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→‎बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत: लेख सम्पादित किया
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यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होता है। इस दिन व्रत रखकर बैकुण्ठ विधरी की पूजा करनी चाहिए | चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वाले पहले स्वयं स्नान करके फिर भगवान को स्नान कराकर भोग लगायें। भोग के उपरान्त आचमन लगाकर फूल, दीप, चन्दन आदि से आरती उतारकर भोग को बांट दें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें। रात्रि में मूर्ति के सम्मुख हो सोयें। दिन भर कीर्तन करें। इस व्रत को करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। मनुष्य सभी बन्धनों से मुक्त हो जाता है। बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा-एक समय की बात है भगवान बैकुण्ठ में बैठे हुए थे। तभी उनके पास नारद मुनि आये। नारदजी को देखकर भगवान ने उनके आने का कारण पूछा। नारदजी बोले-आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है, परन्तुआपके लोक में तो आपके भक्तजन ही आ पाते हैं। फिर आपकी उनके ऊपर कृपा क्या हुई? वे तो अपने जप-तप के प्रभाव से आपके धाम में आ ही जाते हैं। भगवान बोले, नारदजी मैं आपकी बात समझ नहीं पाया।
 
यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होता है। इस दिन व्रत रखकर बैकुण्ठ विधरी की पूजा करनी चाहिए | चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वाले पहले स्वयं स्नान करके फिर भगवान को स्नान कराकर भोग लगायें। भोग के उपरान्त आचमन लगाकर फूल, दीप, चन्दन आदि से आरती उतारकर भोग को बांट दें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें। रात्रि में मूर्ति के सम्मुख हो सोयें। दिन भर कीर्तन करें। इस व्रत को करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। मनुष्य सभी बन्धनों से मुक्त हो जाता है। बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा-एक समय की बात है भगवान बैकुण्ठ में बैठे हुए थे। तभी उनके पास नारद मुनि आये। नारदजी को देखकर भगवान ने उनके आने का कारण पूछा। नारदजी बोले-आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है, परन्तुआपके लोक में तो आपके भक्तजन ही आ पाते हैं। फिर आपकी उनके ऊपर कृपा क्या हुई? वे तो अपने जप-तप के प्रभाव से आपके धाम में आ ही जाते हैं। भगवान बोले, नारदजी मैं आपकी बात समझ नहीं पाया।
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नारदजी बोले-क्या आपने ऐसा सुलभ मार्ग बनाया है जिससे कम सेवा करने वाला भी आपकी शरण में आ सके? तब भगवान बोले-“हे नारदजी! यदि आप ऐसा कहते हैं तो सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन जो भी मनुष्य मेरी सच्चे
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नारदजी बोले-क्या आपने ऐसा सुलभ मार्ग बनाया है जिससे कम सेवा करने वाला भी आपकी शरण में आ सके? तब भगवान बोले-“हे नारदजी! यदि आप ऐसा कहते हैं तो सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन जो भी मनुष्य मेरी सच्चे मन से पूजा करेगा और स्वर्ग द्वार जो देव मन्दिरों में बने हुए हैं, उनमें मेरी सवारी के साथ प्रवेश करेगा। वह बैकुण्ठ को प्राप्त होगा। तभी भगवान ने जया और विजय को बुलाकर कहा-देखो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को स्वर्ग का दरवाजा खुला रहना चाहिये। इस दिन जो व्यक्ति नाम मात्र को भी मेरी पूजा करे, उसे स्वर्ग में स्थान दे। इस बात को सुनकर नारदजी कहने लगे-हे कृपानिधान! अब आप दीनानाथ कहलाने के अधिकारी हैं। यह कहकर नारदजी हरि गुण गाते वीणा बजाते चले गये।
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=== कार्तिक पूर्णिमा ===
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कार्तिक स्नान का बड़ा महत्त्व है। इस महीने में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता है। कार्तिक स्नान शरद पूर्णिमा से ही आरम्भ हो जाते हैं और कार्तिक पूर्णिमा तक महीने भर स्नान होते हैं। बड़ी सुबल स्त्रियां तथा लड़कियां नहरों, तालाबों, कुओं तथा नदियों जहां जैसी सुविधा है स्नान करने जाती हैं। स्नान के उपरान्त पूजा-पाठ करती हैं और कहानी सुनती हैं। हर रविवार को व्रत रखा जाता है और राई-दामोदर की पूजा की जाती है। कार्तिक के इस अन्तिम दिन स्नान के उपरान्त ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। हवन कर भगवान की पूजा कर दीपक जलायें। यदि श्रद्धा हो तो भगवान का छप्पन प्रकार का भोग लगायें। यह कार्तिक मास समस्त मनोरथ को पूर्ण करने वाला बहुत फलदायक है।
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=== देवोत्थानी (हरि प्रबोधिनी) एकादशी ===
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आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को जो देव सोते हैं वे इस कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठ जाया करते हैं। इस व्रत के दिन स्त्रियां स्नानादि से निवृत होकर आंगन में चौक पूरकर विष्णु भगवान के चरणों को कलात्मक रूप से आंगन में अंकित करती हैं। दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढांप दिया जाता है। प्रात: उन्हें जगाने से पूर्व रात्रि को विधिवत् पूजन किया जाता है। इस दिन गीत , भजनों द्वारा देवों को उठाया जाता है। कई राज्यों में इस दिन नगर, गांव के लड़के साखी गाते हुए अन्न, रुपया-पैसा इकट्ठा करते हैं और जयकारा लगाते हुए मिठाइयां खाते हैं। पूजन के बाद व्रत की कथा सुनी जाती है।
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=== तारा भोजन ===
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कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से लेकर एक माह तक नित्य प्रति व्रत करें। प्रतिदिन रात्रि में तारों को अर्घ्य देकर फिर स्वयं भोजन करें। व्रत के आखिरी दिन उजमन करें। उजमन में पांच सीदे और पांच सुराई ब्राह्मणों को दें। साड़ी, ब्लाउज और रुपये रखकर अपनी सासु मां को पैर छू कर दें।
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