| इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" /> | | इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" /> |
| ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास, ज्योतिष खण्ड, संहिता स्कन्ध, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ,(पृ०२७४)। </ref> | | ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास, ज्योतिष खण्ड, संहिता स्कन्ध, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ,(पृ०२७४)। </ref> |
| + | प्रारंभ में ज्योतिषशास्त्र में अनेकों विषयों का समावेश था। परन्तु कालान्तर में इसके तीन प्रमुख विभाग माने गये - सिद्धान्त, संहिता और होरा। जो सम्यक् रूप से मनुष्य के हितों का प्रतिपादन करे वही संहिता है। ज्योतिष शास्त्र के तीन प्रमुख स्कन्धों में संहिता-स्कन्ध सबसे विशाल है, इसी कारण आचार्य वराहमिहिर जी ने कहा - <blockquote>तत् कार्त्स्न्योपनयस्य नाम मुनिभिः संकीर्त्यते संहिता।</blockquote>वैदिक संहिताओं से प्रारंभ करते हुए, संहिता ज्योतिष के विकास की एक सुदीर्घ परम्परा रही है। |