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साथ ही चिन्मय मिशन सांस्कृतिक मूल्यों को
साथ ही चिन्मय मिशन सांस्कृतिक मूल्यों को
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पुनर्जीवित कर रहा है...५००० से भी अधिक गाँवों में व्यापक रूप से समाज सेवा का कार्य कर रहा है । ८० स्कूलों और ७ कॉलेजों में शिक्षा प्रदान कर रहा है । बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु के लोगों को सृजनात्मक तरीके से वेदान्त का ज्ञान दे रहा है ।
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पुनर्जीवित कर रहा है...५००० से भी अधिक गाँवों में व्यापक रूप से समाज सेवा का कार्य कर रहा है । ८० स्कूलों और ७ कॉलेजों में शिक्षा प्रदान कर रहा है । बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु के लोगोंं को सृजनात्मक तरीके से वेदान्त का ज्ञान दे रहा है ।
चिन्मय बाल विहार
चिन्मय बाल विहार
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सातों दिन सुबह ४. ३० बजे उठकर रात के ९.३० बजे सोने तक की दिनचर्या का समावेश है ।
सातों दिन सुबह ४. ३० बजे उठकर रात के ९.३० बजे सोने तक की दिनचर्या का समावेश है ।
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विद्यार्थियों को विश्व के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से आये हज़ारों लोगों के सामने अपनी योग्यता दूशनि के बहुआयामी अवसर प्राप्त होते हैं ।
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विद्यार्थियों को विश्व के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से आये हज़ारों लोगोंं के सामने अपनी योग्यता दूशनि के बहुआयामी अवसर प्राप्त होते हैं ।
प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को पूज्य गुरुदेव की दिव्य उपस्थिति में अपनी योग्यता दिखाने का और साथ ही विभिन्न देशों की यात्रा करने का अवसर भी मिलता है । ऐसे विद्यार्थी जो एस एस एल सी (१०वीं कक्षा) की परीक्षा में बैठना चाहते है उन्हें यह संस्थान प्रशिक्षण प्रदान करता है ।(कर्नाटक के बाहर से आये विद्यार्थियों को इस परीक्षा में बैठने के लिए कम से कम ५ वर्षों तक यहाँ रहना होता है ।)
प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को पूज्य गुरुदेव की दिव्य उपस्थिति में अपनी योग्यता दिखाने का और साथ ही विभिन्न देशों की यात्रा करने का अवसर भी मिलता है । ऐसे विद्यार्थी जो एस एस एल सी (१०वीं कक्षा) की परीक्षा में बैठना चाहते है उन्हें यह संस्थान प्रशिक्षण प्रदान करता है ।(कर्नाटक के बाहर से आये विद्यार्थियों को इस परीक्षा में बैठने के लिए कम से कम ५ वर्षों तक यहाँ रहना होता है ।)
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बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चों को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चों को ऐसे लोगों के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चों का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम् स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था |
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बन्दर जैसे थे और हम प्रगति कर रहे हैं । इन गृहस्थ भक्तों ने निश्चय किया कि यह सब गलत बातें वे अपने बच्चों को कतई नहीं सिखा सकतें और न तो वे अपने बच्चों को ऐसे लोगोंं के साथ रखेंगे जो ऐसे विचारों से ग्रस्त हो । इसके अलावा उन्होंने देखा कि स्कूलों में पढ़ें बच्चों का चरित्र निश्चित रूप से नष्ट हो जाता है। इस बात को समझना उनके लिये सरल था क्योंकि उन्होंने स्वयम् स्कूल में पढ़कर अपना चरित्र बिगाड़ा था और फिर प्रभुपाद कि पुस्तकों के माध्यम से भक्त बनने के बाद सही चरित्र के बारे में समझकर स्वयं को सुधारा था |
अतः छह परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चों को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम् और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चों को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया ।
अतः छह परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल में न भेजकर स्वयं पढ़ाना आरम्भ किया । लेकिन उनको पता था कि श्री प्रभुपाद चाहते थे कि बच्चों को वैदिक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाया जाय जिसमें मुख्य ग्रन्थ हो श्रीमटूभागवतम् और भगवदूगीता । इसलिये थोड़े समय बाद (४ साल पहले) उन्होने साथ मिलकर अवन्ति आश्रम नामक एक गुरुकुल की स्थापना की । उनको यह भी पता था कि श्री प्रभुपादने बच्चों को मात्र आध्यात्मिक शिक्षा देने को ही नहीं अपितु जीवन यापन हेतुं कोइ न कोइ वैदिक ग्रामीण व्यवसाय भी सिखाने को बताया है । श्री प्रभुपाद की तीव्र इच्छा थी कि वैदिक वर्णश्रिम व्यवस्था पुनः स्थापित हो जिससे हमारी सभी आवश्यकताएँ - आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक - पूर्ण हो जाय और हरे कृष्ण कीर्तन एवं भक्ति के माध्यम से हम सब आध्यात्मिक प्रगति कर जीवन के ध्येय को प्राप्त करें । इसको पुनः स्थापित करने के लिये उन्होंने अपनी पुस्तकों में प्रचुर मात्रा में व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है । इस मार्गदर्शन का पालन करते हुए इन भक्तों ने नन्दग्राम परियोजना की स्थापना की (अवन्ति गुरुकुल इस परियोजना का एक भाग है) । शरुआत में इस परियोजना में ४ गृहस्थ परिवार और ७ बच्चे थे । इन परिवारों ने अपनी उच्च तनखा वाली नौकरीयाँ (१ लाख रुपया प्रति मास) छोड दी और पूर्णतः वैदिक जीवन जीने का संकल्प किया ।
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विवेकानन्द केन्द्र प्रशिक्षण सेवा प्रकल्प :
विवेकानन्द केन्द्र प्रशिक्षण सेवा प्रकल्प :
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विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों को सेवा-गतिविधियों का प्रशिक्षण ।
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विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगोंं को सेवा-गतिविधियों का प्रशिक्षण ।
गतिविधियाँ : शिविर, बालवाड़ी, हेल्थ सेंटर, बॉयसू होस्टेल (www.vkpsp.org)
गतिविधियाँ : शिविर, बालवाड़ी, हेल्थ सेंटर, बॉयसू होस्टेल (www.vkpsp.org)
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वैदिक विजन फाउन्डेशन :
वैदिक विजन फाउन्डेशन :
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उद्देश्य - विचारकों और वैदिक ज्ञान के विद्वानों को जोड़ना, वैदिक विषयों का अध्ययन और शोध, वैदिक विद्वानों की सहायता करना, वैदिक ज्ञान का प्रसार करना, ताकि लोगों को परिवारों में यौगिक सत्य के अभ्यास को करने की प्रेरणा मिले ।
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उद्देश्य - विचारकों और वैदिक ज्ञान के विद्वानों को जोड़ना, वैदिक विषयों का अध्ययन और शोध, वैदिक विद्वानों की सहायता करना, वैदिक ज्ञान का प्रसार करना, ताकि लोगोंं को परिवारों में यौगिक सत्य के अभ्यास को करने की प्रेरणा मिले ।
व्यक्तित्व विकास कोर्स, आध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन, विविध पुस्तकों का प्रकाशन, योग व प्राणायाम
व्यक्तित्व विकास कोर्स, आध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन, विविध पुस्तकों का प्रकाशन, योग व प्राणायाम