Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 79: Line 79:  
# व्यक्ति का समष्टि के साथ समायोजन कुटुंब, समुदाय, राष्ट्र और विश्व ऐसे चार स्तरों पर होता है|
 
# व्यक्ति का समष्टि के साथ समायोजन कुटुंब, समुदाय, राष्ट्र और विश्व ऐसे चार स्तरों पर होता है|
 
# अन्नमय आत्मा शरीर है । बल, आरोग्य, कौशल, तितिक्षा और लोच उसके विकास का स्वरूप है ।
 
# अन्नमय आत्मा शरीर है । बल, आरोग्य, कौशल, तितिक्षा और लोच उसके विकास का स्वरूप है ।
# आहार, निद्रा, श्रम, काम और
+
# आहार, निद्रा, श्रम, काम और मनःशान्ति से उसका विकास होता है ।
# . ९८. चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं ।
+
# प्राणमय आत्मा प्राण है । एकाग्रता सन्तुलन और नियमन उसके विकास का स्वरूप है ।
मनःशान्ति से उसका विकास होता है । ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे
+
# आहार, निद्रा, भय और मैथुन उसकी चार वृत्तियाँ हैं ।
 
+
# प्राणायाम और शुद्ध वायु उसके विकास के कारक तत्व हैं।
 
+
# मनोमय आत्मा मन है । विचार, भावना और इच्छा उसके स्वरूप हैं ।
Ly
+
# चंचलता, उत्तेजितता, ट्रंद्रात्मकता और आसक्ति उसके स्वभाव है ।
 
+
# एकाग्रता, शान्ति, अनासक्ति और सद्धावना उसके विकास का स्वरूप है ।
DOL
+
# योगाभ्यास, सेवा, संयम, स्वाध्याय, जप, सत्संग, सात्विक आहार मन के विकास के कारक तत्व हैं।
LYLSOLABES
+
# विज्ञानमय आत्मा बुद्धि है।
 
+
# तेजस्विता, कुशाग्रता और विशालता बुद्धि के विशेषण हैं ।
१9७,
+
# विवेक बुद्धि के विकास का स्वरूप है ।
 
+
# निरीक्षण, परीक्षण, तर्क, अनुमान, विश्लेषण, संस्लेषण, बुद्धि के साधन हैं ।
ck.
+
# अहंकार बुद्धि का एक और साथीदार है ।
AC
+
# कर्तृत्व, भोक्तृत्व, ज्ञातृत्व अहंकार के लक्षण हैं ।
 
+
# आत्मनिष्ठ बुद्धि और अहंकार सद्बुद्धि और दायित्वबोध में परिणत होते हैं ।
८८.
+
# आनंदमय आत्मा चित्त है । संस्कार ग्रहण करना उसका कार्य है ।
८९.
+
# जन्मजान्मांतर, अनुवंश, संस्कृति और सन्निवेश के संस्कार होते हैं ।
.. आत्मनिष्ठ बुद्धि और अहंकार सदुद्धि और दायित्वबोध
+
# चित्तशुद्धि करना चित्त के विकास का स्वरूप है ।
 
+
# सर्व प्रकार के संस्कारों का क्षय करना चित्तशुद्धि है ।
88.
+
# आहारशुद्धि और समाधि से चित्त शुद्ध होता है ।
९२.
+
# शुद्ध चित्त में आत्मतत्व प्रतिबिम्बित होता है ।
 
+
# शुद्ध चित्त में सहजता, प्रेम, सौंदर्यबोध, सृजनशीलता, आनंद का निवास है ।
९३.
+
# चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं ।
९४,
+
# अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे आत्मतत्व है ।
९५,
+
# उसका ही स्वरूप हृदय है । अनुभूति उसका विषय है।
९६,
+
# आत्मतत्व को आत्मतत्व की अनुभूति आत्मतत्वरूपी हृदय में होती है ।
९७,
+
# शिक्षा का लक्ष्य यही अनुभूति है ।
 
+
# एकात्मा की अनुभूति होने पर सर्वात्मा की अनुभूति होती है ।
   
+
# एकात्मा की अनुभूति अहम ब्रह्मास्मि है, सर्वात्मा की सर्वं खल्विदम ब्रह्म ।
 
+
# प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत सृष्टि है ।
७६. आहार, निद्रा, श्रम, काम और
+
# सृष्टि के प्रति एकात्मता, कृतज्ञता, दोहन और रक्षण, व्यक्ति के सृष्टि के साथ समायोजन के चरण हैं ।
मनःशान्ति से उसका विकास होता है ।
+
# ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं ।
 
+
# शिक्षा समाज के लिये होती है तब वह समाज को श्रेष्ठ बनाती है ।
प्राणमय आत्मा प्राण है । एकाग्रता सन्तुलन और नियमन
+
# समृद्ध और सुसंस्कृत समाज श्रेष्ठ समाज है ।
उसके विकास का स्वरूप है ।
+
# संस्कृति के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती है ।
 
+
# श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव, सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है ।
.. आहार, निद्रा, भय और मैथुन उसकी चार वृत्तियाँ हैं ।
  −
.. प्राणायाम और शुद्ध वायु उसके विकास के कारक
  −
 
  −
तत्त्व हैं।
  −
 
  −
. मनोमय आत्मा मन है । विचार, भावना और इच्छा
  −
 
  −
उसके स्वरूप हैं ।
  −
 
  −
.. चंचलता, उत्तेजितता, ट्रंद्रात्मकता और आसक्ति उसके
  −
 
  −
स्वभाव है ।
  −
 
  −
.. एकाग्रता, शान्ति, अनासक्ति और सद्धावना उसके
  −
 
  −
विकास का स्वरूप है ।
  −
 
  −
.. योगाभ्यास, सेवा, संयम, स्वाध्याय, जप, सत्संग,
  −
 
  −
aft en मन के विकास के कारक तत्त्व = |
  −
विज्ञानमय आत्मा बुद्धि है ।
  −
 
  −
. तेजस्विता, कुशाग्रता और विशालता बुद्धि के
  −
 
  −
विशेषण हैं ।
  −
 
  −
विवेक बुद्धि के विकास का स्वरूप है ।
  −
 
  −
निरीक्षण, परीक्षण, तर्क, अनुमान, विश्लेषण, संस्लेषण
  −
बुद्धि के साधन हैं ।
  −
 
  −
अहंकार बुद्धि का एक और साथीदार है ।
  −
 
  −
कर्तृत्व, भोक्तृत्व, ज्ञातृत्व अहंकार के लक्षण हैं ।
  −
 
  −
में परिणत होते हैं ।
  −
 
  −
आनंदमय आत्मा चित्त है । संस्कार ग्रहण करना उसका
  −
कार्य है ।
  −
 
  −
जन्मजान्मांतर, अनुवंश, संस्कृति और सन्निवेश के
  −
संस्कार होते हैं ।
  −
 
  −
चित्तशुद्धि करना चित्त के विकास का स्वरूप है ।
  −
 
  −
सर्व प्रकार के संस्कारों का क्षय करना चित्तशुद्धि है ।
  −
आहारशुद्धि और समाधि से चित्त शुद्ध होता है ।
  −
 
  −
शुद्ध चित्त में आत्मतत्त्व प्रतिर्बिबित होता है ।
  −
 
  −
शुद्ध चित्त में सहजता, प्रेम, सौंदर्यबोध, सृजनशीलता,
  −
आनंद का निवास है ।
  −
 
  −
ROL OL LOK LOE OE LO LOK 6 OE LO LOK LOL LOL LON LOK
  −
 
  −
gv
  −
  −
भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
  −
ROLLS ROLL ON LOE LOL KOE LOLOL LOL KOC AOL ©
  −
 
  −
९८. चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं ।
  −
 
  −
९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे
  −
आत्मतत्त्व है ।
  −
 
  −
१००, उसका ही स्वरूप हृदय है । अनुभूति उसका विषय
  −
है।
  −
 
  −
१०१, आत्मतत्त्त को... आत्मतत्त्व की... अनुभूति
  −
आत्मतत्त्वरूपी हृदय में होती है ।
  −
 
  −
१०२.शिक्षा का लक्ष्य यही अनुभूति है ।
  −
 
  −
१०३. एकात्मा की अनुभूति होने पर सर्वात्मा की अनुभूति
  −
होती है ।
  −
 
  −
१०४. एकात्मा की अनुभूति अहम ब्रह्मास्मि है, सर्वात्मा की
  −
aa खल्विदम ब्रह्म ।
  −
 
  −
१०५, प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत सृष्टि है ।
  −
 
  −
१०६, सृष्टि के प्रति एकात्मता, कृतज्ञता, दोहन और रक्षण
  −
व्यक्ति के सृष्टि के साथ समायोजन के चरण हैं ।
  −
 
  −
५०७. ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं ।
  −
 
  −
१०८, शिक्षा समाज के लिये होती है तब वह समाज को
  −
श्रेष्ठ बनाती है ।
  −
 
  −
१०९, समृद्ध और सुसंस्कृत समाज श्रेष्ठ समाज है ।
  −
 
  −
११०, संस्कृति के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि
  −
के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती है ।
  −
 
  −
१११, श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव,
  −
सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है ।
  −
 
   
११२, शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है ।
 
११२, शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है ।
  

Navigation menu