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==तीर्थ का वर्गीकरण॥ Tirth ka Vargikarana==
==तीर्थ का वर्गीकरण॥ Tirth ka Vargikarana==
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शास्त्रों में तीन प्रकार के तीर्थों का वर्णन है - 1. मानस तीर्थ, 2. जंगम तीर्थ और 3. स्थावर तीर्थ। इनके अतिरिक्त तीर्थों का विभाजन प्रकारान्तर से भी किया गया है - १. नैसर्गिक २. निर्मित। निर्मित तीर्थ भी चार प्रकार के हैं - १. देव २. आसुर ३. आर्ष ४. मानुष। ये पुनः पार्थिव, अन्तरिक्ष तथा पाताल के भेद से तीन प्रकार के हैं।<ref>डॉ० राजाराम हजारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/pilgrimage-in-ancient-india-nzi854/ प्राचीन भारत में तीर्थ], भूमिका, सन् २००३, शारदा पब्लिशिंग् हाऊस, दिल्ली (पृ० १)।</ref>
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पुराणों में तीर्थों का उल्लेख व्यापक रूप से प्राप्त होता है। तीर्थ शब्द का प्रयोग वैदिक साहित्य में भी हुआ है। ऋग्वेद में तीर्थ शब्द का प्रयोग नदी के तट या समीपस्थ क्षेत्र या किसी भी जल अथवा समुद्र तटीय स्थान के लिये हुआ है। स्कन्दपुराण में तीन लाख पचास हजार तीर्थों की संख्या बताई गई है।<ref>डॉ० शिवस्वरूप सहाय, [https://books.google.co.in/books?id=qQXqEUyr6t4C&pg=PA153&dq=%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5&hl=hi&newbks=1&newbks_redir=0&sa=X&ved=2ahUKEwiGsuD7kvWKAxXBXGwGHTP-OGsQ6AF6BAgFEAI#v=onepage&q=%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5&f=false प्राचीन भारतीय धर्म एवं दर्शन], सन २०१०, मोतीलाल बनारसीदास (पृ० १५३)।</ref> पौराणिक काल में पुण्यप्रदेशों को भी तीर्थ कहा जाने लगा - <blockquote>आश्रयाः मुनीन्द्राणां देवानां च तथा प्रिये। भूमिभागाः पर्वताः स्युः तत्कीर्त्य तीर्थ मित्युत॥ (स्कन्द पुराण)</blockquote>मुनि, देव आदि के जो आश्रयभूत भूमिभाग एवं पर्वत हैं वे तीर्थ हैं। ब्रह्मपुराण में वर्णित है कि कर्मभूमि होने के कारण ये तीर्थ हैं - <blockquote>कर्मभूमिर्यतः पुत्र तस्मात तीर्थं तदुच्यते॥ (ब्रह्मपुराण ७७/२१)</blockquote>कर्मभूमि का अभिप्राय कर्मक्षेत्र से है। अर्थात श्रेष्ठजनों का जो कर्मक्षेत्र होता है वही तीर्थ कहा जाता है। एवं इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वन, नदी, पर्वत या सरोवर आदि हों जिनकी महत्ता शास्त्रों में वर्णित हों या जो पुण्यफल प्रदायिणी हों या किसी दिव्य पुरुष की लीला स्थली रही हो वे भी तीर्थ माने जाते हैं। पद्मपुराण में - <blockquote>तीर्थाभिगमनं पुण्यं यज्ञैरपि विशिष्यते। (पद्म० आदि ११/१७)</blockquote>तीर्थगमन का फल यज्ञ से भी विशिष्ट है। प्रत्येक तीर्थ क्षेत्र को एक नाम विशेष से पुराणों में सम्बोधित किया गया है जैसे - भृगुक्षेत्र, वाल्मीकि पर्वत, प्रयाग तीर्थ आदि। शास्त्रों में तीन प्रकार के तीर्थों का वर्णन है - 1. मानस तीर्थ, 2. जंगम तीर्थ और 3. स्थावर तीर्थ। इनके अतिरिक्त तीर्थों का विभाजन प्रकारान्तर से भी किया गया है - १. नैसर्गिक २. निर्मित। निर्मित तीर्थ भी चार प्रकार के हैं - १. देव २. आसुर ३. आर्ष ४. मानुष। ये पुनः पार्थिव, अन्तरिक्ष तथा पाताल के भेद से तीन प्रकार के हैं।<ref>डॉ० राजाराम हजारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/pilgrimage-in-ancient-india-nzi854/ प्राचीन भारत में तीर्थ], भूमिका, सन् २००३, शारदा पब्लिशिंग् हाऊस, दिल्ली (पृ० १)।</ref>
'''मानस तीर्थ॥ Manasa Tirtha'''
'''मानस तीर्थ॥ Manasa Tirtha'''
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धर्मशास्त्रों में इसी कारण तीर्थ यात्रा के इन दोनों ही माहात्म्यों के प्रतिफलों का स्थान-स्थान पर वर्णन किया है। जैसा कि - <blockquote>अनुपातकिनस्त्वेते महापातकिनो यथा। अश्वमेधेन शुद्धयन्ति तीर्थानुसरेण च॥ (विष्णु स्मृति)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%83/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%BD%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 विष्णु स्मृति], अध्याय-36, श्लोक-07।</ref></blockquote>भाषार्थ - पापी, महापापी सभी [[Ashvamedha Yajna (अश्वमेधयज्ञः)|अश्वमेध]] से तथा तीर्थ अनुसरण अर्थात तीर्थ यात्रा से शुद्ध हो जाते हैं। तीर्थयात्रा के समय भावनाएँ उच्चस्तरीय होनी चाहिए। उस अवधि में आत्म-निर्माण और लोक कल्याण के लिए क्या करना चाहिए? किस प्रकार करना चाहिए? यह चिन्तन एवं मनन [[Antahkarana Chatushtaya (अन्तःकरणचतुष्टयम्)|अन्तःकरण]] में चलता रहना चाहिए।
धर्मशास्त्रों में इसी कारण तीर्थ यात्रा के इन दोनों ही माहात्म्यों के प्रतिफलों का स्थान-स्थान पर वर्णन किया है। जैसा कि - <blockquote>अनुपातकिनस्त्वेते महापातकिनो यथा। अश्वमेधेन शुद्धयन्ति तीर्थानुसरेण च॥ (विष्णु स्मृति)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%83/%E0%A4%B7%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%BD%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 विष्णु स्मृति], अध्याय-36, श्लोक-07।</ref></blockquote>भाषार्थ - पापी, महापापी सभी [[Ashvamedha Yajna (अश्वमेधयज्ञः)|अश्वमेध]] से तथा तीर्थ अनुसरण अर्थात तीर्थ यात्रा से शुद्ध हो जाते हैं। तीर्थयात्रा के समय भावनाएँ उच्चस्तरीय होनी चाहिए। उस अवधि में आत्म-निर्माण और लोक कल्याण के लिए क्या करना चाहिए? किस प्रकार करना चाहिए? यह चिन्तन एवं मनन [[Antahkarana Chatushtaya (अन्तःकरणचतुष्टयम्)|अन्तःकरण]] में चलता रहना चाहिए।
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===तीर्थयात्रा और शिक्षा॥ Pilgrimage and Education===
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===तीर्थयात्रा और शिक्षा॥ Pilgrimage and Education ===
तीर्थयात्रा तीर्थ करने वालों के लिए शिक्षा, रचना और सांस्कृतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत रही है। भारतीय तीर्थों में यात्रा दूर गाँव में रहने वाले असंख्य लोगों का समूचे भारत और उसके विभिन्न रीति रिवाजों, जीवन शैलियों और प्रथाओं को जानने का अवसर प्रदान करती है। एक सर्वे के अनुसार तीर्थयात्रा में [[Shiksha (शिक्षा)|शिक्षा]] की तीन विशेषताएँ मिलती हैं, ये हैं - <ref>एस० के० भट्टाचार्या, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/73825 प्रार्थनाः तीर्थ यात्रा और पर्व], सन 2021, इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (पृ० १३८)।</ref>
तीर्थयात्रा तीर्थ करने वालों के लिए शिक्षा, रचना और सांस्कृतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत रही है। भारतीय तीर्थों में यात्रा दूर गाँव में रहने वाले असंख्य लोगों का समूचे भारत और उसके विभिन्न रीति रिवाजों, जीवन शैलियों और प्रथाओं को जानने का अवसर प्रदान करती है। एक सर्वे के अनुसार तीर्थयात्रा में [[Shiksha (शिक्षा)|शिक्षा]] की तीन विशेषताएँ मिलती हैं, ये हैं - <ref>एस० के० भट्टाचार्या, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/73825 प्रार्थनाः तीर्थ यात्रा और पर्व], सन 2021, इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (पृ० १३८)।</ref>
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#पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण
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# पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण
#उसका संवर्धन
#उसका संवर्धन
#आगामी पीढी में उसका प्रचार-प्रसार
#आगामी पीढी में उसका प्रचार-प्रसार
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==सारांश॥ Summary==
==सारांश॥ Summary==
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भारत में तीर्थ स्थलों की एक बहुत प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल से ही भारतीय शान्ति की खोज में तीर्थयात्रा करते आये हैं। परम्परा अनुसार चार धामों की यात्र पर जाते थे जोकि भारत के चारों कोनों में स्थापित हैं - उत्तर में बद्रीनाथ (पहाडों पर), पूर्व में पुरी (समुद्र के किनारे), पश्चिम में द्वारिका (समुद्री किनारा) एवं दक्षिण में रामेश्वरम (समुद्र तट)। भारत में स्थित कुछ तीर्थस्थलों की सूची इस प्रकार है -
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भारत में तीर्थ स्थलों की एक बहुत प्राचीन परम्परा है। प्राचीन काल से ही भारतीय शान्ति की खोज में तीर्थयात्रा करते आये हैं। परम्परा अनुसार चार धामों की यात्र पर जाते थे जोकि भारत के चारों कोनों में स्थापित हैं - उत्तर में बद्रीनाथ (पहाडों पर), पूर्व में पुरी (समुद्र के किनारे), पश्चिम में द्वारिका (समुद्री किनारा) एवं दक्षिण में रामेश्वरम (समुद्र तट)। भारत में स्थित कुछ तीर्थस्थलों की सूची इस प्रकार है -<ref>महेश शर्मा, [https://books.google.co.in/books?id=q35sBQAAQBAJ&pg=PA128&dq=%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5&hl=hi&newbks=1&newbks_redir=0&sa=X&ved=2ahUKEwiRlIm1qPWKAxVyR2wGHc65AZ84PBDoAXoECAsQAg#v=onepage&q=%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5&f=false हिन्दू धर्म विश्वकोश], सन २०१३, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली (पृ० १२८)।</ref>
*'''उत्तरी क्षेत्र -''' अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, वैष्णोदेवी, रुद्र प्रयाग, हरिद्वार, काशी, बनारस, प्रयाग, नगरकोट, कुरुक्षेत्र, अमृतसर, अयोध्या, हेमकुण्ड, विन्ध्यवासिनी, चित्रकूट इत्यादि।
*'''उत्तरी क्षेत्र -''' अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, वैष्णोदेवी, रुद्र प्रयाग, हरिद्वार, काशी, बनारस, प्रयाग, नगरकोट, कुरुक्षेत्र, अमृतसर, अयोध्या, हेमकुण्ड, विन्ध्यवासिनी, चित्रकूट इत्यादि।