१. कर्मसंस्कृति का नाश और यन्त्र विकृति का प्रभाव इन दोनों के परिणाम स्वरूप मनुष्य अधिक से अधिक अपाहिज बन रहा है, अपनी ईश्वर प्रदत्त जन्मजात शक्तियों का क्षरण हो रहा है उसे देख ही नहीं सकता, और यदि देख सकता है तो उन्हें बचाने के लिये कुछ कर नहीं सकता । क्या यह स्थिति शोचनीय नहीं है ? | १. कर्मसंस्कृति का नाश और यन्त्र विकृति का प्रभाव इन दोनों के परिणाम स्वरूप मनुष्य अधिक से अधिक अपाहिज बन रहा है, अपनी ईश्वर प्रदत्त जन्मजात शक्तियों का क्षरण हो रहा है उसे देख ही नहीं सकता, और यदि देख सकता है तो उन्हें बचाने के लिये कुछ कर नहीं सकता । क्या यह स्थिति शोचनीय नहीं है ? |