Line 93: |
Line 93: |
| | | |
| ==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना ==== | | ==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना ==== |
− | शिक्षा के भारतीयकरण की प्रक्रिया सरल भी नहीं हैं और शीघ्र सिद्ध होने वाली भी नहीं है । इससे जुड़े हुए अनेक ऐसे पहलू हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है। हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य को सिद्ध होने में तीन पीढ़ियों का समय लगता है। विद्यापीठ ने तीन पीढ़ियाँ अर्थात् साठ वर्षों का समय मानकर उसके पाँच चरण बनाये हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का होगा । हमारे शास्त्र बारह वर्ष के समय को एक तप कहते हैं। इसलिए पुनरुत्थान की यह योजना पाँच तपों की योजना है। | + | शिक्षा के भारतीयकरण की प्रक्रिया सरल भी नहीं हैं और शीघ्र सिद्ध होने वाली भी नहीं है । इससे जुड़े हुए अनेक ऐसे पहलू हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है। हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य को सिद्ध होने में तीन पीढ़ियों का समय लगता है। विद्यापीठ ने तीन पीढ़ियाँ अर्थात् साठ वर्षों का समय मानकर उसके पाँच चरण बनाये हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का होगा । हमारे शास्त्र बारह वर्ष के समय को एक तप कहते हैं। अतः पुनरुत्थान की यह योजना पाँच तपों की योजना है। |
| | | |
| '''पहला तप नेमिषारण्य''' : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात् कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अठासी हजार ऋषियों ने बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विट्ठजनों को सम्मिलित कर फिर से ज्ञानयज्ञ करने की आवश्यकता है। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण है। | | '''पहला तप नेमिषारण्य''' : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात् कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अठासी हजार ऋषियों ने बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विट्ठजनों को सम्मिलित कर फिर से ज्ञानयज्ञ करने की आवश्यकता है। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण है। |
Line 99: |
Line 99: |
| '''२. दूसरा तप लोकमत परिष्कार''' : शिक्षा सर्वजन समाज के लिए होती है। सर्वजन का प्रबोधन करना, शिक्षा के नये प्रतिमान को समाज से स्वीकृति दिलवाना, लोकजीवन में विद्यमान रूढि, कर्मकांड, अन्धश्रद्धा को परिष्कृत करना भी शिक्षा का कार्य है । अतः लोकमत परिष्कार या लोक शिक्षा, यह दूसरा चरण होगा। | | '''२. दूसरा तप लोकमत परिष्कार''' : शिक्षा सर्वजन समाज के लिए होती है। सर्वजन का प्रबोधन करना, शिक्षा के नये प्रतिमान को समाज से स्वीकृति दिलवाना, लोकजीवन में विद्यमान रूढि, कर्मकांड, अन्धश्रद्धा को परिष्कृत करना भी शिक्षा का कार्य है । अतः लोकमत परिष्कार या लोक शिक्षा, यह दूसरा चरण होगा। |
| | | |
− | '''३. तीसरा तप परिवार शिक्षा''' : शिक्षा व्यक्ति के जन्म पूर्व से आरम्भ हो जाती है। उस समय शिक्षा देनेवाले माता-पिता होते हैं । इसलिए माता को प्रथम गुरु कहा गया है । परिवार में संस्कार होते हैं, चरित्र निर्माण होता है । परिवार कुल परम्परा, कौशल परम्परा, व्यवसाय परम्परा तथा वंशपरंपरा का वाहक होता है । अतः परिवार शिक्षा यह तीसरा चरण है। | + | '''३. तीसरा तप परिवार शिक्षा''' : शिक्षा व्यक्ति के जन्म पूर्व से आरम्भ हो जाती है। उस समय शिक्षा देनेवाले माता-पिता होते हैं । अतः माता को प्रथम गुरु कहा गया है । परिवार में संस्कार होते हैं, चरित्र निर्माण होता है । परिवार कुल परम्परा, कौशल परम्परा, व्यवसाय परम्परा तथा वंशपरंपरा का वाहक होता है । अतः परिवार शिक्षा यह तीसरा चरण है। |
| | | |
− | '''४. चौथा तप शिक्षक निर्माण''' : देश की भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए समर्थ शिक्षकों की आवश्यकता रहती है। जब तक दायित्वबोधयुक्त और ज्ञान सम्पन्न शिक्षक नहीं होते तब तक भारतीय शिक्षा देनेवाले विद्याकेन्द्र नहीं चल सकते । इसलिए सुयोग्य शिक्षक निर्माण करना, यह योजना का चौथा चरण है। | + | '''४. चौथा तप शिक्षक निर्माण''' : देश की भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए समर्थ शिक्षकों की आवश्यकता रहती है। जब तक दायित्वबोधयुक्त और ज्ञान सम्पन्न शिक्षक नहीं होते तब तक भारतीय शिक्षा देनेवाले विद्याकेन्द्र नहीं चल सकते । अतः सुयोग्य शिक्षक निर्माण करना, यह योजना का चौथा चरण है। |
| | | |
| '''५. पाँचवाँ तप विद्यालयों की स्थापना''' : पहले चारों चरण ठीक से सम्पन्न हो गये तो पाँचवा चरण सरल हो जायेगा। और निर्माण किये हुए शिक्षक जब देशभर में विद्यालय चलायेंगे, तभी भारतीय स्वरूप की शिक्षा दी जा सकेगी। इस प्रकार योजनाबद्ध चरणबद्ध रीति से कार्य किया जाय तो साठ वर्षों की अवधि में अपेक्षित परिवर्तन सम्भव है। | | '''५. पाँचवाँ तप विद्यालयों की स्थापना''' : पहले चारों चरण ठीक से सम्पन्न हो गये तो पाँचवा चरण सरल हो जायेगा। और निर्माण किये हुए शिक्षक जब देशभर में विद्यालय चलायेंगे, तभी भारतीय स्वरूप की शिक्षा दी जा सकेगी। इस प्रकार योजनाबद्ध चरणबद्ध रीति से कार्य किया जाय तो साठ वर्षों की अवधि में अपेक्षित परिवर्तन सम्भव है। |
| | | |
| ==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की संरचना ==== | | ==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की संरचना ==== |
− | आज हमारे देश में चलने वाले विश्वविद्यालय लंदन युनिवर्सिटी की पद्धति पर चलने वाले विश्व विद्यालय है। जबकि पुनरुत्थान विद्यापीठ भारत के प्राचीन विद्यापीठों की । पद्धति पर चलने वाला विद्यापीठ है। इसलिए यह पूर्ण स्वायत्त, विशुद्ध भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलने वाला निःशुल्क विद्यापीठ है। | + | आज हमारे देश में चलने वाले विश्वविद्यालय लंदन युनिवर्सिटी की पद्धति पर चलने वाले विश्व विद्यालय है। जबकि पुनरुत्थान विद्यापीठ भारत के प्राचीन विद्यापीठों की । पद्धति पर चलने वाला विद्यापीठ है। अतः यह पूर्ण स्वायत्त, विशुद्ध भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलने वाला निःशुल्क विद्यापीठ है। |
| | | |
| इस कार्य का प्रारम्भ व्यासपूर्णिमा २००४ को धर्मपाल साहित्य के प्रकाशन से हुआ था। उस समय इसका नाम पुनरुत्थान ट्रस्ट था। आगे चलकर व्यासपूर्णिमा २०१२ को इसे '''<nowiki/>'पुनरुत्थान विद्यापीठ'''' नाम मिला। भारत का पुनरुत्थान ही पुनरुत्थान विद्यापीठ का मुख्य उद्देश्य है, भारतीय शिक्षा उसका साधन है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विद्यापीठ की संरचना बनी है, जो इस प्रकार | | इस कार्य का प्रारम्भ व्यासपूर्णिमा २००४ को धर्मपाल साहित्य के प्रकाशन से हुआ था। उस समय इसका नाम पुनरुत्थान ट्रस्ट था। आगे चलकर व्यासपूर्णिमा २०१२ को इसे '''<nowiki/>'पुनरुत्थान विद्यापीठ'''' नाम मिला। भारत का पुनरुत्थान ही पुनरुत्थान विद्यापीठ का मुख्य उद्देश्य है, भारतीय शिक्षा उसका साधन है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विद्यापीठ की संरचना बनी है, जो इस प्रकार |