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एक अन्य विवरण के अनुसार खम्भात की व्युत्पत्ति स्कम्भ से हुई। स्कम्भ शिव का प्रतीक है। खम्भात पुराना शैव तीर्थ है, अत: स्कम्भ से खम्भात बन गया। वल्लभी और सोलंकी शासनकाल में खम्भात भारत का सबसे विशाल पत्तन था।अरब यात्रियों ने इसे बौद्ध तीर्थ के रूप में पाया। चालुक्य काल में यहाँ जैन तीर्थों का विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी ने यहीं दीक्षा ली। सुरक्षा की दृष्टि से भी खम्भात महत्वपूर्ण रहा। सोलंकी शासकों ने यहाँ सुदूढ़ नौसैनिक बेड़ा व सेना का आधार (छावनी) बनाया। परन्तु कालक्रम से सब नष्ट हो गया- विशेषत: विदेशी विधर्मी लुटेरों के कारण। ये मुस्लिम आक्रान्ता मन्दिरों को अपना निशाना बनाते थे, अत: शिखरयुक्त मन्दिरों का निर्माण बन्द हो गया। परिणामत: आज के मन्दिर घरों में ही बने हैं, बाहर से उनका पता नहीं चलता।  
 
एक अन्य विवरण के अनुसार खम्भात की व्युत्पत्ति स्कम्भ से हुई। स्कम्भ शिव का प्रतीक है। खम्भात पुराना शैव तीर्थ है, अत: स्कम्भ से खम्भात बन गया। वल्लभी और सोलंकी शासनकाल में खम्भात भारत का सबसे विशाल पत्तन था।अरब यात्रियों ने इसे बौद्ध तीर्थ के रूप में पाया। चालुक्य काल में यहाँ जैन तीर्थों का विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी ने यहीं दीक्षा ली। सुरक्षा की दृष्टि से भी खम्भात महत्वपूर्ण रहा। सोलंकी शासकों ने यहाँ सुदूढ़ नौसैनिक बेड़ा व सेना का आधार (छावनी) बनाया। परन्तु कालक्रम से सब नष्ट हो गया- विशेषत: विदेशी विधर्मी लुटेरों के कारण। ये मुस्लिम आक्रान्ता मन्दिरों को अपना निशाना बनाते थे, अत: शिखरयुक्त मन्दिरों का निर्माण बन्द हो गया। परिणामत: आज के मन्दिर घरों में ही बने हैं, बाहर से उनका पता नहीं चलता।  
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पालिताणा ( शत्रुंजय )  
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=== पालिताणा ( शत्रुंजय ) ===
 
   
पालिताणा व शत्रुजय अविभाज्य हैं। पालिताणा मुख्यरूप से आवासीय क्षेत्र है,जबकि शत्रुंजय पूर्ण रूप से मन्दिरों का परिसर है। यह मणिकांचन संयोग विश्व मेंअद्वितीय है। मन्दिरों का परिसर शत्रुंजय ६०० मीटर ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है। पहाड़ी में ८६० से अधिक मन्दिर, ११००० प्रतिमाएँ और लगभग ९00 पादुकाएँ (चरणचिह्न) हैं। इनमें १०६ बड़े मन्दिर हैं। सम्पूर्ण देश और विदेश से भी तीर्थ-यात्रियों का तांता लगा रहता है। सबसे प्रमुख मन्दिरों में आदिनाथ, विमलशाह, चौमुख, सम्प्राप्तिराजा, हनुमान, हिंगलाज माता मन्दिर हैं। पालिताणा शब्द का उद्भव पादलिप्त या पालित से हुआ है। योगी नागार्जुन ने अपने गुरु पादलिप्त की स्मृति में पालिताणा की स्थापना की थी। यहाँ का चौमुख मन्दिरइतना विशाल है कि ४० किमी. दूरी से भी दिखाई देता है।  
 
पालिताणा व शत्रुजय अविभाज्य हैं। पालिताणा मुख्यरूप से आवासीय क्षेत्र है,जबकि शत्रुंजय पूर्ण रूप से मन्दिरों का परिसर है। यह मणिकांचन संयोग विश्व मेंअद्वितीय है। मन्दिरों का परिसर शत्रुंजय ६०० मीटर ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है। पहाड़ी में ८६० से अधिक मन्दिर, ११००० प्रतिमाएँ और लगभग ९00 पादुकाएँ (चरणचिह्न) हैं। इनमें १०६ बड़े मन्दिर हैं। सम्पूर्ण देश और विदेश से भी तीर्थ-यात्रियों का तांता लगा रहता है। सबसे प्रमुख मन्दिरों में आदिनाथ, विमलशाह, चौमुख, सम्प्राप्तिराजा, हनुमान, हिंगलाज माता मन्दिर हैं। पालिताणा शब्द का उद्भव पादलिप्त या पालित से हुआ है। योगी नागार्जुन ने अपने गुरु पादलिप्त की स्मृति में पालिताणा की स्थापना की थी। यहाँ का चौमुख मन्दिरइतना विशाल है कि ४० किमी. दूरी से भी दिखाई देता है।  
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जूनागढ़  
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=== जूनागढ़ ===
 
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नरसी भक्त का जन्म जूनागढ़ में हुआ था। यह नगर गिरनारपर्वत की तलहटी में अवस्थित है। पूर्व में गिरनार पर्वत है, अत: इसका नाम गिरिनगर भी है। नगर में कई धर्मशालाएँ व देव-मन्दिर हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य की निवास भूमि यही नगर है। नगर के पास पर्वतीय चढ़ाई पर ऊपरकोट नामक पुराना किला है। इसमें अनेक बौद्ध प्रतिमाएँ तथा हनुमानजी की विशाल मूर्ति है। वामनेश्वर शिव, मुचकुन्द महादेव, नेमिनाथ,अम्बिका शिखरआदि प्रमुख मन्दिर व धर्मस्थल हैं।चढ़ाई पर भर्तृहरि गुफा भी विद्यमान हैं।  
नरसीभक्त का जन्म जूनागढ़ मेंहुआ था। यह नगर गिरनारपर्वत की  
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तलहटी में अवस्थित है। पूर्व में गिरनार पर्वत है, अत: इसका नाम  
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गिरिनगर भी है। नगर में कई धर्मशालाएँ व देव-मन्दिर हैं। महाप्रभु  
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वल्लभाचार्य की निवास भूमि यही नगर है। नगर के पास पर्वतीय चढ़ाई  
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पर ऊपरकोट नामक पुराना किला है। इसमें अनेक बौद्ध प्रतिमाएँ तथा  
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हनुमानजी की विशाल मूर्तिहै। वामनेश्वर शिव, मुचकुन्द महादेव, नेमिनाथ,  
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अम्बिका शिखरआदि प्रमुख मन्दिर व धर्मस्थल हैं।चढ़ाईपर भर्तृहरि गुफा  
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भी विद्यमान हैं।  
      
पोरबन्दर (मुदामापुरी)  
 
पोरबन्दर (मुदामापुरी)  
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