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लेख सम्पादित किया
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# संस्कृति के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती है ।
 
# संस्कृति के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती है ।
 
# श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव, सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है ।
 
# श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव, सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है ।
११२, शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है ।
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# शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है ।
 
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# शिक्षा पर आए सारे संकटों को दूर करने का दायित्व शिक्षक का होता है ।
११३. शिक्षा पर आए सारे संकटों को दूर करने का दायित्व
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# शिक्षक की दुर्बलता से शिक्षा पर संकट आते हैं ।
शिक्षक का होता है ।
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# परराष्ट्र की जीवनदृष्टि का आक्रमण और सत्ता तथा धन के ट्वारा शिक्षा की स्वायत्तता का हरण शिक्षा पर आए संकट हैं ।
 
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# राष्ट्रनिष्ठा, ज्ञाननिष्ठा और विद्यार्थिनिष्ठा से शिक्षक इन संकटों पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
११४, शिक्षक की दुर्बलता से शिक्षा पर संकट आते हैं ।
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# राष्ट्र के जीवनदर्शन को जानना, मानना और उसके अनुसार व्यवहार करना राष्ट्रनिष्ठा है ।
 
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# ज्ञान की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुरुता की रक्षा करना ज्ञाननिष्ठा है ।
११५, परराष्ट्र की जीवनदृष्टि का आक्रमण और सत्ता तथा
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# विद्यार्थी को जानना, उसके कल्याण हेतु प्रयास करना और उसे अपने से सवाया बनाना विद्यार्थीनिष्ठा है ।
धन के ट्वारा शिक्षा की स्वायत्तता का हरण शिक्षा पर
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# आचार्यत्व शिक्षक का गुणलक्षण है ।
आए संकट हैं ।
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# अपने आचरण से प्रेरित कर विद्यार्थी का जीवन बनाता है वह आचार्य है ।
 
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# आचार्य का आचरण शास्त्रनिष्ठ होता है ।
११६, राष्ट्रनिष्ठा, ज्ञाननिष्ठा और विद्यार्थिनिष्ठा से शिक्षक इन
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# विद्यार्थी भी ज्ञाननिष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ और आचार्यनिष्ठ होता है।
संकटों पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
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# आचार्य की सेवा, अनुशासन, जिज्ञासा और विनय विद्यार्थी के गुणलक्षण हैं ।
 
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# अधीति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार अध्ययन की पंचपदी है।
११७, राष्ट्र के जीवनदर्शन को जानना, मानना और उसके
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# कर्मन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से विषय को ग्रहण करना अधीति है।
अनुसार व्यवहार करना राष्ट्रनिष्ठा है ।
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# मन और बुद्धि के द्वारा अधीत विषय को ग्रहण करना बोध है ।
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# जिसका बोध हुआ है उसे पुन: पुन: करना अभ्यास है।
पर्व १ : उपोद्धात
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# अभ्यास से बोध परिपक्क होता है ।
रद ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०१६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०१६८६ ०९६८६ ०९६
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# परिपक्क बोध के अनुसार आचरण करना प्रयोग है ।
 
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# आचरण से विषय व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बनता है।
११८,ज्ञान की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुरुता की रक्षा करना
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# स्वाध्याय और प्रवचन प्रसार के दो अंग हैं ।
ज्ञाननिष्ठा है ।
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# नित्य अध्ययन से विषय को परिष्कृत और समृद्ध करते रहना स्वाध्याय है ।
 
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# अध्यापन और समाज के लिये ज्ञान का विनियोग ऐसे प्रवचन के दो आयाम हैं ।
११९, विद्यार्थी को जानना, उसके कल्याण हेतु प्रयास करना
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# अध्यापन में विद्यार्थी भी साथ में जुड़ता है । तब विद्यार्थी का वह अधीति पद है ।
और उसे अपने से सवाया बनाना विद्यार्थीनिष्ठा है ।
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# अधीति से प्रसार और प्रसार में फिर अधीति ऐसे ज्ञान की पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा बनती है और ज्ञानप्रवाह निरन्तर बहता है ।
 
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# ज्ञान की समृद्धि की रक्षा करने हेतु श्रेष्ठतम विद्यार्थी को शिक्षक ने शिक्षक बनने की प्रेरणा देनी चाहिए और उसे अपने से सवाया बनाना चाहिए ।
१२०, आचार्यत्व शिक्षक का गुणलक्षण है ।
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# शिक्षक बनना उत्तम विद्यार्थी का भी लक्ष्य होना अपेक्षित है ।
 
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# शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर जहाँ अध्ययन करते हैं, वह स्थान विद्यालय है ।
१२१. अपने आचरण से प्रेरित कर विद्यार्थी का जीवन
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# जब शिक्षक और विद्यार्थी स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और स्वदायित्व से विद्यालय चलाते हैं तब शिक्षा स्वायत्त होती है ।
बनाता है वह आचार्य है ।
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# शिक्षा की स्वायत्तता बनाये रखने का प्रमुख दायित्व शिक्षक का है, विद्यार्थी उसका सहभागी है और राज्य तथा समाज उसके सहयोगी हैं ।
 
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# स्वायत्त शिक्षा ही राज्य और समाज का मार्गदर्शन करने में समर्थ होती है ।
१२२. आचार्य का आचरण शाख्रनिष्ठ होता है ।
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# जो राज्य और समाज शिक्षा को स्वायत्त नहीं रहने देते उस राज्य और समाज की दुर्गति होती है ।
 
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# जो शिक्षक स्वायत्तता का दायित्व नहीं लेता उस शिक्षक की राज्य और समाज से भी अधिक दुर्गति होती है ।
१२३.विद्यार्थी भी ज्ञाननिष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ और आचार्यनिष्ठ होता
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# राष्ट्र और विद्यार्थी दोनों को ध्यान में रखकर जो पढ़ाया जाता है वह पाठ्यक्रम होता है ।
है।
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# विद्यार्थी की अवस्था, रुचि, क्षमता और आवश्यकता के अनुसार जो भी पढ़ाना शिक्षक द्वारा निश्चित किया जाता है वह विद्यार्थी सापेक्ष पाठ्यक्रम होता है ।
 
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# राष्ट्र की स्थिति और आवश्यकता को ध्यान में रखकर जो पढ़ाना निश्चित होता है वह राष्ट्रसापेक्ष पाठ्यक्रम होता है।
१२४, आचार्य की सेवा, अनुशासन, जिज्ञासा और विनय
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# विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम राष्ट्र के अविरोधी होना चाहिए क्योंकि विद्यार्थी भी राष्ट्र का अंग ही है ।
विद्यार्थी के गुणलक्षण हैं ।
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# सर्व प्रकार के शैक्षिक प्रयासों हेतु राष्ट्र सर्वोपरि है ।
 
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# भारत की जीवनदृष्टि विश्वात्मक है इसलिए राष्ट्रीय होकर शिक्षा विश्व का कल्याण साधने में समर्थ होती है ।
१२५, अधीति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार अध्ययन
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# सर्वकल्याणकारी शिक्षा राष्ट्र को चिरंजीवी बनाती है । भारत ऐसा ही राष्ट्र है ।
की पंचपदी है ।
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१२६, कर्मन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से विषय को ग्रहण करना
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अधीति है ।
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१२७, मन और बुद्धि के द्वारा अधीत विषय को ग्रहण करना
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बोध है ।
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१२८. जिसका बोध हुआ है उसे पुन: पुन: करना अभ्यास
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है।
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१२९, अभ्यास से बोध परिपक्क होता है ।
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५१३०, परिपक्क बोध के अनुसार आचरण करना प्रयोग है ।
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१३१, आचरण से विषय व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बनता
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है।
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१३२, स्वाध्याय और प्रवचन प्रसार के दो अंग हैं ।
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१३३. नित्य अध्ययन से विषय को परिष्कृत और समृद्ध करते
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रहना स्वाध्याय है ।
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१३४, अध्यापन और समाज के लिये ज्ञान का विनियोग ऐसे
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प्रवचन के दो आयाम हैं ।
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५३५, अध्यापन में विद्यार्थी भी साथ में जुड़ता है । तब विद्यार्थी
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का वह अधीति पद है ।
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१३६, अधीति से प्रसार और प्रसार में फिर अधीति ऐसे ज्ञान
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की पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा बनती है और ज्ञानप्रवाह
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निरन्तर बहता है ।
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ROL OL LOL LOE OKO LOK OE LOL LOK LOL LLL ON LORS
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१३७. ज्ञान की समृद्धि की रक्षा करने हेतु
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श्रेष्ठतम विद्यार्थी को शिक्षक ने शिक्षक बनने की प्रेरणा
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देनी चाहिए और उसे अपने से सवाया बनाना चाहिए ।
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१३८. शिक्षक बनना उत्तम विद्यार्थी का भी लक्ष्य होना
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अपेक्षित है ।
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१३९, शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर जहाँ अध्ययन करते हैं
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वह स्थान विद्यालय है ।
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१४०. जब शिक्षक और विद्यार्थी स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और
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स्वदायित्व से विद्यालय चलाते हैं तब शिक्षा स्वायत्त
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होती है ।
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१४१, शिक्षा की स्वायत्तता बनाये रखने का प्रमुख दायित्व
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शिक्षक का है, विद्यार्थी उसका सहभागी है और राज्य
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तथा समाज उसके सहयोगी हैं ।
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१४२. स्वायत्त शिक्षा ही राज्य और समाज का मार्गदर्शन करने
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में समर्थ होती है ।
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१४३. जो राज्य और समाज शिक्षा को स्वायत्त नहीं रहने देते
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उस राज्य और समाज की दुर्गति होती है ।
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१४४. जो शिक्षक स्वायत्तता का दायित्व नहीं लेता उस शिक्षक
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की राज्य और समाज से भी अधिक दुर्गति होती है ।
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१४५, राष्ट्र और विद्यार्थी दोनों को ध्यान में रखकर जो पढ़ाया
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जाता है वह पाठ्यक्रम होता है ।
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१४६. विद्यार्थी की अवस्था, रुचि, क्षमता और आवश्यकता
  −
के अनुसार जो भी पढ़ाना शिक्षक द्वारा निश्चित किया
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जाता है वह विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम होता है ।
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१४७, राष्ट्र की स्थिति और आवश्यकता को ध्यान में रखकर
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जो पढ़ाना निश्चित होता है वह राष्ट्रसापेक्ष पाठ्यक्रम होता
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है।
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१४८, विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम राष्ट्र के अविरोधी होना चाहिए
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क्योंकि विद्यार्थी भी राष्ट्र का अंग ही है ।
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१४९, सर्व प्रकार के शैक्षिक प्रयासों हेतु राष्ट्र सर्वोपरि है ।
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१५०, भारत की जीवनदृष्टि विश्वात्मक है इसलिए राष्ट्रीय होकर
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शिक्षा विश्व का कल्याण साधने में समर्थ होती है ।
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१५१, सर्वकल्याणकारी शिक्षा राष्ट्र को चिरंजीवी बनाती है ।
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भारत ऐसा ही राष्ट्र है ।
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CO iLO SEO 60 iC OE SO LOE LO iO KO 6 OR LOE KO C0
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[[Category:भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप]]
 
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==References==
 
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