| Line 1: |
Line 1: |
| | कुंभपर्व भारतीय तीर्थयात्रा परंपरा का एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। सनातन संस्कृति में विशेष पर्वों, त्योहारों या संक्रान्तियों के अवसर पर नदी स्नान की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, कुंभ पर्व भी प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित किया जाने वाला नदी-स्नान परंपरा से जुडा एक अमृत पर्व है। कुंभ मेले का प्रति बारह वर्षों में बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र की खगोलीय ग्रह स्थिति के आधार पर हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजन होता है। यह पर्व मुख्य तीन परंपराओं तीर्थयात्रा, खगोलीय ग्रहस्थिति और नदी पूजा का सम्मिश्रण है। यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आस्था, त्याग, समर्पण, प्रतिबद्धता और सहकार्य की भावना का सन्देश देता है। | | कुंभपर्व भारतीय तीर्थयात्रा परंपरा का एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। सनातन संस्कृति में विशेष पर्वों, त्योहारों या संक्रान्तियों के अवसर पर नदी स्नान की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, कुंभ पर्व भी प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित किया जाने वाला नदी-स्नान परंपरा से जुडा एक अमृत पर्व है। कुंभ मेले का प्रति बारह वर्षों में बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र की खगोलीय ग्रह स्थिति के आधार पर हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजन होता है। यह पर्व मुख्य तीन परंपराओं तीर्थयात्रा, खगोलीय ग्रहस्थिति और नदी पूजा का सम्मिश्रण है। यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आस्था, त्याग, समर्पण, प्रतिबद्धता और सहकार्य की भावना का सन्देश देता है। |
| | | | |
| | + | {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=ReWiJ4pd6Kc |
| | + | |alignment=right |
| | + | |dimensions=500x248 |
| | + | |container=frame |
| | + | |description=KUMBH-Eternal Journey of Indian Civilisation-A Documentary Film. Courtesy: INDIA INSPIRES FOUNDATION.}} |
| | ==परिचय॥ Introduction== | | ==परिचय॥ Introduction== |
| | वैदिक काल से ही संक्रान्ति एवं ग्रहण आदि काल में तीर्थ क्षेत्र नदी के तटों पर स्नान, दान और यज्ञानुष्ठान की परम्परा चली आ रही है। किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पौराणिक काल में भी आज की तरह सामूहिक रूप से कुंभ स्नान के मेले आयोजित किये जाते थे। कुंभ पर्व से संबंधित प्राचीन श्लोक प्रमाण रूप में अवश्य प्राप्त होते हैं लेकिन उनका शास्त्रीय मूल ग्रन्थों में उद्धरण नहीं प्राप्त होता है।<ref name=":4">डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० १)।</ref> | | वैदिक काल से ही संक्रान्ति एवं ग्रहण आदि काल में तीर्थ क्षेत्र नदी के तटों पर स्नान, दान और यज्ञानुष्ठान की परम्परा चली आ रही है। किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पौराणिक काल में भी आज की तरह सामूहिक रूप से कुंभ स्नान के मेले आयोजित किये जाते थे। कुंभ पर्व से संबंधित प्राचीन श्लोक प्रमाण रूप में अवश्य प्राप्त होते हैं लेकिन उनका शास्त्रीय मूल ग्रन्थों में उद्धरण नहीं प्राप्त होता है।<ref name=":4">डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० १)।</ref> |
| Line 14: |
Line 19: |
| | | | |
| | तीर्थ की महिमा पर्व से तथा पर्व की महिमा तीर्थ से बढती है। पर्व और तीर्थ में घनिष्ठ साहचर्य है। प्रायः सभी पर्वों पर किसी न किसी तीर्थ में स्नान, दान, जप आदि का महत्व बतलाया गया है। पर्वों का उल्लेख करते हुये विष्णु पुराणमें कहा गया है - <blockquote>चतुर्दश्यष्टमी कृष्णा अमावास्याथ पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसंक्रान्तिरेव च॥ (विष्णुपुराण)</blockquote>चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्तियाँ ये सभी पर्व संज्ञक होती हैं। इनके अतिरिक्त सूर्य और चन्द्र ग्रहण को भी पर्व कहा जाता है। ये सभी कालखण्ड केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए पर्वकाल में स्नान-दानादि का अक्षय पुण्य होता है।<ref>आचार्य भगवतशरण शुक्ल, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-kumbha-parv-haridwar-ujjain-prayag-and-nasik-mzh357/#mz-expanded-view-111264803301 अमृत कुम्भ पर्व], शारदा संस्कृत संस्थान, वाराणसी (पृ० ११)।</ref> | | तीर्थ की महिमा पर्व से तथा पर्व की महिमा तीर्थ से बढती है। पर्व और तीर्थ में घनिष्ठ साहचर्य है। प्रायः सभी पर्वों पर किसी न किसी तीर्थ में स्नान, दान, जप आदि का महत्व बतलाया गया है। पर्वों का उल्लेख करते हुये विष्णु पुराणमें कहा गया है - <blockquote>चतुर्दश्यष्टमी कृष्णा अमावास्याथ पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसंक्रान्तिरेव च॥ (विष्णुपुराण)</blockquote>चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्तियाँ ये सभी पर्व संज्ञक होती हैं। इनके अतिरिक्त सूर्य और चन्द्र ग्रहण को भी पर्व कहा जाता है। ये सभी कालखण्ड केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए पर्वकाल में स्नान-दानादि का अक्षय पुण्य होता है।<ref>आचार्य भगवतशरण शुक्ल, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-kumbha-parv-haridwar-ujjain-prayag-and-nasik-mzh357/#mz-expanded-view-111264803301 अमृत कुम्भ पर्व], शारदा संस्कृत संस्थान, वाराणसी (पृ० ११)।</ref> |
| | + | |
| | ==परिभाषा॥ Definition== | | ==परिभाषा॥ Definition== |
| | कुंभ शब्दका अर्थ साधारणतः घडा ही है, किन्तु इसके पीछे जनसमुदायमें पात्रताके निर्माणकी रचनात्मक शुभभावना, मंगलकामना एवं जन-मानसके उद्धारकी प्रेरणा निहित है। कुंभ का शब्दार्थ प्रकार है -<blockquote>कुं पृथ्वीं भावयन्ति संकेतयन्ति भविष्यत्कल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बृहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वार-प्रयागादितत्तत्पुण्यस्थानविशेषानुद्दिश्य यस्मिन् सः कुंभः।<ref name=":1" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' पृथ्वीको कल्याणकी आगामी सूचना देनेके लिये या शुभ भविष्यके संकेतके लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य-स्थानविशेषके उद्देश्यसे महाकाशमें बृहस्पति आदि ग्रहराशि उपस्थित हों जिसमें उसे कुंभ कहते हैं।<blockquote>कुम्भो राश्यन्तरे हस्तिमूर्धांशे राक्षसान्तरे कार्मुके वारनार्या च घटे॥ (मेदिनीकोष १०६/२,३)</blockquote>अर्थात कुम्भ शब्द राशिविशेष, हाथी के मस्तक का मांसपिण्ड, राक्षसविशेष, धनुष, वेश्यापति तथा कलश अर्थों में प्रयुक्त होता है। | | कुंभ शब्दका अर्थ साधारणतः घडा ही है, किन्तु इसके पीछे जनसमुदायमें पात्रताके निर्माणकी रचनात्मक शुभभावना, मंगलकामना एवं जन-मानसके उद्धारकी प्रेरणा निहित है। कुंभ का शब्दार्थ प्रकार है -<blockquote>कुं पृथ्वीं भावयन्ति संकेतयन्ति भविष्यत्कल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बृहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वार-प्रयागादितत्तत्पुण्यस्थानविशेषानुद्दिश्य यस्मिन् सः कुंभः।<ref name=":1" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' पृथ्वीको कल्याणकी आगामी सूचना देनेके लिये या शुभ भविष्यके संकेतके लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य-स्थानविशेषके उद्देश्यसे महाकाशमें बृहस्पति आदि ग्रहराशि उपस्थित हों जिसमें उसे कुंभ कहते हैं।<blockquote>कुम्भो राश्यन्तरे हस्तिमूर्धांशे राक्षसान्तरे कार्मुके वारनार्या च घटे॥ (मेदिनीकोष १०६/२,३)</blockquote>अर्थात कुम्भ शब्द राशिविशेष, हाथी के मस्तक का मांसपिण्ड, राक्षसविशेष, धनुष, वेश्यापति तथा कलश अर्थों में प्रयुक्त होता है। |
| Line 126: |
Line 132: |
| | #व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था | | #व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था |
| | इस प्रकार कुंभ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, महान परंपराओं और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह संस्कृति का पुनरुत्पादन करता है और इसे सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने के एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। | | इस प्रकार कुंभ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, महान परंपराओं और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह संस्कृति का पुनरुत्पादन करता है और इसे सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने के एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। |
| | + | |
| | + | ==कुंभ मेला और पुष्कर पर्व॥ kumbh mela aur pushkar parva== |
| | + | कुंभ मेला और पुष्कर पर्व दोनों ही सनातन धर्म में नदी स्नान परंपरा से जुडे हुये आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव हैं। इन दोनों पर्वों के आयोजन का आधार प्राचीन खगोलशास्त्र, पौराणिक मान्यताएं, तीर्थक्षेत्र और नदियों के महत्ता पर आधारित है। किन्तु कुम्भ मेला का गुरु और सूर्य की खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर तीर्थेक्षेत्र प्रयागराज में त्रिवेणी संगम, हरिद्वार में गंगा, उज्जैनमें क्षिप्रा और नासिक में गोदावरी के तट पर ही बारह वर्ष में आयोजन होता है। पुष्कर पर्व हर वर्ष भारतीय ज्योतिष में गुरु ग्रह के राशि परिवर्तन के अनुसार एक विशेष नदी के किनारे मनाया जाता है और पुष्करकाल में ब्रह्मादि देवता, ऋषि, पितृदेवता और ब्रह्मांड के समस्त तीर्थ उस नदी में प्रवेश करते हैं यह पुष्कर पर्व प्रत्येक नदी के साथ गुरु ग्रह के राशि परिवर्तन का संयोग होता है जो कि गुरु के राशि परिवर्तन वाले दिन से प्रारंभ होकर बारह दिनों तक चलता है। इसमें भी कुंभ पर्व की तरह ही नदी स्नान, दान, जप, होम, श्राद्धादि कर्म विशेष फल प्रद होते हैं। पुष्कर पर्व उत्तर और दक्षिण को जोडने वाला नदी स्नान महोत्सव है। गुरु का राशि परिवर्तन के आधार पर इन बारह नदियों के तट पर मेषादि बारह राशियों में संचरण पर पुष्कर पर्व आयोजित होता है - |
| | + | {| class="wikitable" |
| | + | |+प्रमुख नदियाँ एवं पुष्कर पर्व |
| | + | !क्रम संख्या |
| | + | !नदी का नाम |
| | + | !गुरु राशि प्रवेश |
| | + | |- |
| | + | |01 |
| | + | |गंगा |
| | + | |मेष राशि |
| | + | |- |
| | + | |02 |
| | + | |नर्मदा |
| | + | |वृष राशि |
| | + | |- |
| | + | |03 |
| | + | |सरस्वती |
| | + | |मिथुन राशि |
| | + | |- |
| | + | |04 |
| | + | |यमुना |
| | + | |कर्क राशि |
| | + | |- |
| | + | |05 |
| | + | |गोदावरी |
| | + | |सिंह राशि |
| | + | |- |
| | + | |06 |
| | + | |कृष्णा |
| | + | |कन्या राशि |
| | + | |- |
| | + | |07 |
| | + | |कावेरी |
| | + | |तुला राशि |
| | + | |- |
| | + | |08 |
| | + | |भीमा |
| | + | |वृश्चिक राशि |
| | + | |- |
| | + | |09 |
| | + | |पुष्कर वाहिनी |
| | + | |धनु राशि |
| | + | |- |
| | + | |10 |
| | + | |तुंग भद्रा |
| | + | |मकर राशि |
| | + | |- |
| | + | |11 |
| | + | |सिन्धु |
| | + | |कुम्भ राशि |
| | + | |- |
| | + | |12 |
| | + | |प्राणहिता |
| | + | |मीन राशि |
| | + | |} |
| | | | |
| | ==निष्कर्ष॥ Summary== | | ==निष्कर्ष॥ Summary== |