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काशी नगरी में एक वैश्य रहता था। वह बात धमात्मा और दानी था, परन्तु उसके कोई सन्तान न थी। एक दिन उस वैश्य की स्त्री से एक औरत ने कहा-"तू किसी बच्चे की बलि भैरव पर चढ़ा दे तो तेरे सन्तान हो जायेगी। यह बात उस स्त्री ने अपने पति से कही। पति बोला, यह ठीक नहीं है, यदि किसी के बच्चे को मारकर मुझे भगवान भी मिलें तब भी मुझे स्वीकार नहीं है-बच्चे को प्राप्त करने की बात तो बहुत दूर है। पति की बात सुनकर वह चुप रही, परन्तु वह अपनी सहेली की बात नहीं भूली।
 
काशी नगरी में एक वैश्य रहता था। वह बात धमात्मा और दानी था, परन्तु उसके कोई सन्तान न थी। एक दिन उस वैश्य की स्त्री से एक औरत ने कहा-"तू किसी बच्चे की बलि भैरव पर चढ़ा दे तो तेरे सन्तान हो जायेगी। यह बात उस स्त्री ने अपने पति से कही। पति बोला, यह ठीक नहीं है, यदि किसी के बच्चे को मारकर मुझे भगवान भी मिलें तब भी मुझे स्वीकार नहीं है-बच्चे को प्राप्त करने की बात तो बहुत दूर है। पति की बात सुनकर वह चुप रही, परन्तु वह अपनी सहेली की बात नहीं भूली।
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बात को सोचते-सोचते एक दिन उस वैश्य की स्त्री ने एक लड़की को भैरो बाबा के नाम पर कुएं में डाल दिया। लड़की की मृत्यु हो गयी, परन्तु उसके सन्तान नहीं हुई। सन्तान के बदले उसके शरीर से पाप फूट-फूट कर निकलने लगा। उसको कोढ़ हो गया। लड़की की मृत्यु उसकी आंखों के सामने नाचने लगी। वैश्य ने जब अपनी स्त्री से उसकी हालत का कारण पूछा तो उसने उस लड़की के विषय में बता दिया। तब वैश्य बोला, यह तुमने अच्छा नहीं किया क्योंकि ब्राह्मणवघ, गौवध और बालवध के अपराध से कोई मुक्त नहीं होता। अत: तुम गंगा के किनारे रहो और नित्यप्रति गंगा स्नान करो।
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बात को सोचते-सोचते एक दिन उस वैश्य की स्त्री ने एक लड़की को भैरो बाबा के नाम पर कुएं में डाल दिया। लड़की की मृत्यु हो गयी, परन्तु उसके सन्तान नहीं हुई। सन्तान के बदले उसके शरीर से पाप फूट-फूट कर निकलने लगा। उसको कोढ़ हो गया। लड़की की मृत्यु उसकी आंखों के सामने नाचने लगी। वैश्य ने जब अपनी स्त्री से उसकी हालत का कारण पूछा तो उसने उस लड़की के विषय में बता दिया। तब वैश्य बोला, यह तुमने अच्छा नहीं किया क्योंकि ब्राह्मणवघ, गौवध और बालवध के अपराध से कोई मुक्त नहीं होता। अत: तुम गंगा के किनारे रहो और नित्यप्रति गंगा स्नान करो। इस बात को सुनकर वैश्य की पत्नी ने ऐसा ही किया एक दिन गंगाजी उस वैश्य पत्नी के पास एक बूढ़ी स्त्री का रूप धारण करके आई और कहने लगी, हे, बेटी! तू मथुरा में जाकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को व्रत रखना और आंवला की पूजा करकमथुरा की परिक्रमा करना। यह व्रत तीन वर्ष में तीन बार करना इससे तेरा मंगल होगा। इतना कहकर गंगाजी अन्तर्ध्यान हो गई। इस वैश्य की पत्नी ने यह बात अपने पति से कही, पति की आज्ञा ले उसने ऐसा ही किया, मथुरा में जाकर व्रत रखा आंवले की पूजा और मथुराजी की पांच कोस की परिक्रमा की। उसने यह व्रत तीन वर्ष तक लगातार किया। इस व्रत के प्रभाव से उस वैश्य-पत्नी का कोढ़ ठीक हो गया और एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ, जो अत्यधिक सुन्दर सुशील एवं गुणवान था।
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=== ग्रीष्म पंचक ===
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यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है। इसे पंचभीका भी कहते हैं। कार्तिक स्नान करने वाले स्त्री-पुरुष पांच दिन का निराहार (निर्जल) व्रत करते हैं। धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। कहानी सुनकर गीत गाये जाते हैं।
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=== बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत ===
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यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होता है। इस दिन व्रत रखकर बैकुण्ठ विधरी की पूजा करनी चाहिए | चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वाले पहले स्वयं स्नान करके फिर भगवान को स्नान कराकर भोग लगायें। भोग के उपरान्त आचमन लगाकर फूल, दीप, चन्दन आदि से आरती उतारकर भोग को बांट दें। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें। रात्रि में मूर्ति के सम्मुख हो सोयें। दिन भर कीर्तन करें। इस व्रत को करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। मनुष्य सभी बन्धनों से मुक्त हो जाता है। बैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा-एक समय की बात है भगवान बैकुण्ठ में बैठे हुए थे। तभी उनके पास नारद मुनि आये। नारदजी को देखकर भगवान ने उनके आने का कारण पूछा। नारदजी बोले-आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है, परन्तुआपके लोक में तो आपके भक्तजन ही आ पाते हैं। फिर आपकी उनके ऊपर कृपा क्या हुई? वे तो अपने जप-तप के प्रभाव से आपके धाम में आ ही जाते हैं। भगवान बोले, नारदजी मैं आपकी बात समझ नहीं पाया।
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नारदजी बोले-क्या आपने ऐसा सुलभ मार्ग बनाया है जिससे कम सेवा करने वाला भी आपकी शरण में आ सके? तब भगवान बोले-“हे नारदजी! यदि आप ऐसा कहते हैं तो सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन जो भी मनुष्य मेरी सच्चे
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