५. पुनरुत्थान विद्यापीठ
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शुद्ध भारतीय स्वरूप का एक सर्वसमावेशक विद्याकेन्द्र
भारतीय ज्ञान के मूल स्रोत समान वेदों का युरोपीय भाषा में अनुवाद करने वाले पंडित मैक्समूलर ने अपने मित्र को भेजे एक पत्र में लिखा था...
India has been conquered once, but she should be conquered again. And the second conquest should be the conquest through educaiton. (अक्टूबर १८६८)
अर्थात् भारत एक बार जीता गया है, परंतु वह (सर्वार्थ में) दूसरी बार जीता जाना चाहिये, और यह दूसरी विजय शिक्षा के माध्यम से होनी चाहिये ।
और मैकोले प्रणीत शिक्षा के माध्यम से भारत जीता गया । मैक्समूलर के इस कथन का उत्तर देना अभी बाकी है । यह उत्तर होगा...
भारतमाता एक बार मुक्त हुई है, परंतु उसे (सर्वार्थ में) दूसरी बार मुक्त करने की आवश्यकता है । यह दूसरी मुक्ति भी होगी शिक्षा के माध्यम से ।
यह उत्तर देगा पुनरुत्थान विद्यापीठ ।
भारत की शिक्षा परम्परा विश्व में प्राचीनतम और श्रेष्ठतम रही है। गुरुकुल, आश्रम, विद्यापीठ एवं छोटे छोटे प्राथमिक विद्यालयों में जीवन का सर्वतोमुखी विकास होता था और व्यक्ति का तथा राष्ट्र का जीवन सुख, समृद्धि, संस्कार एवं ज्ञान से परिपूर्ण होता था । विश्व भी उससे लाभान्वित होता था। इन विद्याकेन्द्रों का आदर्श लेकर पुनरुत्थान विद्यापीठ कार्यरत है।
पुनरुत्थान विद्यापीठ के तीन आधारभूत सूत्र
१. विद्यापीठ पूर्णरूप से स्वायत्त रहेगा।
- शिक्षा की स्वायत्त व्यवस्था इस देश की परम्परा रही है । इस परम्परा की पुनःप्रतिष्ठा करना शिक्षाक्षेत्र का महत्त्वपूर्ण दायित्व है।
- स्वायत्तता से तात्पर्य क्या है और स्वायत्त शिक्षातंत्र कैसे चल सकता है, इसे स्पष्ट करने का प्रयास विद्यापीठ करेगा।
- विद्यापीठ शासनमान्यता से भी अधिक समाजमान्यता और विद्वन्मान्यता से चलेगा।
२. विद्यापीठ शुद्ध भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलेगा।
इस सूत्र के दो पहलू हैं ।
१. विश्व के अन्यान्य देशों में जो ज्ञानप्रवाह बह रहे हैं उनको देशानुकूल बनाते हुए भारतीय ज्ञानधारा को पुष्ट करना ।
२. प्राचीन ज्ञान को वर्तमान के लिये युगानुकूल स्वरूप प्रदान करना।
३. विद्यापीठ की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था निःशुल्क रहेगी।
भारतीय परम्परा में अन्न, औषध और विद्या कभी क्रयविक्रय के पदार्थ नहीं रहे । इस परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए इस विद्यापीठ में अध्ययन करने वाले छात्रों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा।
तथापि अन्यान्य व्यवस्थाओं के लिये धन की आवश्यकता तो रहेगी । अतः यह विद्यापीठ सर्वार्थ में समाजपोषित होगा ।
विद्यापीठ में सादगी, श्रमनिष्ठा एवं अर्थसंयम का पक्ष महत्त्वपूर्ण रहेगा । सुविधा का ध्यान रखा जायेगा, वैभवबिलासिता का नहीं ।
पुनरुत्थान के कार्य एवं कार्यक्रम
शिक्षा क्षेत्र में पुनरुत्थान विद्यापीठ भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा के मूलगामी कार्य में जुटा हुआ है । तदनुसार ही कार्य एवं कार्यक्रमों की योजना व रचना हुई है।
- विद्वत् परिषद का गठन : भारतीय शिक्षा में योगदान देने वाले सम्पूर्ण देश के १०१ विद्वानों की विद्वत् परिषद का गठन करना जो अध्ययन-अनुसंधान कार्यों का मार्गदर्शन एवं संचालन करेगी।
- ग्रन्थालय निर्माण : भारतीय ज्ञानधारा को संजोने वाले प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों से युक्त एक सन्दर्भ ग्रन्थालय का जिज्ञासुओं के लिए निर्माण करना।
- शोध प्रकल्प चलाना : शोधकार्य में रत विद्यार्थियों हेतु शोध विषयों की विस्तृत सूची बनाना, देशभर के शोध विभागों को भेजना एवं शोधकार्य हेतु प्रेरित करना।
- चिति शोध पत्रिका : विद्यापीठ द्वारा षण्मासिक शोध पत्रिका का प्रकाशन करना, जिसमें विशुद्ध भारतीय ज्ञान विषयक लेख प्रकाशित हों।
- पुनरुत्थान कार्य अने विचार संदेश : प्रतिमास एक संदेश पत्रिका के माध्यम से पुनरुत्थान के विचार एवं कार्यक्रमों की जानकारी हिन्दी एवं गुजराती दोनों भाषाओंमें सब तक पहुँचाना।
- ज्ञान-साधना वर्ग : भारतीय ज्ञानधारा को पुनःप्रवाहित करने वाले ज्ञान साधकों को तैयार करना । ये वर्ग त्रिदिवसीय, पंचदिवसीय एवं सप्तदिवसीय होते हैं । इन वर्गों में अध्ययन के चार क्षेत्र १. श्रीमद्भगवद्गीता, २. एकात्ममानव दर्शन, ३. भारतीय शिक्षा के मूलतत्त्व एवं ४. समग्र विकास प्रतिमान सम्मिलित हैं।
- अखिल भारतीय विद्वत् गोष्ठियाँ : इन गोष्ठियों में सम्पूर्ण देश के विद्वत् वर्ग को एक मंच पर लाकर उनकी सोच को भारतीयता की ओर उन्मुख करने हेतु चिति के प्रकाश में विभिन्न विषयों की प्रस्तुति करना।
- प्रशिक्षण वर्ग : हमारे देश में चल रहे शिक्षा के पश्चिमी प्रतिमान (मॉडल) के स्थान पर 'समग्र विकास प्रतिमान' स्थापित हो, इस हेतु से आचार्यों को प्रशिक्षण देना।
- वरवधूचयन एवं विवाहसंस्कार वर्ग : परिवार शिक्षा के अन्तर्गत प्रत्येक बालक एवं बालिका अच्छे पति-पत्नी, अच्छे माता-पिता व अच्छे गृहस्थ-गृहिणी बनें इस हेतु से ये वर्ग लगाये जाते हैं।
- स्थापना दिवस : व्यासपूर्णिमा विद्यापीठ का स्थापना दिवस है । प्रतिवर्ष पुनरुत्थान का कार्यकर्ता इस दिन भगवान वेदव्यास का पूजन कर अपना समर्पण करता है एवं भारतीय ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा हेतु लिए गये अपने संकल्प को दृढ़ करता है।
पुनरुत्थान का साहित्य
पुनरुत्थान के कार्य का प्रारम्भ ही साहित्य निर्माण से हुआ था । अब तक पुनरुत्थान द्वारा प्रकाशित प्रमुख साहित्य अधोलिखित है :
धर्मपाल समग्र :
प्रसिद्ध गाँधीवादी चिन्तक धर्मपालजी का सम्पूर्ण साहित्य आंग्ल भाषा में था। पुनरुत्थानने उसका गुजराती एवं हिन्दी भाषा में अनुवाद कर दस खण्डों में प्रकाशन किया है।
पुण्यभूमि भारत संस्कृति वाचनमाला :
कक्षा १ से लेकर ८ तक के विद्यार्थियों के लिए भारतीय संस्कृति के दस विषय लेकर प्रत्येक विषय में दस-दस लघु पुस्तिकाओं का लेखन एवं प्रकाशन किया है। अब तक प्रकाशित ये १०० पुस्तके गुजराती, हिन्दी एवं मराठी तीनों भाषाओं में उपलब्ध हैं।
परिवार विषयक ग्रन्थ :
बालक की प्रथम गुरु माता एवं प्रथम पाठशाला उसका घर है । आज परिवार इस भूमिका का वहन नहीं कर रहे हैं, वे गुरु की भूमिका में आवें और परिवार व्यवस्था सुदृढ़ हों इस हेतु पाँच ग्रन्थों -
१. गृहशास्त्र,
२. अधिजननशास्त्र,
३. आहारशास्त्र,
४. गृहअर्थशास्त्र,
५. गृहस्थाश्रमी का समाज धर्म का प्रकाशन गुजराती व हिन्दी दोनों भाषाओं में हुआ है।
भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला :
हम सभी अनुभव करते हैं कि हमारे देश की शिक्षा भारतीय नहीं है । अतः भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा के उद्देश्य से भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला निर्मित हुई है । इस ग्रन्थमाला में पाँच ग्रन्थ हैं -
१. भारतीय शिक्षा संकल्पना एवं स्वरूप,
२. भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम,
३. भारतीय शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान,
४. भारतीय शिक्षा का वर्तमान एवं भावी सम्भावनाएँ तथा
५. वैश्विक संकटों का समाधान : भारतीय शिक्षा है।
शिक्षा विषयक लघु पुस्तकें :
भारतीय शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान, भारतीय शिक्षा दर्शन, भारतीय शिक्षा मनोविज्ञान, भारतीय शिक्षा का आर्थिक पक्ष, भारतीय शिक्षा का व्यवस्था पक्ष जैसे आधारभूत विषयों की स्पष्टता करवाने वाली पुस्तकें भी दोनों भाषाओं में उपलब्ध हैं ।
विविध साहित्य :
शिक्षा का आधार सदैव राष्ट्रीय होता है। राष्ट्र विषयक पुस्तकें यथा - दैशिकशास्त्र, भारत को जानें विश्व को सम्हालें, विजय संकेत, कथारूप गीता जैसी पुस्तकों के साथ - साथ प्रज्ञावर्धन स्तोत्र, अभ्यासक्रम, प्रदर्शनी व चार्ट आदि भी प्रकाशित हुए हैं।
पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना
शिक्षा के भारतीयकरण की प्रक्रिया सरल भी नहीं हैं और शीघ्र सिद्ध होने वाली भी नहीं है । इससे जुड़े हुए अनेक ऐसे पहलू हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है। हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य को सिद्ध होने में तीन पीढ़ियों का समय लगता है। विद्यापीठ ने तीन पीढ़ियाँ अर्थात् साठ वर्षों का समय मानकर उसके पाँच चरण बनाये हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का होगा । हमारे शास्त्र बारह वर्ष के समय को एक तप कहते हैं। अतः पुनरुत्थान की यह योजना पाँच तपों की योजना है।
पहला तप नेमिषारण्य : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात् कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अठासी हजार ऋषियों ने बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विट्ठजनों को सम्मिलित कर फिर से ज्ञानयज्ञ करने की आवश्यकता है। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण है।
२. दूसरा तप लोकमत परिष्कार : शिक्षा सर्वजन समाज के लिए होती है। सर्वजन का प्रबोधन करना, शिक्षा के नये प्रतिमान को समाज से स्वीकृति दिलवाना, लोकजीवन में विद्यमान रूढि, कर्मकांड, अन्धश्रद्धा को परिष्कृत करना भी शिक्षा का कार्य है । अतः लोकमत परिष्कार या लोक शिक्षा, यह दूसरा चरण होगा।
३. तीसरा तप परिवार शिक्षा : शिक्षा व्यक्ति के जन्म पूर्व से आरम्भ हो जाती है। उस समय शिक्षा देनेवाले माता-पिता होते हैं । अतः माता को प्रथम गुरु कहा गया है । परिवार में संस्कार होते हैं, चरित्र निर्माण होता है । परिवार कुल परम्परा, कौशल परम्परा, व्यवसाय परम्परा तथा वंशपरंपरा का वाहक होता है । अतः परिवार शिक्षा यह तीसरा चरण है।
४. चौथा तप शिक्षक निर्माण : देश की भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए समर्थ शिक्षकों की आवश्यकता रहती है। जब तक दायित्वबोधयुक्त और ज्ञान सम्पन्न शिक्षक नहीं होते तब तक भारतीय शिक्षा देनेवाले विद्याकेन्द्र नहीं चल सकते । अतः सुयोग्य शिक्षक निर्माण करना, यह योजना का चौथा चरण है।
५. पाँचवाँ तप विद्यालयों की स्थापना : पहले चारों चरण ठीक से सम्पन्न हो गये तो पाँचवा चरण सरल हो जायेगा। और निर्माण किये हुए शिक्षक जब देशभर में विद्यालय चलायेंगे, तभी भारतीय स्वरूप की शिक्षा दी जा सकेगी। इस प्रकार योजनाबद्ध चरणबद्ध रीति से कार्य किया जाय तो साठ वर्षों की अवधि में अपेक्षित परिवर्तन सम्भव है।
पुनरुत्थान विद्यापीठ की संरचना
आज हमारे देश में चलने वाले विश्वविद्यालय लंदन युनिवर्सिटी की पद्धति पर चलने वाले विश्व विद्यालय है। जबकि पुनरुत्थान विद्यापीठ भारत के प्राचीन विद्यापीठों की । पद्धति पर चलने वाला विद्यापीठ है। अतः यह पूर्ण स्वायत्त, विशुद्ध भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलने वाला निःशुल्क विद्यापीठ है।
इस कार्य का प्रारम्भ व्यासपूर्णिमा २००४ को धर्मपाल साहित्य के प्रकाशन से हुआ था। उस समय इसका नाम पुनरुत्थान ट्रस्ट था। आगे चलकर व्यासपूर्णिमा २०१२ को इसे 'पुनरुत्थान विद्यापीठ' नाम मिला। भारत का पुनरुत्थान ही पुनरुत्थान विद्यापीठ का मुख्य उद्देश्य है, भारतीय शिक्षा उसका साधन है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु विद्यापीठ की संरचना बनी है, जो इस प्रकार
मार्गदर्शक मंडल - विद्यापीठ के चार मार्गदर्शक हैं -
१. मा. बजरंगलालजी गुप्त, दिल्ली
२. मा. श्रीकृष्ण माहेश्वरी, सतना
३. मा. अनिरुद्ध देशपांडे, पुणे
४. मा. हरिभाऊ वझे, मैसूर
- कुलपति : आ. इन्दुमति काटदरे पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति हैं । आपने ही इस कार्य का श्रीगणेश किया है ।
- आचार्य परिषद : यह परिषद ही विद्यापीठ की शैक्षिक योजना बनाती है, और उसका निर्वहण करती है। इस परिषद में ११ नियुक्त और तीन निमंत्रित सदस्य हैं।
- परामर्शक मंडल : विद्यापीठ को आवश्यकतानुसार अपने अनुभवों से लाभान्वित करने का कार्य परामर्शक मण्डल करता है । इसमें कुल सात सदस्य हैं।
- विद्यापीठ के केन्द्र तथा केन्द्र संयोजक : विद्यापीठ का कार्य देशव्यापी बने इस प्रयत्न में अभी सोलह केन्द्र चल रहे हैं । इन केन्द्रों में कार्यक्रमों के संचालन हेतु सोलह केन्द्र संयोजक हैं।
- विद्यापीठ परिषद : इन केन्द्रों के अतिरिक्त सम्पूर्ण देश में जहाँ-जहाँ भी विद्यापीठ का कार्यकर्ता अथवा शुभ चिन्तक हैं, वे इस परिषद के सदस्य हैं। प्रतिवर्ष व्यासपूर्णिमा को इस परिषद की बैठक होती है।
पुनरुत्थान विद्यापीठ
'ज्ञानम्', ९/बी, आनन्द पार्क, जूना ढोर बजार, कांकरिया रोड,
अहमदाबाद-३८० ०२८ दूरभाष : (०७९) २५३२२६५५
E-mail : punvidya2012@gmail.com, info@punarutthan.org
website : www.punarutthan.org
References
भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे