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इसके बारे में कोई शास्त्रीय विशेष प्रमाण प्राप्त नहीं होते, अतः अर्धकुंभ-पर्व का मेला शास्त्रीय दृष्टि से विशेष महत्व नहीं रखता।  
 
इसके बारे में कोई शास्त्रीय विशेष प्रमाण प्राप्त नहीं होते, अतः अर्धकुंभ-पर्व का मेला शास्त्रीय दृष्टि से विशेष महत्व नहीं रखता।  
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कुम्भ, अर्ध कुम्भ, पूर्ण कुम्भ एवं महाकुम्भ के रूप में कुम्भ के चार स्वरूप देखे जाते हैं। 
 
==कुंभमेला के ज्योतिषीय योग॥ Astronomical Yoga of Kumbh Mela==
 
==कुंभमेला के ज्योतिषीय योग॥ Astronomical Yoga of Kumbh Mela==
 
ऐतिहासिक दृष्टि से कुंभ पर्व भारत के सूर्य उपासकों का पर्व है। इस पर्व की अवधारणा सूर्य के संवत्सरचक्र से जुडी एक खगोलवैज्ञानिक अवधारणा है। ज्योतिषीय-ग्रन्थोक्त सिद्धान्तों के आलोक में सनातन संस्कृति के अनुसार देवताओं का एक दिन, हमारे सौर-मान से एक वर्ष के तुल्य माना जाता है।<ref>डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० 88)।</ref> सूर्य सिद्धान्त -<blockquote>मासैर्द्वादशभिर्वर्षं दिव्यं तदह उच्यते।<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7 सूर्य सिद्धान्त], अध्याय-०1, श्लोक- 13।</ref></blockquote>बारह मासों के द्वारा देवताओं का एक दिन कहा जाता है। इस प्रकार एक दिव्य दिवस एक सांसारिक वर्ष के बराबर होता है। इसीलिये बारह दिन तक चले युद्ध को बारह वर्ष माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बारहवें वर्ष कुंभ की आवृत्ति होती है। जैसा कि कहा है - <ref name=":2">[https://archive.org/details/1300-maha-kumbh-parva महाकुंभ-पर्व], सन 2012, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 23)।</ref><blockquote>देवानां द्वादशभिर्मासैर्मर्त्यैः द्वादशवत्सरैः। जायन्ते कुंभपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया॥</blockquote>अर्थात मनुष्यों के बारह वर्षों के द्वारा, देवताओं के बारह दिन सम्पन्न होते हैं, इसलिये 12-12 वर्षों के अन्तराल पर कुंभ पर्व होते हैं। एवं जिस दिन अमृत-कुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो, उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है -  
 
ऐतिहासिक दृष्टि से कुंभ पर्व भारत के सूर्य उपासकों का पर्व है। इस पर्व की अवधारणा सूर्य के संवत्सरचक्र से जुडी एक खगोलवैज्ञानिक अवधारणा है। ज्योतिषीय-ग्रन्थोक्त सिद्धान्तों के आलोक में सनातन संस्कृति के अनुसार देवताओं का एक दिन, हमारे सौर-मान से एक वर्ष के तुल्य माना जाता है।<ref>डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० 88)।</ref> सूर्य सिद्धान्त -<blockquote>मासैर्द्वादशभिर्वर्षं दिव्यं तदह उच्यते।<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7 सूर्य सिद्धान्त], अध्याय-०1, श्लोक- 13।</ref></blockquote>बारह मासों के द्वारा देवताओं का एक दिन कहा जाता है। इस प्रकार एक दिव्य दिवस एक सांसारिक वर्ष के बराबर होता है। इसीलिये बारह दिन तक चले युद्ध को बारह वर्ष माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बारहवें वर्ष कुंभ की आवृत्ति होती है। जैसा कि कहा है - <ref name=":2">[https://archive.org/details/1300-maha-kumbh-parva महाकुंभ-पर्व], सन 2012, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 23)।</ref><blockquote>देवानां द्वादशभिर्मासैर्मर्त्यैः द्वादशवत्सरैः। जायन्ते कुंभपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया॥</blockquote>अर्थात मनुष्यों के बारह वर्षों के द्वारा, देवताओं के बारह दिन सम्पन्न होते हैं, इसलिये 12-12 वर्षों के अन्तराल पर कुंभ पर्व होते हैं। एवं जिस दिन अमृत-कुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो, उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है -  
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!विशेष महत्व
 
!विशेष महत्व
 
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| प्रयागराज
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|प्रयागराज
|बृहस्पति और सूर्य मकर राशि में।
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| बृहस्पति और सूर्य मकर राशि में।
 
|त्रिवेणी संगम पर स्नानादि।
 
|त्रिवेणी संगम पर स्नानादि।
 
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|हरिद्वार
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| हरिद्वार
 
|सूर्य और बृहस्पति कुंभ राशि में।
 
|सूर्य और बृहस्पति कुंभ राशि में।
 
|गंगा स्नानादि हरिद्वार में।
 
|गंगा स्नानादि हरिद्वार में।
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|उज्जैन
 
|उज्जैन
 
|सिंहस्थ योग।
 
|सिंहस्थ योग।
|क्षिप्रा नदी का महत्व।
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| क्षिप्रा नदी का महत्व।
 
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|नाशिक
 
|नाशिक
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=== प्रयाग में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Prayag ===
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===प्रयाग में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Prayag===
    
प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है जहाँ त्रिवेणीमें स्नान करने का विशेष माहात्म्य है जिसमें गंगा, यमुना तथा सरस्वतीका संगम होता है। इसका क्षेत्रफल 5 योजन है जहाँ जाने से अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थोंका वास रहता है, अतः इस महीनेमें यहाँ वास करने से कल्पवास के बराबर फल प्राप्त होता है।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n344/mode/1up पौराणिक कोश], ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 336)।</ref> प्रयागमें खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर अर्धकुम्भी एवं पूर्णकुम्भ का आयोजन होता है। प्रयाग के कुम्भकाल में दो प्रकार की ग्रह-स्थितियाँ रहती हैं - <ref>हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक, प्रो० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव - [https://archive.org/details/20200715_20200715_0737/page/n6/mode/1up कुम्भ पर्व का ज्योतिष शास्त्रीय आधार], सन 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 52)।</ref>   
 
प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है जहाँ त्रिवेणीमें स्नान करने का विशेष माहात्म्य है जिसमें गंगा, यमुना तथा सरस्वतीका संगम होता है। इसका क्षेत्रफल 5 योजन है जहाँ जाने से अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थोंका वास रहता है, अतः इस महीनेमें यहाँ वास करने से कल्पवास के बराबर फल प्राप्त होता है।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n344/mode/1up पौराणिक कोश], ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 336)।</ref> प्रयागमें खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर अर्धकुम्भी एवं पूर्णकुम्भ का आयोजन होता है। प्रयाग के कुम्भकाल में दो प्रकार की ग्रह-स्थितियाँ रहती हैं - <ref>हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक, प्रो० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव - [https://archive.org/details/20200715_20200715_0737/page/n6/mode/1up कुम्भ पर्व का ज्योतिष शास्त्रीय आधार], सन 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 52)।</ref>   
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# प्रथम स्थिति में सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति का सूर्य के उच्चगृह अर्थात मेष में स्थित होकर सूर्य चन्द्र से केन्द्र का सम्बन्ध बना लेता है।
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#प्रथम स्थिति में सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति का सूर्य के उच्चगृह अर्थात मेष में स्थित होकर सूर्य चन्द्र से केन्द्र का सम्बन्ध बना लेता है।
 
#दूसरी स्थितिमें भी सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति चन्द्र के उच्चगृह अर्थात वृष राशि में स्थित होकर सूर्य चन्द्र को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
 
#दूसरी स्थितिमें भी सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति चन्द्र के उच्चगृह अर्थात वृष राशि में स्थित होकर सूर्य चन्द्र को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
 
[[File:Prayag Kumbha.PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः प्रयागराज कुंभ]]
 
[[File:Prayag Kumbha.PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः प्रयागराज कुंभ]]
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कल्पवास का तात्पर्य है एक मास तक तीर्थ क्षेत्र प्रमुखतः प्रयागराज में निवास कर धार्मिक नियमों का पालन करना। इसे व्यक्तिगत साधना और सामाजिक सेवा का संगम माना जाता है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को कल्पवासी कहा जाता है उनको पालन करने के नियम इस प्रकार हैं -  
 
कल्पवास का तात्पर्य है एक मास तक तीर्थ क्षेत्र प्रमुखतः प्रयागराज में निवास कर धार्मिक नियमों का पालन करना। इसे व्यक्तिगत साधना और सामाजिक सेवा का संगम माना जाता है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को कल्पवासी कहा जाता है उनको पालन करने के नियम इस प्रकार हैं -  
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* सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य आदि का पालन
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*सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य आदि का पालन
 
*नदी स्नान, ध्यान और संध्या वंदन आदि
 
*नदी स्नान, ध्यान और संध्या वंदन आदि
 
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
 
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
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===नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik ===
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===नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik===
 
[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नासिक कुंभ]]
 
[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नासिक कुंभ]]
    
नाशिक महाराष्ट्र का प्राचीन तीर्थस्थान है। नासिक और पञ्चवटी वस्तुतः एक ही नगर हैं। नगर के बीच से गोदावरी नदी बहती है। दक्षिण की ओर नगर का मुख्य भाग है उसे नासिक कहते हैं और उत्तरी भाग को पञ्चवटी। गोदावरी के दोनों तटों पर देवालय बने हुए हैं। पंचवटी से तपोवन और दूसरे तीर्थों का दर्शन करने में सुविधा होती है।  रावण ने यहीं से सीताहरण किया था। नासिक से 7-8 कोस दूर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा नील पर्वत के उत्तुंग शिखर पर गोदावरी गंगा का उद्गम स्रोत है। यहाँ बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर बारह वर्ष के अन्तर से कुम्भपर्व का आयोजन होता है - <ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/dli.language.0884/page/364/mode/1up पौराणिक कोश], सन 1971, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 365)।</ref><blockquote>सिंहराशिं गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। गोदावर्यां भवेत्कुम्भो भक्तिमुक्तिप्रदायकः॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>   
 
नाशिक महाराष्ट्र का प्राचीन तीर्थस्थान है। नासिक और पञ्चवटी वस्तुतः एक ही नगर हैं। नगर के बीच से गोदावरी नदी बहती है। दक्षिण की ओर नगर का मुख्य भाग है उसे नासिक कहते हैं और उत्तरी भाग को पञ्चवटी। गोदावरी के दोनों तटों पर देवालय बने हुए हैं। पंचवटी से तपोवन और दूसरे तीर्थों का दर्शन करने में सुविधा होती है।  रावण ने यहीं से सीताहरण किया था। नासिक से 7-8 कोस दूर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा नील पर्वत के उत्तुंग शिखर पर गोदावरी गंगा का उद्गम स्रोत है। यहाँ बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर बारह वर्ष के अन्तर से कुम्भपर्व का आयोजन होता है - <ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/dli.language.0884/page/364/mode/1up पौराणिक कोश], सन 1971, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 365)।</ref><blockquote>सिंहराशिं गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। गोदावर्यां भवेत्कुम्भो भक्तिमुक्तिप्रदायकः॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>   
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'''भाषार्थ -''' जिस समय सूर्य तथा बृहस्पति सिंह राशिपर हों तो उस समय नासिकमें भक्ति और मुक्ति को देने वाला कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।
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'''भाषार्थ -''' जिस समय सूर्य तथा बृहस्पति सिंह राशिपर हों तो उस समय नासिकमें भक्ति और मुक्ति को देने वाला कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है। नासिक-माहात्म्यके वर्णन-प्रसंगमें शिवपुराण, रुद्र संहिता के चौबीसवें अध्यायमें कहा गया है - <blockquote>तद्दिनं हि समारभ्य सिंहस्थे च बृहस्पतौ। आयान्ति सर्वतीर्थानि क्षेत्राणि दैवतानि च॥
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सरांसि पुष्करादीनि गंगाद्यास्सरितस्तथा। वासुदेवादयो देवाः सन्ति वै गौतमीतटे॥ (शिव पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A5%AA_(%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE)/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A8%E0%A5%AC शिवपुराण-कोटिरुद्रसंहिता], अध्याय-26, श्लोक - 51-52।</ref></blockquote>भाषार्थ - सिंहके बृहस्पतिमें सम्पूर्ण देवता तथा तीर्थ पुष्कर आदि सरोवर, गंगा आदि नदियाँ, वासुदेव आदि अनेक देवता गौतमी (नासिक) - में निवास करते हैं। गोदावरीमें सिंहस्थ पर्वके समय देव, दानव, यक्ष और मनुष्यादि जो कोई गौतमी गंगाका स्नान तथा पान करेगा वह समस्त संकटोंसे मुक्त होकर सर्वविजयी होगा। सिंहस्थ गुरुके समय गोदावरीमें विधिपूर्वक स्नान, पूजा, पाठ तथा दान करनेसे मोक्षपद की प्राप्ति और श्राद्ध तर्पण आदि से पितृ ऋणसे मुक्त होकर अक्षयसुखकी प्राप्ति करता है।
    
===उज्जैन में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Ujjain===
 
===उज्जैन में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Ujjain===
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हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
==कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva==
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== कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva==
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
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==कुम्भ पर्व का महत्व ॥ Importance of Kumbh parva==
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==कुम्भ पर्व का महत्व ॥ Importance of Kumbh parva ==
 
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार कुंभ-पर्व के निर्णीत स्थानों में कुंभ-योग के समय तत्तत्सम्प्रदाय सम्मानित साधु-महात्माओं के समवाय द्वारा संसार के सर्वविध कष्टों के निवृत्यर्थ देश, समाज, राष्ट्र और धर्म आदि समस्त विश्व के कल्याण-सम्पादनार्थ निष्काम-भावनापुरस्सर वेदादि शास्त्रानुकूल अमूल्य दिव्य उपदेशों से जगत्कल्याण करना ही कुंभ-पर्व का महान उद्देश्य है और साथ ही कुंभ संबंधी निरुक्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि बारह वर्षों के अंतराल पर दुर्भिक्ष, अवर्षण संबंधी जो अनिष्टकारी ग्रहयोग और प्राकृतिक प्रकोप समय-समय पर उत्पन्न होते हैं, कुंभपर्व के अवसर पर उनकी शांति और देश की सुखसमृद्धि हेतु तपस्वीजनों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक यज्ञानुष्ठान आदि धार्मिक कृत्य भी इस पर्व के विशेष प्रयोजन रहे हैं।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/fnnM_kumbha-parva-mahatmya-by-kapil-dev-dwivedi-1986-gyanpur-vishw-bharati-anusandhan-parishad/page/15/mode/2up कुम्भपर्व-माहात्म्य], सन 1986, विश्व भारती अनुसंधान परिषद, वाराणसी (पृ० 16)।</ref> कुंभ पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का परिचायक है -  
 
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार कुंभ-पर्व के निर्णीत स्थानों में कुंभ-योग के समय तत्तत्सम्प्रदाय सम्मानित साधु-महात्माओं के समवाय द्वारा संसार के सर्वविध कष्टों के निवृत्यर्थ देश, समाज, राष्ट्र और धर्म आदि समस्त विश्व के कल्याण-सम्पादनार्थ निष्काम-भावनापुरस्सर वेदादि शास्त्रानुकूल अमूल्य दिव्य उपदेशों से जगत्कल्याण करना ही कुंभ-पर्व का महान उद्देश्य है और साथ ही कुंभ संबंधी निरुक्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि बारह वर्षों के अंतराल पर दुर्भिक्ष, अवर्षण संबंधी जो अनिष्टकारी ग्रहयोग और प्राकृतिक प्रकोप समय-समय पर उत्पन्न होते हैं, कुंभपर्व के अवसर पर उनकी शांति और देश की सुखसमृद्धि हेतु तपस्वीजनों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक यज्ञानुष्ठान आदि धार्मिक कृत्य भी इस पर्व के विशेष प्रयोजन रहे हैं।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/fnnM_kumbha-parva-mahatmya-by-kapil-dev-dwivedi-1986-gyanpur-vishw-bharati-anusandhan-parishad/page/15/mode/2up कुम्भपर्व-माहात्म्य], सन 1986, विश्व भारती अनुसंधान परिषद, वाराणसी (पृ० 16)।</ref> कुंभ पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का परिचायक है -  
  
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