Line 77: |
Line 77: |
| '''औपनिषैदिक मंत्रः''' इस श्रेणी में उपनिषदों से प्राप्त मंत्रों का समावेश है। इन मंत्रों के माध्यम से साधक को अन्तर आत्मा एवं परमात्मा के विषय में गूढ रहस्य का ज्ञान हो जाता है। यह मंत्र मुख्यतः सन्यासियों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं। | | '''औपनिषैदिक मंत्रः''' इस श्रेणी में उपनिषदों से प्राप्त मंत्रों का समावेश है। इन मंत्रों के माध्यम से साधक को अन्तर आत्मा एवं परमात्मा के विषय में गूढ रहस्य का ज्ञान हो जाता है। यह मंत्र मुख्यतः सन्यासियों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं। |
| | | |
− | '''तान्त्रिक मंत्रः''' तन्त्र शास्त्र में गायत्री मंत्र जैसे कुछ वैदिक मंत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कुछ तान्त्रिक मंत्र हैं जैसे- सबरी मंत्र, अघोर मंत्र, वशीकरण मंत्र आदि। | + | '''तान्त्रिक मंत्रः''' तन्त्र शास्त्र में गायत्री मंत्र जैसे कुछ वैदिक मंत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। कुछ तान्त्रिक मंत्र हैं जैसे- साबरी मंत्र, अघोर मंत्र, वशीकरण मंत्र आदि। |
| ==मन्त्र योग के अंग== | | ==मन्त्र योग के अंग== |
| '''ऋषि-''' जिन साधक ने सर्वप्रथम शिवजी के मुख से मन्त्र सुनकर विधिवत् उसे सिद्ध किया था, वह उस मन्त्र के ऋषि कहलाते हैं। उन ऋषि को उस मन्त्र का आदि गुरू मानकर श्रद्धा सहित उनका मस्तिष्क में न्यास किया जाता है। | | '''ऋषि-''' जिन साधक ने सर्वप्रथम शिवजी के मुख से मन्त्र सुनकर विधिवत् उसे सिद्ध किया था, वह उस मन्त्र के ऋषि कहलाते हैं। उन ऋषि को उस मन्त्र का आदि गुरू मानकर श्रद्धा सहित उनका मस्तिष्क में न्यास किया जाता है। |
Line 93: |
Line 93: |
| '''न्यास-''' विना न्यास के मन्त्र जप करने से जप निष्फल और विघ्नदायक कहा गया है। मन्त्र साधना में सफलता का मूल आधार चित्त की एकाग्रता है। चित्त को एकाग्र करने के लिये मन्त्रांगों के साथ मन्त्र का जाप करना विहित है। | | '''न्यास-''' विना न्यास के मन्त्र जप करने से जप निष्फल और विघ्नदायक कहा गया है। मन्त्र साधना में सफलता का मूल आधार चित्त की एकाग्रता है। चित्त को एकाग्र करने के लिये मन्त्रांगों के साथ मन्त्र का जाप करना विहित है। |
| ==मंत्र जाप की विधि== | | ==मंत्र जाप की विधि== |
− | मन्त्र विशेष को निरन्तर दोहराने को जप कहा जाता है। अग्निपुराण में जप के शाब्दिक अर्थ में ज को जन्म का विच्छेद और प को पापों का नाश बताया है। अर्थात् जिसके द्वारा जन्म-मरण एवं पापों का नाश हो वह जप है।<ref>गरिमा, दैव्यव्यपाश्रय चिकित्सा के परिप्रेक्ष्य में संस्कृत वांग्मय में वर्णित मन्त्रों का समीक्षात्मक अध्ययन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(२०२०) अध्याय-०२। http://hdl.handle.net/10603/377274</ref> जप को नित्य जप, नैमित्तिक जप, काम्य जप, निषिद्ध जप, प्रायश्चित्त जप, अचल जप, चल जप, वाचिक जप, उपांशु जप, भ्रामर जप, मानसिक जप, अखण्ड जप, अजपा जप एवं प्रदक्षिणा जप आदि से विभाजित किया गया है।<ref>कल्याण योगांक,https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.427011/page/n8/mode/1up?view=theater जपयोग, श्रीराजाराम नारायण वरुलेकर, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०३२९)</ref> | + | मन्त्र विशेष को निरन्तर दोहराने को जप कहा जाता है। अग्निपुराण में जप के शाब्दिक अर्थ में ज को जन्म का विच्छेद और प को पापों का नाश बताया है। अर्थात् जिसके द्वारा जन्म-मरण एवं पापों का नाश हो वह जप है।<ref>गरिमा, दैव्यव्यपाश्रय चिकित्सा के परिप्रेक्ष्य में संस्कृत वांग्मय में वर्णित मन्त्रों का समीक्षात्मक अध्ययन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(२०२०) अध्याय-०२। http://hdl.handle.net/10603/377274</ref> जप को नित्य जप, नैमित्तिक जप, काम्य जप, निषिद्ध जप, प्रायश्चित्त जप, अचल जप, चल जप, वाचिक जप, उपांशु जप, भ्रामर जप, मानसिक जप, अखण्ड जप, अजपा जप एवं प्रदक्षिणा जप आदि से विभाजित किया गया है।<ref>कल्याण योगांक,https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.427011/page/n8/mode/1up?view=theater जपयोग, श्रीराजाराम नारायण वरुलेकर, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०३२९)</ref>अग्नि पुराण के अनुसार-<blockquote>उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः। जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः॥(अग्नि पु० २९३/९८)</blockquote>ऊँचे स्वर मेंकिये जाने वाले जाप की अपेक्षा मन्त्र का मूक जप दसगुणा विशिष्ट है। जिह्वा जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस जप हजार गुणा उत्तम है। अग्नि पुराण में वर्णन है कि मंत्र का आरम्भ पूर्वाभिमुख अथवा अधोमुख होकर करना चाहिये। समस्त मन्त्रों के प्रारम्भ में प्रणव का प्रयोग करना चाहिये। साधक के लिये देवालय, नदी व सरोवर मन्त्र साधन के लिये उपयुक्त स्थान माने गये हैं। |
− | | |
− | | |
− | | |
− | अग्नि पुराण के अनुसार-<blockquote>उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः। जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः॥( अग्नि पु० २९३/९८)</blockquote>ऊँचे स्वर मेंकिये जाने वाले जाप की अपेक्षा मन्त्र का मूक जप दसगुणा विशिष्ट है। जिह्वा जप सौ गुणा श्रेष्ठ है और मानस जप हजार गुणा उत्तम है। अग्नि पुराण में वर्णन है कि मंत्र का आरम्भ पूर्वाभिमुख अथवा अधोमुख होकर करना चाहिये। समस्त मन्त्रों के प्रारम्भ में प्रणव का प्रयोग करना चाहिये। साधक के लिये देवालय, नदी व सरोवर मन्त्र साधन के लिये उपयुक्त स्थान माने गये हैं। | |
| === मंत्र की शक्ति === | | === मंत्र की शक्ति === |
| ऋषि हमें बताते हैं कि हमारी मूल प्रकृति सत्य, चेतना और आनंद है। मन्त्र शब्द की उत्पत्ति (निघण्टु के अनुसार) मनस् से बताया गया है। जिसका अर्थ है आर्ष कथन सामान्य रूप से मनन् से मन्त्र की उत्पत्ति माना गया है। मननात् मन्त्रः।<blockquote>तज्जपस्तदर्थ भावनम् ।(यो०सू० १/१८)</blockquote>मंत्र का जप अर्थ सहित चिन्तन पूर्वक करना चाहिये। जिस देवता का जप कर रहे हों, उसका ध्यान और चिन्तन करते रहने से एकाग्रता में वृद्धि होती है एवं लक्ष्य की शीघ्र ही सिद्धि होती है। | | ऋषि हमें बताते हैं कि हमारी मूल प्रकृति सत्य, चेतना और आनंद है। मन्त्र शब्द की उत्पत्ति (निघण्टु के अनुसार) मनस् से बताया गया है। जिसका अर्थ है आर्ष कथन सामान्य रूप से मनन् से मन्त्र की उत्पत्ति माना गया है। मननात् मन्त्रः।<blockquote>तज्जपस्तदर्थ भावनम् ।(यो०सू० १/१८)</blockquote>मंत्र का जप अर्थ सहित चिन्तन पूर्वक करना चाहिये। जिस देवता का जप कर रहे हों, उसका ध्यान और चिन्तन करते रहने से एकाग्रता में वृद्धि होती है एवं लक्ष्य की शीघ्र ही सिद्धि होती है। |
Line 115: |
Line 111: |
| अक्षरसमूहः यस्योच्चारेण व्याधिरूपशाम्यति देवादस्यश्च प्रसन्ना भवति। | | अक्षरसमूहः यस्योच्चारेण व्याधिरूपशाम्यति देवादस्यश्च प्रसन्ना भवति। |
| | | |
− | मंत्रोच्चार की नियमित प्रक्रिया दुहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है। एक आभ्यन्तरिक एवं दूसरी बाह्य। इससे उत्पन्न इन्फ्रासोनिक स्तर का ध्वनि प्रवाह जहाँ शरीरमें स्थित सूक्ष्म चक्रों में शक्ति संचार करता है वहीं दूसरी ओर इन ध्वनि प्रकंपनों से वातावरण में एक विशेष प्रकार का स्पंदन उत्पन्न होता है। मंत्र विज्ञान पर अनुसंधानरत वैज्ञानिकों ने पाया है कि मंत्रोच्चारण के पश्चात् उसकी आवृत्तियों से उठने वाली ध्वनि तरंगें पृथ्वी के आयन मंडल को घेरे विशाल भू चुम्बकीय प्रवाह शूमेन्स रेजोनेन्स से टकराती और परावर्तित होकर सम्पूर्ण पृथ्वी के वायुमण्डल में छा जाती है।<ref>आचार्य श्री राम शर्मा - व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान, अखण्ड ज्योति, वर्ष १९८९, अंक (पृ० 34/35)।</ref> | + | मंत्रोच्चार की नियमित प्रक्रिया दुहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है। एक आभ्यन्तरिक एवं दूसरी बाह्य। इससे उत्पन्न इन्फ्रासोनिक स्तर का ध्वनि प्रवाह जहाँ शरीरमें स्थित सूक्ष्म चक्रों में शक्ति संचार करता है वहीं दूसरी ओर इन ध्वनि प्रकंपनों से वातावरण में एक विशेष प्रकार का स्पंदन उत्पन्न होता है। मंत्र विज्ञान पर अनुसंधानरत वैज्ञानिकों ने पाया है कि मंत्रोच्चारण के पश्चात् उसकी आवृत्तियों से उठने वाली ध्वनि तरंगें पृथ्वी के आयन मंडल को घेरे विशाल भू चुम्बकीय प्रवाह शूमेन्स रेजोनेन्स से टकराती और परावर्तित होकर सम्पूर्ण पृथ्वी के वायुमण्डल में छा जाती है।<ref>आचार्य श्री राम शर्मा - व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान, अखण्ड ज्योति, वर्ष १९८९, अंक (पृ० 34/35)।</ref> |
| + | |
| + | === मंत्र चिकित्सा के लाभ === |
| + | |
| + | * चिंता और अवसाद को कम करता है। |
| + | * न्यूरोसिस से छुटकारा दिलाता है। |
| + | * रोगप्रतिरक्षा क्षमता को बढाता है। |
| + | * अंतर्ज्ञान को खोलता है। |
| + | |
| + | मन्त्र ध्यान एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक ध्वनि, शब्द या शब्दांश (मन्त्र) को ध्यान के दौरान मनमें या तीव्र आवाजमें जप किया जाता है। अनुभव के साथ प्रयोग के द्वारा ये सिद्ध हुआ है कि अगर किसी मंत्र की सही आवृत्ति, सही लक्ष्य के साथ अभ्यासकर्ता करता है तो इससे उसके मस्तिष्कमें ऑक्सीजन के प्रवाह में मदद करता है, हृदय गति, रक्तचाप को कम करता है, कई बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं, मानसिक शान्ति मिलती है और मानसिक बाहरी गतिविधियों या बीमारियों से रक्षा करता है।<ref>Scientific Analysis of Mantar Based Medition and Its Beneficial Effects : An over view, Written by : Jai Paul Dudeja<nowiki/>https://www.ijastems.org/wp-content/uploads/2017/06/v3.i6.5.Scientific-Analysis-of-Mantra-Based-Meditation.pdf</ref> |
| | | |
| ==उद्धरण॥ References== | | ==उद्धरण॥ References== |