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=== भीमाशंकर ===
=== भीमाशंकर ===
देवाधिदेव भगवान् शंकर के प्रमुखतम ज्योतिर्लिगों में एक भीमशंकर है। इसकी स्थिति कई स्थानों पर मानी गयी है। शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 20 के अनुसार भीम-शंकर मन्दिर कामरूप(असम) प्रदेश मेंगोहाटी के निकटब्रह्मापुर पर्वत पर स्थित है। स्थानीय राजा शिव के अनन्य उपासक थे। एक बार भीमक नामक राक्षस ने उसके राज्य में भयंकर उत्पात मचाया। उस राक्षस ने पूजा में रात शिवभक्तों को मारने के लिए ज्योंही तलवार से वार करना चाहा, भगवान् शांकर ने स्वयं प्रकट होकर राक्षस का वध कर डाला। तब से राजा की प्रार्थना परभगवान् ज्योतिर्लिग के रूप में ब्रह्मपुत्र पर्वत पर विराजमान् हो गये। शिवपुराण के इसी अध्याय मेंआये वर्णन के अनुसारभगवान् यहाँ अवतीर्ण हुए तथा उनका मूल निवास सहयाद्रि है। भीमा नदी के तटपर सहयाद्रि पर्वतमाला में यह भव्य किन्तु प्राचीन मन्दिर है। जहाँ पर यह मन्दिर है उसे डाकिनी शिखर भी कहते हैं। यहाँ नाना फडनवीस का बनवाया हुआ एक नया तथा भव्य मन्दिरभी है।पुराण-कथा के अनुसार त्रिपुरासुर को मारने के बाद भगवान् शांकरइस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गये। स्थानीय राजा भीमक की प्रार्थना पर भगवान् शिव लोककल्याण हेतु यहीं पर अवस्थित हो गये। कुछ लोग भीम शांकर की स्थिति उत्तर प्रदेश के नैनीताल जिलों में काशीपुर के पास मानते हैं। यहाँ उज्जनक नामक गाँव में भीमशंकर महादेव का भव्य व विशाल मन्दिर है। शिवपुराण में डाकिनी में भी शांकर की स्थिति बतायी है। स्थानीय जनता के अनुसार यहाँ का पुराना नाम डाकिनी था। सभी स्थानों पर विशेष पर्व पर मेले लगते हैंऔर दूर-दूर से भक्तजन आते हैं।
देवाधिदेव भगवान् शंकर के प्रमुखतम ज्योतिर्लिगों में एक भीमशंकर है। इसकी स्थिति कई स्थानों पर मानी गयी है। शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 20 के अनुसार भीम-शंकर मन्दिर कामरूप(असम) प्रदेश मेंगोहाटी के निकटब्रह्मापुर पर्वत पर स्थित है। स्थानीय राजा शिव के अनन्य उपासक थे। एक बार भीमक नामक राक्षस ने उसके राज्य में भयंकर उत्पात मचाया। उस राक्षस ने पूजा में रात शिवभक्तों को मारने के लिए ज्योंही तलवार से वार करना चाहा, भगवान् शांकर ने स्वयं प्रकट होकर राक्षस का वध कर डाला। तब से राजा की प्रार्थना परभगवान् ज्योतिर्लिग के रूप में ब्रह्मपुत्र पर्वत पर विराजमान् हो गये। शिवपुराण के इसी अध्याय मेंआये वर्णन के अनुसारभगवान् यहाँ अवतीर्ण हुए तथा उनका मूल निवास सहयाद्रि है। भीमा नदी के तटपर सहयाद्रि पर्वतमाला में यह भव्य किन्तु प्राचीन मन्दिर है। जहाँ पर यह मन्दिर है उसे डाकिनी शिखर भी कहते हैं। यहाँ नाना फडनवीस का बनवाया हुआ एक नया तथा भव्य मन्दिरभी है।पुराण-कथा के अनुसार त्रिपुरासुर को मारने के बाद भगवान् शांकरइस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गये। स्थानीय राजा भीमक की प्रार्थना पर भगवान् शिव लोककल्याण हेतु यहीं पर अवस्थित हो गये। कुछ लोग भीम शांकर की स्थिति उत्तर प्रदेश के नैनीताल जिलों में काशीपुर के पास मानते हैं। यहाँ उज्जनक नामक गाँव में भीमशंकर महादेव का भव्य व विशाल मन्दिर है। शिवपुराण में डाकिनी में भी शांकर की स्थिति बतायी है। स्थानीय जनता के अनुसार यहाँ का पुराना नाम डाकिनी था। सभी स्थानों पर विशेष पर्व पर मेले लगते हैंऔर दूर-दूर से भक्तजन आते हैं।
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=== विश्वनाथ ===
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विश्वनाथ ज्योतिर्लिग काशी में विराजमान है। यह अति प्राचीन तीर्थ स्थान है। भगवान् शिव को काशी सर्वाधिक प्रिय है। धार्मिक व ऐतिहासिक सांस्कृतिक महत्व की काशी नगरी का वर्णन व महात्म्य अनेक ग्रन्थों में किया गया है। यह मोक्षप्रदायिनी सप्तपुरियों में प्रमुख है। इसका विस्तृत वर्णन सप्तपुरी प्रकरण में किया जा चुका है।
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=== त्रयम्बकेश्वर ===
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दक्षिण-गंगा, पुण्यसलिला गोदावरी के तट पर प्रसिद्ध त्रयम्बकेश्वर महादेव के रूप में ज्योतिर्लिग विराजमान है। पास में ही थोड़ी दूर पर ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी निकलती है। नासिक त्रयम्बकेश्वर से लगभग १० कि. मी. दूरी पर स्थित है। ब्रह्मगिरि पर्वत पर सिद्ध ऋषि गौतम तपस्यारत थे। उनकी तपस्या के फलस्वरूप गोदावरी अवतरित हुई तथा सारा क्षेत्रधन-धान्य से भरपूर हो गया। गोदावरी का दूसरा नाम गौतमी भी है। गौतमी और ऋषि की प्रार्थना पर भगवान् शिव ने पुण्यतोया गोदावरी के तट पर सदैव वास करने की कृपा की और त्रयम्बकेश्वर के नाम से पूजित हुए। त्रयम्बकेश्वर इहलोक में सभी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले तथा मोक्षप्रदाता हैं। कुंभ-स्नान के समय सभी तीर्थ गोदावरी तट पर आकर विराजमान हो जाते हैं। मुख्य मन्दिर में तीन छोटे विग्रह
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हैं जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के प्रतीक हैं।थोड़ी दूरी पर कुशावर्त सरोवर है। तीर्थयात्री इस सरोवर की परिक्रमा करते हैं। पास में गंगा मन्दिर तथा परशुराम, गायत्री आदि के मन्दिर हैं। ब्रह्मगिरेि पर पहुँचने के लिए ७०० सीढ़ियाँ पार करनी पड़ती हैं। इनके दूसरी ओर राम व लक्ष्मण कुण्ड विद्यमान हैं।
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वैद्यनाथ
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“वैद्यनाथ चिता भूमौ" के अनुसार जसी डीह के देवधन में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग के रूप में शिव सनातन समय से विराजमान हैं। "परल्याँ वैद्यनाथ च" के अनुसार पूर्व-रियासत हैदराबाद के परली गाँव के शिवमन्दिर को इस ज्योतिलिंग का स्थान होने का श्रेय प्राप्त है। शिवपुराण तथा बृहद्धर्म केअनुसार बंगाल के जिला सन्थाल परगना के अन्तर्गत स्थितवैद्यनाथ चिताभूमि में होने के कारण वास्तविक ज्योतिलिंग है। त्रेतायुग में लंकेश रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कलास पर्वत पर कठोरतपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न शिव ने इस शर्त पर कैलास -स्थित विग्रह को लंका ले जाने की अनुमति दी कि वह मार्ग में विग्रह को भूमि पर नहीं रखेगा। रावण उसे लेकर चला तो चिताभू मे आने पर उसे लघुशका अनुभव हुईऔर पास में खड़े एक गोप को वह विग्रह थमाकर लघुशंका से निवृत्त होने चला गया। परन्तु गोप उसका भार संभाल न सका तथा उसने उसे भूमि पर रख दिया। वापस आने पर रावण के लाख प्रयन्त करने परभी जब शिवलिंग टस से मस न हुआ तो उसे वहींछोड़कर वह लंका चला गया। तब सभी देवों ने विधिवत शिविलिंग को वहीं पूजा कर प्रस्थापित कर दिया। यही वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यह मनोकामना पूर्ण करने वाला तीर्थ है। दूर-दूर से तीर्थयात्री पवित्र नदी-सरोवरों का जल लाकर यहाँ चढ़ाते हैं। इसी स्थल ;पर सती का हुदय गिरा था, अत: शक्तिपीठ के रूप में भी इसकी मान्यता है।भगवती शक्ति का मन्दिर भी यहाँ बना हुआ है। परली-स्थित ज्योतिर्लिग परभनी के पास एक पर्वत-शिखर पर बने मन्दिर में विराजमान है।इसके पास से एक छोटी नदी बहती हैऔरछोटा सा शिवकुण्ड नामक सरोवर भी है।
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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिग तीर्थक्षेत्र में कार्तिक, माघ और फाल्गुन की पूर्णिमा व चतुर्दशी को मेला लगता है।
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=== नागेश्वर ===
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नागेश्वर ज्योतिर्लिग तीन स्थानों पर अवस्थित माना गया है।शिवपुराण के वर्णन के अनुसारद्वारिका के पास स्थित नागेश्वर की ज्योतिर्लिग के रूप में पुष्टि दृढ़ होती है।इस ज्योतिलिंग की स्थापना की कथा एक शिवभक्त सुप्रिय व्यापारी से सम्बन्धित है। एक राक्षस ने सुप्रिय को उसके अनुचरों सहित बन्दी बना लिया। दारुक नामक उस राक्षस ने उन सबकी हत्या करने की ठानी, परन्तु भगवत्-कृपा से सुप्रिय को एक दिव्यास्त्र प्राप्त हो गया जिससे उसने उस राक्षस का वध कर डाला और शिवधाम को प्राप्त हुआ। दूसरा स्थान जो नागेश्वर ज्योतिर्लिग से सम्बन्धित है, महाराष्ट्र में औण्ढा नागनाथ ग्राम है। गुछ लोगों के मतानुसार उत्तर प्रदेश प्रान्त के अल्मोड़ा से २८ कि. मी. उत्तर में स्थित जागेश्वर शिवलिंग नागेश्वर है। इसके आसपास कई मन्दिर व रमणीक स्थल हैं। आसपास ही वेणीनाग, धौले, कालिया जैसे नागों के स्थल होने के कारण भी यह स्थान नागेश्वर कहलाता है।
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=== रामेश्वरम ===
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यह ज्योतिर्लिग भगवान् श्रीरामद्वारा स्थापित है,इस कारण ही इसका नाम रामेश्वर हुआ। भारत के चारों कोनों में स्थित चार धामों में से रामेश्वरम् एक है।चारोंधामों का वर्णन करते समय इसका विस्तृत विवरण पहले प्रस्तुत किया जा चुका है।
==References==
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