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[[File:Prayag Kumbha.PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः प्रयागराज कुंभ]]
 
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इन दोनों ही स्थितियों में बृहस्पति सूर्य या चन्द्र के उच्चगृह में स्थित होकर पारस्परिक केन्द्रस्थता अथवा अपनी पूर्ण दृष्टि से श्रेष्ठ मांगलिक योग प्राप्त कर लेता है। जैसा कि करपात्र स्वामी जी के कुम्भनिर्णय से स्पष्ट होता है कि-<blockquote>मकरे च दिवानाथे वृषराशिस्थिते गुरौ। प्रयागे कुंभयोगो वै माघमासे विधुक्षये॥ <ref name=":5">धर्मकृत्योपयोगि-तिथ्यादिनिर्णयः कुम्भपर्व-निर्णयश्च, सन 1965, संतशरण वेदान्ती, वाराणसी (पृ० 06)।</ref></blockquote>'''भाषार्थ -''' मकर में सूर्य, वृष राशि में गुरु के होने पर प्रयाग में माघ-अमावस्या को कुम्भ योग होता है।<blockquote>मेषराशिगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ। अमावस्यां तदा योगः कुम्भाख्यस्तीर्थनायके॥<ref name=":5" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' जिस समय बृहस्पति मेष राशिपर स्थित हो तथा चन्द्रमा और सूर्य मकर राशिपर हो तो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ-योग होता है।
इन दोनों ही स्थितियों में बृहस्पति सूर्य या चन्द्र के उच्चगृह में स्थित होकर पारस्परिक केन्द्रस्थता अथवा अपनी पूर्ण दृष्टि से श्रेष्ठ मांगलिक योग प्राप्त कर लेता है। जैसा कि करपात्र स्वामी जी के कुम्भनिर्णय से स्पष्ट होता है कि-     <blockquote>मकरे च दिवानाथे वृषराशिस्थिते गुरौ। प्रयागे कुंभयोगो वै माघमासे विधुक्षये॥ <ref name=":5">धर्मकृत्योपयोगि-तिथ्यादिनिर्णयः कुम्भपर्व-निर्णयश्च, सन 1965, संतशरण वेदान्ती, वाराणसी (पृ० 06)।</ref></blockquote>'''भाषार्थ -''' मकर में सूर्य, वृष राशि में गुरु के होने पर प्रयाग में माघ-अमावस्या को कुम्भ योग होता है।<blockquote>मेषराशिगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ। अमावस्यां तदा योगः कुम्भाख्यस्तीर्थनायके॥<ref name=":5" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' जिस समय बृहस्पति मेष राशिपर स्थित हो तथा चन्द्रमा और सूर्य मकर राशिपर हो तो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ-योग होता है।
      
तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ के तीन स्नान हैं - प्रथम स्नान - मकर संक्रान्ति (मेष राशि पर बृहस्पति का संयोग होने पर), द्वितीय एवं मुख्य स्नान - माघकृष्ण मौनी अमावस्या, तृतीय स्नान - माघ शुक्ल वसन्तपंचमी।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, कुम्भ पर्व माहात्म्य, सन 1986, ज्ञानपुर विश्व भारती अनुसंधान परिषद (पृ० २१)</ref>
 
तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ के तीन स्नान हैं - प्रथम स्नान - मकर संक्रान्ति (मेष राशि पर बृहस्पति का संयोग होने पर), द्वितीय एवं मुख्य स्नान - माघकृष्ण मौनी अमावस्या, तृतीय स्नान - माघ शुक्ल वसन्तपंचमी।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, कुम्भ पर्व माहात्म्य, सन 1986, ज्ञानपुर विश्व भारती अनुसंधान परिषद (पृ० २१)</ref>
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कल्पवास का तात्पर्य है एक मास तक तीर्थ क्षेत्र प्रमुखतः प्रयागराज में निवास कर धार्मिक नियमों का पालन करना। इसे व्यक्तिगत साधना और सामाजिक सेवा का संगम माना जाता है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को कल्पवासी कहा जाता है उनको पालन करने के नियम इस प्रकार हैं -  
 
कल्पवास का तात्पर्य है एक मास तक तीर्थ क्षेत्र प्रमुखतः प्रयागराज में निवास कर धार्मिक नियमों का पालन करना। इसे व्यक्तिगत साधना और सामाजिक सेवा का संगम माना जाता है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को कल्पवासी कहा जाता है उनको पालन करने के नियम इस प्रकार हैं -  
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*सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य आदि का पालन
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* सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य आदि का पालन
 
*नदी स्नान, ध्यान और संध्या वंदन आदि
 
*नदी स्नान, ध्यान और संध्या वंदन आदि
 
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
 
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
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===नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik===
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===नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik ===
[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नाशिक कुंभ]]
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[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नासिक कुंभ]]
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नाशिक महाराष्ट्र का प्राचीन तीर्थस्थान है। नासिक और पञ्चवटी वस्तुतः एक ही नगर हैं। नगर के बीच से गोदावरी नदी बहती है। दक्षिण की ओर नगर का मुख्य भाग है उसे नासिक कहते हैं और उत्तरी भाग को पञ्चवटी। गोदावरी के दोनों तटों पर देवालय बने हुए हैं। पंचवटी से तपोवन और दूसरे तीर्थों का दर्शन करने में सुविधा होती है।  रावण ने यहीं से सीताहरण किया था। नासिक से 7-8 कोस दूर त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा नील पर्वत के उत्तुंग शिखर पर गोदावरी गंगा का उद्गम स्रोत है। यहाँ बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर बारह वर्ष के अन्तर से कुम्भपर्व का आयोजन होता है - <ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/dli.language.0884/page/364/mode/1up पौराणिक कोश], सन 1971, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 365)।</ref><blockquote>सिंहराशिं गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। गोदावर्यां भवेत्कुम्भो भक्तिमुक्तिप्रदायकः॥ (कुम्भपर्व)</blockquote> 
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जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।
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'''भाषार्थ -''' जिस समय सूर्य तथा बृहस्पति सिंह राशिपर हों तो उस समय नासिकमें भक्ति और मुक्ति को देने वाला कुम्भ पर्व का आयोजन होता है। जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हों, उस समय गोदावरीमें केवल एक बार स्नान करनेसे मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गंगा-स्नान करने सदृश पुण्य प्राप्त करता है - <blockquote>षष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम्। सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च बृहस्पतौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भी लिखा गया है - <blockquote>अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम्। प्राप्नोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ॥ (कुम्भपर्व)</blockquote>जिस समय बृहस्पति सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय गोदावरीमें केवल स्नानमात्रसे ही मनुष्य अश्वमेध-यज्ञ करनेका तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।
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===उज्जैन में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Ujjain ===
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===उज्जैन में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Ujjain===
 
[[File:Ujjain Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः उज्जैन कुंभ]]
 
[[File:Ujjain Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः उज्जैन कुंभ]]
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उज्जैन भारत का प्रसिद्ध शैव तीर्थ, जिसका सम्बन्ध ज्योतिर्लिंगमहाकाल से है। इस नगर को उज्जयिनी अथवा अवन्तिका भी कहते हैं। यहीं से शिव ने त्रिपुर पर विजय प्राप्त की थी, अतः इसका नाम उज्जयिनी पडा। इसका प्राचीनतम नाम अवन्तिका अवन्ति नामक राजा के नाम पर था। इसको पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है। 51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि देवी का मन्दिर और महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं हैं। भारतीय ज्योतिषशास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। यहां खगोलीय ग्रह स्थिति के आधार पर बारह वर्ष में एक बार कुम्भपर्व का आयोजन होता है। जैसा कि - <blockquote>मेषराशिं गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। उज्जयिन्यां भवेत् कुंभः सदा मुक्तिप्रदायकः॥ (कुम्भ पर्व)</blockquote>
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जिस समय सूर्य मेष राशिपर हो और बृहस्पति सिंह राशिपर हो तो उस समय उज्जैनमें कुंभ-योग होता है। अवन्ती अर्थात उज्जैन के प्रत्येक कल्पमें भिन्न-भिन्न नाम होते हैं - 
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कल्पे कल्पेऽखिलं विश्वं कालयेद्यः स्वलीलया। तं कालं कलयित्वा यो महाकालोऽभवत्किल॥ (स्क०, का०ख० 7/ 91)
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जिस समय सूर्य मेष राशिपर हो और बृहस्पति सिंह राशिपर हो तो उस समय उज्जैनमें कुंभ-योग होता है - <blockquote>मेषराशिं गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। उज्जयिन्यां भवेत् कुंभः सदा मुक्तिप्रदायकः॥</blockquote>
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कनकशृंगा, कुशस्थली, अवन्तिका, पद्मावती, कुमुद्वती, उज्जयिनी, विशाला और अमरावती ये अन्य-अन्य कल्पों में उज्जैन के नाम होते हैं।
    
===हरिद्वार में कुंभ पर्व ॥ Kumbh parva in Haridwara===
 
===हरिद्वार में कुंभ पर्व ॥ Kumbh parva in Haridwara===
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हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
== कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva ==
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==कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva==
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
  
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