१७. पैसा कमाने के लिये कुछ भी हो सकता है। अर्थशास््र का नैतिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसा सिखाने से अर्थविषयक अप्रामाणिकता अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । मैं कुछ भी करने के लिये स्वतन्त्र हूँ ऐसा सिखाने से स्वार्थी बनने के लिये और कुछ सिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । व्यक्तिकेन्द्री समाजरचना का सिद्धान्त सिखाने के बाद स्वार्थी होना अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं रहती । काम करने वाला छोटा है ऐसा सिखाने से शोषण करने की कला अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । विभिन्न विषयों के जो मूल सिद्धान्त हैं वे ही सारे सामाजिक सांस्कृतिक दृषणों के मूल स्रोत हैं । अतः दोष तो शिक्षा का ही है । हमारा दोष यह है कि हम ऐसी शिक्षा को चला रहे हैं । | १७. पैसा कमाने के लिये कुछ भी हो सकता है। अर्थशास््र का नैतिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसा सिखाने से अर्थविषयक अप्रामाणिकता अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । मैं कुछ भी करने के लिये स्वतन्त्र हूँ ऐसा सिखाने से स्वार्थी बनने के लिये और कुछ सिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । व्यक्तिकेन्द्री समाजरचना का सिद्धान्त सिखाने के बाद स्वार्थी होना अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं रहती । काम करने वाला छोटा है ऐसा सिखाने से शोषण करने की कला अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं होती । विभिन्न विषयों के जो मूल सिद्धान्त हैं वे ही सारे सामाजिक सांस्कृतिक दृषणों के मूल स्रोत हैं । अतः दोष तो शिक्षा का ही है । हमारा दोष यह है कि हम ऐसी शिक्षा को चला रहे हैं । |