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==== ४.२ पंच ॠण ====
 
==== ४.२ पंच ॠण ====
ॠण का अर्थ है कर्ज । कृतज्ञता का अर्थ है औरों ने अपने हित में किये उपकारों को याद रखना । और यथासंभव उस से उतराई होने का प्रयास करना । पशू पक्षियों की स्मृति कम होती है । संवेदनाएं भी कम होती है । बुध्दि और चित्त भी मनुष्य की तुलना में दुर्बल होता है । इसलिये उसे उपकारकर्ता के उपकारों का स्मरण नही रहता । किन्तु मनुष्य के लिये उपकारों का भूलना अच्छी बात नही मानी जाती । वह यदि उसपर किसी ने किये उपकार भूल जाता है तो उसे कृतघ्न कहा जाता है । कृतघ्नता यह मनुष्य का लक्षण नही माना जाता ।       
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ॠण का अर्थ है कर्ज । कृतज्ञता का अर्थ है औरों ने अपने हित में किये उपकारों को याद रखना । और यथासंभव उस से उतराई होने का प्रयास करना । पशू पक्षियों की स्मृति कम होती है । संवेदनाएं भी कम होती है । बुध्दि और चित्त भी मनुष्य की तुलना में दुर्बल होता है । इसलिये उसे उपकारकर्ता के उपकारों का स्मरण नही रहता । किन्तु मनुष्य के लिये उपकारों का भूलना अच्छी बात नही मानी जाती । वह यदि उसपर किसी ने किये उपकार भूल जाता है तो उसे कृतघ्न कहा जाता है । कृतघ्नता यह मनुष्य का लक्षण नही माना जाता ।       
हम जब जन्म लेते है और आगे जीवन जीते है तो कई घटकों से हम मदद पाते है । इन घटकों का वर्गीकरण हमारे पूर्वजों ने पाँच प्रमुख हिस्सों में किया है । वे है भूतॠण, पितरॠण, ॠषिॠण, समाजॠण या नृॠण और देवॠण ।  
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हम जब जन्म लेते है और आगे जीवन जीते है तो कई घटकों से हम मदद पाते है । इन घटकों का वर्गीकरण हमारे पूर्वजों ने पाँच प्रमुख हिस्सों में किया है । वे है भूतॠण, पितरॠण, ॠषिॠण, समाजॠण या नृॠण और देवॠण ।  
 
जैसे किसी व्यक्ति का ॠण बढते जानेपर उस की समाज में कीमत कम होती जाती है उसी प्रकार जो मनुष्य अपने जीवनकाल में ही अपने ॠण से उॠण होने के प्रयास नहीं करता वह हीन योनी या हीन मानव जन्म को प्राप्त होता है । इसलिये भारतीय जीवनदृष्टि में ॠण से उॠण होने के लिये कठोर प्रयास करने का आग्रह है। इन प्रयासों के परिणाम स्वरूप अनायास ही समाजजीवन श्रेष्ठ बनता जाता है । मनुष्य भी इन ॠणों से उॠण होने के प्रयासों में अधिक उन्नत होता जाता है । उस ने जो पाया है उस से अधिक लौटाना यह तो बडप्पन का लक्षण ही है ।
 
जैसे किसी व्यक्ति का ॠण बढते जानेपर उस की समाज में कीमत कम होती जाती है उसी प्रकार जो मनुष्य अपने जीवनकाल में ही अपने ॠण से उॠण होने के प्रयास नहीं करता वह हीन योनी या हीन मानव जन्म को प्राप्त होता है । इसलिये भारतीय जीवनदृष्टि में ॠण से उॠण होने के लिये कठोर प्रयास करने का आग्रह है। इन प्रयासों के परिणाम स्वरूप अनायास ही समाजजीवन श्रेष्ठ बनता जाता है । मनुष्य भी इन ॠणों से उॠण होने के प्रयासों में अधिक उन्नत होता जाता है । उस ने जो पाया है उस से अधिक लौटाना यह तो बडप्पन का लक्षण ही है ।
  
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