Line 39: |
Line 39: |
| | | |
| == पूजा एवं योग समन्वय == | | == पूजा एवं योग समन्वय == |
− | पूजा के विविध साधनों- स्तुति, प्रार्थना, मन्त्रजप, तप, स्वाध्याय, कथा, कीर्तन, यज्ञ, मनन, चिन्तन आदि से मानव में जो भी अभाव अनुभव करता है, उसको प्राप्त कर लेता है।<blockquote>पूजा कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समो जपः। जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समो लयः॥</blockquote> | + | भारतीय धार्मिक जीवन में पूजा को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। |
| | | |
− | == '''पूजा''' ==
| + | पूजा के विविध साधनों- स्तुति, प्रार्थना, मन्त्रजप, तप, स्वाध्याय, कथा, कीर्तन, यज्ञ, मनन, चिन्तन आदि से मानव में जो भी अभाव अनुभव करता है, उसको प्राप्त कर लेता है।<ref>अर्चना सिंह, प्राचीन भारत में शक्ति पूजा,(शोध गंगा) सन् २००७, वी०बी०एस० पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, अध्याय- १, (पृ०१२)।http://hdl.handle.net/10603/180127 </ref> |
| | | |
− | == '''स्तोत्र''' ==
| + | पूजा विधि के माध्यम से मानसिक क्रिया का दीर्घकाल तक निरन्तर अभ्यास लय अवस्था में पूजा विधि के मुख्य पाँच अंग हैं- अर्चन, स्तुति, जप, ध्यान और लय। |
− | जिसमें किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाये उसे स्तोत्र कहते हैं। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है।
| |
| | | |
− | == '''जप''' == | + | जिस प्रकार से योग शास्त्र में यम-नियमादि अंगों का यथाविधि अभ्यास करने के पश्चात् ध्यान का अभ्यास किया जाता है एवं ध्यान की अन्तिम अवस्था को ही समाधि कहते हैं। उसी प्रकार पूजा विधि में लय अवस्था के पूर्व अर्चन, स्तुति, जप और ध्यान का निरन्तन धारावाहिक चिन्तन किया जाता है।<blockquote>पूजा कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समो जपः। जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समो लयः॥</blockquote> |
| + | |
| + | == पूजा == |
| + | |
| + | == स्तोत्र == |
| + | जिसमें किसी भी देवी या देवता का गुणगान और महिमा का वर्णन किया जाये उसे स्तोत्र कहते हैं। स्त्रोत का जाप करने से अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है और दिव्य शब्दों के चयन से हम उस देवता को प्राप्त कर लेते हैं और इसे किसी भी राग में गाया जा सकता है। स्त्रोत के शब्दों का चयन ही महत्वपूर्ण होता है और ये गीतात्मक होता है। स्तोत्र का शाब्दिक अर्थ- <blockquote>स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्।</blockquote>जिन कथनों के द्वारा किसी भी देवी या देवता की स्तुति की जाय उसे स्तोत्र कहते हैं। स्तोत्र संस्कृत भाषा का शब्द है। यह शब्द स्तुञ् धातु से बना है। स्तुति गान की क्रमबद्ध रचना यह स्तोत्र का अर्थ है।<ref>लोकेश शर्मा, ऋचा एवं स्तोत्र में संगीत एक अध्ययन उत्तर भारत के सन्दर्भ में, शोध गंगा सन् २०१४, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अध्याय-१, (पृ०१५)।http://hdl.handle.net/10603/303622</ref> |
| + | |
| + | स्तोत्र इष्टदेव की स्तुति करना। भक्त की दीनता, कोमलता, अपराध स्वीकार, क्षमा याचना आदि की अभिव्यक्ति का एक माध्यम हैं। स्तोत्र को मुख्यतः चार प्रकार का बतलाया गया है-<blockquote>द्रव्य स्तोत्रं कर्म स्तोत्रं विधि स्तोत्रं तथैव च। तथैवाभिजनस्तोत्रं स्तोत्रमेतच्चतुष्टयम् ॥</blockquote>अर्थात- देवता-सम्बन्धी स्तोत्र, कर्म-सम्बन्धी स्तोत्र, विधि-सम्बन्धी स्तोत्र और महापुरुषों से सम्बन्धी स्तोत्र ये चार प्रकार के स्तोत्र होते हैं।<ref>सत्यदेव सिंह, पण्डितराज जगन्नाथ रचित स्तोत्र काव्यों का साहित्यिक अनुशीलन, शोध गंगा, सन् २०१७, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, अध्याय- ०१, (पृ०-१९)।http://hdl.handle.net/10603/313247</ref> |
| + | |
| + | == जप == |
| मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है। | | मन्त्र को केवल शब्दों का समूह समझना उनके प्रभाव को कम करके आंकना है। मन्त्र तो शक्तिशाली लयबद्ध शब्दों की तरंगे हैं जो बहुत ही चमत्कारिक रूप से कार्य करती हैं। ये तरंगे भटकते हुए मन को केंद्र बिंदु में रखती हैं। शब्दों का संयोजन भी साधारण नहीं होता है, इन्हे ऋषि मुनियों के द्वारा वर्षों की साधना के बाद लिखा गया है। मन्त्रों के जाप से आस पास का वातावरण शांत और भक्तिमय हो जाता है जो सकारात्मक ऊर्जा को एकत्रिक करके मन को शांत करता है। मन के शांत होते ही आधी से ज्यादा समस्याएं स्वतः ही शांत हो जाती हैं। मंत्र किसी देवी और देवता का ख़ास मन्त्र होता है जिसे एक छंद में रखा जाता है। |
− | == '''ध्यान''' == | + | == ध्यान == |
| {{Main|Dhyana (ध्यानम्)}} | | {{Main|Dhyana (ध्यानम्)}} |
| | | |
Line 61: |
Line 69: |
| | | |
| == '''लय''' == | | == '''लय''' == |
| + | लय शब्द ली धातु से बना है जिसका अर्थ है विलीन होना, विश्रांति, संयोग, एक रूप होना, मिलन अर्थात् जब दो के बीच एकरूपता या साम्य, इस प्रकार सम्पन्न हो जाए कि उसका अन्तराल न कम हो और न अधिक तो उसे लय कहते हैं। |
| + | |
| मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है। | | मन्त्र के जाप से एक तरंग का निर्माण होता है जो की सम्पूर्ण वायुमंडल में व्याप्त हो जाता है और छिपी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर लाभ प्रदान करता है। |
| ===पूजा के विविध प्रकार=== | | ===पूजा के विविध प्रकार=== |
− | पूजा के मुख्य रूप से दो प्रकार का बताया गया है। | + | पूजा के मुख्य रूप से दो प्रकार का बताया गया है। संक्षेप एवं विस्तारके भेदसे अनेकों प्रकार के उपचार हैं- |
| #'''पंचोपचार पूजन'''- गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य। | | #'''पंचोपचार पूजन'''- गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य। |
| #'''दस उपचार-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य। | | #'''दस उपचार-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य। |
| #'''षोडश उपचार पूजन-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। | | #'''षोडश उपचार पूजन-''' पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। |
| #'''द्वात्रिंशोपचार-''' | | #'''द्वात्रिंशोपचार-''' |
− | #'''चतुष्षष्ट्युपचार-''' | + | #'''चतुष्षष्ट्युपचार-''' पाद्यम् , अर्घ्यम् , आसनम् , सुगन्धितैलाभ्यंगम् , मज्जनशालाप्रवेशनम् , मज्जनमणिपीठोपवेशनम् , दिव्यस्नानीयम् , उद्वर्तनम् , उष्णोदकस्नानम् , कनक कलशस्थितसर्वतीर्थाभिषेकम् , धौतवस्त्रपरिमार्जनम् , अरुणदुकूलपरिधानम् , अरुणदुकूलोत्तरीयम् , आलेप |
| #'''एकशताधिकद्वात्रिंशोपचार-''' | | #'''एकशताधिकद्वात्रिंशोपचार-''' |
| मानस पूजा को शास्त्रों में सबसे शक्तिशाली पूजा माना गया है। नैगमिक पूजा को कर्मानुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है जो कि इस प्रकार है- | | मानस पूजा को शास्त्रों में सबसे शक्तिशाली पूजा माना गया है। नैगमिक पूजा को कर्मानुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है जो कि इस प्रकार है- |