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| धर्म का अर्थ कर्तव्य भी होता है । कर्तव्य के भी दो हिस्से है । एक है सामासिक धर्म या समाज के प्रत्येक घटकद्वारा अपेक्षित कर्तव्य और दूसरा हिस्सा है व्यक्तिगत स्तर के कर्तव्य । सामान्य धर्म के विषय में मनुस्मृति में कहा है - | | धर्म का अर्थ कर्तव्य भी होता है । कर्तव्य के भी दो हिस्से है । एक है सामासिक धर्म या समाज के प्रत्येक घटकद्वारा अपेक्षित कर्तव्य और दूसरा हिस्सा है व्यक्तिगत स्तर के कर्तव्य । सामान्य धर्म के विषय में मनुस्मृति में कहा है - |
− | अहिंसा सत्य अस्तेयं शाप्रचमिन्द्रियनिग्रह: ।
| + | अहिंसा सत्य अस्तेयं शाप्रचमिन्द्रियनिग्रह: । |
− | एतं सामासिकं धर्मं चातुरर््वण्येऽब्रवीन्मनु: ॥ ( मनुस्मृती १० - १६३)
| + | एतं सामासिकं धर्मं चातुरर््वण्येऽब्रवीन्मनु: ॥ ( मनुस्मृती १० - १६३) |
− | भावार्थ : अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, अंतर्बाह्य स्वच्छता और इंन्द्रिय संयम यह समाज के प्रत्येक घटक के सभी वर्णों के हर व्यक्ति के कर्तव्य है । व्यक्ति के भी समाज के अन्य घटकों के साथ जो परस्पर संबंध है उन के अनुसार व्यक्तिगत कर्तव्य भी होते है । जप्रसे पत्नी से संबंधित पति के कर्तव्यों को पतिधर्म कहा जाता है । पडोसी से संबंधित कर्तवुव्यों को पडोसीधर्म कहा जाता है । बेटे-बेटी के अपने मातापिता के प्रति कर्तव्यं को पुत्रधर्म कहा जाता है । व्यापारी के ग्राहक के प्रति कर्तवों को व्यापारी धर्म कहा जाता है । सप्रनिक के अपने देश के प्रति कर्तव्यों को सप्रनिकधर्म कहा जाता है ।
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− | इस मे एक बात महत्वपूर्ण है । कोई भी व्यक्तिगत स्तर का कर्तव्य सामासिक धर्म अर्थात् अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, अंतर्बाह्य स्वच्छता और इंन्द्रिय संयम आदि कर्तव्यों के विपरीत नही होना चाहिये । इसी कर्तव्य संबंधों का एक पहलू नीचे दिया है -
| + | भावार्थ : अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, अंतर्बाह्य स्वच्छता और इंन्द्रिय संयम यह समाज के प्रत्येक घटक के सभी वर्णों के हर व्यक्ति के कर्तव्य है । व्यक्ति के भी समाज के अन्य घटकों के साथ जो परस्पर संबंध है उन के अनुसार व्यक्तिगत कर्तव्य भी होते है । जप्रसे पत्नी से संबंधित पति के कर्तव्यों को पतिधर्म कहा जाता है । पडोसी से संबंधित कर्तवुव्यों को पडोसीधर्म कहा जाता है । बेटे-बेटी के अपने मातापिता के प्रति कर्तव्यं को पुत्रधर्म कहा जाता है । व्यापारी के ग्राहक के प्रति कर्तवों को व्यापारी धर्म कहा जाता है । सप्रनिक के अपने देश के प्रति कर्तव्यों को सप्रनिकधर्म कहा जाता है। |
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| + | इस मे एक बात महत्वपूर्ण है । कोई भी व्यक्तिगत स्तर का कर्तव्य सामासिक धर्म अर्थात् अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, अंतर्बाह्य स्वच्छता और इंन्द्रिय संयम आदि कर्तव्यों के विपरीत नही होना चाहिये । इसी कर्तव्य संबंधों का एक पहलू नीचे दिया है - |
| त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् । | | त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् । |
| ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ | | ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ |