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२२. काम करने में आनन्द नहीं इसलिये मनोरंजन के और क्षेत्र खोजे जाते हैं । मनोरंजन के लिये काम से छुट्टी चाहिये इसलिये छुट्टी की पैरवी होती है । काम और मनोरंजन अलग हैं इसलिये सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी चाहिये ही, फिर दो दिन चाहिये । फिर छुट्टियों का भी एक तन्त्र निर्माण होता है, अन्य आवश्यकताओं के लिये छुट्टियों का प्रावधान होता है, फिर आवश्यकता है इसलिये छुट्टी नहीं अपितु नियमानुसार छुट्टी मिलती है इसलिये छुट्टी लेना ऐसा सर्वमान्य प्रचलन हो जाता है ।
 
२२. काम करने में आनन्द नहीं इसलिये मनोरंजन के और क्षेत्र खोजे जाते हैं । मनोरंजन के लिये काम से छुट्टी चाहिये इसलिये छुट्टी की पैरवी होती है । काम और मनोरंजन अलग हैं इसलिये सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी चाहिये ही, फिर दो दिन चाहिये । फिर छुट्टियों का भी एक तन्त्र निर्माण होता है, अन्य आवश्यकताओं के लिये छुट्टियों का प्रावधान होता है, फिर आवश्यकता है इसलिये छुट्टी नहीं अपितु नियमानुसार छुट्टी मिलती है इसलिये छुट्टी लेना ऐसा सर्वमान्य प्रचलन हो जाता है ।
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२३. मनोरंजन की कोई सीमा नहीं, मनोरंजन हेतु खर्च भी बहुत करना पडता है इसलिये खर्च की भी सीमा नहीं, मनोरंजन हेतु छुट्टी भी चाहिये, काम करने वाले को छुट्टी देने में काम करवाने वाले को अधिक खर्च होता है इसलिये वह छुट्टी और वेतन दोनों कम से कम देना चाहता है। काम करनेवाले और करवानेवाले के बीच जो संघर्ष चलता है उसमें से वेतन, काम और छुट्टी का एक नियमों के तानेबाने का जाल निर्माण होता है जिसमें सब फँसते हैं । काम भी फँस कर नष्ट होता है ।
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२३. मनोरंजन की कोई सीमा नहीं, मनोरंजन हेतु खर्च भी बहुत करना पडता है इसलिये खर्च की भी सीमा नहीं, मनोरंजन हेतु छुट्टी भी चाहिये, काम करने वाले को छुट्टी देने में काम करवाने वाले को अधिक खर्च होता है इसलिये वह छुट्टी और वेतन दोनों कम से कम देना चाहता है। काम करनेवाले और करवानेवाले के मध्य जो संघर्ष चलता है उसमें से वेतन, काम और छुट्टी का एक नियमों के तानेबाने का जाल निर्माण होता है जिसमें सब फँसते हैं । काम भी फँस कर नष्ट होता है ।
    
२४. जिस काम के साथ करनेवाले का अपनत्व का सम्बन्ध नहीं उस काम की दुर्गति होती है और काम करनेवाले को आनन्द तो नहीं ही मिलता है उल्टे उसके जीवन में शूत्यावकाश भी पैदा होता है । इस  
 
२४. जिस काम के साथ करनेवाले का अपनत्व का सम्बन्ध नहीं उस काम की दुर्गति होती है और काम करनेवाले को आनन्द तो नहीं ही मिलता है उल्टे उसके जीवन में शूत्यावकाश भी पैदा होता है । इस  

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