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| ## गर्भधारणा से पहले कुछ मास तक पति और पत्नी दोनों ने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना । ऐसा करने से माता का और पिता का दोनों का ओज बढ़ता है । पत्नी जब नौकरी नहीं करती उसे अन्य पुरुषों का सहवास नहीं मिलता । ऐसी स्त्रियों को ब्रह्मचर्य पालन कम कठिन होता है । समय का सार्थक उपयोग करने के लिए घर में अकेली माँ को निश्चय की आवश्यकता होती है । समय का सार्थक उपयोग करने के लिए संयुक्त परिवार में कई अच्छे अच्छे तरीके होते हैं । जैसे भजन मण्डली, कथाकथन, घर के काम, सिलाई, बुनाई आदि । इसलिए संयुक्त परिवारों में तो ब्रह्मचर्य पालन और भी कम कठिन होता है । | | ## गर्भधारणा से पहले कुछ मास तक पति और पत्नी दोनों ने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना । ऐसा करने से माता का और पिता का दोनों का ओज बढ़ता है । पत्नी जब नौकरी नहीं करती उसे अन्य पुरुषों का सहवास नहीं मिलता । ऐसी स्त्रियों को ब्रह्मचर्य पालन कम कठिन होता है । समय का सार्थक उपयोग करने के लिए घर में अकेली माँ को निश्चय की आवश्यकता होती है । समय का सार्थक उपयोग करने के लिए संयुक्त परिवार में कई अच्छे अच्छे तरीके होते हैं । जैसे भजन मण्डली, कथाकथन, घर के काम, सिलाई, बुनाई आदि । इसलिए संयुक्त परिवारों में तो ब्रह्मचर्य पालन और भी कम कठिन होता है । |
| ## जिन गुण लक्षणों वाली संतान की इच्छा है उस के गुण लक्षणों के अनुरूप और अनुकूल अपना व्यवहार रखना । उन गुण और लक्षणों का निरंतर चिंतन करना। उन गुण लक्षणों वाले महापुरुषों की कथाएँ पढ़ना। गीत सुनना। वैसा वातावरण बनाए रखना । पराई स्त्री माता के समान होती है इस भाव को मन पर अंकित करनेवाली कहानियाँ पढ़ना । स्त्री का आदर, सम्मान करनेवाली कहानियां पढ़ना, सुनना । अश्लील, हिंसक साहित्य, सिनेमा, दूरदर्शन की मलिकाओं से दूर रहना । माता पिता दोनों के लिए यह आवश्यक है । | | ## जिन गुण लक्षणों वाली संतान की इच्छा है उस के गुण लक्षणों के अनुरूप और अनुकूल अपना व्यवहार रखना । उन गुण और लक्षणों का निरंतर चिंतन करना। उन गुण लक्षणों वाले महापुरुषों की कथाएँ पढ़ना। गीत सुनना। वैसा वातावरण बनाए रखना । पराई स्त्री माता के समान होती है इस भाव को मन पर अंकित करनेवाली कहानियाँ पढ़ना । स्त्री का आदर, सम्मान करनेवाली कहानियां पढ़ना, सुनना । अश्लील, हिंसक साहित्य, सिनेमा, दूरदर्शन की मलिकाओं से दूर रहना । माता पिता दोनों के लिए यह आवश्यक है । |
− | # गर्भधारणा के बाद संतान के जन्मतक | + | # गर्भधारणा के बाद संतान के जन्म तक |
− | इस काल में पिता की भूमिका दुय्यम हो जाती है । माता के सहायक की हो जाती है । मुख्य भूमिका माता की ही होती है ।
| + | इस काल में पिता की भूमिका दुय्यम हो जाती है । माता के सहायक की हो जाती है । मुख्य भूमिका माता की ही होती है । |
− | ३.१ उपर्युक्त बिंदु २.५ में बताई बातों को ‘स्व’भाव बनाना ।
| + | ## उपर्युक्त बिंदु २.५ में बताई बातों को ‘स्व’भाव बनाना । |
| ३.२ गर्भ को हानी हो ऐसा कुछ भी नहीं करना । अपनी हानिकारक पसंद या आदतों को बदलना । शरीर स्वास्थ्य अच्छा रखना । | | ३.२ गर्भ को हानी हो ऐसा कुछ भी नहीं करना । अपनी हानिकारक पसंद या आदतों को बदलना । शरीर स्वास्थ्य अच्छा रखना । |
| ३.३ गर्भ में बच्चे के विभिन्न अवयवों के विकास क्रम को समझकर उन अवयवों के लिए पूरक पोषक आहार विहार का अनुपालन करना । योगाचार्यों के मार्गदर्शन के अनुसार व्यायाम करना । बच्चे का गर्भ में निरंतर विकास हो रहा है इसे ध्यान में रखकर मन सदैव प्रसन्न रखना । | | ३.३ गर्भ में बच्चे के विभिन्न अवयवों के विकास क्रम को समझकर उन अवयवों के लिए पूरक पोषक आहार विहार का अनुपालन करना । योगाचार्यों के मार्गदर्शन के अनुसार व्यायाम करना । बच्चे का गर्भ में निरंतर विकास हो रहा है इसे ध्यान में रखकर मन सदैव प्रसन्न रखना । |