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बालक की प्रथम गुरु माता एवं प्रथम पाठशाला उसका घर है । आज परिवार इस भूमिका का वहन नहीं कर रहे हैं, वे गुरु की भूमिका में आवें और परिवार व्यवस्था सुदृढ़ हों इस हेतु पाँच ग्रन्थों -  
 
बालक की प्रथम गुरु माता एवं प्रथम पाठशाला उसका घर है । आज परिवार इस भूमिका का वहन नहीं कर रहे हैं, वे गुरु की भूमिका में आवें और परिवार व्यवस्था सुदृढ़ हों इस हेतु पाँच ग्रन्थों -  
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१. गृहशास्र,  
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१. गृहशास्त्र,  
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२. अधिजननशास्र,  
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२. अधिजननशास्त्र,  
    
३. आहारशास्त्र,  
 
३. आहारशास्त्र,  
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===== '''विविध साहित्य''' : =====
 
===== '''विविध साहित्य''' : =====
शिक्षा का आधार सदैव राष्ट्रीय होता है। राष्ट्र विषयक पुस्तकें यथा - दैशिकशास्र, भारत को जानें विश्व को सम्हालें, विजय संकेत, कथारूप गीता जैसी पुस्तकों के साथ - साथ प्रज्ञावर्धन स्तोत्र, अभ्यासक्रम, प्रदर्शनी व चार्ट आदि भी प्रकाशित हुए हैं।
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शिक्षा का आधार सदैव राष्ट्रीय होता है। राष्ट्र विषयक पुस्तकें यथा - दैशिकशास्त्र, भारत को जानें विश्व को सम्हालें, विजय संकेत, कथारूप गीता जैसी पुस्तकों के साथ - साथ प्रज्ञावर्धन स्तोत्र, अभ्यासक्रम, प्रदर्शनी व चार्ट आदि भी प्रकाशित हुए हैं।
    
==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना ====
 
==== पुनरुत्थान विद्यापीठ की योजना ====
शिक्षा के भारतीयकरण की प्रक्रिया सरल भी नहीं हैं और शीघ्र सिद्ध होने वाली भी नहीं है । इससे जुड़े हुए अनेक ऐसे पहलू हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है। हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य को सिद्ध होने में तीन पीढ़ियों का समय लगता है। विद्यापीठ ने तीन पीढ़ियाँ अर्थात् साठ वर्षों का समय मानकर उसके पाँच चरण बनाये हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का होगा । हमारे शास्र बारह वर्ष के समय को एक तप कहते हैं। इसलिए पुनरुत्थान की यह योजना पाँच तपों की योजना है।
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शिक्षा के भारतीयकरण की प्रक्रिया सरल भी नहीं हैं और शीघ्र सिद्ध होने वाली भी नहीं है । इससे जुड़े हुए अनेक ऐसे पहलू हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है। हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य को सिद्ध होने में तीन पीढ़ियों का समय लगता है। विद्यापीठ ने तीन पीढ़ियाँ अर्थात् साठ वर्षों का समय मानकर उसके पाँच चरण बनाये हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का होगा । हमारे शास्त्र बारह वर्ष के समय को एक तप कहते हैं। इसलिए पुनरुत्थान की यह योजना पाँच तपों की योजना है।
    
'''पहला तप नेमिषारण्य''' : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात् कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अठासी हजार ऋषियों ने बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विट्ठजनों को सम्मिलित कर फिर से ज्ञानयज्ञ करने की आवश्यकता है। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण है।  
 
'''पहला तप नेमिषारण्य''' : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात् कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अठासी हजार ऋषियों ने बारह वर्ष तक ज्ञानयज्ञ किया था, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विट्ठजनों को सम्मिलित कर फिर से ज्ञानयज्ञ करने की आवश्यकता है। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण है।  

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