रुद्रयामल में मंत्र के विषयमें वर्णन है कि मनन करने से सृष्टि का सत्य रूप ज्ञात हो, भव बंधनों से मुक्ति मिले एवं जो सफलता के मार्ग पर आगे बढाये उसे मन्त्र कहते हैं-<blockquote>मननात् त्रायतेति मंत्रः।</blockquote>मंत्र शब्द मन् एवं त्र के संधि योग से बना हुआ है। यहाँ त्र का अर्थ चिंतन या विचारों की मुक्ति से है। अतः मंत्र का पर्याय हुआ मन के विचारों से मुक्ति। जो शक्ति मन को बन्धन से मुक्त कर दे वही मन्त्र योग है। मानसिक एवं शारीरिक एकात्म ही मन्त्र के प्रभाव का आधार है। मंत्रों का उच्चारण एवं उसका जाप शरीर, मनस और प्रकृति पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।<ref>अवधेश प्रताप सिंह तोमर जी, संगीत चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में हुई और हो रही शोध विषयक एक अध्यनात्मक दृष्टि, (शोध गंगा)सन् २०१६, डॉ० हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, अध्याय- ०१, (पृ०११)।</ref><blockquote>मननं विश्वविज्ञानं त्राणं संसारबन्धनात्। यतः करोति संसिद्धो मंत्र इत्युच्यते ततः॥ </blockquote>यास्क मुनि का कथन है। अर्थात् मंत्र वह वर्ण समूह है जिसका बार-बार मनन किया जाय और सोद्देश्यक हो। अर्थात् जिससे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो। | रुद्रयामल में मंत्र के विषयमें वर्णन है कि मनन करने से सृष्टि का सत्य रूप ज्ञात हो, भव बंधनों से मुक्ति मिले एवं जो सफलता के मार्ग पर आगे बढाये उसे मन्त्र कहते हैं-<blockquote>मननात् त्रायतेति मंत्रः।</blockquote>मंत्र शब्द मन् एवं त्र के संधि योग से बना हुआ है। यहाँ त्र का अर्थ चिंतन या विचारों की मुक्ति से है। अतः मंत्र का पर्याय हुआ मन के विचारों से मुक्ति। जो शक्ति मन को बन्धन से मुक्त कर दे वही मन्त्र योग है। मानसिक एवं शारीरिक एकात्म ही मन्त्र के प्रभाव का आधार है। मंत्रों का उच्चारण एवं उसका जाप शरीर, मनस और प्रकृति पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।<ref>अवधेश प्रताप सिंह तोमर जी, संगीत चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में हुई और हो रही शोध विषयक एक अध्यनात्मक दृष्टि, (शोध गंगा)सन् २०१६, डॉ० हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, अध्याय- ०१, (पृ०११)।</ref><blockquote>मननं विश्वविज्ञानं त्राणं संसारबन्धनात्। यतः करोति संसिद्धो मंत्र इत्युच्यते ततः॥ </blockquote>यास्क मुनि का कथन है। अर्थात् मंत्र वह वर्ण समूह है जिसका बार-बार मनन किया जाय और सोद्देश्यक हो। अर्थात् जिससे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो। |