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५. ये चारों उद्देश्य एकदूसरे से जुडे हुए हैं परन्तु उनका केन्द्रवर्ती उद्देश्य धन की लूट ही है । लूट का मार्ग प्रशस्त करने हेतु शेष तीनों का अवलम्बन किया गया है। इन चारों के भारत पर जो परिणाम हुए उनमें सबसे विनाशक और दूरगामी परिणाम यूरोपीकरण का है । आज भी हम उससे मुक्त नहीं हुए हैं ।
 
५. ये चारों उद्देश्य एकदूसरे से जुडे हुए हैं परन्तु उनका केन्द्रवर्ती उद्देश्य धन की लूट ही है । लूट का मार्ग प्रशस्त करने हेतु शेष तीनों का अवलम्बन किया गया है। इन चारों के भारत पर जो परिणाम हुए उनमें सबसे विनाशक और दूरगामी परिणाम यूरोपीकरण का है । आज भी हम उससे मुक्त नहीं हुए हैं ।
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६. भारत की समृद्धि की लूट तो हुई परन्तु उसके बाद भी भारत की समृद्धि का सर्वनाश नहीं हुआ क्योंकि उसके स्रोत बने रहे । राज्यसत्ता ग्रहण की परन्तु १९४७ में उन्हें सत्ता छोडनी पडी और जाना पडा । उन्होंने इसाईकरण करना आरम्भ किया, अनेक लोगों को इसाई बनाया, आज भी इसाईकरण का काम अनेक मिशनों के माध्यम से चल रहा है परन्तु सारा भारत इसाई नहीं हुआ है यह तो हम देख ही रहे हैं ।
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६. भारत की समृद्धि की लूट तो हुई परन्तु उसके बाद भी भारत की समृद्धि का सर्वनाश नहीं हुआ क्योंकि उसके स्रोत बने रहे । राज्यसत्ता ग्रहण की परन्तु १९४७ में उन्हें सत्ता छोडनी पडी और जाना पडा । उन्होंने इसाईकरण करना आरम्भ किया, अनेक लोगोंं को इसाई बनाया, आज भी इसाईकरण का काम अनेक मिशनों के माध्यम से चल रहा है परन्तु सारा भारत इसाई नहीं हुआ है यह तो हम देख ही रहे हैं ।
    
७. परन्तु यूरोपीकरण का परिणाम बहुत विनाशकारी हुआ । सम्पूर्ण भारत उस दुष्चक्र के आज भी फँसा हुआ हैं और यातना भुगत रहा है । इस उद्देश्य में सौ प्रतिशत तो नहीं परन्तु लगभग सत्तर प्रतिशत तो सफलता उन्हें मिली है। उनकी सफलता से भी अधिक चिन्ता की बात हमारी रोगग्रस्तता की है । यूरोपीकरण के रोग से मुक्त होना १९४७ की राजकीय मुक्ति से भी कठिन चुनौती है ।
 
७. परन्तु यूरोपीकरण का परिणाम बहुत विनाशकारी हुआ । सम्पूर्ण भारत उस दुष्चक्र के आज भी फँसा हुआ हैं और यातना भुगत रहा है । इस उद्देश्य में सौ प्रतिशत तो नहीं परन्तु लगभग सत्तर प्रतिशत तो सफलता उन्हें मिली है। उनकी सफलता से भी अधिक चिन्ता की बात हमारी रोगग्रस्तता की है । यूरोपीकरण के रोग से मुक्त होना १९४७ की राजकीय मुक्ति से भी कठिन चुनौती है ।

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