम कालेज के अन्तर्गत आने वाला प्रशिक्षण तय किया जाता है - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूट्र का प्रशिक्षण । किसी भी समाज को चलाने के लिये जो ढाँचा चाहिये वह इन चारों में आ जाता है । इस तरह बच्चा आगे जाकर अपने स्वभाव के अनुसार इस नन्दग्राम समाज में कार्य कर जीवन यापन करेगा और कृष्ण भक्ति करेगा । गुरुकुल में पढ़ रहे सभी बच्चोंं को पर्याप्त जमीन एवं व्यवसाय देने की जिम्मेदारी गुरुकुल की है । आज ३ बच्चे खुशी से कृषि सीख रहे हैं और ७ बच्चे शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं । (सूचना : कृपया आप वणश्रिम व्यवस्था के अपने सुने-सुनायें विचारो को छोड़ दे जिसमें जन्म के आधार पर उच्च वर्ग नीच वर्ग का शोषण करता है । वास्तविक वणश्रिम व्यवस्था कृष्ण द्वारा स्थापित है और गुण-कर्म पर आधारित है; इसमें कोई शोषण की वृत्ति नहीं है अपितु सब वर्ण अपने अपने कर्म द्वारा कृष्ण की सेवा करतें है । देखे भ.गीता - ४.१३, १८.४४, १८.४५)
इस ग्राम का आर्थिक आधार कृषि और गोरक्षा है - आप अपना खाना उगाओं और खाओं (खरीदो-बेचों नहीं), कपडा उगाओ, गाय से दूध प्राप्त करो, इस तरह पूरे समाज की आर्थिक आवश्यकतायें आपस में मिल-बाँट कर पूर्ण होती है - किसान उत्पादन का एक भाग गुरुकुल को भी देता है, और कपड़ा बनानेवालों को भी ।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि जो व्यवस्था भगवान श्रीकृष्णने वर्णाश्रिम के नाम से स्थापित की है वही सटीक है और उसमें कोईभी फेरबदल करने से बरबादी ही होगी । इसलिये इस ग्राम में हम पूरी तरह से आधुनिकता को हटाने के लिये प्रतिज्ञाबद्ध है । यह थोड़ा कठिन तो अवश्य है किन्तु कृष्णकृपा से हम काफी हद तक इसमें सफल हो रहे है । हम बिजली का उपयोग नहीं करते, ज्योति के लिये तेल के
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दीपक का उपयोग करते है, पानी के लिये हेन्डपम्प का उपयोग करतें है, किचन में भी कोई मिक्षी नहीं, रसोई में गैस की जगह गोबर या लकड़ी का उपयोग करते है, वगेरा । अभी हम पूरी तरह से तो आधुनिकता को नहीं हटा पायें किन्तु उस मार्ग पर अग्रसर है ।
हमारे गुरुकुल में बच्चें सेवा करना सीखतें हैं और अपना कार्य स्वयं करना सीखतें हैं - वे रोज बर्तन सफाई करते हैं, आश्रम सफाई करते हैं, अपने कपड़े धोते है, मन्दिर सफाई करते हैं, वगेरा । इस तरह उनका शारीरिक विकास भी अच्छछा होता है । यह गुरुकुल नर्मदा नदी पर जो सरदार सरोवर डेम है उससे १० किलोमीटर दूर साँढिया गाँव में स्थित ३२ एकर जमीन पर है और यहाँ खुल्ली शुद्ध हवा एवं पानी मिलने से शारीरिक एवं मानसिक विकास भी अच्छा होता है - एक बच्चा दिल्ली से आया था जहाँ उस पर कोई आयुर्वेदिक दवाई काम नहीं करती थी और वह हंमेशा बिमार रहता था लेकिन यहाँ थोडा समय रहने के बाद ही उस पर आयुर्वेदिक दवाई काम करने लगी और वह अभी काफी स्वस्थ है ।
बच्चोंं की दिनचर्या : ०३.३० उठना, स्नान आदि; ०४:३० मंगला आरती (सबसे मुख्य आरती) कीर्तन, ०५:१५ हरे कृष्ण महामन्त्र का जप; ०६:१० सूर्य नमस्कार
एवं प्राणायाम; ०६:३० शृंगार आरती कीर्तन; ०७:०० दूध प्रसाद; ०७:२० आश्रम सफाई; ०८:०० कक्षा-१; ०८:४५ कक्षा-र, ०९:३० कक्षा-३; १०:३० भोजन प्रसाद; ११:३० कक्षा-४; १२-१५ आराम, कपड़ा धोना, स्नान; ०२:०० अल्पाहार; ०२:३० स्वाध्याय एवं फ्री समय; ०४-०० रामायण एवं सदाचार कक्षा; ०४:३० खेलने का समय; ०५:४५ शाम का भोजन प्रसाद; ०६:३० बिस्तर लगाना; ०७:०० सन्ध्या आरती; ०७:३० महाभारत कथा (वरिष्ठ भक्तों के साथ) ; ०८:०० दूध प्रसाद; ०८:३० शयन (वर्णाश्रिम कालेज के लड़को के लिये कक्षा-१ से ४ की जगह अपने अपने प्रशिक्षण होते है)
कृष्ण कृपा से इस प्रकल्प की ओर काफी लोग आकर्षित हो रहे है और वर्तमान में विस्तार पाकर इसमें १३ परिवार और ३५ बच्चे है जिनमें से ५ परिवार कृषि कर रहे है, एक परिवार कपड़ा बना रहा है और ७ परिवार गुरुकुल संभाल रहे है । और ४ परिवार एवं ६ बच्चे आने को तैयार है जिनके लिये हम पर्याप्त मकान की सुविधा कर रहे है । ज्यादा जानकारी के लिये संपर्क करे : दामोदर दास - ९७३७४७५०५८) आप सबका स्वागत है, आप यहाँ आइए और कुछ दिन हमारे साथ रहकर इस जीवन का अनुभव कीजिये - आखिरकार शब्द कितना समझा सकते हैं । अस्तु - ।।हरे कृष्ण।।
७. विवेकानन्द केन्द्र
'विवेकानन्द केन्द्र
हमारा उद्देश्य है देश के महान संत स्वामी विवेकानन्दजी के विचारों का प्रसार करना । विवेकानन्द केन्द्र का लक्ष्य है मानव निर्माण, राष्ट्र निर्माण ।
शिक्षा के संबंध में स्वामीजी क
ा यह विचार, यहाँ उल्लेखनीय है...शिक्षा, मनुष्य में अन्तर्निहित संपूर्णता का प्रकटीकरण है ।
हर आत्मा में दिव्य संभावनाएँ हैं । ईश्वर में श्रद्धा अर्थात् स्वयं में श्रद्धा। स्वयं में विश्वास स्वयं की पहचान ही व्यक्ति की अन्तर्निहित संभावनाओं को दिव्य ऊंचाइयों तक ले जाती है ।
विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय (वी के वी) एक ऐसी ज्ञान-गंगा है जिसका शुभारंभ श्री एकनाथ रानडेजी ने अरुणाचल प्रदेश में किया था । वी के वी भारत के सुदूर क्षेत्रों में आदिवासी बच्चोंं को समग्र राष्ट्रीय शिक्षा देने के लिए प्रयत्नशील है । इनके निवासी और अनिवासी ऐसे अनेक स्कूल हैं। अरुणाचल में ३४, असम में १७, नागालैंड में १, अंडमान में ९, कर्नाटक में १ और तमिल नाडु में ३ स्कूल हैं ।
विवेकानन्द केन्द्रीय विद्यालय भारत के उत्तर-पूर्व में
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शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए जाने जाते हैं । आदिवासी गाँवों के निर्धन परिवारों से आये और यहाँ से निकले बड़ी संख्या में ऐसे विद्यार्थी हैं जो आज अनेक क्षेत्रों में सफल साबित हो रहे हैं, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, व्यवसायी बने हैं, कुछ आय ए एस अफसर हो गये हैं तो कुछ ने फाइन आर्ट्स में कुशलता प्राप्त की है ।
एक. नया. भारत;्यू इंडिया, उभरेगा...इन्हीं मछुआरों, चर्मकारों और सफ़ाई-कर्मचारियों की झोपड़ियों से, किराने की दुकानों से, लुहारों की भट्टियों से, कारखानों और बाज़ारों से, पहाड़ियों और जंगलों से ।
हमारे शैक्षणिक स्रोत हैं :
-सीबीएसई
- डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी, गौहाटी यूनिवर्सिटी, ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी, नागालैंड
- एन.सी.ई.आर.टी.
- नागालैंड यूनिवर्सिटी, तेजपुर यूनिवर्सिटी
विवेकानन्द केन्द्र के शिक्षा से जुड़े अनेक प्रकल्प चल रहे हैं :
१, संस्कार वर्ग :
बच्चे खाली बर्तन नहीं होते जो भरे जायें, वे तो दिये होते हैं, जिन्हें प्रकाशित करना होता है ।
संस्कार वर्गों का उद्देश्य है...
- बच्चोंं में देश के प्रति प्रेम भाव जगाना ।
- उनके अन्दर, सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा जगाना ।
- पाँच वर्ष के बच्चोंं का व्यक्तित्व विकास करना, उनमें छिपी प्रतिभा को बाहर लाना ।
विवेकानन्द केन्द्र की शिक्षा से जुड़ी अन्य गतिविधियाँ :
समय-समय पर चलनेवाले 'योग सर्टिफिकेट कोर्स'।
विवेकानन्द केन्द्र प्रशिक्षण सेवा प्रकल्प :
विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगोंं को सेवा-गतिविधियों का प्रशिक्षण ।
गतिविधियाँ : शिविर, बालवाड़ी, हेल्थ सेंटर, बॉयसू होस्टेल (www.vkpsp.org)
विवेकानन्द केन्द्र स्किल ट्रेनिंग प्रोजेक्ट :
ग्रामीण लड़कों और लड़कियों के लिए सिलाई और अन्य व्यावसायिक कौशलों में आधारभूत प्रशिक्षण ।
गतिविधियाँ : बालवाड़ियाँ, बुनाई, कढ़ाई आदि ।
विवेकानन्द केन्द्र अरुण ज्योति :
उद्देश्य - धार्मिक संस्कृति का विकास
गतिविधियाँ : अरुणाचल प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा मंच, स्वास्थ्य सेवा मंच, युवा मंच, महिला मंच, सांस्कृतिक मंच ।
वी. के. इन्स्टिस्यूट ऑफ़ कल्चर :
उद्देश्य. - भारत के उत्तर-पूर्व की. अनोखी विशेषताओं के बारे में जागरूकता लाना ।
गतिविधियाँ : गौहाटी,अरुणाचल प्रदेश में सेमिनार और... वर्कशॉप आयोजित करना...डॉक्युमेंटेशन प्रोजेक्ट्स लेक्चर सिरीज़...स्टडी सर्कल और रेफरेन्स लाइब्रेरी ।
विवेकानन्द केन्द्र के ग्रामीण कल्याण प्रकल्प :
'उद्देश्य - आदिवासी महिलाओं के समग्र विकास के लिए सामाजिक-आर्थिक प्रकल्प ।
गतिविधियाँ : प्रशिक्षण व उत्पादन केन्द्र जहाँ बुनाई, कढ़ाई, सिलाई, एम्ब्रायडरी, विविध कृषि. आधारित ट्रेनिंग तथा डेमोन्स्ट्रेशन की व्यवस्था है ।
एक डे स्कॉलर स्कूल और अवेयरनेस कैम्प ।
वैदिक विजन फाउन्डेशन :
उद्देश्य - विचारकों और वैदिक ज्ञान के विद्वानों को जोड़ना, वैदिक विषयों का अध्ययन और शोध, वैदिक विद्वानों की सहायता करना, वैदिक ज्ञान का प्रसार करना, ताकि लोगोंं को परिवारों में यौगिक सत्य के अभ्यास को करने की प्रेरणा मिले ।
व्यक्तित्व विकास कोर्स, आध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन, विविध पुस्तकों का प्रकाशन, योग व प्राणायाम
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के कोर्स ।
वी.के. इंटरनेशनल फाउंडेशन :
नयी दिल्ली में उत्कृष्टठा का एक ऐसा केन्द्र जहाँ से नयी-नयी कल्पनाओं और विचारों की शुरुआत होती है, जिनके फलस्वरूप भारत को अधिक शक्तिशाली और प्रगतिशील बनाया जा सके और वो वैश्विक मामलों में अपनी भूमिका अदा कर सके । www.vifindia.org
८. आर्यसमाज
आर्य समाज का एक ही उद्देश्य है, शिक्षा और ज्ञान के प्रसार के लिए शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करना और उन्हें चलाना ।
आर्य समाज की ८०० से अधिक शाखाएँ, विश्व भर में फैली हैं और सामाजिक, भावात्मक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में निरन्तर सक्रिय हैं ।
आर्य समाज एक गैर-सरकारी संस्था है जो भारत में वर्षो से परोपकार से जुड़े कार्यों में रत है ।
आर्य समाज की जीवन-शिक्षा से जुड़ी गतिविधियाँ :
हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ४ मार्च १९०२ को स्वामी श्रद्धानंदजी द्वारा स्थापित...
वेबसाइट : gov&ac&in
कन्या गुरुकुल कैम्पस, देहरादून
देखें... m&htcampus&com
अजमेर और रोहतक में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी देश भर में दयानंद एंग्लो वैदिक ( डी ए वी )) स्कूल और कॉलेज :
दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय अविभाजित भारत के कुछ भागों में आस्भ किये गये. विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की एक श्रृंखला का नाम है । इसे आर्य समाज के महान सदस्य एवं शिक्षाविद् महात्मा हंसराज ने १ जून १८८६ को आरंभ किया था ।
मुंबई में डी.ए.वी, पब्लिक स्कूल, ऐरोली, न्यू पनबेल, ठाणे, आदि अनेक स्थानों पर चलाये जा रहे हैं ।
आर्य विद्या मंदिर स्कूल, मुंबई के जुहदू, बांद्रा और सांताक्रूज़ में चल रहे हैं ।
(अधिक. जानकारी के. लिए. देखें davcmc&net&in)
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना, ४ मार्च १९०२ को स्वामी श्रद्धानंदजी ने की थी, उनका उद्देश्य था, शिक्षा की प्राचीन धार्मिक गुरुकुल पद्धति को पुनर्जीवित करना । यह स्थान, दिल्ली से लगभग २०० किलोमीटर दूर, हरिद्वार से ६ किलोमीटर की दूरी पर, गंगा के किनारे है ।
वैदिक साहित्य, धार्मिक दर्शन, धार्मिक संस्कृति, आधुनिक विज्ञान और शोध जैसे विषयों की शिक्षा प्रदान करके, इस संस्थान की स्थापना लॉर्ड मैकॉले की शिक्षा नीति के स्थान पर एक स्वदेशी विकल्प लाने के हेतु से की गयी थी । यह एक डीम्ड यूनिवर्सिटी है , जिसे पूर्णत: यू जी सी/भारत सरकार द्वारा फंड प्राप्त होता है ।
(विस्तृत जानकारी के लिए देखें : gov&ac&in)
गुरुकुल कांगड़ी का ही लड़कियों के लिये एक विशेष विभाग है कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, जो लड़कियों का एक बोर्डिंग स्कूल है, उसकी स्थापना ८ नवंबर १९२३ को दिल्ली में आर्य समाज के आचार्य रामदेवजी द्वारा की गयी थी वह जो बाद में १ मई १९२७ को देहरादून आ गया । यहाँ पहली से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा उपलब्ध है, साथ ही कला और विज्ञान में, स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्स, प्रोफेशनल पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स जैसे एम.बी.ए., एम.बी.ई. और एम.बी.एफ. के कोर्स भी चलाये जाते हैं ।
कन्या गुरुकुल का उद्देश्य है, लड़कियों को ऐसी आधुनिक, कम खर्चीली, श्रेष्ठ शिक्षा देना जिसमें पारंपरिक और प्राचीन संस्कारों की शिक्षा भी शामिल हो, वैदिक शिक्षा और योग को महत्व दिया जाता हो, जहाँ लड़कियों
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समृद्धि का क्या अर्थ रह जायेगा ?
महाभारत और कुछ समय बाद तक आर्षपद्धति से ही शिक्षा ग्रहण की जाती थी । कर्मणा वर्ण-व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था थी । उस समय यह देश विद्या में विश्वगुरु कहलाया था, धन-समृद्धि में स्वर्णभूमि और सोने की चिड़िया, बल में अनेक देशों का विजेता था ।किसी की इधर आँख उठाने की हिम्मत नहीं पड़ी । उस पद्धति से स्वायम्भुव मनु, जनक जैसे राजनीतिज्ञ; मय और तूष्टा जैसे शिल्पज्ञ; नल, नील जैसे सेतु-विशेषज्ञ; वाल्मीकि, व्यास, कालीदास जैसे महाकवि; चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट जैसे आयुर्वेदज्ञ; अर्जुन जैसे धनुर्धारी; राम, कृष्ण जैसे पुरुषोत्तम व ज्ञानी; षड्दर्शनकारों जैसे दार्शनिक सिद्धान्तदाता उत्पन्न हो चुके हैं । फिर वह पद्धति अमनोवैज्ञानिक और अनुपयोगी कैसे कहला सकती है ?
महर्षि ने ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनिपर्यन्त प्रचलित उसी. आर्ष पाठविधि का अनुगमन करते हुए उसे समन्वयात्मक रूप से प्रस्तुत किया है । महर्षि ने पठन- पाठन बिधि और क्रम की जो रूपरेखा दी है, उसका अभिप्राय यह नहीं है कि महर्षि उससे अधिक या कम अध्ययन को स्वीकार नहीं करते अथवा यह चाहते थे कि कोई इससे स्तीभर भी इधर-उधर न हो । उन्होंने एक मुख्य मार्ग दिया है, वह मार्ग आवश्यक है, किन्तु चलने में कुछ समायोजन हो सकता है । उन्होंने मुख्य विषय के रूप में कुछ शास्त्रों का परिगणन किया है, उनके अनुकूल सहयोगी और समृद्ध ग्रंथ या विद्या के रूप में अन्य विषय भी हो सकते हैं । उसको व्यापक रूप से समझने के लिए उनके समग्र संदर्भ पर ध्यान देना होगा और उनके मूल सिद्धान्तों तथा शिक्षा-नीतियों को भी समझना होगा ।
महर्षि की शिक्षा-नीति के आधारभूत सिद्धान्त इस प्रकार हैं -
१, आर्ष पाठविधि सर्वोत्तम पाठविधि है [इसका उद्देश्य है, 'मानव को 'मानव' बनाना, एक धार्मिक एवं नैतिक नागरिक बनाना । धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की सिद्धि करना । धमार्जिन करना, धर्मपूर्वक अर्थप्राप्ति करना, अर्थ से काम अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति करना और इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति करने के योग्य बनाना । इस प्रकार यह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ अध्यात्मवाद की पाठविधि है । इसका विस्तार परमाणु से लेकर परमेश्वर पर्यन्त है । इतनी व्यापकता किसी पाठविधि में नहीं मिलती ।
२. यह एक विशेषज्ञता की पाठविधि है । विशेषज्ञता का यह कार्य प्रारम्भ से ही आरम्भ हो जाता है । विशेषज्ञता के लिए एक मुख्य विषय क्रमश: पढ़ा जाता है ।
३. सबके लिए अनिवार्य शिक्षा होनी चाहिए । यदि कोई माता, पिता बालक-बालिका को आठ वर्षकी आयु तक गुरुकुल/आश्रम में न भेजें तो शासन की ओर से दण्डनीय हों ।
४. सभी प्रकार की शिक्षा पर मानवमात्र का समान अधिकार है ।
५. सह-शिक्षा वर्जित है। लड़के-लड़कियों के पृथक-पृथक गुरुकुल हों और वे गांव/नगर से १३-१४ किलो मीटर दूर हों । सभी का गुरुकुल निवास विद्यासमाप्ति तक अनिवार्य है ।
६. शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए । आर्थिक प्रबन्ध शासन एवं सम्बन्धी वर्ग की ओर से हो । जो माता-पिता गुरुकुल में स्वेच्छा से दान देना चाहें, वे भी दें । अन्य आर्थिक व्यय लिये जा सकते हैं ।
७. शिक्षा का मुख्य माध्यम संस्कृत भाषा हो । देवनागरी या मातृभाषाएँ सहयोगी माध्यम हों । प्रयोजन के अनुसार विदेशी भाषाएँ भी पढ़ायें ।
८. वेदानुकूलता में कोई भी सहयोगी ग्रंथ, विषय या विद्या पढ़ा सकते हैं । वेद्विरोधी ग्रंथ अमान्य हैं । मुख्य विषय निर्धारित हैं । सहयोगी निर्धारित किये जा सकते हैं ।
९, पूर्ण शिक्षापद्धति चौदह विद्याओं की प्राप्ति की है । उसमें स्वल्प-अधिक का विकल्प भी है। रुचि के अनुसार विषयविशेष में योग्यता प्राप्त की जा सकती है । उन्हीं के अन्तर्गत सब विद्याएं आ जाती हैं ।
१०, वर्णानुसार शिक्षा का विकल्प छात्रों पर निर्भर
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है। अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार कोई भी बालक किसी भी वर्ण की शिक्षा प्राप्त कर सकता है ।
११, कम से कम सोलह वर्ष तक कन्याओं को और पच्चीस वर्ष तक बालकों को गुरुकुल में रहकर विद्या-अर्जन करना आवश्यक है। विवाह उसके बाद ही होना चाहिए । अधिक विद्यार्जन करना अति श्रेयस्कर है । वह विद्यार्थियों की रुचि और योग्यता पर निर्भर है ।
१२. कला-कौशल, शिल्प-विज्ञान या विज्ञान का प्रशिक्षण अवश्य होना चाहिए। किसी भी नये-पुराने कौशल या विज्ञान की शिक्षा दी जा सकती है । महर्षिजी ने स्वयं एक कला-कौशल प्रशिक्षण विद्यालय बनाने की योजना विचारी थी । विज्ञान का वेदज्ञान से कोई विरोध नहीं है । इस प्रकार महर्षि की पाठविधि व्यापकतम और सम्पूर्ण पाठविधि है जिसमें न प्राचीनता की संकीर्णता है, न आधुनिक ज्ञान की उपेक्षा । अन्तर केवल उसकी गम्भीरता को समझने का है ।
(विस्तृत जानकारी के लिए लेखक की पुस्तक 'महर्षि दयानन्द्वर्णित' शिक्षापद्धति' पढ़ें ।)
प्रकाशक : दर्शन योगमहाविद्यालय,
आर्यवन, रोजड़़, पत्रा, सागपुर,
ता. तलोद, जि. साबरकांठा (गुजरात) ३८३३०७
दूरभाष : (०२७७०) २८७४१८, २८७५१८
चलभाष : ९४०९४ श५०११, ९४०९४ १५०१७
ई मेल : darshanyoggmail.com
वेबसाइट : www.darshanyog.org
९. सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल
श्री सत्य साई हायर सेकेन्डरी स्कूल स्वयं भगवान श्री सत्य साई बाबा की प्रेरणा से इनका शुभारंभ हुआ...वही उनका जीवन. और आत्मा हैं, प्रेरणा और लक्ष्य हैं। बच्चोंं के मन को सुमन बनाने के लिए, उनके इस मिशन की शुरुआत १५ जून, सन् १९८१ में हुई।
भगवान के शैक्षणिक संस्थानों की शिक्षा पद्धति में, भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। उस काल के गुरु यह जानते थे कि विद्यार्थियों को जीवन-निर्वाह हेतु धन कमाने के लिए, केवल सांसारिक ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता । शिक्षा पाकर उन्हें अपने जीवन में सच्चा आनन्द भी मिलना चाहिए।अतः उन्होंने ऐसे ज्ञान पर जोर दिया, जो समाज की सेवा करने में काम आ सके और छात्र एक सही और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनकर अपना जीवन जी सकें। चरित्र- निर्माण को शिक्षा का आदर्श माना जाता था।
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सा विद्या या विमुक्तये। इस आध्यात्मिक उक्ति के अनुरूप हुआ करता था । आज, हमारे देश की शिक्षा पद्धति इस आदर्श के बिल्कुल विपरीत है। शिक्षा के क्षेत्र के मूर्खतापूर्ण व्यवसायीकरण से, हम एक ऐसी स्थिति की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं जहाँ समाज, आर्थिक दृष्टि से तो समृद्ध है लेकिन नैतिकता की दृष्टि से दिवालिया होता जा रहा है।
सत्य, अज्ञापालन, कृतज्ञता और ईमानदारी जबरन पीछे छूटते जा रहे हैं और उनकी जगह पर ताकत और धन-दौलत की भूख सवार होती जा रही है।लेकिन इसके फलस्वरूप, आज सामान्य रूप से समाज में जो खलबली मची हुई है...और विशेषकर विद्यार्थियों में बेचैनी और व्याकुलता बढ़ती जा रही है...वह इस बात की ओर इंगित कर रही है कि आज की शिक्षा-पद्धति, अपने उद्देश्य की पूर्ति बिल्कुल नहीं कर पा रही है।
इस संदर्भ में, भगवान ने एज्युकेअर(Educare) की संकल्पना देकर पथ-प्रदर्शक का काम किया है। लैटिन में Educare का अर्थ है, अन्तर्निहित की अभिव्यक्ति. .उसे व्यक्त करना, जो अन्दर छिपा हुआ है।स्कूलों और कॉलेजों में, शिक्षा की जो पद्धति भगवान ने स्थापित की है, वह संपूर्ण है, सर्वागीण है। (holistic)।
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मिली, अनुकूल प्रतिसाद मिला तो समाज के अन्य २०-२५ बालकों के साथ साबरमती में ही सिद्धाचल वाटिका नाम से संस्कृत पाठशाला आरम्भ की । कालांतर में जिससे चार गुरुकुल प्रारंभ हुए। हेमचंद्राचार्थ पाठशाला के साथ अहमदाबाद में ही बहिनों हेतु एक, तथा सूरत व मुंबई में एक-एक गुरुकुल प्रारंभ हुआ । वर्तमान में इन सबमें कुल मिलाकर ५०० से अधिक विद्यार्थी हैं । तथाकथित आधुनिक शिक्षा को त्यागकर, डिग्री-विहीन शिक्षण की सफलता से प्रेरित होकर ही उन्होंने दिनांक ३१-१२-२००८ को निःशुल्क और आवासीय शिक्षा प्रदान करने हेतु विधिवत रूप से हेमचंद्राचार्य गुरूकुलम का शुभारम्भ किया । प्रथम ६ वर्ष प्रचार से दूर रहते हुए , उत्तम परिणाम की प्रतीक्षा की । आधुनिक घरों से आये बालकों में गुरुकुलीय प्राचीन शिक्षा द्वारा अपेक्षित परिवर्तन, और भवितव्य का सौंदर्य दिखा तो पिछले १-२ वर्षों में इसका प्रचार कार्य आरम्भ किया । स्थिति यह है कि आज प्रत्येक दिन औसतन कम से कम एक से दो बालक यहाँ प्रवेश हेतु आते हैं, ऐसे लगभग ३०० बालक स्थानाभाव के कारण एक वर्ष से प्रतीक्षा-सूची-रत हैं ।
कार्य-पद्धति
गुरुकुल की दिनचर्या में प्रातः ५ बजे कक्षाएं प्रारंभ होती हैं जो रात्रि ९.३० तक चलती हैं । उत्तमभाई की योजना में ७२ कलाओं का ज्ञान ही यहाँ का पाठ्यक्रम है । आधुनिक भवन को सम्पूर्ण रूप से गौ के गोबर से लीपा गया है, जहाँ विद्यार्थी निवास व अध्ययन करते हैं । गुरुकुल की गौशाला में ५० से अधिक गिर-वंश कि गायें हैं । भोजन सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य ही होता है । सभी सामग्री जैविक खेती से उपजाई ही उपयोग में लायी जाती है । भोजन पकाने हेतु कंडे व लकड़ी का प्रयोग किया जाता है । किसी भी प्रकार के आधुनिक उपकरण, एलपीजी, या अन्य कोई इलेक्ट्रिक सामान यहाँ उपयोग में नहीं लाया जाता है । आहारशास्त्र व आरोग्यशास्त्र कि दृष्टि से बैठकर पीतल व कांस्य के बर्तनों में ही भोजन कराया जाता है । सभी व्यवस्थाएं धार्मिकता यानि प्रकृति के कम से कम दोहन और सहस्तित्व पर आधारित ही हैं । स्थानाभाव के कारण इतना ही कहना उचित होगा कि यह गुरुकुल स्वयं देखकर आने का विषय है क्योंकि जो स्पष्टटा, आनन्द और अनुभूति गुरुकुल का प्रत्यक्ष अध्ययन करने से होगी वह किसी भी लेख से प्राप्त नहीं की जा सकती, वर्ष भर और प्रतिदिन देश-भर से अतिथिगण इस गुरुकुल को जानने हेतु यहाँ पधारते ही हैं ।
भविष्य की कार्ययोजना में वर्तमान छात्रों को स्वरोजगार, व्यवसाय कि दृष्टि से व्यावहारिक प्रशिक्षण तो है ही, गुरुकुल में और अधिक संख्या में छात्र अध्ययन करें इस दृष्टि से सभी व्यवस्थाओं का विस्तारीकरण भी चल रहा है । साथ ही देश भर में ऐसे अन्य संस्थान आरम्भ करने हेतु यह गुरुकुल हर संभावित सहायता को तत्पर है । अतः पूरे देश में नए गुरुकुल आरम्भ करने हेतु कार्यकर्ता देश-भर में प्रवास करते हुए प्रचार और अन्य प्रयास कर रहे हैं। गुरुकुल का अगला प्रयास आर्यगप्राम की योजना है। आर्यग्राम कुछ एकड़ स्थान पर बसाया हुआ एक छोटा सा ग्राम होगा जिसमें चारों वर्ण के लोग पूर्णतः प्रकृति के सानिध्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से रहेंगे । मुख्य केंद्र गुरुकुल होगा, ग्राम के सभी संसाधन नैसर्गिक हों, कृषि मुख्य व्यवसाय हो, किसी भी वस्तु के लिए दूसरों पर निर्भरता न हो, ऐसी योजना है और इस प्रकल्प की सारी तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी हैं। भूमि के अनेक विकल्पों में से किसी एक उपयुक्त का चुनाव शेष है । इसका एक उद्देश्य यह है कि जो शिक्षा गुरुकुल में दी जाती है, उसका जीवन में व्यवहार्य हो, भारत के ग्रामों के समक्ष एक आदर्श उद्हारण प्रस्तुत किया जा सके ।
गुरुकुल शिक्षा का आदर्श
यहाँ के छात्र भविष्य में कई कलाओं से सम्पन्न उच्च कोटि के नागरिक बनेंगे । इनमें ऐसे संगीतकार,
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११. गृहविद्यालय (होम स्कूलिंग)
यह संज्ञा अमेरिका से आयात हुई है इसलिये उसे होम स्कूलिंग के नाम से ही जाना जाता है । परन्तु उसका धार्मिक स्वरूप धीरे धीरे बन रहा है |
भारत में इसकी मूल प्रेरणा अपने बच्चोंं को प्रचलित शिक्षा पद्धति के दृूषणों से बचाने की इच्छा में है । देश में हजारों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चोंं को मुख्य धारा की शिक्षा देना नहीं चाहते । इसके अनेक कारण हैं । एक कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा अत्यन्त कृत्रिम है और महानगरों में तो संस्कारशून्य है । दूसरा कारण यह है कि मुख्य धारा की शिक्षा में अनेक ऐसे विषय हैं जो मातापिता अपने बालक के लिये आवश्यक नहीं समझते, साथ ही आवश्यक हैं वे विषय पढाये नहीं जाते |
होम स्कूलिंग को भारत में गृहविद्यालय कहना उचित होगा । यद्यपि गृहविद्यालय से - या होम स्कूलिंग से भी - पूर्ण अर्थबोध नहीं होता । आज मुख्य तात्पर्य तो विद्यालय का विकल्प निर्माण करना ही है । घर में मातापिता ही शिक्षक की भूमिका निभाते हैं । यह घर की शिक्षा नहीं है, घर में विद्यालय की शिक्षा है । समविचारी परिवार एकत्र आकर अपने बच्चोंं को पढ़ाने का प्रयास करते हैं |
ऐसा करने के लिये मातापिता में शिक्षक के गुण और कौशल होना आवश्यक है । हर माता पिता में ये कमअधिक मात्रा में होते हैं इसलिये विभिन्न विषयों के जानकार अन्य शिक्षकों का सहयोग भी लिया जाता है |
इन विद्यालयों के लिये भारत के संविधान के तहत बना 'निःशुल्क और अनिवार्य' शिक्षा का कानून संकट निर्माण करता है परन्तु इस सम्बन्ध में न्यायालय में विचार हो रहा है |
शैक्षिक दृष्टि से देखें तो गृहविद्यालय संकल्पना की बहुत सम्भावनायें है |
१. दस वर्ष की आयु तक मातापिता ही अपने बच्चोंं को पढाये यह उचित है । आज जब मातापिता अपने बच्चोंं को जल्दी से जल्दी विद्यालय भेजना चाहते हैं तब दस वर्ष की आयु तक घर में पढाने का विषय अस्वाभाविक लग सकता है । परन्तु मातापिताओं को अपने आपको सक्षम बनाना चाहिये और देश की शिक्षा व्यवस्था में मातापिताओं को इसमें प्रेरणा और सहयोग देना चाहिये |
२. गृहविद्यालय आज के विद्यालय का ही पर्याय होना पर्याप्त नहीं है । इसमें विद्यालयीन शिक्षा और घर की शिक्षा का समन्वय होना चाहिये |
३. दस वर्ष की आयु तक तो बालक इन विद्यालयों में पढ़ेंगे ही । आगे भी पाँच वर्ष की पढाई हो सकती है ।
४. आगे की शिक्षा गृह के समान गुरुकुल में हो ऐसी व्यवस्था का विचार भी किया जा सकता है ।
५. भारत में आज मुख्य धारा के पर्याय की अनिवार्य आवश्यकता है. ।. वर्तमान होम. स्कूलिंग यदि अमेरिकन मोडेल को छोडकर धार्मिक मोडेल विकसित करते हैं तो वह शिक्षा की बडी सेवा होगी |
६. ऐसा करने के लिये असोसिएशन या संगठन की आवश्यकता रहेगी । पाठ्यक्रमों और पाठन पद्धति के लिये भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता रहेगी ।
७. आज तो धनवान मातापिता के बच्चोंं के लिये केवल महानगरों में यह प्रयोग आरम्भ हुआ है परन्तु इसका प्रसार भी हो सकता है ।
संक्षेप में इस संकल्पना को अधिक ठोस बनाने की आवश्यकता है |