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− | हितोपदेश भारतीय जन-मानस तथा संस्कृति से प्रभावित उपदेशात्मक कथाओं का संग्रह है। विभिन्न पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियों में संवाद अत्यंत सरल, सरस एवं शिक्षाप्रद हैं। अत्यंत रुचिकर माध्यम से नारायण पंडित ने प्रत्येक कथा की रचना की है, जो कि सभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। | + | हितोपदेश भारतीय जन-मानस तथा संस्कृति से प्रभावित उपदेशात्मक कथाओं का संग्रह है। विभिन्न पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियों में संवाद अत्यंत सरल, सरस एवं शिक्षाप्रद हैं। अत्यंत रुचिकर माध्यम से नारायण पंडित ने प्रत्येक कथा की रचना की है, जो कि सभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। हितोपदेश की कथाएँ गद्य में हैं और उससे मिलनेवाली उपदेशप्रद शिक्षाएँ पद्य में हैं। |
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− | == परिचय == | + | ==परिचय== |
| पञ्चतन्त्र पर आधारित नीतिकथाओं में हितोपदेश सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं प्रचलित ग्रन्थ है। हितोपदेश की रचना नारायण पण्डित ने की है। नारायण पण्डित बंगाल के राजा धवलचन्द्र के दरबार में थे। | | पञ्चतन्त्र पर आधारित नीतिकथाओं में हितोपदेश सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं प्रचलित ग्रन्थ है। हितोपदेश की रचना नारायण पण्डित ने की है। नारायण पण्डित बंगाल के राजा धवलचन्द्र के दरबार में थे। |
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| वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस आदि की कथाएं संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में वर्णित हैं। संस्कृत साहित्य में बाल मनोरंजन कथाओं ‘पंचतंत्र’ , हितोपदेश , बेताल-पच्चीसी , शुक-सप्तति आदि कलात्मक एवं नीतिपरक, शिक्षाप्रद मनोरंजक कहानियों का संग्रह भी प्राप्त होता है। इन कहानियों से मनोरंजन के साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः इन कहानियों में लोक व्यवहार के पात्र पशु-पक्षियों को बनाया गया है। ये सभी मनुष्यों की तरह बातचीत करते हैं, जो बच्चों के लिए मनमोहक एवं आकर्षण का विषय बनता है। इनमें असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखलाई गई है व नीति एवं मूल्यपरक शिक्षा दी गई है। | | वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस आदि की कथाएं संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में वर्णित हैं। संस्कृत साहित्य में बाल मनोरंजन कथाओं ‘पंचतंत्र’ , हितोपदेश , बेताल-पच्चीसी , शुक-सप्तति आदि कलात्मक एवं नीतिपरक, शिक्षाप्रद मनोरंजक कहानियों का संग्रह भी प्राप्त होता है। इन कहानियों से मनोरंजन के साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः इन कहानियों में लोक व्यवहार के पात्र पशु-पक्षियों को बनाया गया है। ये सभी मनुष्यों की तरह बातचीत करते हैं, जो बच्चों के लिए मनमोहक एवं आकर्षण का विषय बनता है। इनमें असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखलाई गई है व नीति एवं मूल्यपरक शिक्षा दी गई है। |
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− | == नीतिकथा एवं हितोपदेश == | + | ==नीतिकथा एवं हितोपदेश== |
| + | सामान्यतया नीति दो प्रकार की है - एक धर्म और दूसरी राजनीति। और प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा में दोनों प्रकार की नीतियों का व्यवहार देखा जा रहा है। |
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| मनोरञ्जकता से भरपूर एवं नीतिगत व व्यावहारिक उपदेश और शिक्षा से संवलित संस्कृत साहित्यिक-सर्जना का एक उज्ज्वलतम पक्ष कथा-साहित्य है। | | मनोरञ्जकता से भरपूर एवं नीतिगत व व्यावहारिक उपदेश और शिक्षा से संवलित संस्कृत साहित्यिक-सर्जना का एक उज्ज्वलतम पक्ष कथा-साहित्य है। |
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| पञ्चतन्त्र पर आधारित नीतिकथाओं में सर्वाधिक प्रचलित नीतिकथाओं का संग्रह हितोपदेश में है। | | पञ्चतन्त्र पर आधारित नीतिकथाओं में सर्वाधिक प्रचलित नीतिकथाओं का संग्रह हितोपदेश में है। |
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− | ==श्री नारायण पण्डित – जीवन परिचय==
| + | '''हितोपदेश का मंगलाचरण''' |
− | नीति-कथाओं में पञ्चतंत्र के बाद हितोपदेश का ही नाम आता है। इसके रचयिता ‘श्री नारायण पंडित’ थे जिनके आश्रयदाता बंगाल के राजा धवलचंद्र थे। ग्रंथ की रचना 14 वीं शताब्दी के आसपास की है। इस ग्रंथ के लेखक होने का प्रमाण उनकी इसी रचना के अंतिम श्लोकों में प्राप्त होता है, जहां वे स्वयं ही कहते हैं कि –[1]
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− | '''नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्।'''
| + | महादेव के सिर पर शुक्ल पक्ष की द्वितीय चन्द्रमा के समान कला गंगा के फेन के सदृश शोभायमान होती है। हितोपदेश के मंगलाचरण में शिव के प्रसाद से सज्जनों के सभी कार्य सिद्ध होने की अभिलाषा का क्या सुन्दर निरूपण है - <blockquote>सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादात्तस्य धूर्जटेः। जाह्नवीफेनलेखेव यन्मूर्ध्निः शशिनः कलाः॥ (हितोपदेश-१, मित्रलाभः)</blockquote> |
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− | अर्थात श्री नारायण द्वारा यह कथाओं का संग्रह रचा गया है। | + | ==श्री नारायण पण्डित – जीवन परिचय== |
| + | नीति-कथाओं में पञ्चतंत्र के बाद हितोपदेश का ही नाम आता है। इसके रचयिता ‘श्री नारायण पंडित’ थे जिनके आश्रयदाता बंगाल के राजा धवलचंद्र थे। ग्रंथ की रचना 14 वीं शताब्दी के आसपास की है। इस ग्रंथ के लेखक होने का प्रमाण उनकी इसी रचना के अंतिम श्लोकों में प्राप्त होता है, जहां वे स्वयं ही कहते हैं कि –[1]<blockquote>'''नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्।'''</blockquote>अर्थात श्री नारायण द्वारा यह कथाओं का संग्रह रचा गया है। |
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| संस्कृत के अन्य आचार्यों की तरह हितोपदेश की रचना का समय एवं इसके लेखक श्री नारायण पंडित का जीवनकाल निर्धारण हेतु कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इन्होंने ग्रंथ के मंगलाचरण एवं अंतिम श्लोक में भगवान शिव की स्तुति की है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि इनकी शिव में विशेष आस्था रही होगी अर्थात वे शैव के अनुयायी थे। | | संस्कृत के अन्य आचार्यों की तरह हितोपदेश की रचना का समय एवं इसके लेखक श्री नारायण पंडित का जीवनकाल निर्धारण हेतु कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इन्होंने ग्रंथ के मंगलाचरण एवं अंतिम श्लोक में भगवान शिव की स्तुति की है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि इनकी शिव में विशेष आस्था रही होगी अर्थात वे शैव के अनुयायी थे। |
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− | ==हितोपदेश== | + | ==हितोपदेश == |
| हितोपदेश में कुल 41 कथाएं और 679 नीति विषयक पद्य हैं। हितोपदेश में ये सभी पद्य महाभारत, धर्मशास्त्र, पुराण, चाणक्य नीति, शुक्रनीति और कामंदक नीति से लिए गए हैं। वस्तुतः हितोपदेश का आधार ग्रंथ आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र है, यह आचार्य ने स्वयं ही अपने ग्रंथ की प्रस्तावना में स्वीकार किया है – | | हितोपदेश में कुल 41 कथाएं और 679 नीति विषयक पद्य हैं। हितोपदेश में ये सभी पद्य महाभारत, धर्मशास्त्र, पुराण, चाणक्य नीति, शुक्रनीति और कामंदक नीति से लिए गए हैं। वस्तुतः हितोपदेश का आधार ग्रंथ आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र है, यह आचार्य ने स्वयं ही अपने ग्रंथ की प्रस्तावना में स्वीकार किया है – |
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| #मित्रलाभ | | #मित्रलाभ |
| #सुहृद् भेद | | #सुहृद् भेद |
− | #विग्रह | + | # विग्रह |
| #संधि | | #संधि |
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− | ==कथा शैली== | + | == कथा शैली== |
| + | बालसुलभ एवं सरल, सुबोध, रोचक, मुहावरेदार और विषय के अनुरूप मनोरञ्जक एवं आकर्षक शैली में कथाओं को प्रस्तुत किया गया है। कथाओं की भाषा में प्रवाह एवं सन्तुलन है। नीति परक उपदेश एवं मनोरञ्जन पर आधारित होने से व्यावहारिक स्तर पर यहाँ कथा-काव्य की दो कोटियाँ प्राप्त होती हैं - |
| + | |
| + | *'''नीति कथा -''' पञ्चतन्त्र और हितोपदेश की गणना इसी कोटि में की जाती है। |
| + | *'''लोककथा -''' वेतालपञ्चविंशतिका, सिंहासनद्वात्रिंशिका आदि की गणना इसी कोटि में की जाती है। |
| + | |
| यह पंचतंत्र पर निर्भर है। लेखक ने पंचतंत्र के अतिरिक्त ‘कामंदकीय नीतिसार’ से बहुत अधिक श्लोकों को चुना है। इसमें चार परिच्छेद हैं, जिनमें 43 कहानियां हैं। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं – [2] | | यह पंचतंत्र पर निर्भर है। लेखक ने पंचतंत्र के अतिरिक्त ‘कामंदकीय नीतिसार’ से बहुत अधिक श्लोकों को चुना है। इसमें चार परिच्छेद हैं, जिनमें 43 कहानियां हैं। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं – [2] |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |क्रम संख्या | + | | क्रम संख्या |
| |परिच्छेदनाम | | |परिच्छेदनाम |
| |उपकथाएं | | |उपकथाएं |
Line 49: |
Line 56: |
| |2. | | |2. |
| |मित्रलाभ | | |मित्रलाभ |
− | | 8 | + | |8 |
| |212 | | |212 |
| |काक, कूर्म, मृग, चूहे की कथा | | |काक, कूर्म, मृग, चूहे की कथा |
Line 73: |
Line 80: |
| | colspan="2" |मुख्यकथा - | | | colspan="2" |मुख्यकथा - |
| |4+39 = 43 | | |4+39 = 43 |
− | | 723 | + | |723 |
| | | | | |
| |} | | |} |
Line 80: |
Line 87: |
| इसमें पंचतंत्र के प्रथम दो तंत्रों का क्रम बदलकर पहले मित्रप्राप्ति और फिर मित्र-भेद दिखाया गया है। पंचतंत्र के तीसरे तंत्र काकोलूकीय को तोड़कर विग्रह और संधि दो परिच्छेद बनाए गए हैं। अन्य दो तंत्रों को नीतिज्ञान के लिए अनावश्यक समझ कर छोड़ दिया गया है। उनकी कथाएं यथास्थान इन चार परिच्छेदों में ही जोड़ दी हैं। 43 कहानियों में 17 कहानियां नई हैं। इनमें 7 पशुकथाएं, 3 लोककथाएं , 2 शिक्षाप्रद कथाएं और 5 षड् यंत्र कथाएं हैं। हितोपदेश में पंचतंत्र का 2/3 पद्यभाग और 2/5 गद्यभाग मिलता है। | | इसमें पंचतंत्र के प्रथम दो तंत्रों का क्रम बदलकर पहले मित्रप्राप्ति और फिर मित्र-भेद दिखाया गया है। पंचतंत्र के तीसरे तंत्र काकोलूकीय को तोड़कर विग्रह और संधि दो परिच्छेद बनाए गए हैं। अन्य दो तंत्रों को नीतिज्ञान के लिए अनावश्यक समझ कर छोड़ दिया गया है। उनकी कथाएं यथास्थान इन चार परिच्छेदों में ही जोड़ दी हैं। 43 कहानियों में 17 कहानियां नई हैं। इनमें 7 पशुकथाएं, 3 लोककथाएं , 2 शिक्षाप्रद कथाएं और 5 षड् यंत्र कथाएं हैं। हितोपदेश में पंचतंत्र का 2/3 पद्यभाग और 2/5 गद्यभाग मिलता है। |
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− | * हितोपदेश का सामान्य अर्थ हितकारी उपदेश है। | + | *हितोपदेश का सामान्य अर्थ हितकारी उपदेश है। |
| + | *शिक्षाप्रद उपदेश एवं रोचकता की दृष्टि आमजन मानस में हितोपदेश काफी प्रिय ग्रन्थ है। |
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| ==हितोपदेश का महत्व== | | ==हितोपदेश का महत्व== |
Line 114: |
Line 122: |
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| #अनधिकृत चेष्टा करने वाला व्यक्ति अन्त में दुःखी होता है। | | #अनधिकृत चेष्टा करने वाला व्यक्ति अन्त में दुःखी होता है। |
− | #जो जिस कार्य को जानता है, वही उस कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। | + | # जो जिस कार्य को जानता है, वही उस कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। |
| #व्यक्ति को अपने कार्य से काम रखना चाहिए, दूसरों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। | | #व्यक्ति को अपने कार्य से काम रखना चाहिए, दूसरों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। |
| #यह संसार स्वार्थपरक है, अतः सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए। | | #यह संसार स्वार्थपरक है, अतः सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए। |
| #किसी भी कार्य को करने से पहले उसके कारण को ज्ञात कर लेना चाहिए। इससे कार्य को अच्छी प्रकार से संपादित किया जा सकता है। | | #किसी भी कार्य को करने से पहले उसके कारण को ज्ञात कर लेना चाहिए। इससे कार्य को अच्छी प्रकार से संपादित किया जा सकता है। |
− | #बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, अन्यथा सफलता संदिग्ध रहती है। | + | # बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, अन्यथा सफलता संदिग्ध रहती है। |
| #लोभ का फल अंत में बुरा होता है। अतः लोभ नहीं करना चाहिए। | | #लोभ का फल अंत में बुरा होता है। अतः लोभ नहीं करना चाहिए। |
| #किसी भी कार्य को युक्तिपूर्वक करना चाहिए, तभी परिणाम सही निकलता है। | | #किसी भी कार्य को युक्तिपूर्वक करना चाहिए, तभी परिणाम सही निकलता है। |
Line 137: |
Line 145: |
| #हित चाहने और अपना कर्तव्यपालन करने वाला ही अपना होता है। | | #हित चाहने और अपना कर्तव्यपालन करने वाला ही अपना होता है। |
| #बिना सोचे-समझे किसी की नकल नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उसका परिणाम बुरा होता है। | | #बिना सोचे-समझे किसी की नकल नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उसका परिणाम बुरा होता है। |
− | #किसी अन्य के किये हुए पुण्य को अथवा परिणाम को चाहने वाला व्यक्ति दुःखी होता है। | + | # किसी अन्य के किये हुए पुण्य को अथवा परिणाम को चाहने वाला व्यक्ति दुःखी होता है। |
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| '''संधि''' | | '''संधि''' |
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Line 156: |
| #व्यक्ति को लोभ नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोभ नाश का कारण होता है। | | #व्यक्ति को लोभ नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोभ नाश का कारण होता है। |
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− | == सारांश== | + | ==सारांश== |
− | भागीरथी के पवित्र तट पर पटना नाम का एक नगर है। केसी समय इस नगर मे राजा सुदर्शन राज्य करता था । उसकी राजसभा मे किसी विद्वान ने इन श्लोको को पढ़कर सुनाया – | + | भागीरथी के पवित्र तट पर पटना नाम का एक नगर है। केसी समय इस नगर मे राजा सुदर्शन राज्य करता था । उसकी राजसभा मे किसी विद्वान ने इन श्लोको को पढ़कर सुनाया –<ref>शोधगंगा-के. नाग सुनीता, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in:8443/jspui/handle/10603/417407 पंचतंत्र-हितोपदेशग्रंथयोः सामाजिकजीवनम् अर्थशास्त्रप्रभावः-एकमध्ययनम्], सन-2009, शोधकेंद्र - आंध्र विश्वविद्यालय (पृ० १४)।</ref> |
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| '''अनेक संशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम्, सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः।''' | | '''अनेक संशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम्, सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः।''' |
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| [[Category:Hindi Articles]] | | [[Category:Hindi Articles]] |
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