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| ज्योतिष शास्त्र की गणना वेदाङ्गों में की जाती है। वेद अनन्त ज्ञानराशि हैं। धर्म का भी मूल वेद ही है। इन वेदों के अर्थ गाम्भीर्य तथा दुरूहता के कारण कालान्तर में वेदाङ्गों की रचना हुई। वेदपुरुष के विशालकाय शरीर में नेत्ररूप में ज्योतिष शास्त्रको परिलक्षित किया गया है। | | ज्योतिष शास्त्र की गणना वेदाङ्गों में की जाती है। वेद अनन्त ज्ञानराशि हैं। धर्म का भी मूल वेद ही है। इन वेदों के अर्थ गाम्भीर्य तथा दुरूहता के कारण कालान्तर में वेदाङ्गों की रचना हुई। वेदपुरुष के विशालकाय शरीर में नेत्ररूप में ज्योतिष शास्त्रको परिलक्षित किया गया है। |
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− | परिभाषा॥ Paribhasha | + | == परिभाषा॥ Paribhasha == |
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| ज्योतिष शास्त्र का इतिहास॥ | | ज्योतिष शास्त्र का इतिहास॥ |
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| ज्योतिष की उपयोगिता॥ | | ज्योतिष की उपयोगिता॥ |
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| + | त्रिगुणात्मक प्रकृति के द्वारा निर्मित समस्त जगत् एवं ग्रह सत्व, रज एवं तमोमय है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन ग्रहों में सत्व गुण आधिक्य वशात् अमृतमय किरणें, रजोगुण आधिक्य वशात् उभयगुण मिश्रित किरणें एवं तमोगुण आधिक्य वशात् विषमय-किरणें |
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| ज्योतिष॥ Jyotisha | | ज्योतिष॥ Jyotisha |
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| == परिचय॥ Parichaya == | | == परिचय॥ Parichaya == |
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| + | हमारे जीवन में उत्पन्न रोग त्रिविध कर्मों के परिणाम हैं। जन्मजात रोग, वंशानुक्रम रोग एवं संचित कर्मों के परिणाम क्रियमाण का फल है रोगों का आगमन। |
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| + | == रोगों का वर्गीकरण॥ == |
| + | ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में रोगों का गम्भीरता पूर्वक विचार करने से सर्वप्रथम उनके भेदों का विचार किया गया है, इस शास्त्र में रोगों को मुख्यतः दो प्रकार का माना गया है- |
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| + | # '''सहज-''' जन्मजात रोगों को सहज रोग कहते हैं। |
| + | # '''आगन्तुक-''' जन्म के बाद होने वाले रोगों को आगन्तुक रोग कहते हैं। |
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− | === ग्रह अधिष्ठित शरीराङ्ग॥ Planets Ruling The Body Parts ===
| + | सहज रोगों के दो भेद होते हैं- '''शारीरिक''' एवं '''मानसिक।''' |
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| + | # '''शारीरिक-''' लंगडापन, कुबडापन, अन्धत्व, मूकत्व, बधिरत्व, नपुंसकत्व, हीनांग आदि कुछ शारीरिक रोग जन्मजात होते हैं। |
| + | # '''मानसिक-''' जडता, उन्माद एवम पागलपन आदि कुछ मानसिक रोग भी जन्मजात होते हैं। इस प्रकार के समस्त रोगों को सहज रोग कहा गया है। |
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| + | आगन्तुक रोग भी दो प्रकार के होते हैं- '''दृष्टिनिमित्तजन्य''' एवं '''अदृष्टिनिमित्तजन्य'''। |
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| + | # '''दृष्टिनिमित्तजन्य -''' शाप, अभिचार, घात, संसर्ग, महामारी एवं दुर्घटना आदि प्रत्यक्ष घटनाओं द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों को दृष्टिनिमित्तजन्य रोग कहते हैं। |
| + | # '''अदृष्टिनिमित्तजन्य -''' जिन रोगों का कारण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता, उन रोगों को अदृष्ट निमित्त जन्य रोग कहते हैं। |
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| + | सूर्यादि ग्रह मनुष्य के शरीर के समस्त अंग, धातु, वात, प्त्त, कफ आदि त्रिदोष, आन्तरिक संरचना एवं संचालन प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। |
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| + | == ग्रह अधिष्ठित शरीराङ्ग॥ Planets Ruling The Body Parts == |
| नवग्रहों में सूर्य-चन्द्र आदि जिस राशि में बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-विचार होता है। तथापि उनका स्वतन्त्र रूपमें जिस अङ्ग पर प्रभाव या रोग विशेष होने की सम्भावना होती है उसे अधोलिखित सारणी द्वारा समझा जा सकता है<ref>श्री नलिनजी पाण्डे, आरोग्य अङ्क, ज्योतिष-रोग एवं उपचार, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२८३)।</ref>- | | नवग्रहों में सूर्य-चन्द्र आदि जिस राशि में बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-विचार होता है। तथापि उनका स्वतन्त्र रूपमें जिस अङ्ग पर प्रभाव या रोग विशेष होने की सम्भावना होती है उसे अधोलिखित सारणी द्वारा समझा जा सकता है<ref>श्री नलिनजी पाण्डे, आरोग्य अङ्क, ज्योतिष-रोग एवं उपचार, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२८३)।</ref>- |
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| ज्योतिषशास्त्रके अनुसार विभिन्न ग्रह निम्न शरीर रचनाओं के नियन्त्रक होते हैं- | | ज्योतिषशास्त्रके अनुसार विभिन्न ग्रह निम्न शरीर रचनाओं के नियन्त्रक होते हैं- |
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| # '''राहु एवं केतु-''' शरीरके अन्दर आकाश एवं अपानवायु। | | # '''राहु एवं केतु-''' शरीरके अन्दर आकाश एवं अपानवायु। |
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− | ====ज्योतिष में त्रिदोष॥ Tridoshas in Jyotisha====
| + | ==ज्योतिष में त्रिदोष॥ Tridoshas in Jyotisha== |
− | त्रिदोष चर्चा में चिकित्सा शास्त्र का जनक आयुर्वेद है जिसे कुछ विद्वान् पञ्चमवेद भी कहते हैं। <nowiki>''</nowiki>शरीरं व्याधि मन्दिरम्<nowiki>''</nowiki> इस उक्ति के समाधान में आयुर्वेद शास्त्र की रचना हुई। आज चिकित्सा के कई रूप उपलब्ध हैं पर सभी का जन्मदाता आयुर्वेद ही है। आयुर्वेद, एलोपैथ तथा होम्योपैथ की चिकित्सा सम्पूर्ण देश में सर्वमान्य है। भारतीय चिकित्सा शास्त्र में त्रिदोष का वर्णन सर्वत्र है, अर्थात् वात, पित्त और कफ जन्य ही रोग होते हैं। चिकित्साशास्त्र इन्हीं पर आधारित है । हमारे ज्योतिष शास्त्र में भी त्रिदोष की चर्चा है। ग्रह नक्षत्रों का शास्त्र ज्योतिष हैं। नवग्रहों की प्रधानता ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है। ये सभी ग्रह त्रिदोष से सम्बन्धित हैं। इनमें से कोई वातज, कोई पित्तज तथा कोई कफज है- | + | भारतीय दर्शन की मान्यतानुसार त्रिदोष चर्चा में चिकित्सा शास्त्र का जनक आयुर्वेद है। जिसे कुछ विद्वान् पञ्चमवेद भी कहते हैं। <nowiki>''</nowiki>शरीरं व्याधि मन्दिरम्<nowiki>''</nowiki> इस उक्ति के समाधान में आयुर्वेद शास्त्र की रचना हुई। आज चिकित्सा के कई रूप उपलब्ध हैं पर सभी का जन्मदाता आयुर्वेद ही है। आयुर्वेद, एलोपैथ तथा होम्योपैथ की चिकित्सा सम्पूर्ण देश में सर्वमान्य है। भारतीय चिकित्सा शास्त्र में त्रिदोष का वर्णन सर्वत्र है, अर्थात् वात, पित्त और कफ जन्य ही रोग होते हैं। चिकित्साशास्त्र इन्हीं पर आधारित है । ज्योतिष शास्त्र में भी त्रिदोष की चर्चा है। ग्रह नक्षत्रों का शास्त्र ज्योतिष है। नवग्रहों की प्रधानता ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है। ये सभी ग्रह त्रिदोष से सम्बन्धित हैं। इनमें से कोई वातज, कोई पित्तज तथा कोई कफज है- |
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| * '''वातज ग्रह-''' शनि, राहु केतु। | | * '''वातज ग्रह-''' शनि, राहु केतु। |
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| बुध को तटस्थ(न्यूट्रल) कहा गया है, इन ग्रहों के दाय काल में अथवा इनके दुर्बल होने से उक्त त्रिदोषजन्य व्याधियाँ होती है। जिसे व्यवहार में भी अनुभव किया गया है | | बुध को तटस्थ(न्यूट्रल) कहा गया है, इन ग्रहों के दाय काल में अथवा इनके दुर्बल होने से उक्त त्रिदोषजन्य व्याधियाँ होती है। जिसे व्यवहार में भी अनुभव किया गया है |
− | ===वातजन्य व्याधियॉं ॥=== | + | ===वातजन्य व्याधियॉं=== |
| शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है- | | शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है- |
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| ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है । | | ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है । |
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− | ===पित्तजन्य व्याधियॉं॥=== | + | ===पित्तजन्य व्याधियॉं=== |
| पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं- | | पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं- |
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