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ही हमें मार्ग निकालना है । इसके लिये सभी समझदार लोगों ने मिलकर प्रयास करने होंगे । आपका भी सहयोग अपेक्षित है ।
 
ही हमें मार्ग निकालना है । इसके लिये सभी समझदार लोगों ने मिलकर प्रयास करने होंगे । आपका भी सहयोग अपेक्षित है ।
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'''प्रश्न २८ जिस प्रकार सहशि क्षा नहीं होनी चाहिये ऐसा कहा जाता है उसी प्रकार क्यो दोनों को मिलने वाली शिक्षा भी अलग होनी चाहिये ? यदि ऐसा होता है तो समानता कहाँ रही ?'''
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'''<nowiki/>'एक विचारक का प्रश्न'''
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हमें आज की शिक्षा के परिणाम स्वरूरप चीजों को उपर उपर से ही देखने की आदत हो गई है । वेश की समानता, काम की समानता, अवसरों की समानता, करिअर की समानता ही हमें समानता लगती है । वास्तव में यह समानता नहीं है, एकरूपता है । एकरूपता सृष्टि में कहीं भी होती नहीं है । एकरूपता का न होना विविधता है और सुन्दरता है । इसलिये हमें समानता के नाम पर हमने एकरूपता के पीछे नहीं जाना चाहिये ।
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उत्तर
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समानता का गहरा अर्थ है । हरेक के व्यक्तित्व के विशेष गुणों का विकास करने हेतु समान अवसर मिलना ही समानता है ।
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प्रश्न २९
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लडकी को उत्तम ख्री और लड़के को उत्तम पुरुष होने के समान अवसर प्राप्त होना ही समानता है । स्त्रीत्व के गुर्णों का पूर्ण विकास हो ऐसी शिक्षा लडकी के लिये और पुरुषत्व के गुणों का उत्तम विकास हो ऐसी शिक्षा लडकों के लिये होना समान शिक्षा है । शारीरिक और मानसिक शिक्षा दोनों के लिये अलग ही होगी । दोनों के गुणों के आधार पर दोनों की पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक भूमिका भी भिन्न होगी । उसके अनुसार दोनों की शिक्षा का स्वरूप भी भिन्न होगा ।
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उत्तर
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बौद्धिक और आत्मिक स्तर की शिक्षा दोनों के लिये समान होगी
 
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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प्रश्न २८ जिस प्रकार सहशि क्षा नहीं होनी चाहिये ऐसा कहा जाता है उसी प्रकार क्यो दोनों को
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मिलने वाली शिक्षा भी अलग होनी चाहिये ? यदि ऐसा होता है तो समानता कहाँ रही ?
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'एक विचारक का प्रश्न
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हमें आज की शिक्षा के परिणाम स्वरूरप चीजों को उपर उपर से ही देखने की आदत हो गई है । वेश की
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समानता, काम की समानता, अवसरों की समानता, करिअर की समानता ही हमें समानता लगती है । वास्तव में
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यह समानता नहीं है, एकरूपता है । एकरूपता सृष्टि में कहीं भी होती नहीं है । एकरूपता का न होना विविधता है
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और सुन्दरता है । इसलिये हमें समानता के नाम पर हमने एकरूपता के पीछे नहीं जाना चाहिये ।
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समानता का गहरा अर्थ है । हरेक के व्यक्तित्व के विशेष गुणों का विकास करने हेतु समान अवसर मिलना
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ही समानता है
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लडकी को उत्तम ख्री और लड़के को उत्तम पुरुष होने के समान अवसर प्राप्त होना ही समानता है । स्त्रीत्व के
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मुद्दा यह है कि शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आत्मिक आदि स्तरों के पचडे में ही हम नहीं पड़ते और समानता के नाम पर कोलाहल मचाकर बातों को उलझा देते हैं और संकट निर्माण करते हैं
गुर्णों का पूर्ण विकास हो ऐसी शिक्षा लडकी के लिये और पुरुषत्व के गुणों का उत्तम विकास हो ऐसी शिक्षा लडकों
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के लिये होना समान शिक्षा है शारीरिक और मानसिक शिक्षा दोनों के लिये अलग ही होगी । दोनों के गुणों के
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आधार पर दोनों की पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक भूमिका भी भिन्न होगी । उसके अनुसार दोनों की शिक्षा का
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स्वरूप भी भिन्न होगा
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बौद्धिक और आत्मिक स्तर की शिक्षा दोनों के लिये समान होगी ।
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'''प्रश्न २९ एक बात ध्यान में आती है कि स्त्रीत्व के गुणों का विकास हो सके ऐसी शिक्षा की आज कोई व्यवस्था ही नहीं है । में निवृत्त शिक्षक हूँ । क्‍या मैं इसके लिये कुछ कर सकता हूँ ?'''
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मुद्दा यह है कि शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आत्मिक आदि स्तरों के पचडे में ही हम नहीं पड़ते और
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'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
समानता के नाम पर कोलाहल मचाकर बातों को उलझा देते हैं और संकट निर्माण करते हैं ।
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एक बात ध्यान में आती है कि स्त्रीत्व के गुणों का विकास हो सके ऐसी शिक्षा की आज कोई व्यवस्था ही
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उत्तर
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नहीं है । में निवृत्त शिक्षक हूँ क्‍या मैं इसके लिये कुछ कर सकता हूँ ?
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आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को प्रधानता देते हैं तो उचित परिप्रेक्ष्या में यह बात शुरू होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा
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'एक शिक्षक का प्रश्न
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आपकी ओर से ऐसा प्रस्ताव आना ही शुभ संकेत है । आपके जैसे अन्य सेवानिवृत्त शिक्षक यदि इस बात को
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प्रधानता देते हैं at stad wiser में यह बात शुरू होगी । इस दृष्टि से आपको इन चरणों में काम करना होगा ।
   
१, केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
 
१, केवल स्त्रीत्व के ही नहीं तो पुरुषत्व के गुणों का सम्यक्‌ विकास होना अपेक्षित है ।
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२. दोनों के लिये किस प्रकार की शिक्षा चाहिये उसका विचार कर एक रूपरेखा तैयार करना, सामग्री जुटाना और
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२. दोनों के लिये किस प्रकार की शिक्षा चाहिये उसका विचार कर एक रूपरेखा तैयार करना, सामग्री जुटाना और योजना बनाना ।
योजना बनाना ।
      
३. कुछ मात्रा में व्यापक प्रवाह कर समाज की मानसिकता बनाना ।
 
३. कुछ मात्रा में व्यापक प्रवाह कर समाज की मानसिकता बनाना ।
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४. साथ ही साथ छोटे छोटे समूहों में प्रत्यक्ष शिक्षा का प्रारम्भ करना . लोग जानते नहीं हैं कि उन्हें इस शिक्षा
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४. साथ ही साथ छोटे छोटे समूहों में प्रत्यक्ष शिक्षा का प्रारम्भ करना . लोग जानते नहीं हैं कि उन्हें इस शिक्षा की कितनी अधिक आवश्यकता है । इसलिये प्रारम्भ भले ही छोटा लगता हो, देखते ही देखते इसका व्याप बढ जायेगा ।
की कितनी अधिक आवश्यकता है । इसलिये प्रारम्भ भले ही छोटा लगता हो, देखते ही देखते इसका व्याप
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बढ जायेगा ।
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इस दृष्टि से अभिभावकों को चाहिये कि वे अपनी सन्तानों को इस शिक्षा के लिये समय मिल सके ऐसे हर
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इस दृष्टि से अभिभावकों को चाहिये कि वे अपनी सन्तानों को इस शिक्षा के लिये समय मिल सके ऐसे हर सम्भव प्रयास करें ।
सम्भव प्रयास करें ।
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यह शिक्षा आठ दस वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर विवाह होने तक हो सकती है । बाद की शिक्षा का
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यह शिक्षा आठ दस वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर विवाह होने तक हो सकती है । बाद की शिक्षा का स्वरूप कुछ भिन्न रहेगा ।
स्वरूप कुछ भिन्न रहेगा ।
      
इस प्रकार की शिक्षा में यदि मातापिता को साथ में जोडा जाय तो सुविधा भी होगी, लाभ भी होगा ।
 
इस प्रकार की शिक्षा में यदि मातापिता को साथ में जोडा जाय तो सुविधा भी होगी, लाभ भी होगा ।
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मुख्य रूप से यह शिक्षकों का ही काम है, अभिभावक सहयोगी और धर्माचार्य मार्गदर्शक हो सकते हैं ।
 
मुख्य रूप से यह शिक्षकों का ही काम है, अभिभावक सहयोगी और धर्माचार्य मार्गदर्शक हो सकते हैं ।
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RaY
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'''प्रश्न ३० भारतीय शिक्षा के पक्षधर सब कहते हैं कि शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये । आज स्थिति एकदम दूसरे छोर की है । अब दोनों छोरों को मिलाने के क्या उपाय हैं ?'''
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'''<nowiki/>'एक शिक्षक का प्रश्न'''
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पर्व ५ : विविध
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'''उत्तर''' ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक नीग्रो कृषि वैज्ञानिक ने कहा है कि आप जहाँ हैं वहाँ से, जिस स्थिति में हैं वहाँ से शुरू करो और कुछ करके दिखाओ । आप शिक्षक हैं । शिक्षकों द्वारा ही इसका प्रास्भ हो सकता है ।
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आप वेतन लेना बन्द मत करो । परन्तु आप विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं वे यदि अन्य किसी के पास ट्यूशन के लिये जाते हैं तो उनके ट्यूशन बन्द करवाकर अतिरिक्त शिक्षा निःशुल्क देना प्रारम्भ करो । प्रार्भ में अभिभावकों को विश्वास नहीं होगा । वे सॉंचेगे कि आप पैसे नहीं लेते इसलिये दरकार भी कम करेंगे । परन्तु धीरे धीरे विश्वास हो जायेगा । दूसरे शिक्षकों के विद्यार्थियों को मत पढाओ, अपने ही विद्यार्थियों का जिम्मा लो । धीरे धीरे आपके जैसे और शिक्षक भी आपसे मिल जायेंगे ।
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Wa Zo
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महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा शुरू करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय शुरू कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
 
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उत्तर
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प्रश्न ३१
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उत्तर
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प्रश्न ३२
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उत्तर
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भारतीय शिक्षा के पक्षधर सब कहते हैं कि शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये । आज स्थिति
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एकदम दूसरे छोर की है । अब दोनों छोरों को मिलाने के क्या उपाय हैं ?
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'एक शिक्षक का प्रश्न
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ज्योर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक नीग्रो कृषि वैज्ञानिक ने कहा है कि आप जहाँ हैं वहाँ से, जिस स्थिति में हैं
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वहाँ से शुरू करो और कुछ करके दिखाओ । आप शिक्षक हैं । शिक्षकों द्वारा ही इसका प्रास्भ हो सकता है ।
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आप वेतन लेना बन्द मत करो । परन्तु आप विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं वे यदि अन्य किसी के पास ट्यूशन
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के लिये जाते हैं तो उनके ट्यूशन बन्द करवाकर अतिरिक्त शिक्षा निःशुल्क देना प्रारम्भ करो । प्रार्भ में
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अभिभावकों को विश्वास नहीं होगा । वे सॉंचेगे कि आप पैसे नहीं लेते इसलिये दरकार भी कम करेंगे । परन्तु धीरे
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धीरे विश्वास हो जायेगा । दूसरे शिक्षकों के विद्यार्थियों को मत पढाओ, अपने ही विद्यार्थियों का जिम्मा लो । धीरे
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धीरे आपके जैसे और शिक्षक भी आपसे मिल जायेंगे ।
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महाविद्यालय के विदायर्थियों के साथ चर्चा शुरू करो । उनमें भी शिक्षक के स्वभाव के लोग मिलेंगे । उन्हें
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अपने काम में जोड़ो । यह मत सोचो कि युवा लोग नहीं मिलेंगे । आज भी ऐसे युवा हैं जो अच्छा काम करना
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चाहते हैं । उनके साथ मिलकर यदि आप विद्यालय शुरू कर सकते हैं तो बहुत ही अच्छा । इस विद्यालय को
   
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । भारतीय शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
 
अर्थनिरपेक्ष बनाओ । भारतीय शिक्षा की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी यह समझकर, आज की स्थिति का विचार
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
 
कर अर्थव्यवस्था बिठाओ । यह प्रयोग अवश्य यशस्वी होगा ।
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केवल इतना ध्यान रखो कि यह गरीब, अनाथ, बेचारे विद्यार्थियों के लिये न हो, सम्पन्न घर के विद्यार्थी भी
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केवल इतना ध्यान रखो कि यह गरीब, अनाथ, बेचारे विद्यार्थियों के लिये न हो, सम्पन्न घर के विद्यार्थी भी हों । निःशुल्क विद्यालय धर्मादाय व्यवस्था नहीं है, विद्या को अर्थ के उपर उठाने की व्यवस्था है । शिक्षक भिक्षुक नहीं है, गुरु है । वह दया का नहीं, सम्मान का अधिकारी है ।
हों । निःशुल्क विद्यालय धर्मादाय व्यवस्था नहीं है, विद्या को अर्थ के उपर उठाने की व्यवस्था है । शिक्षक भिक्षुक
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नहीं है, गुरु है । वह दया का नहीं, सम्मान का अधिकारी है ।
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'''प्रश्न ३१ शिक्षा को भारतीय बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या तरीका है ?'''
शिक्षा को भारतीय बनाने हेतु हम यदि अध्ययन करना चाहते हैं तो क्या करें ? और अनुसन्धान का क्या
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तरीका है ?
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एक जिज्ञासु
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'''एक जिज्ञासु'''
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पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान
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पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर भारतीय जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य
शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों
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का कुछ अध्ययन कर भारतीय जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि
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स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक
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विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य
   
कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
 
कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
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इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके
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इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है।
अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त
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आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की
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सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता
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है।
   
क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी भारतीय हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
 
क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी भारतीय हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
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एक जिज्ञासु का प्रश्न
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'''प्रश्न ३२ एक जिज्ञासु का प्रश्न निश्चित रूप से अनुसन्धान का भारतीय स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ।'''
निश्चित रूप से अनुसन्धान का भारतीय स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ।
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qu
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उत्तर निश्चित रूप से अनुसन्धान का भारतीय स्वरूप से भिन्न ही है।
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भारतीय अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है व्यावहारिक ।
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WA 33
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तात्त्विक अनुसन्धान अनुभूति का क्षेत्र हैं । बौद्धिक जगत से यह परे हैं । यह दर्शन है । भारतीय ज्ञानधारा के मूल तत्त्वों का ऋषियों को दर्शन हुआ था । आज भी ऐसा हो तो सकता है परन्तु इसके रास्ते बहुत भिन्न हैं ।
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उत्तर
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व्यावहारिक अनुसन्धान बुद्धि का क्षेत्र है । इसके भी दो स्तर हैं । एक है तत्त्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझना और समझाना । यह तत्त्व की युगानुकूल प्रस्तुति है ।
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प्रश्न ३४
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दूसरी है व्यवहार के लिये जो रचनायें बनी हैं उनको परिष्कृत करना, कालबाह्म हो गई हैं उनका त्याग करना और नई बनाना ।
 
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उत्तर
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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भारतीय अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है
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व्यावहारिक ।
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तात्त्विक अनुसन्धान अनुभूति का क्षेत्र हैं । बौद्धिक जगत से यह परे हैं । यह दर्शन है । भारतीय ज्ञानधारा
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के मूल तत्त्वों का ऋषियों को दर्शन हुआ था । आज भी ऐसा हो तो सकता है परन्तु इसके रास्ते बहुत भिन्न हैं ।
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व्यावहारिक अनुसन्धान बुद्धि का क्षेत्र है । इसके भी दो स्तर हैं । एक है तत्त्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
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समझना और समझाना । यह तत्त्व की युगानुकूल प्रस्तुति है ।
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दूसरी है व्यवहार के लिये जो रचनायें बनी हैं उनको परिष्कृत करना, कालबाह्म हो गई हैं उनका त्याग
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करना और नई बनाना ।
      
तात्विक अनुसन्धान श्रुति का क्षेत्र है, व्यावहारिक स्मृति का ।
 
तात्विक अनुसन्धान श्रुति का क्षेत्र है, व्यावहारिक स्मृति का ।
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थोडा विचार करेंगे तो अनुसन्धान का इतना स्पष्ट, श्रेष्ठ, उच्च स्तरीय विचार भारत के अलावा अन्यत्र कहीं
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थोडा विचार करेंगे तो अनुसन्धान का इतना स्पष्ट, श्रेष्ठ, उच्च स्तरीय विचार भारत के अलावा अन्यत्र कहीं भी नहीं हुआ है ।
भी नहीं हुआ है ।
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यह बडी शोचनीय बात है कि इतना उच्च स्तर छोडकर हम आज अत्यन्त सतही स्तर पर विहार कर रहे हैं
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और उसे अनुसन्धान का नाम दे रहे हैं । यह अनुसन्धान नहीं, अनुसन्धान का आभास है । भारत की विद्रत्ता को
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शोभा देने वाली यह बात नहीं है । हमें यह आभासी आवरण को दूर कर सही बातों की पुनर्प्रतिष्ठा करने की
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आवश्यकता है ।
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विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगों के ध्यान में आ रहा है कि
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यह बडी शोचनीय बात है कि इतना उच्च स्तर छोडकर हम आज अत्यन्त सतही स्तर पर विहार कर रहे हैं और उसे अनुसन्धान का नाम दे रहे हैं । यह अनुसन्धान नहीं, अनुसन्धान का आभास है । भारत की विद्रत्ता को शोभा देने वाली यह बात नहीं है । हमें यह आभासी आवरण को दूर कर सही बातों की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है
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छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार
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'''प्रश्न ३३ विगत कुछ वर्षों से सूत्र चल रहा है “छोटा परिवार सुखी परिवार' अब लोगों के ध्यान में आ रहा है कि छोटा परिवार बहुत सुखदायक नहीं होता है । लोग एकदम बडे परिवार बनाने तो नहीं लगे हैं परन्तु विचार तो शुरू हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा
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विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ?'''
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तो शुरू हुआ है । विद्यालय भी एक परिवार है । आज की स्थिति में तो सूत्र है “बडा विद्यालय अच्छा
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'''<nowiki/>'एक संचालक का प्रश्न'''
विद्यालय ।' उचित क्या है, बडा विद्यालय कि छोटा ?
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'एक संचालक का प्रश्न
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“छोटा विद्यालय अच्छा विद्यालय' यही उचित रचना है । इसके कई कारण हैं ।
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'''उत्तर''' “छोटा विद्यालय अच्छा विद्यालय' यही उचित रचना है । इसके कई कारण हैं ।
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१, एक मुख्याध्यापक को साथी शिक्षक और विद्यालय के लगभग सभी विद्यार्थियों के नाम, उनके गुणदोष, उनकी
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१, एक मुख्याध्यापक को साथी शिक्षक और विद्यालय के लगभग सभी विद्यार्थियों के नाम, उनके गुणदोष, उनकी क्षमताओं , उनकी पारिवारिक स्थिति की भली भाँति जानकारी हो यह अपेक्षित है । यह सम्भव हो इसके लिये विद्यालय छोटा होना चाहिये ।
क्षमताओं , उनकी पारिवारिक स्थिति की भली भाँति जानकारी हो यह अपेक्षित है । यह सम्भव हो इसके लिये
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विद्यालय छोटा होना चाहिये ।
      
२. विद्यालय का भवन और परिसर यदि छोटा हो तो उसे सम्हालना भी सरल होता है ।
 
२. विद्यालय का भवन और परिसर यदि छोटा हो तो उसे सम्हालना भी सरल होता है ।
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४. यात्रा आदि कार्यक्रम भी सरलता से होते हैं ।
 
४. यात्रा आदि कार्यक्रम भी सरलता से होते हैं ।
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इन कारणों से छोटा विद्यालय ही अच्छा होता है । फिर कोई कहेगा कि तक्षशिला आदि विद्यापीठों में तो
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इन कारणों से छोटा विद्यालय ही अच्छा होता है । फिर कोई कहेगा कि तक्षशिला आदि विद्यापीठों में तो दस हजार विद्यार्थी और एक हजार शिक्षक थे । यह तो बडे विद्यालय का उदाहरण है ।
दस हजार विद्यार्थी और एक हजार शिक्षक थे । यह तो बडे विद्यालय का उदाहरण है ।
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कुछ ऐसा हो सकता है कि छोटी आयु के विद्यार्थियों के विद्यालय तो छोटे ही हों, महाविद्यालय बडी
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संख्या के हो सकते हैं परन्तु उनमें छोटी छोटी अनेक स्वायत्त इकाइयाँ होने से सुविधा रहेगी ।
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सभी पूर्व प्राथमिक विद्यालय यदि शैक्षिक दृष्टि से अमान्य हैं तो सरकार उन्हें कानून से प्रतिबन्धित क्यों
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नहीं कर देती ?
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एक अभिभावक का प्रश्न
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यह कानून से होनेवाला काम नहीं है । कानून बनाने से सम्बन्धित लोग दूसरे मार्ग खोज निकालते हैं । कुछ वर्ष
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शेद्द
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पर्व ५ : विविध
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प्रश्न ३५
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उत्तर
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WA 3&
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उत्तर
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कुछ ऐसा हो सकता है कि छोटी आयु के विद्यार्थियों के विद्यालय तो छोटे ही हों, महाविद्यालय बडी संख्या के हो सकते हैं परन्तु उनमें छोटी छोटी अनेक स्वायत्त इकाइयाँ होने से सुविधा रहेगी ।
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पूर्व सरकार ने ऐसा कानून बनाया था तब रातोंरात संचालकों ने “पूर्व प्राथमिक विद्यालय
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'''प्रश्न ३४ सभी पूर्व प्राथमिक विद्यालय यदि शैक्षिक दृष्टि से अमान्य हैं तो सरकार उन्हें कानून से प्रतिबन्धित क्यों नहीं कर देती ?'''
लिखे हुए फलक उतार कर “नर्सरी' “झूला घर' “प्ले हाउस' लिखे हुए फलक चढा दिये । संचालक, शिक्षक और
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अभिभावक कल तक करते थे वही करते रहे । सबने मिलकर सिद्ध कर दिया कि वे विद्यालय नहीं हैं । तात्पर्य यह
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है कि यह कानून का विषय नहीं है ।
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अकेले अभिभावक भी कुछ नहीं कर सकते । यदि पूर्व प्राथमिक विभाग में प्रवेश न लें तो सीधे प्राथमिक
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में प्रवेश देने से संचालक इनकार कर देते हैं । इसलिये पूर्व प्राथमिक से ही बच्चों को विद्यालय भेजने की बाध्यता
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हो जाती है । कानून है परन्तु कानून को नहीं माना तो कुछ नहीं हो सकता । अकेले संचालक भी कुछ नहीं कर
  −
सकते क्योंकि अभिभावकों के आग्रह के आगे सबको झुकना पडता है ।
  −
अधिकांश अभिभावक, संचालक, शिक्षक शैक्षिक सिद्धान्तों की बहुत दरकार भी नहीं करते । सब किसी
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अज्ञात तत्त्व से अभिमन्त्रित होकर नहीं करने योग्य सब करते रहते हैं और अमाप खर्चा करते हैं ।
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इस स्थिति को बदलने के लिये एक ओर तो संगठित प्रयास करने होंगे और दूसरी ओर अभिभावकों के
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प्रबोधन और शिक्षकों के प्रशिक्षण के प्रयास करने होंगे । समाजमन आज इतना उद्देलित है कि शान्त चित्त से
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विचार करना बहुत कठित है । इसलिये समाजमन को शान्त करने हेतु भी प्रयास करना आवश्यक है । यह भी
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अपने आप में बडा विषय है ।
  −
मैं ब्राह्मण हूँ । क्या ब्राह्मण होने से कोई विशेष शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता है ? क्या प्राचीन
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समयमें ब्राह्मण का विशेष अधिकार था ? आज शूट्रों के लिये तो आरक्षण के अन्तर्गत नौकरी सुनिश्चित है,
  −
प्रगत अध्ययन के लिये प्रवेश सुनिश्चित है परन्तु ब्राह्मणों की चिन्ता ही नहीं की जाती । क्या यह उचित है ?
  −
एक ब्राह्मण युवक का प्रश्र
  −
एक समय था जब वर्णव्यवस्था हिन्दु समाजव्यवस्था के मूल आधारों में एक थी । परन्तु आज वह पूर्ण रूप से
  −
अव्यवस्था में बदल गई है । आज उसका कोई सार्थक उपयोग नहीं रहा ।
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आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में कया स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है
  −
इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक
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वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम,
  −
तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय
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है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना
  −
नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो
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ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत
  −
आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का
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सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो
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दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
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भारतीय शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं
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थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे
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हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों भारतीय नहीं कहा जाता ?
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एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न
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निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और
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Rao
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'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
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उत्तर यह कानून से होनेवाला काम नहीं है । कानून बनाने से सम्बन्धित लोग दूसरे मार्ग खोज निकालते हैं । कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने ऐसा कानून बनाया था तब रातोंरात संचालकों ने “पूर्व प्राथमिक विद्यालय लिखे हुए फलक उतार कर “नर्सरी' “झूला घर' “प्ले हाउस' लिखे हुए फलक चढा दिये । संचालक, शिक्षक और अभिभावक कल तक करते थे वही करते रहे । सबने मिलकर सिद्ध कर दिया कि वे विद्यालय नहीं हैं । तात्पर्य यह है कि यह कानून का विषय नहीं है ।
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अकेले अभिभावक भी कुछ नहीं कर सकते । यदि पूर्व प्राथमिक विभाग में प्रवेश न लें तो सीधे प्राथमिक में प्रवेश देने से संचालक इनकार कर देते हैं । इसलिये पूर्व प्राथमिक से ही बच्चों को विद्यालय भेजने की बाध्यता हो जाती है । कानून है परन्तु कानून को नहीं माना तो कुछ नहीं हो सकता । अकेले संचालक भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अभिभावकों के आग्रह के आगे सबको झुकना पडता है ।
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प्रश्न ३७
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अधिकांश अभिभावक, संचालक, शिक्षक शैक्षिक सिद्धान्तों की बहुत दरकार भी नहीं करते । सब किसी अज्ञात तत्त्व से अभिमन्त्रित होकर नहीं करने योग्य सब करते रहते हैं और अमाप खर्चा करते हैं ।
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उत्तर
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इस स्थिति को बदलने के लिये एक ओर तो संगठित प्रयास करने होंगे और दूसरी ओर अभिभावकों के प्रबोधन और शिक्षकों के प्रशिक्षण के प्रयास करने होंगे । समाजमन आज इतना उद्देलित है कि शान्त चित्त से विचार करना बहुत कठित है । इसलिये समाजमन को शान्त करने हेतु भी प्रयास करना आवश्यक है । यह भी अपने आप में बडा विषय है ।
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प्रश्न ३८
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'''प्रश्न ३५  मैं ब्राह्मण हूँ । क्या ब्राह्मण होने से कोई विशेष शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता है ? क्या प्राचीन
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समयमें ब्राह्मण का विशेष अधिकार था ? आज शूट्रों के लिये तो आरक्षण के अन्तर्गत नौकरी सुनिश्चित है, प्रगत अध्ययन के लिये प्रवेश सुनिश्चित है परन्तु ब्राह्मणों की चिन्ता ही नहीं की जाती । क्या यह उचित है ?'''
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उत्तर
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'''एक ब्राह्मण युवक का प्रश्र'''
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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एक समय था जब वर्णव्यवस्था हिन्दु समाजव्यवस्था के मूल आधारों में एक थी । परन्तु आज वह पूर्ण रूप से अव्यवस्था में बदल गई है । आज उसका कोई सार्थक उपयोग नहीं रहा ।
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आप ब्राह्मण हैं । ब्राह्मण वर्ण का समाज में कया स्थान है इसका विचार करने से पहले दायित्व क्या है इसका विचार करना चाहिये । ब्राह्मण केवल ब्राह्मण मातापिता के घर में जन्म लेने से नहीं हुआ जाता । प्रत्येक वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय का सम्बन्ध है । ब्राह्मण वर्ण के आचार क्या हैं ? पवित्रता, सादगी, संयम, तपश्चर्या ब्राह्मण वर्ण के आचार हैं । अध्ययन और अध्यापन करना, यज्ञ करना और करवाना ब्राह्मण का व्यवसाय है । वैद्य, पुरोहित और अमात्य भी ब्राह्मण होते हैं । परन्तु व्यवसाय का अर्थ पैसा कमाना नहीं है, नोकरी करना नहीं है । केवल अमात्य ही नौकरी करते हैं । अन्य व्यवसाय का लक्ष्य भी अथार्जिन नहीं है, सेवा है । तभी तो ब्राह्मण पृथ्वी पर का देवता है । क्या आप ऐसे ब्राह्मण हैं ? बनना चाहते हैं ? ऐसे ब्राह्मणों की समाज को बहुत आवश्यकता है । समाज आज भी सम्मान करने को इच्छुक है । परन्तु ब्राह्मण नहीं रहना है और ब्राह्मण का सम्मान चाहिये तो सम्मान नहीं, उपहास मिलेगा । वस्तुस्थिति यह है कि आज किसी भी वर्ण में जन्म हुआ हो दस प्रतिशत लोग भी आचार और व्यवसाय से ब्राह्मण बन जाय तो समाज की व्यवस्था सम्हल जायेगी ।
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बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे,
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'''प्रश्न ३६ भारतीय शिक्षा का बहुत बखान करनेवाले एक बात भूल जाते हैं कि भारत में शिक्षा की व्यवस्था ही नहीं थी । लडकियों को तो पढाया ही नहीं जाता था । शिक्षा का प्रसार तो अब हुआ है । अभी तो प्रयास चल रहे हैं । भारत में ही तो हो रहे हैं । उन्हें क्यों भारतीय नहीं कहा जाता ?'''
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लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त
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'''एक शिक्षाशास्त्री का प्रश्न'''
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व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों
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निरक्षरता और अशिक्षितता में अन्तर है । इस देश में लिखने पढने को शिक्षा नहीं कहा जाता था, संस्कार और बुद्धि को शिक्षा कहा जाता था । लिखना पढना नहीं जानने वाले कबीर तत्त्वज्ञ, भक्त और कवि थे, लिखना पढना नहीं जाननेवाले व्यापारी करोड़ों रूपये कमाते थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग अत्यन्त व्यवहारदृक्ष थे, लिखना पढना नहीं जानने वाले लोग कुशल कारीगर थे । आज लिखना पढ़ना जानने वाले लोगों में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
में ज्ञान, संस्कार, व्यवहार कौशल कुछ नहीं होता । अर्थात्‌ साक्षरता से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तो भी हम
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उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी बात यह है कि शिक्षा भारतीय और अभारतीय कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
उसे ही शिक्षा कह रहे हैं । दूसरी बात यह है कि सरकार की कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं होने पर भी इस देश में
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कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली भारतीय है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के रूप में भारतीय बनाने से वह भारतीय होगी ।
पाँच लाख प्राथमिक विद्यालय और सैंकडों उच्च शिक्षा के केन्द्र थे इसके तो दस्तावेज भी आपको मिलेंगे । तीसरी
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बात यह है कि शिक्षा भारतीय और अभारतीय कानून और संविधान से नहीं होती, उसके आधार रूप जीवनदृष्टि के
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कारण होती है । आज भारत में शिक्षा टैकनिकली भारतीय है, उसकी जीवनदृष्टि पाश्चात्य है । उसे जीवनदृष्टि के
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रूप में भारतीय बनाने से वह भारतीय होगी ।
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अभी तो भारतीय शिक्षा की केवल बातें शुरू हुई हैं । देश में हलचल शुरू हुई है । योजना और प्रयोग तो
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अभी तो भारतीय शिक्षा की केवल बातें शुरू हुई हैं । देश में हलचल शुरू हुई है । योजना और प्रयोग तो होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से भारतीय बनाने की आवश्यकता है ।
होने शेष हैं । हम सबको मिलकर शिक्षा को पूर्ण रूप से भारतीय बनाने की आवश्यकता है ।
      
शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा
 
शिक्षा के तन्त्र में ऐसे कौन से परिवर्तन हैं जो सहजता से किये जा सकते हैं ? जो सहजता से किये नहीं जा
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