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| | नक्षत्र भारतीय पंचांग ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) का तीसरा अंग है। नक्षत्र सदैव अपने स्थान पर ही रहते हैं जबकि ग्रह नक्षत्रों में संचार करते हैं। नक्षत्रों की संख्या प्राचीन काल में २४ थी, जो कि आजकल २७ है। मुहूर्तज्योतिषमें अभिजित् को भी गिनतीमें शामिल करने से २८ नक्षत्रों की भी गणना होती है। प्राचीनकाल में फाल्गुनी, आषाढा तथा भाद्रपदा- इन तीन नक्षत्रोंमें पूर्वा तथा उत्तरा- इस प्रकार के विभाजन नहीं थे। ये विभाजन बादमें होनेसे २४+३=२७ नक्षत्र गिने जाते हैं। | | नक्षत्र भारतीय पंचांग ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण) का तीसरा अंग है। नक्षत्र सदैव अपने स्थान पर ही रहते हैं जबकि ग्रह नक्षत्रों में संचार करते हैं। नक्षत्रों की संख्या प्राचीन काल में २४ थी, जो कि आजकल २७ है। मुहूर्तज्योतिषमें अभिजित् को भी गिनतीमें शामिल करने से २८ नक्षत्रों की भी गणना होती है। प्राचीनकाल में फाल्गुनी, आषाढा तथा भाद्रपदा- इन तीन नक्षत्रोंमें पूर्वा तथा उत्तरा- इस प्रकार के विभाजन नहीं थे। ये विभाजन बादमें होनेसे २४+३=२७ नक्षत्र गिने जाते हैं। |
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| − | == परिचय == | + | == परिचय॥ Introduction == |
| | नक्षत्र को तारा भी कहते हैं। एक नक्षत्र उस पूरे चक्र(३६०॰) का २७वाँ भाग होता है जिस पर सूर्य एक वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सभी नक्षत्र प्रतिदिन पूर्व में उदय होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। तथा पुनः पूर्व में उदय होते हैं। इसी को नाक्षत्र अहोरात्र कहते हैं। यह चक्र सदा समान रहता है। कभी घटता बढता नहीं है। सूर्य जिस मार्गमें भ्रमण करते है, उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं। यह वृत्त ३६० अंशों का होता है। इसके समान रूप से १२ भाग करने से एक-एक राशि तथा २७ भाग कर देने से एक-एक नक्षत्र कहा गया है। यह चन्द्रमा से सम्बन्धित है। राशियों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ज्योतिष शास्त्रानुसार २७ नक्षत्र होते हैं। अश्विन्यादि से लेकर रेवती पर्यन्त प्रत्येक नक्षत्र का मान १३ अंश २० कला होता है। नक्षत्र आकाशीय पिण्ड होता है। | | नक्षत्र को तारा भी कहते हैं। एक नक्षत्र उस पूरे चक्र(३६०॰) का २७वाँ भाग होता है जिस पर सूर्य एक वर्ष में एक परिक्रमा करता है। सभी नक्षत्र प्रतिदिन पूर्व में उदय होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। तथा पुनः पूर्व में उदय होते हैं। इसी को नाक्षत्र अहोरात्र कहते हैं। यह चक्र सदा समान रहता है। कभी घटता बढता नहीं है। सूर्य जिस मार्गमें भ्रमण करते है, उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं। यह वृत्त ३६० अंशों का होता है। इसके समान रूप से १२ भाग करने से एक-एक राशि तथा २७ भाग कर देने से एक-एक नक्षत्र कहा गया है। यह चन्द्रमा से सम्बन्धित है। राशियों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ज्योतिष शास्त्रानुसार २७ नक्षत्र होते हैं। अश्विन्यादि से लेकर रेवती पर्यन्त प्रत्येक नक्षत्र का मान १३ अंश २० कला होता है। नक्षत्र आकाशीय पिण्ड होता है। |
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| − | == परिभाषा == | + | === जन्म नक्षत्र === |
| | + | किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा धरती से जिस नक्षत्र की सीध में रहता है, वह उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र कहलाता है। जैसे- किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा धरती से देखने पर कृत्तिका नक्षत्र के नीचे स्थित हो तो उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र कृत्तिका कहा जायेगा। |
| | + | |
| | + | == परिभाषा॥ Paribhasha == |
| | न क्षरतीति नक्षत्राणि।( शब्दकल्पद्रुम) | | न क्षरतीति नक्षत्राणि।( शब्दकल्पद्रुम) |
| | | | |
| | अर्थात् जिनका क्षरण नहीं होता, वे नक्षत्र कहलाते हैं। | | अर्थात् जिनका क्षरण नहीं होता, वे नक्षत्र कहलाते हैं। |
| | | | |
| − | == नक्षत्रोंका वर्गीकरण == | + | '''नक्षत्र के पर्याय-''' गण्ड, भ, ऋक्ष, तारा, उडु, धिष्ण्य आदि ये नक्षत्रों के पर्याय कहे गये हैं। |
| − | भारतीय ज्योतिष ने नक्षत्र गणना की पद्धति को स्वतन्त्र रूप से खोज निकाला था। वस्तुतः नक्षत्र पद्धति भारतीय ऋषि परम्परा की दिव्य अन्तर्दृष्टि से विकसित हुयी है जो आज भी अपने मूल से कटे बिना चली आ रही है।
| + | |
| | + | नक्षत्रमृक्षं भं तारा तारकाप्युडु वा स्त्रियाम् दाक्षायिण्योऽश्विनीत्यादि तारा ... (Digvarga) |
| | + | |
| | + | == ज्योतिषमें नक्षत्र की विशेषताएं॥ Nakshatra characteristics in Jyotisha == |
| | + | '''नक्षत्र देवता-''' मुहूर्तचिन्तामणि ग्रन्थ में अश्विनी आदि नक्षत्रों के पृथक् - पृथक् देवताओं का उल्लेख किया गया है जैसे- अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार, भरणी नक्षत्र के यम आदि। नक्षत्रों के देवता विषयक ज्ञान के द्वारा जातकों (जन्म लेने वालों) के जन्मनक्षत्र के अनुसार नामकरण, नक्षत्र जनित शान्ति के उपाय, जन्म नक्षत्रदेवता की आराधना आदि नक्षत्र देवता के नाम ज्ञात होने से विविध प्रयोजन सिद्ध होते हैं। |
| | + | |
| | + | '''नक्षत्रतारक संख्या-''' नक्षत्र तारक संख्या इस बिन्दुमें अश्विनी आदि नक्षत्रों की अलग-अलग ताराओं की संख्या का निर्देश किया गया है। नक्षत्रों में न्यूनतम तारा संख्या एक एवं अधिकतम तारा संख्या १०० है। |
| | | | |
| − | नक्षत्रों का वर्गीकरण दो प्रकार से मिलता है- | + | '''नक्षत्र आकृति-''' जिस नक्षत्र की ताराओं की स्थिति जिस प्रकार महर्षियों ने देखी अनुभूत कि उसी प्रकार ही प्रायः नक्षत्रों के नामकरण भी किये हैं। जैसे- अश्विनी नक्षत्र की तीन ताराओं की स्थिति अश्वमुख की तरह स्थित दिखाई देती है अतः इस नक्षत्र का नाम अश्विनी किया। इसी प्रकार से ही सभी नक्षत्रों का नामकरण भी जानना चाहिये। |
| | | | |
| − | # प्रथमप्राप्त वर्णन उनके मुखानुसार है, जिसमें ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यग्मुख- इस प्रकार के तीन वर्गीकरण हैं।
| + | '''नक्षत्र एवं वृक्ष-''' भारतीय मनीषियों ने आकाश में स्थित नक्षत्रों का संबंध धरती पर स्थित वृक्षों से जोडा है। प्राचीन भारतीय साहित्य एवं ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार २७ नक्षत्र पृथ्वी पर २७ संगत वृक्ष-प्रजातियों के रूप में अवतरित हुये हैं। इन वृक्षों में उस नक्षत्र का दैवी अंश विद्यमान रहता है। इन वृक्षों की सेवा करने से उस नक्षत्र की सेवा हो जाती है। इन्हीं वृक्षों को नक्षत्रों का वृक्ष भी कहा जाता है। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार अपने जन्म नक्षत्र वृक्ष का पालन-पोषण, बर्धन और रक्षा करने से हर प्रकार का कल्याण होता है, तथा इनको क्षति पहुँचाने से सभी प्रकार की हानि होती है। |
| − | # द्वितीय प्राप्त दूसरे प्रकार का वर्गीकरण सात वारोंकी प्रकृतिके अनुसार सात प्रकारका प्राप्त होता है। जैसे- ध्रुव(स्थिर), चर(चल), उग्र(क्रूर), मिश्र(साधारण), लघु(क्षिप्र), मृदु(मैत्र) तथा तीक्ष्ण (दारुण)।
| |
| | {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
| | |+नक्षत्रों के नाम, पर्यायवाची, देवता, तारकसंख्या, आकृति(पहचान) एवं तत्संबंधि वृक्ष तालिका | | |+नक्षत्रों के नाम, पर्यायवाची, देवता, तारकसंख्या, आकृति(पहचान) एवं तत्संबंधि वृक्ष तालिका |
| | !क्र०सं० | | !क्र०सं० |
| | !नक्षत्र नाम | | !नक्षत्र नाम |
| − | !पर्यायवाची | + | !पर्यायवाची<ref name=":0">श्री विन्ध्येश्वरीप्रसाद द्विवेदी, म्हूर्तचिन्तामणि, पीयूषधारा टीका, शुभाशुभ प्रकरण, सन् २०१८, वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०१०/११)</ref> |
| − | !नक्षत्र स्वामी | + | !नक्षत्र स्वामी<ref name=":0" /> |
| | !तारकसंख्या | | !तारकसंख्या |
| | !आकृतिः | | !आकृतिः |
| Line 32: |
Line 40: |
| | |3 | | |3 |
| | |अश्वमुख | | |अश्वमुख |
| − | |वृष | + | |आंवला |
| | |- | | |- |
| | |2 | | |2 |
| Line 40: |
Line 48: |
| | |3 | | |3 |
| | |योनि | | |योनि |
| − | |यमक | + | |यमक(युग्म वृक्ष) |
| | |- | | |- |
| | |3 | | |3 |
| Line 48: |
Line 56: |
| | |6 | | |6 |
| | |क्षुरा | | |क्षुरा |
| − | |उदुम्बर | + | |उदुम्बर(गूलर) |
| | |- | | |- |
| | |4 | | |4 |
| Line 56: |
Line 64: |
| | |5 | | |5 |
| | |शकट | | |शकट |
| − | |जम्बु | + | |जम्बु(जामुन) |
| | |- | | |- |
| | |5 | | |5 |
| Line 64: |
Line 72: |
| | |3 | | |3 |
| | |मृगास्य | | |मृगास्य |
| − | |खदिर | + | |खदिर(खैर) |
| | |- | | |- |
| | |6 | | |6 |
| Line 72: |
Line 80: |
| | |1 | | |1 |
| | |मणि | | |मणि |
| − | |कृष्णप्लक्ष | + | |कृष्णप्लक्ष(पाकड) |
| | |- | | |- |
| | |7 | | |7 |
| Line 80: |
Line 88: |
| | |4 | | |4 |
| | |गृह | | |गृह |
| − | |वंश | + | |वंश(बांस) |
| | |- | | |- |
| | |8 | | |8 |
| Line 88: |
Line 96: |
| | |3 | | |3 |
| | |शर | | |शर |
| − | |पिप्पल | + | |पिप्पल(पीपल) |
| | |- | | |- |
| | |9 | | |9 |
| Line 96: |
Line 104: |
| | |5 | | |5 |
| | |चक्र | | |चक्र |
| − | |नाग | + | |नाग(नागकेसर) |
| | |- | | |- |
| | |10 | | |10 |
| Line 104: |
Line 112: |
| | |5 | | |5 |
| | |भवन | | |भवन |
| − | |वट | + | |वट(बरगद) |
| | |- | | |- |
| | |11 | | |11 |
| Line 120: |
Line 128: |
| | |2 | | |2 |
| | |शय्या | | |शय्या |
| − | |अक्ष | + | |अक्ष(रुद्राक्ष) |
| | |- | | |- |
| | |13 | | |13 |
| Line 128: |
Line 136: |
| | |5 | | |5 |
| | |हस्त | | |हस्त |
| − | |अरिष्ट | + | |अरिष्ट(रीठा) |
| | |- | | |- |
| | |14 | | |14 |
| Line 136: |
Line 144: |
| | |1 | | |1 |
| | |मुक्ता | | |मुक्ता |
| − | |श्रीवृक्ष | + | |श्रीवृक्ष(बेल) |
| | |- | | |- |
| | |15 | | |15 |
| Line 160: |
Line 168: |
| | |4 | | |4 |
| | |बलि | | |बलि |
| − | |बकुल | + | |बकुल(मॉल श्री) |
| | |- | | |- |
| | |18 | | |18 |
| Line 168: |
Line 176: |
| | |3 | | |3 |
| | |कुण्डल | | |कुण्डल |
| − | |विष्टि | + | |विष्टि(चीड) |
| | |- | | |- |
| | |19 | | |19 |
| Line 176: |
Line 184: |
| | |11 | | |11 |
| | |सिंहपुच्छ | | |सिंहपुच्छ |
| − | |सर्ज्ज | + | |सर्ज्ज(साल) |
| | |- | | |- |
| | |20 | | |20 |
| Line 184: |
Line 192: |
| | |2 | | |2 |
| | |गजदन्त | | |गजदन्त |
| − | |वंजुल | + | |वंजुल(अशोक) |
| | |- | | |- |
| | |21 | | |21 |
| Line 192: |
Line 200: |
| | |2 | | |2 |
| | |मञ्च | | |मञ्च |
| − | |पनस | + | |पनस(कटहल) |
| | |- | | |- |
| | |22 | | |22 |
| Line 208: |
Line 216: |
| | |3 | | |3 |
| | |वामन | | |वामन |
| − | |अर्क | + | |अर्क(अकवन) |
| | |- | | |- |
| | |24 | | |24 |
| Line 232: |
Line 240: |
| | |2 | | |2 |
| | |मंच | | |मंच |
| − | |अशोक | + | |आम |
| | |- | | |- |
| | |27 | | |27 |
| Line 240: |
Line 248: |
| | |2 | | |2 |
| | |यमल | | |यमल |
| − | |पिचुमन्द(निम्बु) | + | |पिचुमन्द(नीम) |
| | |- | | |- |
| | |28 | | |28 |
| Line 248: |
Line 256: |
| | |32 | | |32 |
| | |मृदंग | | |मृदंग |
| − | |मधु | + | |मधु(महुआ) |
| | |} | | |} |
| | | | |
| − | === चरणों के आधार पर नामकरण एवं नक्षत्र === | + | == नक्षत्र चरण॥ Nakshatra Padas (quarters) == |
| | + | चरणों के आधार पर नामकरण एवं नक्षत्र |
| | + | |
| | जन्म इष्ट काल नक्षत्र के जिस चरण में पडा है, उसे नक्षत्र चरण मानकर जातक का नामकरण तथा चन्द्रराशि निर्धारित की जाती है। वर्णाक्षर तथा स्वर ज्ञान नक्षत्र चरण तथा राशि का ज्ञान कोष्ठक की सहायता से सुगमता पूर्वक जाना जा सकता है। | | जन्म इष्ट काल नक्षत्र के जिस चरण में पडा है, उसे नक्षत्र चरण मानकर जातक का नामकरण तथा चन्द्रराशि निर्धारित की जाती है। वर्णाक्षर तथा स्वर ज्ञान नक्षत्र चरण तथा राशि का ज्ञान कोष्ठक की सहायता से सुगमता पूर्वक जाना जा सकता है। |
| | {| class="wikitable" align="center" cellspacing="2" cellpadding="" | | {| class="wikitable" align="center" cellspacing="2" cellpadding="" |
| Line 259: |
Line 269: |
| | | 1|| Ashwini (अश्विनि)|| चु Chu || चे Che || चो Cho || ला Laa | | | 1|| Ashwini (अश्विनि)|| चु Chu || चे Che || चो Cho || ला Laa |
| | |- | | |- |
| − | | 2|| [[Bharani]] (भरणी)|| ली Lii || लू Luu || ले Le || लो Lo | + | | 2||[[Bharani]] (भरणी)|| ली Lii || लू Luu || ले Le || लो Lo |
| | |- | | |- |
| − | | 3 || [[Krittika]] (कृत्तिका)|| अ A || ई I || उ U || ए E | + | | 3 ||[[Krittika]] (कृत्तिका)|| अ A || ई I || उ U || ए E |
| | |- | | |- |
| − | | 4 || Rohini(रोहिणी)|| ओ O || वा Vaa/Baa || वी Vii/Bii || वु Vuu/Buu | + | | 4 || Rohini(रोहिणी)|| ओ O || वा Vaa/Baa || वी Vii/Bii || वु Vuu/Buu |
| | |- | | |- |
| − | | 5 || [[Mrigashīrsha]](मृगशीर्ष)|| वे Ve/Be || वो Vo/Bo || का Kaa || की Kii | + | | 5 ||[[Mrigashīrsha]](मृगशीर्ष)|| वे Ve/Be || वो Vo/Bo || का Kaa || की Kii |
| | |- | | |- |
| − | | 6 || [[Ardra (nakshatra)|Ārdrā]] (आर्द्रा)|| कु Ku || घ Gha || ङ Ng/Na || छ Chha | + | | 6 ||[[Ardra (nakshatra)|Ārdrā]] (आर्द्रा)|| कु Ku || घ Gha || ङ Ng/Na || छ Chha |
| | |- | | |- |
| − | | 7 || [[Punarvasu]] (पुनर्वसु)|| के Ke || को Ko || हा Haa || ही Hii | + | | 7 ||[[Punarvasu]] (पुनर्वसु)|| के Ke || को Ko || हा Haa || ही Hii |
| | |- | | |- |
| − | | 8 || [[Pushya]] (पुष्य) || हु Hu || हे He || हो Ho || ड ḍa | + | | 8 ||[[Pushya]] (पुष्य) || हु Hu || हे He || हो Ho || ड ḍa |
| | |- | | |- |
| − | | 9 || [[Āshleshā]] (अश्लेषा)|| डी ḍii || डू ḍuu || डे ḍe || डो ḍo | + | | 9 ||[[Āshleshā]] (अश्लेषा)|| डी ḍii || डू ḍuu || डे ḍe || डो ḍo |
| | |- | | |- |
| − | | 10 || [[Maghā]] (मघा)|| मा Maa || मी Mii || मू Muu || मे Me | + | | 10 ||[[Maghā]] (मघा)|| मा Maa || मी Mii || मू Muu || मे Me |
| | |- | | |- |
| | | 11 || Pūrva or [[Pūrva Phalgunī]] (पूर्व फल्गुनी) || मो Mo || टा ṭaa || टी ṭii || टू ṭuu | | | 11 || Pūrva or [[Pūrva Phalgunī]] (पूर्व फल्गुनी) || मो Mo || टा ṭaa || टी ṭii || टू ṭuu |
| Line 281: |
Line 291: |
| | | 12 || Uttara or [[Uttara Phalgunī]] (उत्तर फल्गुनी)|| टे ṭe || टो ṭo || पा Paa || पी Pii | | | 12 || Uttara or [[Uttara Phalgunī]] (उत्तर फल्गुनी)|| टे ṭe || टो ṭo || पा Paa || पी Pii |
| | |- | | |- |
| − | | 13 || [[Hasta (nakshatra)|Hasta]] (हस्त)|| पू Puu || ष Sha || ण Na || ठ ṭha | + | | 13 ||[[Hasta (nakshatra)|Hasta]] (हस्त)|| पू Puu || ष Sha || ण Na || ठ ṭha |
| | |- | | |- |
| | | 14 || Chitra (चित्रा)|| पे Pe || पो Po || रा Raa || री Rii | | | 14 || Chitra (चित्रा)|| पे Pe || पो Po || रा Raa || री Rii |
| | |- | | |- |
| − | | 15 || [[Svātī]] (स्वाति) || रू Ruu || रे Re || रो Ro || ता Taa | + | | 15 ||[[Svātī]] (स्वाति) || रू Ruu || रे Re || रो Ro || ता Taa |
| | |- | | |- |
| − | | 16 || [[Viśākhā]] (विशाखा)|| ती Tii || तू Tuu || ते Te || तो To | + | | 16 ||[[Viśākhā]] (विशाखा)|| ती Tii || तू Tuu || ते Te || तो To |
| | |- | | |- |
| | | 17 || Anurādhā (अनुराधा)|| ना Naa || नी Nii || नू Nuu || ने Ne | | | 17 || Anurādhā (अनुराधा)|| ना Naa || नी Nii || नू Nuu || ने Ne |
| | |- | | |- |
| − | | 18 || [[Jyeshtha]] (ज्येष्ठा)|| नो No || या Yaa || यी Yii || यू Yuu | + | | 18 ||[[Jyeshtha]] (ज्येष्ठा)|| नो No || या Yaa || यी Yii || यू Yuu |
| | |- | | |- |
| − | | 19 || [[Mula (astrology)|Mula]] (मूल)|| ये Ye || यो Yo || भा Bhaa || भी Bhii | + | | 19 ||[[Mula (astrology)|Mula]] (मूल)|| ये Ye || यो Yo || भा Bhaa || भी Bhii |
| | |- | | |- |
| − | | 20 || [[Pūrva Āshādhā]] (पूर्व आषाढ़)|| भू Bhuu || धा Dhaa || फा Bhaa/Phaa || ढा Daa | + | | 20 ||[[Pūrva Āshādhā]] (पूर्व आषाढ़)|| भू Bhuu || धा Dhaa || फा Bhaa/Phaa || ढा Daa |
| | |- | | |- |
| − | | 21 || [[Uttara Āshadha|Uttara Āṣāḍhā]] (उत्तर आषाढ़)|| भे Bhe || भो Bho || जा Jaa || जी Jii | + | | 21 ||[[Uttara Āshadha|Uttara Āṣāḍhā]] (उत्तर आषाढ़)|| भे Bhe || भो Bho || जा Jaa || जी Jii |
| | |- | | |- |
| − | | 22 || [[Śrāvaṇa]] (श्रावण)|| खी Ju/Khii || खू Je/Khuu || खे Jo/Khe || खो Gha/Kho | + | | 22 ||[[Śrāvaṇa]] (श्रावण)|| खी Ju/Khii || खू Je/Khuu || खे Jo/Khe || खो Gha/Kho |
| | |- | | |- |
| − | | 23 || Śrāviṣṭha (श्रविष्ठा) or [[Dhanishta]] || गा Gaa || गी Gii || गु Gu || गे Ge | + | | 23 || Śrāviṣṭha (श्रविष्ठा) or [[Dhanishta]]|| गा Gaa || गी Gii || गु Gu || गे Ge |
| | |- | | |- |
| − | | 24 || [[Shatabhisha]] (शतभिषा)or Śatataraka || गो Go || सा Saa || सी Sii || सू Suu | + | | 24 ||[[Shatabhisha]] (शतभिषा)or Śatataraka || गो Go || सा Saa || सी Sii || सू Suu |
| | |- | | |- |
| − | | 25 || [[Pūrva Bhādrapadā]] (पूर्व भाद्रपद)|| से Se || सो So || दा Daa || दी Dii | + | | 25 ||[[Pūrva Bhādrapadā]] (पूर्व भाद्रपद)|| से Se || सो So || दा Daa || दी Dii |
| | |- | | |- |
| − | | 26 || [[Uttara Bhādrapadā]] (उत्तर भाद्रपद)|| दू Duu || थ Tha || झ Jha || ञ ña | + | | 26 ||[[Uttara Bhādrapadā]] (उत्तर भाद्रपद)|| दू Duu || थ Tha || झ Jha || ञ ña |
| | |- | | |- |
| − | | 27 || [[Revati]] (रेवती)|| दे De || दो Do || च Cha || ची Chii | + | | 27 ||[[Revati]] (रेवती)|| दे De || दो Do || च Cha || ची Chii |
| | |} | | |} |
| | | | |
| − | === नक्षत्रों की अधः, ऊर्ध्व तथा तिर्यक् मुख संज्ञा === | + | == नक्षत्रचरणों का प्रयोजन == |
| | + | ऊपर कहे गये नक्षत्र चरणों का प्रयोग जातकों(जन्म लेने वालों) के जन्म काल में नामकरण में, वधूवर मेलापक विचार में और ग्रहण आदि के समय में वेध आदि को जानने के लिये किया जाता है। जैसे- |
| | + | |
| | + | == नक्षत्रोंका वर्गीकरण॥ Classification of Nakshatras == |
| | + | भारतीय ज्योतिष ने नक्षत्र गणना की पद्धति को स्वतन्त्र रूप से खोज निकाला था। वस्तुतः नक्षत्र पद्धति भारतीय ऋषि परम्परा की दिव्य अन्तर्दृष्टि से विकसित हुयी है जो आज भी अपने मूल से कटे बिना चली आ रही है। |
| | + | |
| | + | नक्षत्रों का वर्गीकरण दो प्रकार से मिलता है- |
| | + | |
| | + | # प्रथमप्राप्त वर्णन उनके मुखानुसार है, जिसमें ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यग्मुख- इस प्रकार के तीन वर्गीकरण हैं। |
| | + | # द्वितीय प्राप्त दूसरे प्रकार का वर्गीकरण सात वारोंकी प्रकृतिके अनुसार सात प्रकारका प्राप्त होता है। जैसे- ध्रुव(स्थिर), चर(चल), उग्र(क्रूर), मिश्र(साधारण), लघु(क्षिप्र), मृदु(मैत्र) तथा तीक्ष्ण (दारुण)। |
| | + | === नक्षत्रों की अधः, ऊर्ध्व तथा तिर्यक् मुख संज्ञा॥ === |
| | {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
| | |+ | | |+ |
| Line 356: |
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| | |} | | |} |
| | | | |
| − | === नक्षत्र क्षय-वृद्धि === | + | === नक्षत्र क्षय-वृद्धि॥ === |
| | + | |
| | + | == नष्टवस्तु ज्ञानार्थ नक्षत्रों की संज्ञा॥ == |
| | + | लोक व्यवहार में गत वस्तु के ज्ञान के लिये भी ज्योतिष का उपयोग किया जाता है। चोरी हुई, रखकर भूल गई आदि वस्तुओं के ज्ञान के लिये बताई जा रही नक्षत्र संज्ञा का प्रयोग किया जा सकता है। रोहिणी नक्षत्र से अन्धक, मन्द, मध्य और सुलोचन संज्ञक ४भागों में नक्षत्रों को बाँटा गया है- |
| | + | {| class="wikitable" |
| | + | |+ |
| | + | !क्रम/संज्ञा |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !नक्षत्र |
| | + | !गतवस्तु फल |
| | + | |- |
| | + | |अन्धाक्ष |
| | + | |रोहिणी |
| | + | |पुष्य |
| | + | |उत्तराफाल्गुनी |
| | + | |विशाखा |
| | + | |पूर्वाषाढा |
| | + | |धनिष्ठा |
| | + | |रेवती |
| | + | |शीघ्र लाभ |
| | + | |- |
| | + | |मन्दाक्ष |
| | + | |मृगशिरा |
| | + | |आश्लेषा |
| | + | |हस्त |
| | + | |अनुराधा |
| | + | |उत्तराषाढा |
| | + | |शतभिषा |
| | + | |अश्विनी |
| | + | |प्रयत्न लाभ |
| | + | |- |
| | + | |मध्याक्ष |
| | + | |आर्द्रा |
| | + | |मघा |
| | + | |चित्रा |
| | + | |ज्येष्ठा |
| | + | |अभिजित् |
| | + | |पूर्वाभाद्रपदा |
| | + | |भरणी |
| | + | |केवल जानकारी मिले |
| | + | |- |
| | + | |सुलोचन |
| | + | |पुनर्वसु |
| | + | |पूर्वाफाल्गुनी |
| | + | |स्वाती |
| | + | |मूल |
| | + | |श्रवण |
| | + | |उत्तराभाद्रपदा |
| | + | |कृत्तिका |
| | + | |अलाभ |
| | + | |} |
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| | == नक्षत्र फल == | | == नक्षत्र फल == |
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| | पूर्वप्रोष्ठपदि प्रगल्भवचनो धूर्तो भयार्तो मृदु श्चाहिर्बुध्न्यजमानवो मृदुगुणस्त्यागी धनी पण्डितः। रेवत्यामुरूलाञ्छनोपगतनुः कामातुरः सुन्दरो मन्त्री पुत्रकलत्रमित्रसहितो जातः स्थिरः श्रीरतः॥ | | पूर्वप्रोष्ठपदि प्रगल्भवचनो धूर्तो भयार्तो मृदु श्चाहिर्बुध्न्यजमानवो मृदुगुणस्त्यागी धनी पण्डितः। रेवत्यामुरूलाञ्छनोपगतनुः कामातुरः सुन्दरो मन्त्री पुत्रकलत्रमित्रसहितो जातः स्थिरः श्रीरतः॥ |
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| − | == उद्धरण == | + | == नक्षत्र अध्ययन का महत्व॥ == |
| | + | प्राचीन भारत में ग्रहों के प्रतिदिन के स्थिति ज्ञान का दैनिक जीवन में बहुत महत्व था। नक्षत्रों की दैनिक स्थिति के अध्ययन की मुख्य उपयोगिता निम्नानुसार है- |
| | + | |
| | + | # '''मौसम पूर्वानुमान-''' |
| | + | # '''कृषि कार्य-''' |
| | + | # '''दैनिक जीवन-''' |
| | + | # '''मानव स्वास्थ्य-''' |
| | + | # '''फलित ज्योतिष-''' |
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| | + | == उद्धरण॥ References == |