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# महिला और अन्य दुर्बल घटकों का सबलीकरण (एम्पॉवरमेंट ऑफ विमेन ऍंड अदर सोशल एलिमेंट्स्)  
 
# महिला और अन्य दुर्बल घटकों का सबलीकरण (एम्पॉवरमेंट ऑफ विमेन ऍंड अदर सोशल एलिमेंट्स्)  
 
# वैश्वीकरण और स्थानिकीकरण में मेल ( कोऑर्डिनेशन ऑफ ग्लोबलायझेशन ऍंड लोकलायझेशन)  
 
# वैश्वीकरण और स्थानिकीकरण में मेल ( कोऑर्डिनेशन ऑफ ग्लोबलायझेशन ऍंड लोकलायझेशन)  
# बुध्दि, मन और कृति का समन्वय ( कोऑर्डिनेशन ऑफ ईन्टेलिजन्स्, इमोशन्स् एंड ऍक्शन्स् )  
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# बुद्धि, मन और कृति का समन्वय ( कोऑर्डिनेशन ऑफ ईन्टेलिजन्स्, इमोशन्स् एंड ऍक्शन्स् )  
    
== वर्तमान शिक्षा के उद्देश्यों का मूल्यांकन ==
 
== वर्तमान शिक्षा के उद्देश्यों का मूल्यांकन ==
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भारत तो सहस्रकों से एक राष्ट्र था। किंतु इस इतिहास को नकारा गया। किंतु पश्चिमी नेशन स्टेट, जिस संकल्पना का जन्म यूरोप में मुश्किल से ३०० वर्ष पूर्व हुआ उसी तरह से हम भी 'राष्ट्र' निर्माण कर रहे है, ऐसी मिथ्या भावना हमारे शासकों के मन में निर्माण हो गई। इसी लिये भारत (राष्ट्र) माता के एक श्रेष्ठ सुपुत्र को राष्ट्रपिता बना दिया गया। यह सब बताने का तात्पर्य इतना ही है कि राष्ट्र की संकल्पना के विषय में स्पष्टता नहीं है।
 
भारत तो सहस्रकों से एक राष्ट्र था। किंतु इस इतिहास को नकारा गया। किंतु पश्चिमी नेशन स्टेट, जिस संकल्पना का जन्म यूरोप में मुश्किल से ३०० वर्ष पूर्व हुआ उसी तरह से हम भी 'राष्ट्र' निर्माण कर रहे है, ऐसी मिथ्या भावना हमारे शासकों के मन में निर्माण हो गई। इसी लिये भारत (राष्ट्र) माता के एक श्रेष्ठ सुपुत्र को राष्ट्रपिता बना दिया गया। यह सब बताने का तात्पर्य इतना ही है कि राष्ट्र की संकल्पना के विषय में स्पष्टता नहीं है।
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भारतीय संस्कृति की साझी विरासत (इंडियाज कॉमन कल्चरल हेरिटेज) : साझी सांस्कृतिक विरासत का उद्देश्य तो बुध्दिहीनता का ही लक्षण है। स्वामी विवेकानंदजी ने विदेशों में किये अपने भाषणों में कहा था कि हम भारतीय अपनी पत्नी को छोडकर अन्य स्त्रियों को माता की तरह देखते है। लेकिन आप अपनी माता छोडकर सभी अन्य स्त्रियों को अपनी संभाव्य पत्नी के रूप में देखते हो। क्या ऐसे दो विपरीत विचार रखने वाले लोग मिलकर एक संस्कृति बना सकते हैं ?   
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भारतीय संस्कृति की साझी विरासत (इंडियाज कॉमन कल्चरल हेरिटेज) : साझी सांस्कृतिक विरासत का उद्देश्य तो बुद्धिहीनता का ही लक्षण है। स्वामी विवेकानंदजी ने विदेशों में किये अपने भाषणों में कहा था कि हम भारतीय अपनी पत्नी को छोडकर अन्य स्त्रियों को माता की तरह देखते है। लेकिन आप अपनी माता छोडकर सभी अन्य स्त्रियों को अपनी संभाव्य पत्नी के रूप में देखते हो। क्या ऐसे दो विपरीत विचार रखने वाले लोग मिलकर एक संस्कृति बना सकते हैं ?   
    
समाज का एक घटक मानता है कि परमात्मा आस्था रखना या नहीं रखना, परमात्मा की पूजा करना या नहीं करना, करना तो कैसे करना, कब करना, यह हर व्यक्ति का अपना विचार है। और उस के इस विचार का आदर सब समाज करे। किंतु समाज का दूसरा तबका यह मानता है की केवल मेरी पूजा पद्दति ही श्रेष्ठ है। केवल इतना ही नहीं, जो मेरी पूजा पद्दति और आस्थाओं का स्वीकार नहीं करेगा उस का मैं कत्ल करूंगा। क्या ऐसे दो विपरीत विचार रखने वाले लोग अपने विचार बदले बगैर साझी संस्कृति के बन सकते है? और यदि साझी संस्कृति का इतना ही आग्रह है तो जो असहिष्णु विचार वाले समाज के गुट है, उन्हें सहिष्णु बनाने के लिये शिक्षा में प्रावधान रखने की नितांत आवश्यकता है। किंतु वास्तविकता यह है कि जो सहिष्णु विचार वाला समाज है, उसे ही अपनी संस्कृति के रक्षण करने में असहिष्णु गुटों द्वारा साझी विरासत के आधार पर चुनौती दी जाती है। और गलत संवैधानिक मार्गदर्शन के चलते कानून भी असहिष्णु गुटों के पक्ष में खडा दिखाई देता है।  
 
समाज का एक घटक मानता है कि परमात्मा आस्था रखना या नहीं रखना, परमात्मा की पूजा करना या नहीं करना, करना तो कैसे करना, कब करना, यह हर व्यक्ति का अपना विचार है। और उस के इस विचार का आदर सब समाज करे। किंतु समाज का दूसरा तबका यह मानता है की केवल मेरी पूजा पद्दति ही श्रेष्ठ है। केवल इतना ही नहीं, जो मेरी पूजा पद्दति और आस्थाओं का स्वीकार नहीं करेगा उस का मैं कत्ल करूंगा। क्या ऐसे दो विपरीत विचार रखने वाले लोग अपने विचार बदले बगैर साझी संस्कृति के बन सकते है? और यदि साझी संस्कृति का इतना ही आग्रह है तो जो असहिष्णु विचार वाले समाज के गुट है, उन्हें सहिष्णु बनाने के लिये शिक्षा में प्रावधान रखने की नितांत आवश्यकता है। किंतु वास्तविकता यह है कि जो सहिष्णु विचार वाला समाज है, उसे ही अपनी संस्कृति के रक्षण करने में असहिष्णु गुटों द्वारा साझी विरासत के आधार पर चुनौती दी जाती है। और गलत संवैधानिक मार्गदर्शन के चलते कानून भी असहिष्णु गुटों के पक्ष में खडा दिखाई देता है।  

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