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शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है-
 
शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है-
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१. नखभेद, २. व्यवाई, ३. पादशूल, ४. पाद भ्रंश, ५. पाद सुप्तता, ६. पाद खुड्डता, ७. गुल्मग्रह, ८. पिण्डिकोद्वेष्टन, ९. गृध्रसी, १०. जानुभेद, ११. जानुविश्लेष. १२. उरुस्तम्भ, १३. उरुसाद, १४. पाङ्गुल्य, १५. गुदभ्रंश, १६. गुदार्ति, १७. वृषणोत्क्षेप, १८. शेफस्तम्भ, १९. वक्षणान, २०. श्रोणिमेद, २१. विड्भेद, २२. उदावर्त, २३. खञ्जता, २४. कुब्जता, २५. वामनत्व, २६. तृक्ग्रह, २७ पुष्टग्रह, २८. पार्श्वावमर्द, २९. उदरावेष्ट, ३०. हृन्मोह, ३१. हृदद्रव, ३२. वक्षोघर्ष, ३३. वक्षोपरोध, ३४. वक्षस्तोद, ३५. वाडूशोष, ३६. ग्रवास्तम्भ, ३७. मन्यास्तम्भ, ३८. कण्ठोध्वंस, ३९ हनुभेद, ४०. ओष्ठभेद, ४१. अक्षिभेद, ४२. दन्तभेद, ४३. दन्तशैथिल्य, ४४. मूकत्व, ४५. वाक्संग, ४६. काषायस्यता, ४७. मुख शोष, ४८ अरसज्ञता, ४९. घ्राणनाश, ५०. कर्णमूल, ५१. ५२ उच्चैश्रुति, ५३. बहरापन, ५४. वर्त्मस्तम्भ, ५५. वर्त्मसंकोच, ५६. तिमिर, ५७. नेत्रशूल, ५८. अक्षिब्युदास, ५९. ब्रूव्युदास, ६०. शंखभेद, ६१ ललाटभेद, ६२. शिरःशूल, ६३. केशभूमिस्फुटन, ६४. आदिंत, ६५. एकाङ्गरोग, ६६. सर्वाङ्गरोग, ६७. आक्षेपक, ६८. दण्डक, ६९. तम, ७०. भ्रम, ७१. वैपयु, ७२. जम्भाई, ७३. हिचकी, ७४. विषाद, ७५. अतिप्रलाप, ७६. रुक्षता, ७७. परुषता, ७८. श्यावशरीर, ७९. लाल शरीर, ८०. अस्वप्न अनवस्थित ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है ।
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* १. नखभेद
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* २. व्यवाई
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* ३. पादशूल
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* ४. पाद भ्रंश  
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* ५. पाद सुप्तता
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* ६. पाद खुड्डता
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* ७. गुल्मग्रह
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* ८. पिण्डिकोद्वेष्टन
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* ९. गृध्रसी
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* १०. जानुभेद
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* ११. जानुविश्लेष
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* १२. उरुस्तम्भ
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* १३. उरुसाद
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* १४. पाङ्गुल्य
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* १५. गुदभ्रंश
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* १६. गुदार्ति
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* १७. वृषणोत्क्षेप
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* १८. शेफस्तम्भ
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* १९. वक्षणान
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* २०. श्रोणिमेद
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* २१. विड्भेद
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* २२. उदावर्त
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* २३. खञ्जता
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* २४. कुब्जता
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* २७. पुष्टग्रह
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* २८. पार्श्वावमर्द
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* २९. उदरावेष्ट
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* ३०. हृन्मोह
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* ३१. हृदद्रव
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* ३२. वक्षोघर्ष
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* ३३. वक्षोपरोध
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* ३४. वक्षस्तोद
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* ३५. वाडूशोष
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* ३६. ग्रवास्तम्भ
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* ३७. मन्यास्तम्भ
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* ३८. कण्ठोध्वंस
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* ३९. हनुभेद
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* ४०. ओष्ठभेद
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* ४३. दन्तशैथिल्य
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* ४४. मूकत्व
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* ४५. वाक्संग
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* ४६. काषायस्यता
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* ४७. मुख शोष
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* ४८ अरसज्ञता
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* ४९. घ्राणनाश
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* ५०. कर्णमूल
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* ५१.  
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* ५२. उच्चैश्रुति
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* ५३. बहरापन
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* ५४. वर्त्मस्तम्भ
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* ५५. वर्त्मसंकोच
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* ५६. तिमिर
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* ५७. नेत्रशूल
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* ५८. अक्षिब्युदास
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* ५९. ब्रूव्युदास
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* ६०. शंखभेद
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* ६१. ललाटभेद
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* ६२. शिरःशूल
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* ६३. केशभूमिस्फुटन
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* ६४. आदिंत
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* ६५. एकाङ्गरोग
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* ६६. सर्वाङ्गरोग
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* ६७. आक्षेपक
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* ६८. दण्डक
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* ६९. तम
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* ७०. भ्रम
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* ७१. वैपयु
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* ७२. जम्भाई
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* ७३. हिचकी
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* ७४. विषाद
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* ७५. अतिप्रलाप
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* ७६. रुक्षता
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* ७७. परुषता
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* ७८. श्यावशरीर
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* ७९. लाल शरीर
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* ८०. अस्वप्न अनवस्थित}}
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ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है ।
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===पित्तजन्य व्याधियॉं॥===
 
===पित्तजन्य व्याधियॉं॥===
 
पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं-
 
पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं-
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