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'''समाधि-''' जिस प्रकार लययोग की समाधि महालय तथा हठयोग की समाधि महाबोध मानी जाती है, उसी प्रकार मन्त्रयोग की समाधि महाभाव कहते हैं। मन, मन्त्र एवं देवता इन तीनों की जबतक पृथक्-पृथक् सत्ता रहती है तबतक उसे ध्यान कहा जाता है। इन तीनों के एक भाव में मिलते ही समाधि प्रारम्भ होती है।
'''समाधि-''' जिस प्रकार लययोग की समाधि महालय तथा हठयोग की समाधि महाबोध मानी जाती है, उसी प्रकार मन्त्रयोग की समाधि महाभाव कहते हैं। मन, मन्त्र एवं देवता इन तीनों की जबतक पृथक्-पृथक् सत्ता रहती है तबतक उसे ध्यान कहा जाता है। इन तीनों के एक भाव में मिलते ही समाधि प्रारम्भ होती है।
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=== मन्त्रयोग की अवधारणा ===
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वह शक्ति जो मन को बन्धन से मुक्त कर दे वही मंत्र योग है। मंत्र को सामान्य अर्थ में ध्वनि कम्पन से लिया जाता है। मंत्रविज्ञान ध्वनि के विद्युत रूपान्तर की अनोखी साधना विधि है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि-<blockquote>मननात् तारयेत् यस्तु स मंत्रः प्रकीर्तितः।</blockquote>अर्थात् यदि हम जिस इष्टदेव का मन से स्मरण कर श्रद्धापूर्वक, ध्यान कर मंत्रजप करते हैं और वह दर्शन देकर हमें इस भवसागर से तार दे तो वही मंत्रयोग है।इष्टदेव के चिन्तन करने, ध्यान करने तथा उनके मंत्रजप करने से हमारा अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। मन्त्र जप एक विज्ञान है, अनूठा रहस्य ह्है जिसे आध्यात्म विज्ञानी ही उजागर कर सकते हैं। मंत्र रूपी ध्वनि विद्युत रूपान्तरण की अनोखी विधि है। इस विधि को अपनाकर आत्मसाक्षात्कार किया जा सकता है।
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=== मंत्रयोग के उद्देश्य ===
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=== मंत्रयोग की उपयोगिता तथा महत्व ===
==मन्त्र के प्रकार==
==मन्त्र के प्रकार==