केदारनाथ समुद्रतल से ६९४० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ सदैव हिम जमा रहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिम पिघलने परमन्दिर के कपाट कुछ दिनों के लिए खुलते हैं, तभी केदारेश्वर के दर्शन होते हैं। केदारनाथ के पास से मन्दाकिनी नदी निकलती हैं। यह नदी रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा में मिल जाती है जो आगे चलकर भागीरथी से मिलकर पतित पावनी गंगा का रूप लेती है।पास में ही गौरीकुण्ड हैजहाँ भगवती पार्वती ने स्नान किया था। भगवान् शिव औरपार्वती के विवाह के साक्षी रूप प्रज्वलित अग्नि अग्निकुण्ड के रूप में आज भी विद्यमान है। हरिद्वार में कुंभ और अर्द्धकुंभ के अवसरपर केदारनाथ की यात्रा का विशेष महात्म्य है। | केदारनाथ समुद्रतल से ६९४० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ सदैव हिम जमा रहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिम पिघलने परमन्दिर के कपाट कुछ दिनों के लिए खुलते हैं, तभी केदारेश्वर के दर्शन होते हैं। केदारनाथ के पास से मन्दाकिनी नदी निकलती हैं। यह नदी रुद्र प्रयाग में अलकनन्दा में मिल जाती है जो आगे चलकर भागीरथी से मिलकर पतित पावनी गंगा का रूप लेती है।पास में ही गौरीकुण्ड हैजहाँ भगवती पार्वती ने स्नान किया था। भगवान् शिव औरपार्वती के विवाह के साक्षी रूप प्रज्वलित अग्नि अग्निकुण्ड के रूप में आज भी विद्यमान है। हरिद्वार में कुंभ और अर्द्धकुंभ के अवसरपर केदारनाथ की यात्रा का विशेष महात्म्य है। |