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पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं-
 
पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं-
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१. ओष, २. प्लोष, ३. दाह, ४. दवधु, ५. धूमक, ६. अम्लक, ७. विदाह, ८. अन्तरदाह, ९. अंशदाह, १०. उष्माधिक्य, ११. अतिश्वेद, १२. अङ्गरान्ध, १३. अङ्कावदरण, १४. शोणितक्लेद, १५. मांस क्लेद, १६. त्वक्टाह, १७. त्वगवदरण, १८. चरमावदरण, १९. रक्तकोष्ठ, २०. रक्तविस्फोट, २१. रक्तपित्त, २२. रक्तमण्डल, २३. हरितत्त्व, २४. हारिद्रवत्व, २५. नीलिका, २६. कथ्या, २७. कामला, २८. तिक्तास्यता, २९. लोहितगन्धास्यता, ३०. अक्षिपाक, ३१. तृष्णाधिक्य, ३२. अतृप्ति, ३३. आस्यविपाक, ३४. गलपाक, ३५. अक्षिपाक, ३६. गुदपाक, ३७. मुडपाक और जीवादान, ३८. तमः प्रवेश, ३९. नेत्र शूल, ४०. अमलका हरा वर्ण या पीला वर्ण। गुरु, सूर्य तथा मंगल के कारण ये व्याधियाँ होती हैं। इसलिये इन ग्रहों के दायकाल में इनका निदान तथा समाधान आवश्यक है।
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* १. ओष
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* २. प्लोष
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* ३. दाह
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* ४. दवधु
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* ५. धूमक
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* ६. अम्लक
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* ७. विदाह
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* ८. अन्तरदाह
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* ९. अंशदाह
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* १०. उष्माधिक्य
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* ११. अतिश्वेद
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* १२. अङ्गरान्ध
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* १३. अङ्कावदरण
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* १४. शोणितक्लेद
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* १५. मांस क्लेद
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* १६. त्वक्टाह
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* १७. त्वगवदरण
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* १८. चरमावदरण
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* १९. रक्तकोष्ठ
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* २०. रक्तविस्फोट
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* २१. रक्तपित्त
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* २२. रक्तमण्डल
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* २३. हरितत्त्व
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* २४. हारिद्रवत्व
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* २५. नीलिका
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* २६. कथ्या
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* २७. कामला
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* २८. तिक्तास्यता
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* २९. लोहितगन्धास्यता
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* ३०. अक्षिपाक
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* ३१. तृष्णाधिक्य
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* ३२. अतृप्ति
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* ३३. आस्यविपाक
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* ३४. गलपाक
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* ३५. अक्षिपाक
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* ३६. गुदपाक
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* ३७. मुडपाक और जीवादान
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* ३८. तमः प्रवेश
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* ३९. नेत्र शूल
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* ४०. अमलका हरा वर्ण या पीला वर्ण}}। गुरु, सूर्य तथा मंगल के कारण ये व्याधियाँ होती हैं। इसलिये इन ग्रहों के दायकाल में इनका निदान तथा समाधान आवश्यक है।
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===कफजन्य व्याधियॉं॥===
 
===कफजन्य व्याधियॉं॥===
 
कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं-
 
कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं-
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