२५. और आज तो बुद्धि में स्थापित नहीं होने का कारण यह भी है कि अपने ही देश के अतीत की उसे जानकारी ही नहीं है, न तत्त्वज्ञान की जानकारी न शास्त्रों की, न व्यवस्थाओं की न व्यवहारों की । मन के स्तर पर हीनताबोध से ग्रस्त होने के कारण पश्चिम जो कहता है वही ठीक है ऐसा निश्चय हो जाता है इसलिये किसी भी विषय का विश्लेषण करने की, परीक्षण करने की, बौद्धिक रूप में परखने की आवश्यकता भी नहीं लगती । वे कहते हैं इसलिये हमारे शाख््र कनिष्ठ हैं, प्राचीन है इसीलिये त्याज्य है, परम्परा का कोई मूल्य नहीं है पारम्परिक है इसीलिये त्याज्य है ऐसा अतार्किक, अशास्त्रीय तर्क प्रतिष्ठित हो जाता है । यही तो बुद्धिविश्रम है । | २५. और आज तो बुद्धि में स्थापित नहीं होने का कारण यह भी है कि अपने ही देश के अतीत की उसे जानकारी ही नहीं है, न तत्त्वज्ञान की जानकारी न शास्त्रों की, न व्यवस्थाओं की न व्यवहारों की । मन के स्तर पर हीनताबोध से ग्रस्त होने के कारण पश्चिम जो कहता है वही ठीक है ऐसा निश्चय हो जाता है इसलिये किसी भी विषय का विश्लेषण करने की, परीक्षण करने की, बौद्धिक रूप में परखने की आवश्यकता भी नहीं लगती । वे कहते हैं इसलिये हमारे शाख््र कनिष्ठ हैं, प्राचीन है इसीलिये त्याज्य है, परम्परा का कोई मूल्य नहीं है पारम्परिक है इसीलिये त्याज्य है ऐसा अतार्किक, अशास्त्रीय तर्क प्रतिष्ठित हो जाता है । यही तो बुद्धिविश्रम है । |