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१७. बुद्धि का कार्य है विवेक । घटना, स्थिति, पदार्थ को उसके यथार्थ रूप में जानना ही विवेक है । परन्तु बुद्धि का अधिष्ठान है चिति और आलम्बन है जीवन दृष्टि । चिति देश का स्वभाव है और जीवनदृष्टि उसका बौद्धिक रूप । आज देश के स्वभाव ओर जीवनदृष्टि में विच्छेदू हो गया है इसलिये हम यथार्थबोध प्राप्त नहीं करते हैं ।
 
१७. बुद्धि का कार्य है विवेक । घटना, स्थिति, पदार्थ को उसके यथार्थ रूप में जानना ही विवेक है । परन्तु बुद्धि का अधिष्ठान है चिति और आलम्बन है जीवन दृष्टि । चिति देश का स्वभाव है और जीवनदृष्टि उसका बौद्धिक रूप । आज देश के स्वभाव ओर जीवनदृष्टि में विच्छेदू हो गया है इसलिये हम यथार्थबोध प्राप्त नहीं करते हैं ।
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१८. हमारी बुद्धि का विश्रम होने का प्रथम और मूलगत आयाम है विजातीय जीवनदृष्टि का आरोपण । पश्चिम भी भारत के चार्वाक की तरह देहात्मवादी है । देह को आधार बनाकर सारी बातें देखता है, समझता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है। देह पंचमहाभूतात्मक है इसलिये उसे भौतिकवादी कहा जाता है । भौतिक को जड कहा जाता है इसलिये वह जडवादी है । जड या भौतिक या देह के प्रकाश में जीवन और जगत को देखना और उसके साथ व्यवहार करना पश्चिमी दृष्टि है । भारत ठीक उससे विपरीत व्यवहार करता है । भारत आत्मतत्त्व के प्रकाश में जीवन और जगत को देखता है, समझता है, ग्रहण करता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है । इसलिये वह आत्मवादी है । भारत में आज जडवादी दृष्टि का ही बुद्धि के क्षेत्र में साम्राज्य है यह ब्रिटिश शिक्षा का परिणाम है ।
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१८. हमारी बुद्धि का विश्रम होने का प्रथम और मूलगत आयाम है विजातीय जीवनदृष्टि का आरोपण । पश्चिम भी भारत के चार्वाक की तरह देहात्मवादी है । देह को आधार बनाकर सारी बातें देखता है, समझता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है। देह पंचमहाभूतात्मक है इसलिये उसे भौतिकवादी कहा जाता है । भौतिक को जड़ कहा जाता है इसलिये वह जड़वादी है । जड़ या भौतिक या देह के प्रकाश में जीवन और जगत को देखना और उसके साथ व्यवहार करना पश्चिमी दृष्टि है । भारत ठीक उससे विपरीत व्यवहार करता है । भारत आत्मतत्त्व के प्रकाश में जीवन और जगत को देखता है, समझता है, ग्रहण करता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है । इसलिये वह आत्मवादी है । भारत में आज जड़वादी दृष्टि का ही बुद्धि के क्षेत्र में साम्राज्य है यह ब्रिटिश शिक्षा का परिणाम है ।
    
१९. दृष्टि बदलने के कारण सारी बातें बदल जाती हैं । हम सही को गलत और गलत को सही, उचित को अनुचित और अनुचित को उचित कहने लगते हैं, अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा कहने लगते हैं । हमारी दृष्टि बदल जाने से स्थिति तो नहीं बदल जाती इसलिये सभी बातों की ऐसी घालमेल हो जाती है कि हमें सूझना भी बन्द हो जाता है। हम प्रवाहपतित की तरह व्यवहार करने लगते हैं ।
 
१९. दृष्टि बदलने के कारण सारी बातें बदल जाती हैं । हम सही को गलत और गलत को सही, उचित को अनुचित और अनुचित को उचित कहने लगते हैं, अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा कहने लगते हैं । हमारी दृष्टि बदल जाने से स्थिति तो नहीं बदल जाती इसलिये सभी बातों की ऐसी घालमेल हो जाती है कि हमें सूझना भी बन्द हो जाता है। हम प्रवाहपतित की तरह व्यवहार करने लगते हैं ।

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