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उनका भाषाप्रभुत्व सहज ही होता है । जिन्हें भाषा अच्छी आती है उन्हें कठिन विषय समझना भी सरल होता है ।
 
उनका भाषाप्रभुत्व सहज ही होता है । जिन्हें भाषा अच्छी आती है उन्हें कठिन विषय समझना भी सरल होता है ।
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हम पढते थे तब सातवीं में बोर्ड की परीक्षा होती थी और उसे उत्तीर्ण करने पर प्राथमिक विद्यालय में
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'''प्रश्न २७ हम पढते थे तब सातवीं में बोर्ड की परीक्षा होती थी और उसे उत्तीर्ण करने पर प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बना जाता था । माध्यमिक विद्यालय की मैट्रिक में प्रथम श्रेणी मिल गई तो बडी उपलब्धि मानी जाति थी । स्नातक होना बहुत बडी बात थी । आज के स्नातक से भी उस समय के सातवीं पास को अधिक ज्ञान था । आज गडबड कहाँ हुई है ?'''
शिक्षक बना जाता था । माध्यमिक विद्यालय की मैट्रिक में प्रथम श्रेणी मिल गई तो बडी उपलब्धि मानी
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जाति थी । स्नातक होना बहुत बडी बात थी । आज के स्नातक से भी उस समय के सातवीं पास को
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अधिक ज्ञान था । आज गडबड कहाँ हुई है ?
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एक अभिभावक का प्रश्न
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आप दो पीढ़ी पूर्व की बात बता रहे हैं जब आप पढ़ रहे थे । उस समय हजार रूपया वेतन होना भी बहुत बडी
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'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
बात थी ।
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हमने विगत तीस चालीस वर्षा में सारी बातों की गुणवत्ता बहुत कम कर दी है । वस्तुओं का मूल्य भी कम
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'''उत्तर''' आप दो पीढ़ी पूर्व की बात बता रहे हैं जब आप पढ़ रहे थे । उस समय हजार रूपया वेतन होना भी बहुत बडी बात थी ।
कर दिया है । रूपये का भी मूल्य कम हो गया, परीक्षा में अंकों का कम हो गया |
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हमने विगत तीस चालीस वर्षा में सारी बातों की गुणवत्ता बहुत कम कर दी है । वस्तुओं का मूल्य भी कम कर दिया है । रूपये का भी मूल्य कम हो गया, परीक्षा में अंकों का कम हो गया |
    
पहले शिक्षा ज्ञाननिष्ठ थी, अब अर्थनिष्ठ बन गई । अर्थ को अर्थात्‌ पैसे को पैसे के अलावा किसी बात का
 
पहले शिक्षा ज्ञाननिष्ठ थी, अब अर्थनिष्ठ बन गई । अर्थ को अर्थात्‌ पैसे को पैसे के अलावा किसी बात का
मूल्य नहीं होता । इसलिये अध्ययन अध्यापन में पैसे कमाने की दृष्टि से चतुराई होने लगी । मैं दूसरे से बेहतर हूँ
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मूल्य नहीं होता । इसलिये अध्ययन अध्यापन में पैसे कमाने की दृष्टि से चतुराई होने लगी । मैं दूसरे से बेहतर हूँ ऐसा दिखाने के लिये मेरे विद्यार्थी को अधिक अंक देने की रीत बढती गई । मेरे विद्यालय का परीक्षाफल अधिक
ऐसा दिखाने के लिये मेरे विद्यार्थी को अधिक अंक देने की रीत बढती गई । मेरे विद्यालय का परीक्षाफल अधिक
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दिखाई दे इस दृष्टि से अंक बढ़ाने की प्रवृत्ति भी उसका विस्तार है । विद्यालय की संख्या बनी रहे इस दृष्टि से परीक्षालफल देना भी वही है । अधिक अंक देने में मेरा तो कोई नुकसान नहीं है यह सोच है । कसकर परीक्षा लेना भी बन्द हो गया । धीरे धीरे ज्ञान का और परीक्षा के परिणाम का सम्बन्ध विच्छेद्‌ होता गया । शिक्षित होकर हमें अब क्या प्राप्त करना है इसका खास कोई विचार ही नहीं रहा । पढ़लिख कर आप अच्छे बनेंगे क्या ऐसा पूछने पर प्रथम तो प्रश्न ही समझ में नहीं आयेगा । समझेंगे तब कहेंगे कि अब अच्छाई का जमाना नहीं रहा । ज्ञान की बात भी समझ में नहीं आती । शिक्षित होकर पैसा कमायेंगे यह एकमात्र इच्छा बची है परन्तु पैसा कमाने के लिये कैसा पढ़ना चाहिये इसका भान नहीं है । स्वतन्त्र विचार नामक कोई बात नहीं बची |
दिखाई दे इस दृष्टि से अंक बढ़ाने की प्रवृत्ति भी उसका विस्तार है । विद्यालय की संख्या बनी रहे इस दृष्टि से
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परीक्षालफल देना भी वही है । अधिक अंक देने में मेरा तो कोई नुकसान नहीं है यह सोच है । कसकर परीक्षा
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लेना भी बन्द हो गया । धीरे धीरे ज्ञान का और परीक्षा के परिणाम का सम्बन्ध विच्छेद्‌ होता गया । शिक्षित होकर
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हमें अब क्या प्राप्त करना है इसका खास कोई विचार ही नहीं रहा । पढ़लिख कर आप अच्छे बनेंगे क्या ऐसा
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पूछने पर प्रथम तो प्रश्न ही समझ में नहीं आयेगा । समझेंगे तब कहेंगे कि अब अच्छाई का जमाना नहीं रहा ।
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ज्ञान की बात भी समझ में नहीं आती । शिक्षित होकर पैसा कमायेंगे यह एकमात्र इच्छा बची है परन्तु पैसा कमाने
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के लिये कैसा पढ़ना चाहिये इसका भान नहीं है । स्वतन्त्र विचार नामक कोई बात नहीं बची |
      
विगत दौ पीछ़ियों में हमने बडा घालमेल कर दिया है । अब हमें ही रास्ता नहीं सूझ रहा है । ऐसी गुत्थियों से
 
विगत दौ पीछ़ियों में हमने बडा घालमेल कर दिया है । अब हमें ही रास्ता नहीं सूझ रहा है । ऐसी गुत्थियों से
ही हमें मार्ग निकालना है । इसके लिये सभी समझदार लोगों ने मिलकर प्रयास करने होंगे । आपका भी सहयोग
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ही हमें मार्ग निकालना है । इसके लिये सभी समझदार लोगों ने मिलकर प्रयास करने होंगे । आपका भी सहयोग अपेक्षित है ।
अपेक्षित है ।
      
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