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| वन में एक सिंह और एक बैल के बीच अत्यंत गहरी मित्रता थी जिसे अत्यंत लालची और चुगलखोर गीदड़ ने नष्ट कर दिया। | | वन में एक सिंह और एक बैल के बीच अत्यंत गहरी मित्रता थी जिसे अत्यंत लालची और चुगलखोर गीदड़ ने नष्ट कर दिया। |
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− | मित्रभेद में एक मुख्य कथा तथा इस कथा के अंतर्गत 23 उपकथाएं हैं जो इस प्रकार हैं – [6] | + | मित्रभेद में एक मुख्य कथा तथा इस कथा के अंतर्गत 23 उपकथाएं हैं जो इस प्रकार हैं – [6]{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;| |
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− | '''1. मूर्खवानर कथा।'''
| + | # मूर्खवानर कथा |
| + | # शृगाल दुंदुभि कथा |
| + | # नृपति-दंतिल गोरम्भकथा |
| + | # दूतीजंबूकाषाढभूति कथा |
| + | # विष्णुरूपधारी कौलिक जुलाहे की कथा |
| + | # काकी कृष्णसर्प कथा |
| + | # बक कर्कटक कथा |
| + | # सिंह-शशक कथा |
| + | # मंदविसर्पिणी मत्कुण-कथा |
| + | # चंडरवशृगाल कथा |
| + | # उष्ट्र-काक-सिंह-द्वीपि शृगाल कथा |
| + | # समुद्र और टिट्टिभ कथा |
| + | # हंसद्वय और कछुए की कथा |
| + | # मत्स्यत्रय की कथा |
| + | # चटक-कुंजर कथा |
| + | # सिंह-शृगाल कथा |
| + | # सूचीमुख एवं वानरयुथ कथा |
| + | # चटक दंपती एवं वानर कथा |
| + | # धर्मबुद्धि पाप बुद्धि कथा |
| + | # बक नकुल कथा |
| + | # लोहतुला वणिक पुत्र या जीर्णधन वणिक पुत्र की कथा |
| + | # नृपसेवक वानर कथा |
| + | # चैरब्राह्मण कथा।}} |
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− | '''2. शृगाल दुंदुभि कथा।'''
| + | ===मित्रसंप्राप्ति=== |
− | | |
− | '''3. नृपति-दंतिल गोरम्भकथा।'''
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− | | |
− | '''4. दूतीजंबूकाषाढभूति कथा।'''
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− | '''5. विष्णुरूपधारी कौलिक जुलाहे की कथा।'''
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− | | |
− | '''6. काकी कृष्णसर्प कथा।'''
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− | | |
− | '''7. बक कर्कटक कथा।'''
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− | '''8. सिंह-शशक कथा।'''
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− | '''9. मंदविसर्पिणी मत्कुण-कथा।'''
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− | | |
− | '''10. चंडरवशृगाल कथा।'''
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− | | |
− | '''11. उष्ट्र-काक-सिंह-द्वीपि शृगाल कथा।'''
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− | | |
− | '''12. समुद्र और टिट्टिभ कथा।'''
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− | | |
− | '''13. हंसद्वय और कछुए की कथा।'''
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− | | |
− | '''14. मत्स्यत्रय की कथा।'''
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− | '''15. चटक-कुंजर कथा।'''
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− | '''16. सिंह-शृगाल कथा।'''
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− | | |
− | '''17. सूचीमुख एवं वानरयुथ कथा।'''
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− | | |
− | '''18. चटक दंपती एवं वानर कथा।'''
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− | '''19. धर्मबुद्धि पाप बुद्धि कथा।'''
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− | | |
− | '''20. बक नकुल कथा।'''
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− | | |
− | '''21. लोहतुला वणिक पुत्र या जीर्णधन वणिक पुत्र की कथा।'''
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− | | |
− | '''22. नृपसेवक वानर कथा।'''
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− | | |
− | === '''23. चैरब्राह्मण कथा।''' ===
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− | | |
− | === मित्रसंप्राप्ति === | |
| ग्रंथकार कहते हैं – इस लोक में जो मनुष्य अप्रिय लगने वाले (परंतु) हितकर वचन कहते हैं वे ही सच्चे मित्र कहे जाते हैं, और लोग तो नाममात्र के मित्र होते हैं – | | ग्रंथकार कहते हैं – इस लोक में जो मनुष्य अप्रिय लगने वाले (परंतु) हितकर वचन कहते हैं वे ही सच्चे मित्र कहे जाते हैं, और लोग तो नाममात्र के मित्र होते हैं – |
| | | |
| अप्रियाण्यपि पथ्यानि ये वदंति नृणामिह। त एव सुहृदः प्रोक्ता अन्ये स्युर्नामधारकाः॥ (पंचतंत्र, मित्रसंप्राप्ति, श्लोक- 167) | | अप्रियाण्यपि पथ्यानि ये वदंति नृणामिह। त एव सुहृदः प्रोक्ता अन्ये स्युर्नामधारकाः॥ (पंचतंत्र, मित्रसंप्राप्ति, श्लोक- 167) |
| | | |
− | उपर्युक्त उक्तियों से प्रतीत होता है कि मित्र संप्राप्ति अर्थात ‘मित्रस्य संप्राप्तिः’ सच्चे मित्र की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। उसके लिए जो भी विधि अपनानी पड़े। अपनाना चाहिए। मित्रसंप्राप्ति में सात कथा हैं जो इस प्रकार हैं – | + | उपर्युक्त उक्तियों से प्रतीत होता है कि मित्र संप्राप्ति अर्थात ‘मित्रस्य संप्राप्तिः’ सच्चे मित्र की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। उसके लिए जो भी विधि अपनानी पड़े। अपनाना चाहिए। मित्रसंप्राप्ति में सात कथा हैं जो इस प्रकार हैं – {{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;| |
| | | |
− | 1. लुब्धक-चित्रग्रीव-हिरण्यक-कथा।
| + | # लुब्धक-चित्रग्रीव-हिरण्यक-कथा |
| + | # हिरण्यक-ताम्रचूड़-बृहत्स्फिक्-कथा |
| + | # तिलचूर्णविक्रय-कथा |
| + | # शबरशूकर कथा |
| + | # वणिक्पुत्र-कथा |
| + | # मंदभाग्यसोमिलक-कथा |
| + | # वृषभानुशृगाल-कथा।}} |
| | | |
− | 2. हिरण्यक-ताम्रचूड़-बृहत्स्फिक्-कथा।
| + | ===काकोलूकीय=== |
− | | |
− | 3. तिलचूर्णविक्रय-कथा।
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− | | |
− | 4. शबरशूकर कथा।
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− | | |
− | 5. वणिक्पुत्र-कथा।
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− | | |
− | 6. मंदभाग्यसोमिलक-कथा।
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− | | |
− | 7. वृषभानुशृगाल-कथा।
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− | === काकोलूकीय === | |
| इस तंत्र में एक मुख्य कथा तथा 17 उपकथाएं हैं। इसमें विग्रह (युद्ध) तथा संधि का वर्णन है। मुख्य कथा के अंतर्गत कौवों के राजा मेघवर्ण एवं उल्लुओं के राजा अरिमर्दन की कथा है। | | इस तंत्र में एक मुख्य कथा तथा 17 उपकथाएं हैं। इसमें विग्रह (युद्ध) तथा संधि का वर्णन है। मुख्य कथा के अंतर्गत कौवों के राजा मेघवर्ण एवं उल्लुओं के राजा अरिमर्दन की कथा है। |
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− | काकोलूकीयम् में एक मुख्य कथा तथा उसके अंतर्गत 17 उपकथाएं हैं। सत्रहों उपकथा इस प्रकार हैं – | + | काकोलूकीयम् में एक मुख्य कथा तथा उसके अंतर्गत 17 उपकथाएं हैं। सत्रहों उपकथा इस प्रकार हैं – {{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;| |
− | | |
− | 1. काकोलूकवैर-कथा
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− | 2. शशक-गजयूथप-कथा
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− | | |
− | 3. शशक-कपिञ्जल-कथा।
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− | | |
− | 4. धूर्त ब्राह्मण-छग-कथा।
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− | | |
− | 5. पिपीलिका भुजंगम-कथा।
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− | | |
− | 6. ब्राह्मण सर्प-कथा।
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− | | |
− | 7. स्वर्ण हंस-कथा।
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| | | |
− | 8. कपोत-लुब्धक-कथा।
| + | # काकोलूकवैर-कथा |
| + | # शशक-गजयूथप-कथा |
| + | # शशक-कपिञ्जल-कथा |
| + | # धूर्त ब्राह्मण-छग-कथा |
| + | # पिपीलिका भुजंगम-कथा |
| + | # ब्राह्मण सर्प-कथा |
| + | # स्वर्ण हंस-कथा |
| + | # कपोत-लुब्धक-कथा |
| + | # चौरवृद्धवणिक्-कथा |
| + | # ब्राह्मणचौरपिशाच-कथा |
| + | # बल्मीकोदरस्थसर्प-कथा |
| + | # रथकारभार्या कथा |
| + | # मूषिकाविवाह-कथा |
| + | # सुवर्णपुरीष पक्षी-कथा |
| + | # बिलवाणी-कथासर्प-मंडूक-कथा |
| + | # घृतान्धब्राह्मण-कथा }} |
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− | 9. चौरवृद्धवणिक् – कथा।
| + | ===लब्धप्रणाश=== |
− | | |
− | 10. ब्राह्मणचौरपिशाच-कथा।
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− | | |
− | 11. बल्मीकोदरस्थसर्प-कथा।
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− | | |
− | 12. रथकारभार्या कथा।
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− | | |
− | 13. मूषिकाविवाह-कथा।
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− | | |
− | 14. सुवर्णपुरीष पक्षी-कथा।
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− | | |
− | 15. बिलवाणी-कथा।
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− | | |
− | 16. सर्प-मंडूक-कथा।
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− | | |
− | 17. घृतान्धब्राह्मण-कथा।
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− | | |
− | === लब्धप्रणाश === | |
| काकोलूकीय के बाद चतुर्थ तंत्र लब्धप्रणाश अर्थात “प्राप्त के नाश”। इसमें यह बतलाया गया है कि प्राप्त हुई वस्तु को सम्यक् प्रकार न रखने से वह कैसे विनाश से वह कैसे विनाश को प्राप्त होता है। इसमें वानर एवं मकर ध्वज की मुख्य कथा है। दोनों की कथा इस प्रकार है – | | काकोलूकीय के बाद चतुर्थ तंत्र लब्धप्रणाश अर्थात “प्राप्त के नाश”। इसमें यह बतलाया गया है कि प्राप्त हुई वस्तु को सम्यक् प्रकार न रखने से वह कैसे विनाश से वह कैसे विनाश को प्राप्त होता है। इसमें वानर एवं मकर ध्वज की मुख्य कथा है। दोनों की कथा इस प्रकार है – |
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| समुत्पन्नेषु कार्येषु बुद्धिर्यस्य न हीयते। स एव दुर्ग तरति जलस्थो वानरो यथा॥ (पंचतंत्र, लब्धप्रणाश, श्लोक-1)[7] | | समुत्पन्नेषु कार्येषु बुद्धिर्यस्य न हीयते। स एव दुर्ग तरति जलस्थो वानरो यथा॥ (पंचतंत्र, लब्धप्रणाश, श्लोक-1)[7] |
| | | |
− | इस तंत्र में वानर-मकरध्वज की मुख्य कथा है तथा इसके अंतर्गत ग्यारह (11) उपकथाएं हैं, जो इस प्रकार है – | + | इस तंत्र में वानर-मकरध्वज की मुख्य कथा है तथा इसके अंतर्गत ग्यारह (11) उपकथाएं हैं, जो इस प्रकार है – {{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;| |
− | | |
− | 1. मंडूकराज गंगदत्त की कथा।
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− | | |
− | 2. सिंह-लंबकर्ण-कथा।
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− | | |
− | 3. युधिष्ठिर कुम्भकार-कथा।
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− | | |
− | 4. सिंह दंपति शृगालपुत्र-कथा।
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− | | |
− | 5. ब्राह्मणदंपति कथा।
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− | | |
− | 6. नन्द-वररुचि-कथा।
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− | | |
− | 7. व्याघ्रचर्म गर्दभ कथा।
| |
− | | |
− | 8. नग्निका-हालिकवधू-कथा।
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− | 9. घण्टोष्ट्र-कथा।
| + | # मंडूकराज गंगदत्त की कथा |
| + | # सिंह-लंबकर्ण-कथा |
| + | # युधिष्ठिर कुम्भकार-कथा |
| + | # सिंह दंपति शृगालपुत्र-कथा |
| + | # ब्राह्मणदंपति कथा |
| + | # नन्द-वररुचि-कथा |
| + | # व्याघ्रचर्म गर्दभ कथा |
| + | # नग्निका-हालिकवधू-कथा |
| + | # घण्टोष्ट्र-कथा |
| + | # चतुरक-शृगाल कथा |
| + | # चित्रांगसारमेय-कथा }} |
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− | 10. चतुरक-शृगाल कथा।
| + | === अपरीक्षितकारक=== |
− | | |
− | 11. चित्रांगसारमेय-कथा।
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− | === अपरीक्षितकारक === | |
| पंचतंत्र का पांचवा तंत्र अपरीक्षिकारक है। जिसमें मुख्यतया विचारपूर्वक सुपरीक्षित कार्य करने की नीति पर ग्रंथकार ने बल दिया है। इसके नामकरण के कारण का स्पष्टीकरण करते हुए बताया गया है कि बिना भली-भांति विचार किए एवं बिना अच्छी तरह से देखे-सुने गये किसी कार्य को करने वाले व्यक्ति को कार्य में सफलता नहीं प्राप्त होती, बल्कि जीवन के अनेक कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ता है। अतः अंधानुकरण करने का फल समुचित नहीं होता है। | | पंचतंत्र का पांचवा तंत्र अपरीक्षिकारक है। जिसमें मुख्यतया विचारपूर्वक सुपरीक्षित कार्य करने की नीति पर ग्रंथकार ने बल दिया है। इसके नामकरण के कारण का स्पष्टीकरण करते हुए बताया गया है कि बिना भली-भांति विचार किए एवं बिना अच्छी तरह से देखे-सुने गये किसी कार्य को करने वाले व्यक्ति को कार्य में सफलता नहीं प्राप्त होती, बल्कि जीवन के अनेक कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ता है। अतः अंधानुकरण करने का फल समुचित नहीं होता है। |
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− | अपरीक्षितकारक में कुल 15 कथाएं हैं, जिनका शीर्षक एवं संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है – | + | अपरीक्षितकारक में कुल 15 कथाएं हैं, जिनका शीर्षक एवं संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है – {{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;| |
− | | |
− | 1. क्षपणक-कथा।
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− | 2. ब्राह्मणी नकुल-कथा।
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− | 3. लोभाविष्ट-चक्रधर कथा।
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− | 4. सिंह कारक मूर्खब्राह्मण-कथा।
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− | | |
− | 5. मूर्खपंडित-कथा।
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− | | |
− | 6. मत्स्य-मंडूक-कथा।
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− | | |
− | 7. रासभ-शृगाल-कथा।
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− | | |
− | 8. मंथर-कौलिक-कथा।
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− | 9. सोमशर्मा-पितृ-कथा।
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− | 10. चंद्रभूति-कथा।
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− | | |
− | 11. विकाल-वानर-कथा।
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− | | |
− | 12. अंधक-कुब्जक-त्रिस्तनी-कथा।
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− | 13. राक्षस गृहीत-ब्राह्मण-कथा।
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− | 14. भारुण्डपक्षि-कथा।
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− | 15. ब्राह्मण-कर्कटक-कथा।
| + | # क्षपणक-कथा |
| + | # ब्राह्मणी नकुल-कथा |
| + | # लोभाविष्ट-चक्रधर कथा |
| + | # सिंह कारक मूर्खब्राह्मण-कथा |
| + | # मूर्खपंडित-कथा |
| + | # मत्स्य-मंडूक-कथा |
| + | # रासभ-शृगाल-कथा |
| + | # मंथर-कौलिक-कथा |
| + | # सोमशर्मा-पितृ-कथा |
| + | # चंद्रभूति-कथा |
| + | # विकाल-वानर-कथा |
| + | # अंधक-कुब्जक-त्रिस्तनी-कथा |
| + | # राक्षस गृहीत-ब्राह्मण-कथा |
| + | # भारुण्डपक्षि-कथा |
| + | # ब्राह्मण-कर्कटक-कथा}} |
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− | == पंचतंत्र में सामाजिक व्यवस्था == | + | ==पंचतंत्र में सामाजिक व्यवस्था== |
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− | == पंचतंत्र में राजनीतिक व्यवस्था == | + | ==पंचतंत्र में राजनीतिक व्यवस्था== |
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− | == पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व == | + | ==पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व== |
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− | == पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा == | + | ==पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा== |
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− | == सारांश == | + | ==सारांश== |
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− | == उद्धरण == | + | ==उद्धरण== |
| [1] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/327791</nowiki> | | [1] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/327791</nowiki> |
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