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→‎भाषा और संस्कृति: लेख सम्पादित किया
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== भाषा और संस्कृति ==
 
== भाषा और संस्कृति ==
 
हर राष्ट्र की जीवन की ओर देखने की दृष्टि भिन्न होती है। इसे उस राष्ट्र की जीवनदृष्टि कहते हैं। जीवनदृष्टि के अनुसार जब वह व्यवहार (कृति) करता है, तब वह राष्ट्र अपनी संस्कृति का निर्माण करता है। हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है। इस संस्कृति के अनुसार उस राष्ट्र का जीवन चलता है।  
 
हर राष्ट्र की जीवन की ओर देखने की दृष्टि भिन्न होती है। इसे उस राष्ट्र की जीवनदृष्टि कहते हैं। जीवनदृष्टि के अनुसार जब वह व्यवहार (कृति) करता है, तब वह राष्ट्र अपनी संस्कृति का निर्माण करता है। हर राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है। इस संस्कृति के अनुसार उस राष्ट्र का जीवन चलता है।  
हर समाज को परस्पर संवाद की आवश्यकता तो होती ही है। वह समाज अपने जीवन की आवश्यकताओं, मान्यताओं, विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए अपनी भाषा भी निर्माण करता है। यह भाषा उस राष्ट्र की संस्कृति के अनुसार ही आकार लेती है। उस भाषा के मुहावरे, कहावतें आदि उस राष्ट्र की संस्कृति की अभिव्यक्ति करते हैं। जैसे अंग्रेजी में कई कहावतें और मुहावरे ऐसे हैं, कि जिनके भाव किसी भी भारतीय भाषा में अभिव्यक्त करने के लिए कोई कहावतें या मुहावरे नहीं हैं। जैसे अंग्रेजी में कहावत है “माईट इज राईट” अर्थ है जो बलवान है वह सही है। भारतीय भाषाओं में इससे मिलाती जुलती कहावतें हैं। जैसे मराठी में है “बळी तो कान पिळी” अर्थ है जो बलवान है वह आपके कान मरोड सकता ही। याने बलवान कुछ भी कर सकता है। हिंदी में कहावत है “जिस की लाठी उस की भैंस”। अर्थ है जो बलवान होगा भैंस उस की होगी। हम देखेंगे की मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं की कहावतों का भावार्थ एक है लेकिन वह अंग्रेजी कहावत के अर्थ से भिन्न है। हमारी सांस्कृतिक मान्यता यह तो कहती है कि चलेगी बलवान की, लेकिन इस का अर्थ यह नहीं कि वह सही है, जैसी अंग्रेजी मान्यता है।  
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ऐसी ही एक और कहावत है “ ओनेस्टी इज द बेस्ट पोलिसी” याने प्रामाणिकता यह सर्वोत्तम पोलिसी है। याने जब लाभ हो तब प्रामाणिकता का व्यवहार करो। भारतीय भाषाओं में इस अर्थ की कोई  कहावत नहीं है। क्यों कि हमारी मान्यता है कि प्रामाणिकता तो अनिवार्य बात है। प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिए। प्रामाणिकता तो हमारा धर्म है। और इसके लिए जान भी दी जा सकती है। जब हम किसी को याद कर रहे होते हैं और वह अचानक अनापेक्षित वहाँ आ जाता है तब के लिए अंग्रेजी में और एक मुहावरा है “थिंक ऑफ़ द डेव्हिल एंड ही इज देयर” अर्थ है शैतान को याद करो और वह हाजिर हो जाता है। भारतीय भाषाओं में भी इसा प्रसंग के लिए मुहावरें हैं लेकिन उनके अर्थ भिन्न हैं। हिन्दी में कहेंगे “लो ! भगवान को याद किया और स्वयं भगवान उपस्थित हो गए”। मराठी में भी ऐसा ही कहेंगे “ घ्या ! नाव घेतले आणि दत्तासारखा (भगवान दत्तात्रेय जैसा) उपस्थित हो गया। इन दोनों मुहावरों में अंतर अंग्रेजों की और हमारी सांस्कृतिक भिन्नता के कारण है। हमारी मान्यता है कि केवल मनुष्य ही नहीं तो हर अस्तित्व यह परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। जब कि अंग्रेजी याने ईसाई मान्यता यह है कि प्रत्येक मानव डेव्हिल है। पापी है। वह आदम और इव्ह ने किये हुए उस “ओरिजिनल सिन” याने मूल पाप का नतीजा है।  
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हर समाज को परस्पर संवाद की आवश्यकता तो होती ही है। वह समाज अपने जीवन की आवश्यकताओं, मान्यताओं, विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए अपनी भाषा भी निर्माण करता है। यह भाषा उस राष्ट्र की संस्कृति के अनुसार ही आकार लेती है। उस भाषा के मुहावरे, कहावतें आदि उस राष्ट्र की संस्कृति की अभिव्यक्ति करते हैं। जैसे अंग्रेजी में कई कहावतें और मुहावरे ऐसे हैं, कि जिनके भाव किसी भी भारतीय भाषा में अभिव्यक्त करने के लिए कोई कहावतें या मुहावरे नहीं हैं।
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जैसे अंग्रेजी में कहावत है “माईट इज राईट” अर्थ है जो बलवान है वह सही है। भारतीय भाषाओं में इससे मिलाती जुलती कहावतें हैं। जैसे मराठी में है “बळी तो कान पिळी” अर्थ है जो बलवान है वह आपके कान मरोड सकता है । याने बलवान कुछ भी कर सकता है। हिंदी में कहावत है “जिस की लाठी उस की भैंस”। अर्थ है जो बलवान होगा भैंस उस की होगी। हम देखेंगे कि मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं की कहावतों का भावार्थ एक है लेकिन वह अंग्रेजी कहावत के अर्थ से भिन्न है। हमारी सांस्कृतिक मान्यता यह तो कहती है कि चलेगी बलवान की, लेकिन इस का अर्थ यह नहीं कि वह सही है, जैसी अंग्रेजी मान्यता है।  
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ऐसी ही एक और कहावत है “ओनेस्टी इज द बेस्ट पोलिसी” याने प्रामाणिकता यह सर्वोत्तम पोलिसी है। याने जब लाभ हो तब प्रामाणिकता का व्यवहार करो। भारतीय भाषाओं में इस अर्थ की कोई  कहावत नहीं है। क्यों कि हमारी मान्यता है कि प्रामाणिकता तो अनिवार्य बात है। प्रामाणिकता तो हमारे खून में होनी चाहिए। प्रामाणिकता तो हमारा धर्म है। और इसके लिए जान भी दी जा सकती है।
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जब हम किसी को याद कर रहे होते हैं और वह अचानक अनापेक्षित वहाँ आ जाता है तब के लिए अंग्रेजी में और एक मुहावरा है “थिंक ऑफ़ द डेव्हिल एंड ही इज देयर” अर्थ है शैतान को याद करो और वह हाजिर हो जाता है। भारतीय भाषाओं में भी इसा प्रसंग के लिए मुहावरें हैं लेकिन उनके अर्थ भिन्न हैं। हिन्दी में कहेंगे “लो ! भगवान को याद किया और स्वयं भगवान उपस्थित हो गए”। मराठी में भी ऐसा ही कहेंगे “ घ्या ! नाव घेतले आणि दत्तासारखा" (भगवान दत्तात्रेय जैसा) उपस्थित हो गया। इन दोनों मुहावरों में अंतर अंग्रेजों की और हमारी सांस्कृतिक भिन्नता के कारण है। हमारी मान्यता है कि केवल मनुष्य ही नहीं तो हर अस्तित्व यह परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। जब कि अंग्रेजी याने ईसाई मान्यता यह है कि प्रत्येक मानव डेव्हिल है। पापी है। वह आदम और ईव के द्वारा किये हुए उस “ओरिजिनल सिन” याने मूल पाप का नतीजा है।  
    
== धर्म और संस्कृति ==
 
== धर्म और संस्कृति ==
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