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==परिचय ==
 
==परिचय ==
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों,  निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।<blockquote>वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते। (काव्यादर्श)</blockquote>काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है।
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भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों,  निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।<blockquote>वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते। (काव्यादर्श)</blockquote>काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है। पश्चिम में वर्तमान भाषा-विज्ञान का आरंभ १७८६ ई० में विलियम जोन्स द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन के संकेत दिए। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के लिये सर्वप्रथम 'कम्पेरेटिव ग्रामर' (Comparative Grammar) नाम दिया गया। वहाँ पहले व्याकरण और भाषा-विज्ञान में कोई भेद नहीं किया जाता था। भाषाओं की तुलना पर बल देने के कारण १८वीं शताब्दी में इसे कम्पेरेटिव फिलोलॉजी (Comparative Philology) नाम दिया गया। भाषा-विज्ञान तुलनात्मक ही होता है, इसलिए कम्पेरेटिव शब्द का त्याग कर दिया गया।
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* डेवीज ने १८१७ ई० में भाषा-विज्ञान के लिये ग्लासोलोजी (Glossology) शब्द का प्रयोग किया, पर यह नाम भी नहीं चला।
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* 1841 ई० में प्रिचर्ड ने ग्लाटोलोजी (Glattology) नाम प्रस्तुत किया जो चल नहीं सका।
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* उपर्युक्त नामों में से फिलोलॉजी शब्द आज तक चल रहा है। अंग्रेजी में इसके लिए साइंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। <ref>प्रो० अंजू थापा, [https://www.distanceeducationju.in/pdf/HIN-301%20(Bhasha%20Vigyan).pdf भाषा विज्ञान-एम० ए० हिन्दी], सन् २०२३, दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा निदेशालय, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू (पृ० 14)।</ref>
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अँग्रेजी में इसके लिए साईंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। वर्तमान में अधिक प्रचलित नाम लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) है। यह शब्द लैटिन के शब्द लिंगुआ (Lingua) से बना है, जिसका अर्थ है-जीभ। भाषाविज्ञान के अर्थ में लेंगिस्टीक (Linguistique) शब्द का प्रचलन फ्रांस में हुआ और 18वीं शताब्दी के चौथे दशक में अंग्रेजी में यह Linguistic नाम से ग्रहण किया गया। छठे दशक में यह शब्द (Linguistics) के रूप में अपनाया गया और आज तक यही नाम अधिक प्रचलित है। जर्मन भाषा में भाषाविज्ञान के लिए स्प्राचविस्सेनशाफ्ट (Sprachwissenschaft) नाम है। रूसी भाषा में इसके लिए 'यजिकाज्नानिमे' शब्द है। इसमें 'यज़िक' का अर्थ भाषा है और 'ज्नानिमे का अर्थ विज्ञान है।
    
== भाषा की परिभाषा ==
 
== भाषा की परिभाषा ==
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चॉम्स्की के विचारों और सिद्धांतों ने भाषा विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और उनके शोध ने भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
 
चॉम्स्की के विचारों और सिद्धांतों ने भाषा विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और उनके शोध ने भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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==प्रमुख सिद्धांतकार==
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== भारतीय सिद्धांतकार ==
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आधुनिक भाषा विज्ञान में कई भारतीय सिद्धांतकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिन्होंने भाषा के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। ये सिद्धांतकार भाषा विज्ञान के विविध क्षेत्रों में शोध और अध्ययन करके इस क्षेत्र को समृद्ध बनाने में सफल हुए हैं।
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'''1.पाणिनि (Panini)'''
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सिद्धांत: पाणिनि को संस्कृत व्याकरण का जनक माना जाता है। उन्होंने 'अष्टाध्यायी' नामक एक ग्रंथ लिखा, जो संस्कृत भाषा के व्याकरणिक नियमों का संकलन है। पाणिनि का कार्य शास्त्रीय भारतीय भाषा विज्ञान का आधार है और उनका व्याकरण आज भी महत्वपूर्ण है।
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'''महत्व:''' पाणिनि के नियमों की संक्षिप्तता और सटीकता आधुनिक भाषा विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। उनके द्वारा प्रस्तुत 'संधि', 'समास' और 'धातु' जैसे व्याकरणिक सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
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'''2.भर्तृहरि (Bhartrihari)'''
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'''सिद्धांत:''' भर्तृहरि ने 'वाक्यपदीय' नामक ग्रंथ में भाषा और अर्थ के संबंधों पर विचार किया। उन्होंने 'स्फोट सिद्धांत' प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि शब्द या वाक्य का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि अलग-अलग शब्दों से।
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'''महत्व:''' भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत भाषा के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पहलुओं को समझने में मदद करता है और इसने आधुनिक भाषाविज्ञान में संरचनावाद और अर्थशास्त्र के विकास को प्रभावित किया।
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'''3. केदारनाथ भट्टाचार्य (Kedarnath Bhattacharya)'''
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'''सिद्धांत:''' केदारनाथ भट्टाचार्य भारतीय भाषा विज्ञान में शब्दार्थ विज्ञान (Lexicography) और अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दकोशों और अनुवाद कार्यों पर काम किया।
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'''महत्व:''' उनके कार्यों ने भारतीय भाषाओं के शब्दार्थ और उनके भाषाई विकास को समझने में मदद की है।
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'''4. फर्डिनांड डी सॉसुर और भारतीय परंपरा'''
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'''सिद्धांत:''' सॉसुर को आधुनिक संरचनावादी भाषा विज्ञान के पिता के रूप में जाना जाता है। हालांकि वे भारतीय नहीं थे, लेकिन भारतीय व्याकरणिक परंपराओं, विशेषकर पाणिनि, का उनकी सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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'''महत्व:''' सॉसुर के विचारों और सिद्धांतों ने भारतीय भाषा विज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया, जिससे भाषा के संरचनात्मक और अर्थात्मक विश्लेषण को बढ़ावा मिला।
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'''6. भोलानाथ तिवारी'''
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'''सिद्धांत:''' भोलानाथ तिवारी ने हिंदी भाषा विज्ञान पर महत्वपूर्ण कार्य किया और हिंदी के स्वरविज्ञान, ध्वनिविज्ञान, और व्याकरणिक संरचना पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।
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'''महत्व:''' उनके शोध ने हिंदी भाषा के विकास और उसकी व्याकरणिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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अर्थात भारतीय सिद्धांतकारों ने आधुनिक भाषा विज्ञान को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाणिनि, भर्तृहरि, और केदारनाथ भट्टाचार्य जैसे विद्वानों के कार्यों ने न केवल भारतीय भाषाओं की समझ को गहरा किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भाषा विज्ञान के सिद्धांतों और विचारों को प्रभावित किया है। इन सिद्धांतकारों के योगदान आज भी भाषा विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
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==पाश्चात्य प्रमुख सिद्धांतकार==
 
आधुनिक भाषा विज्ञान के प्रमुख सिद्धांतकारों ने भाषा के अध्ययन के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ कुछ प्रमुख सिद्धांतकार और उनके योगदान का विवरण दिया गया है:
 
आधुनिक भाषा विज्ञान के प्रमुख सिद्धांतकारों ने भाषा के अध्ययन के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ कुछ प्रमुख सिद्धांतकार और उनके योगदान का विवरण दिया गया है:
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ये सिद्धांतकार आधुनिक भाषा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं और उनके सिद्धांतों ने भाषा के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
 
ये सिद्धांतकार आधुनिक भाषा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं और उनके सिद्धांतों ने भाषा के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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== आधुनिक भाषा विज्ञान और दैवी वाक सिद्धांत ==
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आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) और दैवी वाक सिद्धांत (Divine Speech Theory) दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, जो भाषा की उत्पत्ति और उसकी प्रकृति को समझने का प्रयास करते हैं। इनमें से एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण पर आधारित है, जबकि दूसरा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर आधारित है।
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'''आधुनिक भाषा विज्ञान'''
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आधुनिक भाषा विज्ञान भाषा के वैज्ञानिक और संरचनात्मक अध्ययन पर आधारित है। यह 19वीं और 20वीं शताब्दी में विकसित हुआ और इसका उद्देश्य भाषा के विभिन्न पहलुओं जैसे ध्वन्यात्मकता (phonetics), स्वरविज्ञान (phonology), रूपविज्ञान (morphology), वाक्यविज्ञान (syntax), अर्थविज्ञान (semantics), और प्राग्मेटिक्स (pragmatics) का विश्लेषण करना है।
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भाषा का विकास: आधुनिक भाषा विज्ञान के अनुसार, भाषा एक सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण है, जो मानव मस्तिष्क की संज्ञानात्मक क्षमताओं और सामाजिक बातचीत के परिणामस्वरूप विकसित हुआ है।
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भाषा की संरचना: भाषा विज्ञान में भाषा की संरचना का विश्लेषण तर्कसंगत और व्यवस्थित रूप से किया जाता है, जहां ध्वनियों, शब्दों और वाक्यों की संरचना के नियमों को समझने का प्रयास किया जाता है।
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भाषा का उपयोग: यह अध्ययन करता है कि लोग भाषा का उपयोग कैसे करते हैं और किस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भाषा का अर्थ बदलता है।
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'''दैवी वाक सिद्धांत'''
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दैवी वाक सिद्धांत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्पन्न होता है, जिसमें यह माना जाता है कि भाषा की उत्पत्ति और उसका अस्तित्व दैवीय शक्ति के कारण है। विभिन्न धार्मिक परंपराओं में, वाक (Speech) को ब्रह्मांड की रचना का माध्यम माना गया है।
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'''ऋग्वेद और वाक:''' भारतीय परंपरा में, विशेष रूप से ऋग्वेद में, वाक को ब्रह्मांड की रचना और ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा गया है। वाक को देवी सरस्वती के साथ भी जोड़ा गया है, जिन्हें ज्ञान और वाणी की देवी माना जाता है।
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'''स्फोट सिद्धांत:''' भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत, जो कि दैवी वाक सिद्धांत से प्रेरित है, यह कहता है कि शब्द का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि शब्दों के अनुक्रमिक उच्चारण से। इसे भी भाषा के दिव्य स्रोत के रूप में देखा जा सकता है।
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ईश्वर द्वारा प्रदत्त भाषा: विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में यह माना जाता है कि भाषा ईश्वर द्वारा मानव को प्रदान की गई है, जिससे वह ब्रह्मांड की समझ और संचार कर सके। इस दृष्टिकोण में, भाषा का पवित्र और दिव्य महत्व है।
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तुलना
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'''1. उत्पत्ति का दृष्टिकोण:'''
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आधुनिक भाषा विज्ञान: भाषा की उत्पत्ति को एक प्राकृतिक और जैविक प्रक्रिया के रूप में देखता है, जो मानव समाज के विकास के साथ हुई।
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दैवी वाक सिद्धांत: भाषा की उत्पत्ति को दैवीय और पवित्र मानता है, जिसे ईश्वर या किसी दिव्य शक्ति द्वारा प्रदान किया गया है।
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'''2.भाषा की प्रकृति:'''
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आधुनिक भाषा विज्ञान: भाषा को एक संरचनात्मक और सामाजिक उपकरण मानता है, जो समाज में संचार के लिए विकसित हुआ है।
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दैवी वाक सिद्धांत: भाषा को एक पवित्र और अलौकिक तत्व के रूप में देखता है, जो ज्ञान और सत्य की अभिव्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
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'''3. भाषा का अध्ययन:'''
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आधुनिक भाषा विज्ञान: भाषा का अध्ययन वैज्ञानिक, तर्कसंगत, और अनुभवजन्य दृष्टिकोण से करता है।
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'''दैवी वाक सिद्धांत:''' भाषा का अध्ययन धार्मिक, आध्यात्मिक, और दार्शनिक दृष्टिकोण से करता है।
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'''निष्कर्ष'''
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आधुनिक भाषा विज्ञान और दैवी वाक सिद्धांत भाषा को दो अलग-अलग दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करते हैं। एक ओर, आधुनिक भाषा विज्ञान भाषा को एक वैज्ञानिक और सामाजिक निर्माण के रूप में देखता है, जबकि दूसरी ओर, दैवी वाक सिद्धांत भाषा को एक पवित्र और दैवीय उपहार के रूप में समझता है। दोनों दृष्टिकोणों का अध्ययन और तुलना भाषा के प्रति हमारी समझ को गहरा करता है और हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, विचारधारा, और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
    
==भाषा की उत्पत्ति==
 
==भाषा की उत्पत्ति==
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लिपि को भी भाषा-विज्ञान का अंग माना जाता है, इसके अन्तर्गत लिपि की उत्पत्ति, उसके विकास व उसकी उपयोगिता पर विवेचन किया जाता है। किसी भी भाषा का अध्ययन लिपि के आधार पर किया जाता है।
 
लिपि को भी भाषा-विज्ञान का अंग माना जाता है, इसके अन्तर्गत लिपि की उत्पत्ति, उसके विकास व उसकी उपयोगिता पर विवेचन किया जाता है। किसी भी भाषा का अध्ययन लिपि के आधार पर किया जाता है।
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==भाषा-विज्ञान के अंग==
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== भाषा-विज्ञान के अंग ==
 
भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं -  
 
भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं -  
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#तुलनात्मक भाषा-विज्ञान
 
#तुलनात्मक भाषा-विज्ञान
 
#सैद्धान्तिक भाषा-विज्ञान
 
#सैद्धान्तिक भाषा-विज्ञान
पश्चिम में वर्तमान भाषा-विज्ञान का आरंभ १७८६ ई० में विलियम जोन्स द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन के संकेत दिए। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के लिये सर्वप्रथम 'कम्पेरेटिव ग्रामर' (Comparative Grammar) नाम दिया गया। वहाँ पहले व्याकरण और भाषा-विज्ञान में कोई भेद नहीं किया जाता था। भाषाओं की तुलना पर बल देने के कारण १८वीं शताब्दी में इसे कम्पेरेटिव फिलोलॉजी (Comparative Philology) नाम दिया गया। भाषा-विज्ञान तुलनात्मक ही होता है, इसलिए कम्पेरेटिव शब्द का त्याग कर दिया गया।
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डेवीज ने १८१७ ई० में भाषा-विज्ञान के लिये ग्लासोलोजी (Glossology) शब्द का प्रयोग किया, पर यह नाम भी नहीं चला।
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1841 ई० में प्रिचर्ड ने ग्लाटोलोजी (Glattology) नाम प्रस्तुत किया जो चल नहीं सका।
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उपर्युक्त नामों में से फिलोलॉजी शब्द आज तक चल रहा है। अंग्रेजी में इसके लिए साइंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। <ref>प्रो० अंजू थापा, [https://www.distanceeducationju.in/pdf/HIN-301%20(Bhasha%20Vigyan).pdf भाषा विज्ञान-एम० ए० हिन्दी], सन् २०२३, दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा निदेशालय, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू (पृ० 14)।</ref>
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अँग्रेजी में इसके लिए साईंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। वर्तमान में अधिक प्रचलित नाम लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) है। यह शब्द लैटिन के शब्द लिंगुआ (Lingua) से बना है, जिसका अर्थ है-जीभ। भाषाविज्ञान के अर्थ में लेंगिस्टीक (Linguistique) शब्द का प्रचलन फ्रांस में हुआ और 18वीं शताब्दी के चौथे दशक में अंग्रेजी में यह Linguistic नाम से ग्रहण किया गया। छठे दशक में यह शब्द (Linguistics) के रूप में अपनाया गया और आज तक यही नाम अधिक प्रचलित है। जर्मन भाषा में भाषाविज्ञान के लिए स्प्राचविस्सेनशाफ्ट (Sprachwissenschaft) नाम है। रूसी भाषा में इसके लिए 'यजिकाज्नानिमे' शब्द है। इसमें 'यज़िक' का अर्थ भाषा है और 'ज्नानिमे का अर्थ विज्ञान है।
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==भाषा-विज्ञान की उपयोगिता==
 
==भाषा-विज्ञान की उपयोगिता==
 
भाषा-विज्ञान एक विज्ञान है। विज्ञान स्वतः निरपेक्ष होता है। तात्त्विक विवेचन और तत्त्वसंदर्शन ही उसका लक्ष्य होता है। तत्त्वसंदर्शन से बौद्धिक शान्ति और आनन्दानुभूति होती है। अतएव वैज्ञानिक चिन्तन निरपेक्ष होते हुए भी सापेक्ष होता है। इसी दृष्टि से भाषा-विज्ञान की भी कतिपय उपयोगिताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है -  
 
भाषा-विज्ञान एक विज्ञान है। विज्ञान स्वतः निरपेक्ष होता है। तात्त्विक विवेचन और तत्त्वसंदर्शन ही उसका लक्ष्य होता है। तत्त्वसंदर्शन से बौद्धिक शान्ति और आनन्दानुभूति होती है। अतएव वैज्ञानिक चिन्तन निरपेक्ष होते हुए भी सापेक्ष होता है। इसी दृष्टि से भाषा-विज्ञान की भी कतिपय उपयोगिताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है -  
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#विभिन्न शास्त्रों से समन्वय
 
#विभिन्न शास्त्रों से समन्वय
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==सारांश==
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==निष्कर्ष==
    
==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
 
<references />
 
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[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
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