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| == संस्कृति और राष्ट्र == | | == संस्कृति और राष्ट्र == |
− | संस्कृति यह राष्ट्र की आत्मा होती है। जबतक किसी समाज की यह संस्कृति जीवित है राष्ट्र जीता है। संस्कृति के नष्ट होने से राष्ट्र नष्ट हो जाता है। जैसे भारतवर्ष के जिन जिन भूक्षेत्रों में हिन्दू समाज अल्पसंख्य हो गया, दुर्बल हो गया असंगठित हो गया वह हिस्सा भारत राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। १९४७ अगस्त से पूर्व जो रावलपिन्डी भारत राष्ट्र का हिस्सा थी वह सप्टेम्बर १९४७ को भारतीय राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। क्यों कि अगस्त १९४७ के बाद वहाँ एक भिन्न राष्ट्र बना। इस राष्ट्र की संस्कृति, जीवन दृष्टि भारतीय संस्कृति या जीवन दृष्टि से भिन्न थी। अमरीका को ‘मेल्टिंग पॉट’ कहा जाता है। मेल्टिंग पॉट का अर्थ है ऐसा बर्तन जिसके अन्दर जो भी रहेगा वह पिघल जाएगा। पिघलाकर एक हो जाएगा। समरस हो जाएगा। सांस्कृतिक दृष्टि से एक बन जाएगा। | + | संस्कृति यह राष्ट्र की आत्मा होती है। जब तक किसी समाज की संस्कृति जीवित है राष्ट्र जीवित है। संस्कृति के नष्ट होने से राष्ट्र नष्ट हो जाता है। जैसे भारतवर्ष के जिन जिन भूक्षेत्रों में हिन्दू समाज अल्पसंख्य हो गया, दुर्बल हो गया, असंगठित हो गया; वह हिस्सा भारत राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। अगस्त १९४७ से पूर्व जो रावलपिन्डी भारत राष्ट्र का हिस्सा था, वह सितम्बर १९४७ को भारतीय राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। क्यों कि अगस्त १९४७ के बाद वहाँ एक भिन्न राष्ट्र बना। इस राष्ट्र की संस्कृति, जीवन दृष्टि भारतीय संस्कृति या जीवन दृष्टि से भिन्न थी। |
− | हम कहते हैं कि “विविधता में एकता’ यह हमारी विशेषता है। इसमें हम विविधता को सांस्कृतिक विविधता तक ले जाते हैं। प्रश्न यह निर्माण होता है कि फिर एकता किस बात में है? केवल भारतीय कहलाने मात्र से “किसी भी प्रकार की एकता” ध्यान में नहीं आती। हाँ ! विविधता बनाए रखने का आग्रह और प्रयास होते रहते हैं। जातियों की संस्कृति, छोटे छोटे समूहों की संस्कृति, प्रादेशिक समूहों की संस्कृति, मजहबों की संस्कृति, वनवासी, गिरिवासी लोगों को आदिवासी कहकर उनकी प्रत्येक की भिन्न भिन्न ऐसी सैंकड़ों प्रकार की संस्कृतियाँ, ग्रामीण और नागरी संस्कृति आदि के कारण हम पूरे राष्ट्र को बाँट रहे हैं। भारत में हमारे सामने जो समस्याएँ खडी हैं उन में से कई समस्याएँ इस “विविधता” को बनाए रखने के आग्रह और प्रयासों के कारण है। पंडित दीनदयालजी संविधान में हुई इस गलती को “मूलगामी भूल” कहते हैं। | + | |
− | ऐसे कई राष्ट्र हैं जिनकी संस्कृति नष्ट होने के कारण नष्ट हो गए। ईरान में से पारसी समाज भारत में आया। लेकिन आनेवाले लोग वहाँ की कुल जनसंख्या के प्रमाण में अत्यंत कम संख्या में थे। बड़ी संख्या में तो लोग वहीं रह गए। उनका जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया। अब उनकी संस्कृति इस्लामी हो गई। लोग तो वही थे। लेकिन उनके वंशज पारसी नहीं रहे। उनके राष्ट्र की भूमि तो वही रही लेकिन उनका राष्ट्र “पारसी” नहीं रहा। इसी तरह से ग्रीस, रोम इनकी भूमि वही है जो ईसाईयत के जबरदस्ती या मन:पूर्वक स्वीकार से पहले थी, लोग उन्हीं लोगों के वंशज हैं जो ईसाईयत के जबरदस्ती या मन:पूर्वक स्वीकार से पहले थे, लेकिन अब उनके राष्ट्र बदल गए। उनकी जीवन दृष्टि बदल गई। उनका रहन-सहन बदला गया, उनकी संस्कृति बदल गई। इसके विपरीत इजराईल का उदाहरण देखें। लगभग दो हजार वर्ष पहले इन यहूदियों को ईसाईयों ने पेलेस्टाईन से खदेड़कर बाहर किया। ये छोटे छोटे समूह में भिन्न भिन्न देशों में शरण लेने को विवश हो गए। लेकिन यहूदियों ने यथासंभव अपनी संस्कृति को बनाए और बचाए रखने के प्रयास किये। हिन्दू छोड़कर दुनिया के हर समाज ने इन शरणार्थियोपर अत्याचार किये। लेकिन इन्होंने अपनी संस्कृति जैसे तैसे बचाने का प्रयास किया। और जैसे ही पेलेस्टाईन की भूमि फिर से प्राप्त की पूरी शक्ति के साथ यहूदी संस्कृति का पुनरुत्थान किया। इनकी भाषा का नाम हिब्रू है। यह भाषा नष्टप्राय हो गई थी। अथक और प्रचंड प्रयत्नों के द्वारा हिब्रू में प्राप्त होनेवाले पुरातन साहित्य का संकलन किया गया। उअसके आधारपर फिर से हिब्रू भाषा को राष्ट्र की भाषा के रूप में स्थापित किया गया। आगे हम देखेंगे की भाषा का संस्कृति से कैसा अटूट संबंध होता है। | + | अमरीका को ‘मेल्टिंग पॉट’ कहा जाता है। मेल्टिंग पॉट का अर्थ है ऐसा बर्तन जिसके अन्दर जो भी रहेगा वह पिघल जाएगा। पिघलाकर एक हो जाएगा। समरस हो जाएगा। सांस्कृतिक दृष्टि से एक बन जाएगा। |
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| + | हम कहते हैं कि “विविधता में एकता’ यह हमारी विशेषता है। इसमें हम विविधता को सांस्कृतिक विविधता तक ले जाते हैं। प्रश्न यह निर्माण होता है कि फिर एकता किस बात में है? केवल भारतीय कहलाने मात्र से “किसी भी प्रकार की एकता” ध्यान में नहीं आती। हाँ ! विविधता बनाए रखने का आग्रह और प्रयास होते रहते हैं। जातियों की संस्कृति, छोटे छोटे समूहों की संस्कृति, प्रादेशिक समूहों की संस्कृति, मजहबों की संस्कृति, वनवासी, गिरिवासी लोगों को आदिवासी कहकर उनकी प्रत्येक की भिन्न भिन्न ऐसी सैंकड़ों प्रकार की संस्कृतियाँ, ग्रामीण और नागरी संस्कृति आदि के कारण हम पूरे राष्ट्र को बाँट रहे हैं। |
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| + | भारत में हमारे सामने जो समस्याएँ खडी हैं उन में से कई समस्याएँ इस “विविधता” को बनाए रखने के आग्रह और प्रयासों के कारण है। पंडित दीनदयालजी संविधान में हुई इस गलती को “मूलगामी भूल” कहते हैं। |
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| + | ऐसे कई राष्ट्र हैं जिनकी संस्कृति नष्ट होने के कारण नष्ट हो गए। ईरान में से पारसी समाज भारत में आया। लेकिन आनेवाले लोग वहाँ की कुल जनसंख्या के प्रमाण में अत्यंत कम संख्या में थे। बड़ी संख्या में तो लोग वहीं रह गए। उनको जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया। अब उनकी संस्कृति इस्लामी हो गई। लोग तो वही थे। लेकिन उनके वंशज पारसी नहीं रहे। उनके राष्ट्र की भूमि तो वही रही लेकिन उनका राष्ट्र “पारसी” नहीं रहा। इसी तरह से ग्रीस, रोम इनकी भूमि वही है जो ईसाईयत के जबरदस्ती या मन:पूर्वक स्वीकार से पहले थी, लोग उन्हीं लोगों के वंशज हैं जो ईसाईयत के जबरदस्ती या मन:पूर्वक स्वीकार से पहले थे, लेकिन अब उनके राष्ट्र बदल गए। उनकी जीवन दृष्टि बदल गई। उनका रहन-सहन बदला गया, उनकी संस्कृति बदल गई। |
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| + | इसके विपरीत इजराईल का उदाहरण देखें। लगभग दो हजार वर्ष पहले इन यहूदियों को ईसाईयों ने फिलिस्तीन से खदेड़कर बाहर किया। ये छोटे छोटे समूह में भिन्न भिन्न देशों में शरण लेने को विवश हो गए। लेकिन यहूदियों ने यथासंभव अपनी संस्कृति को बनाए और बचाए रखने के प्रयास किये। हिन्दू छोड़कर दुनिया के हर समाज ने इन शरणार्थियो पर अत्याचार किये। लेकिन इन्होंने अपनी संस्कृति जैसे तैसे बचाने का प्रयास किया। और जैसे ही पेलेस्टाईन की भूमि फिर से प्राप्त की पूरी शक्ति के साथ यहूदी संस्कृति का पुनरुत्थान किया। इनकी भाषा का नाम हिब्रू है। यह भाषा नष्टप्राय हो गई थी। अथक और प्रचंड प्रयत्नों के द्वारा हिब्रू में प्राप्त होनेवाले पुरातन साहित्य का संकलन किया गया। उसके आधार पर फिर से हिब्रू भाषा को राष्ट्र की भाषा के रूप में स्थापित किया गया। आगे हम देखेंगे की भाषा का संस्कृति से कैसा अटूट संबंध होता है। |
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| == भाषा और संस्कृति == | | == भाषा और संस्कृति == |