| ज्योतिष शास्त्र में दिशाओं की संख्या १० कही गयी है। पूर्व, अग्नि कोण, दक्षिण, नैरृत्य कोण, पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर, ऐशान्य कोण, ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व तथा अधः दिशाओं को विदिशा के नाम से भी जाना जाता है। | | ज्योतिष शास्त्र में दिशाओं की संख्या १० कही गयी है। पूर्व, अग्नि कोण, दक्षिण, नैरृत्य कोण, पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर, ऐशान्य कोण, ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व तथा अधः दिशाओं को विदिशा के नाम से भी जाना जाता है। |
| + | ग्राम, नगर, पुर, भवन आदि के निर्माण कार्य में दिक्साधन के बिना यहाँ वास्तुपदों के माध्यम से किये जाने वाले कार्यों की सम्यक् क्रियान्विति लगभग असम्भव है। अतः दिक् साधन करना वास्तुशास्त्र की ऐतिहासिक परम्परा में निर्बाध गति से होता आ रहा है। शंकु के माध्यम से दिशा साधन का वैज्ञानिक महत्त्व भी है। दिशाओं में पूर्व दिशा का भी आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्त्व भी है। |