तीर्थों में जाने एवं वहाँ दान आदि करने का अत्यधिक माहात्म्य शास्त्रों में वर्णित है जिसका प्रमाण अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। किन्तु यहाँ तीर्थ-माहात्म्य के संकेत के लिए संक्षेप में उनका निरूपण किया जा रहा है - <blockquote>अग्निष्टोमादिभिर्यज्ञैरिष्टाविपुलदक्षिणैः। न तत् फलमवाप्नोति तीर्थाभिगमनेन यत्॥ | तीर्थों में जाने एवं वहाँ दान आदि करने का अत्यधिक माहात्म्य शास्त्रों में वर्णित है जिसका प्रमाण अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। किन्तु यहाँ तीर्थ-माहात्म्य के संकेत के लिए संक्षेप में उनका निरूपण किया जा रहा है - <blockquote>अग्निष्टोमादिभिर्यज्ञैरिष्टाविपुलदक्षिणैः। न तत् फलमवाप्नोति तीर्थाभिगमनेन यत्॥ |