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दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये ।
 
दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये ।
 
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# जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ?
१, जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ?
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# अनावश्यक है परन्तु जिद पूरी करने से लाभ है या हानि ? या लाभ तो नहीं है परन्तु हानि भी नहीं है तो उसे अधिक जिद करने का मौका ही नहीं देना चाहिये और तुरन्त पूरी करना चाहिये । उसे माँग तक सीमित रखें, जिद न बनने दें ।
 
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# यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे दिया |
2. अनावश्यक है परन्तु जिद पूरी करने से लाभ है या हानि ? या लाभ तो नहीं है परन्तु हानि भी नहीं है तो उसे अधिक जिद करने का मौका ही नहीं देना चाहिये और तुरन्त पूरी करना चाहिये । उसे माँग तक सीमित रखें, जिद न बनने दें ।
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# दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं ।
 
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३. यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे
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४. दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं ।
      
=== प्रश्न ३. महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ? (एक विद्यार्थी का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ३. महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ? (एक विद्यार्थी का प्रश्न) ===
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दोषी सब हैं । परन्तु शिक्षक को दायित्व लेना चाहिये तो भी वह लेता नहीं है और शिक्षक के अलावा और किसी ने लिया तो शिक्षा की दुरवस्था बदल नहीं सकती । इस स्थिति में शिक्षक नहीं तो और कौन दोषी है ?
 
दोषी सब हैं । परन्तु शिक्षक को दायित्व लेना चाहिये तो भी वह लेता नहीं है और शिक्षक के अलावा और किसी ने लिया तो शिक्षा की दुरवस्था बदल नहीं सकती । इस स्थिति में शिक्षक नहीं तो और कौन दोषी है ?
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=== प्रश्न ७. औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ? आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है ? (एक कार्यकर्ता का प्रश्न) ===
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औरों के दोष भी शिक्षक दूर नहीं करेगा तब तक दूर नहीं होंगे । फिर भी यदि शिक्षक करता नहीं है और रोता रहता है तो शिक्षक के अलावा और कौन दोषी है ?  
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=== प्रश्न ७. आज के विद्यार्थियों में ज्ञान तो ठीक, संस्कार भी दिखाई नहीं देते हैं । संस्कार देने की व्यावहारिक योजना क्या हो सकती है ? (एक कार्यकर्ता का प्रश्न) ===
 
'''उत्तर''' विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
 
'''उत्तर''' विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
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=== प्रश्न २०. मातृभाषा नहीं आने से क्या हानि है ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २०. मातृभाषा नहीं आने से क्या हानि है ? (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
'''उत्तर''' मातृभाषा क्यों नहीं आनी चाहिये इसका कोई तर्कपूर्ण कारण है क्या ? नहीं । इसलिये मातृभाषा नहीं आना अत्यन्त अस्वाभाविक है ।
 
'''उत्तर''' मातृभाषा क्यों नहीं आनी चाहिये इसका कोई तर्कपूर्ण कारण है क्या ? नहीं । इसलिये मातृभाषा नहीं आना अत्यन्त अस्वाभाविक है ।
 
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# मातृभाषा नहीं आने से दुनिया की एक भी भाषा अच्छी तरह नहीं आती |
१, मातृभाषा नहीं आने से दुनिया की एक भी भाषा अच्छी तरह नहीं आती |
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# मातृभाषा नहीं आने से हमारी संस्कृति के साथ गहरा सम्बन्ध नहीं बनता ।
 
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# मातूभाषा नहीं आने से अपने आसपास जो मातृभाषा जानने वाले लोग हैं उनके साथ सार्थक सम्भाषण नहीं कर सकते ।
२. मातृभाषा नहीं आने से हमारी संस्कृति के साथ गहरा सम्बन्ध नहीं बनता ।
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# मातृभाषा नहीं आयेगी तो सब्जी लेने के लिये कैसे जायेंगे ? घर में आने वाले नौकरों, मेकेनिक, सफाई कर्मचारी आदि के साथ सम्बन्ध कैसे बनेगा ?
 
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# भारत में यदि मातृभाषा नहीं आती तो पूजा कैसे करेंगे । संस्कृत कैसे आयेगी ? संस्कृत में लिखे ग्रन्थ कैसे पढ़ेंगे ?
3. मातूभाषा नहीं आने से अपने आसपास जो मातृभाषा जानने वाले लोग हैं उनके साथ सार्थक सम्भाषण नहीं कर सकते ।
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४. मातृभाषा नहीं आयेगी तो सब्जी लेने के लिये कैसे जायेंगे ? घर में आने वाले नौकरों, मेकेनिक, सफाई कर्मचारी आदि के साथ सम्बन्ध कैसे बनेगा ?
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५. भारत में यदि मातृभाषा नहीं आती तो पूजा कैसे करेंगे । संस्कृत कैसे आयेगी ? संस्कृत में लिखे ग्रन्थ कैसे पढ़ेंगे ?
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अर्थात्‌ मातृभाषा नहीं आने से हम सहज और सामान्य नहीं रहेंगे । समूह में अलग हो जायेंगे ।
 
अर्थात्‌ मातृभाषा नहीं आने से हम सहज और सामान्य नहीं रहेंगे । समूह में अलग हो जायेंगे ।
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संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
 
संस्कृत का परिचय होने के बाद प्रामाणिक अनुवाद की सहायता से हम मूल ग्रन्थ पढ़ सकते हैं ।
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धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है यह जानने के लिये यदि हमने भगवदूगीता से प्रारम्भ किया तो सरल होता है । एक बार भगवदूगीता का कहना क्या है यह समझ लिया तो उसके प्रकाश में अनेक बातें सरलतापूर्वक समझी जा सकती हैं ।
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धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है यह जानने के लिये यदि हमने भगवदूगीता से प्रारम्भ किया तो सरल होता है । एक बार भगवदगीता का कहना क्या है यह समझ लिया तो उसके प्रकाश में अनेक बातें सरलतापूर्वक समझी जा सकती हैं ।
    
=== प्रश्न २५. आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगोंं के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है । (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न २५. आज सर्वसामान्य लोग नौकरी ही करते हैं । परम्परागत धन्धे भी समाप्त हो गये हैं । धन्धे करने वालों को भी नौकरी करनी पड रही है । नये से धन्धा करने के लिये निवेश के लिये बहुत पैसा चाहिये । उसके बाद भी स्पर्धा में टिकना असम्भव है । फिर सामान्य लोगोंं के लिये जैसी भी मिले नौकरी के अलावा क्या बचा है ? नौकरी का भी तो संकट है । (एक अभिभावक का प्रश्न) ===
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'''उत्तर''' पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
 
'''उत्तर''' पहली बात तो यह है कि आप विश्वविद्यालय की कोई पदवी या पुरस्कार मिलेगा ऐसी अपेक्षा छोड दो । वर्तमान शिक्षाव्यवस्था से समानान्तर पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है । दूसरी बात यह है कि गीता और उपनिषदों का कुछ अध्ययन कर धार्मिक जीवनदृष्टि क्या है इसकी समझ स्पष्ट करने का प्रयास करो । तीसरी बात यह है कि स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्द, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी आदि महानुभावों के शिक्षाविषयक विचारों और प्रयोगों का अध्ययन करो । चौथी बात है आज देशभर में धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में समानान्तर कार्य कैसा चल रहा है उसका अध्ययन करो ।
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इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है। क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी धार्मिक हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ?
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इसके बाद आज क्या किया जा सकता है और क्या करने की आवश्यकता है इसका चिन्तन कर उसके अनुसार योजना बनाना व्यावहारिक अनुसन्धान होता है । ऐसे अध्ययन और अनुसन्धान की आज नितान्त आवश्यकता है । इस दृष्टि से अध्ययन हेतु कुछ ग्रन्थों की, कुछ मार्गदर्शकों की, परामर्शकों की, सहअध्येताओं की सूचियाँ बन सकती हैं । आप देखेंगे कि यह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो सकता है और उसमें आनन्द आ सकता है।  
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=== प्रश्न ३२. एक जिज्ञासु का प्रश्न निश्चित रूप से अनुसन्धान का धार्मिक स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ===
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=== प्रश्न ३२. क्या अनुसन्धान का स्वरूप भी धार्मिक हो सकता है ? वर्तमान अनुसन्धान से वह भिन्न है ? (एक जिज्ञासु का प्रश्न)  ===
'''उत्तर''' निश्चित रूप से अनुसन्धान का धार्मिक स्वरूप से भिन्न ही है।
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'''उत्तर''' निश्चित रूप से अनुसन्धान का धार्मिक स्वरूप वर्तमान स्वरूप से भिन्न ही है ।
    
धार्मिक अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है व्यावहारिक ।
 
धार्मिक अनुसन्धान के दो प्रकार हैं, अथवा कहें कि दो स्तर हैं । एक है तात्त्विक और दूसरा है व्यावहारिक ।
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यह बात ठीक है कि व्यवहार के क्षेत्र में शुरुआत हम सरल बातों से करें, कठिन या असम्भव से नहीं । सरल बातों से शुरु कर क्रमशः कठिन बातों को सरल और असम्भव को कठिन के दायरे में लायें और इस प्रकार असम्भव को भी सरल बना दें । इस दृष्टि से कुछ परिवर्तन इस प्रकार करने होंगे...
 
यह बात ठीक है कि व्यवहार के क्षेत्र में शुरुआत हम सरल बातों से करें, कठिन या असम्भव से नहीं । सरल बातों से शुरु कर क्रमशः कठिन बातों को सरल और असम्भव को कठिन के दायरे में लायें और इस प्रकार असम्भव को भी सरल बना दें । इस दृष्टि से कुछ परिवर्तन इस प्रकार करने होंगे...
 
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# गर्भावस्‍था से युवावस्था की शिक्षा को एक ही संस्था में लायें अर्थात्‌ एक विश्वविद्यालय ही पूर्ण शिक्षाक्रम का दायित्व सम्हाले । इससे किसी भी विषय के शिक्षाक्रम में सुसूत्रता और आन्तरिक सम्बद्धता निर्माण होगी ।
१, गर्भावस्‍था से युवावस्था की शिक्षा को एक ही संस्था में लायें अर्थात्‌ एक विश्वविद्यालय ही पूर्ण शिक्षाक्रम का दायित्व सम्हाले । इससे किसी भी विषय के शिक्षाक्रम में सुसूत्रता और आन्तरिक सम्बद्धता निर्माण होगी ।
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# घर को एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र बनाना होगा । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों में परिवार शिक्षा विभाग आरम्भ करना होगा । इसको लगभग बीस वर्ष तक दो स्तरों पर चलाना होगा एक तो विद्यार्थियों के सामान्य क्रम में जोडना और दूसरा गृहस्थों और वानप्रस्थों के लिये चलाना ।
 
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# अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
२. घर को एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र बनाना होगा । इस दृष्टि से विश्वविद्यालयों में परिवार शिक्षा विभाग आरम्भ करना होगा । इसको लगभग बीस वर्ष तक दो स्तरों पर चलाना होगा एक तो विद्यार्थियों के सामान्य क्रम में जोडना और दूसरा गृहस्थों और वानप्रस्थों के लिये चलाना ।
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# राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । धार्मिक होने का अर्थ क्या है, भारत की और धार्मिक होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका क्या है यह सिखाना होगा ।
 
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3. अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास््र, संस्कृति, गोपालन, अर्थशास्त्र आदि विषयों को सामान्य शिक्षाक्रम का आधार बनाना होगा । मन की शिक्षा को सर्व स्तर पर अनिवार्य विषय बनाना होगा ।
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४. राष्ट्रीयता की शिक्षा देनी होगी । धार्मिक होने का अर्थ क्या है, भारत की और धार्मिक होने के नाते हमारी विश्व में भूमिका क्या है यह सिखाना होगा ।
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यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।
 
यहाँ से शुरुआत की तो शिक्षा की गाडी ठीक पटरी पर चलेगी ।
    
=== प्रश्न ३८. सीधा ही प्रश्न है - क्या आप मोबाइल, कम्प्यूटर और टीवी को अमान्य करते हैं ? (एक जिज्ञासु का प्रश्र) ===
 
=== प्रश्न ३८. सीधा ही प्रश्न है - क्या आप मोबाइल, कम्प्यूटर और टीवी को अमान्य करते हैं ? (एक जिज्ञासु का प्रश्र) ===
 
'''उत्तर''' आपने जितना सीधा पूछा उतना ही सीधा बताना है तो कहना होगा कि हाँ इन्हें अमान्य करने से ही बचना सम्भव होगा । परन्तु आप कहेंगे मान्य हैं और हम कहेंगे अमान्य हैं इससे न तो कोई खुलासा होगा न हल निकलेगा । इसलिये अमान्य होने के कारण भी बताने होंगे ।
 
'''उत्तर''' आपने जितना सीधा पूछा उतना ही सीधा बताना है तो कहना होगा कि हाँ इन्हें अमान्य करने से ही बचना सम्भव होगा । परन्तु आप कहेंगे मान्य हैं और हम कहेंगे अमान्य हैं इससे न तो कोई खुलासा होगा न हल निकलेगा । इसलिये अमान्य होने के कारण भी बताने होंगे ।
 
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# इन सबके कारण पर्यावरण का प्रदूषण और स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है जो कैन्सर तक का कारण बनती है । यह एक मात्र कारण भी इन्हें अमान्य करने हेतु पर्याप्त है ।
१. इन सबके कारण पर्यावरण का प्रदूषण और स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है जो कैन्सर तक का कारण बनती है । यह एक मात्र कारण भी इन्हें अमान्य करने हेतु पर्याप्त है ।
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# हम “'प्राइवसी' को तो बहुत मानते हैं । इसलिये तो निवास के लिये कमरा अलग माँगते हैं । पत्रव्यवहार गोपनीय रखते हैं । हमारे घर “दरवाजा बन्द घर हो गये हैं । इस इण्टरनेट सभ्यता में सब कुछ “एक्स्पोइड' हो गया है, खुला हो गया है । घर गोपनीय बनाने वाले पूर्ण रूप से खुले हो जाना क्यों पसन्द करते हैं ?
 
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# इन साधनों से मन की शान्ति, एकाग्रता और चिन्तन की गहराई नष्ट हो गई है । यह पागलपन की और गति करना है । यह हमें चलता है क्या ?
२. हम “'प्राइवसी' को तो बहुत मानते हैं । इसलिये तो निवास के लिये कमरा अलग माँगते हैं । पत्रव्यवहार गोपनीय रखते हैं । हमारे घर “दरवाजा बन्द घर हो गये हैं । इस इण्टरनेट सभ्यता में सब कुछ “एक्स्पोइड' हो गया है, खुला हो गया है । घर गोपनीय बनाने वाले पूर्ण रूप से खुले हो जाना क्यों पसन्द करते हैं ?
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# हमारी सम्पर्क व्यवस्था, संवाद पद्धति, सूचना पहुँचाने की प्रक्रिया अत्यन्त विशूंखल हो गई है । पूर्व में जो एक पोस्टकार्ड से हो जाता था वह अब बीसों बार सूचना देने से भी नहीं होता ।
 
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# व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हुई है, ध्यान करने की क्षमता भी कम हुई है । मानसिक रूप से हम मारे मारे घूम रहे हैं ।
४. इन साधनों से मन की शान्ति, एकाग्रता और चिन्तन की गहराई नष्ट हो गई है । यह पागलपन की और गति करना है । यह हमें चलता है क्या ?
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५. हमारी सम्पर्क व्यवस्था, संवाद पद्धति, सूचना पहुँचाने की प्रक्रिया अत्यन्त विशूंखल हो गई है । पूर्व में जो एक पोस्टकार्ड से हो जाता था वह अब बीसों बार सूचना देने से भी नहीं होता ।
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६. व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हुई है, ध्यान करने की क्षमता भी कम हुई है । मानसिक रूप से हम मारे मारे घूम रहे हैं ।
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इन साधनों को अमान्य करने के इतने कारण क्या कम लगते हैं ?
 
इन साधनों को अमान्य करने के इतने कारण क्या कम लगते हैं ?
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हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना पड़ेगा । इसी प्रकार यदि धार्मिक शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।
 
हमें यदि अमरुद के वृक्ष से आम की अपेक्षा है तो उसके पत्ते तोडकर आम के पत्ते चिपकाना, वृक्ष की डालियाँ काटना, कहीं कहीं आम के फल लटका देना आदि करने से नहीं चलेगा । पूरा वृक्ष ही नये से बोना पड़ेगा । इसी प्रकार यदि धार्मिक शिक्षा चाहिये तो वर्तमान ढाँचे को पूरा का पूरा छोडकर नया ढाँचा बनाना पड़ेगा।
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=== प्रश्न ४०. सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ? ===
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=== प्रश्न ४०. सरकारें बदलती हैं, सरकार बनाने वाले राजकीय पक्ष बदलते हैं, नई नई नीतियाँ और आयोग बनते हैं तो भी शिक्षा का प्रश्न तो अधिकाधिक उलझता रहता है इसका कारण क्या है ? (एक जिज्ञासु का प्रश्न) ===
'''उत्तर''' एक जिज्ञासु का प्रश्न कारण यह है कि जो सरकार का काम नहीं है उससे सारी अपेक्षायें की जा रही हैं । वर्तमान लोकतन्त्र में सरकार मना तो नहीं कर सकती फिर उससे जो बनता है वह करती है । वास्तव में यह तो समाज की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा की व्यवस्था करे । समाज में भी यह जिम्मेदारी हर किसीकी नहीं है, शिक्षकों की है ।
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'''उत्तर''' कारण यह है कि जो सरकार का काम नहीं है उससे सारी अपेक्षायें की जा रही हैं । वर्तमान लोकतन्त्र में सरकार मना तो नहीं कर सकती फिर उससे जो बनता है वह करती है । वास्तव में यह तो समाज की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा की व्यवस्था करे । समाज में भी यह जिम्मेदारी हर किसीकी नहीं है, शिक्षकों की है ।
    
शिक्षा का बहुत बडा अंश घर में होता है । घर में मातापिता की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे के स्वास्थ्य, संस्कार, व्यवहारदृक्षता, कौशल, सामाजिकता आदि सिखायें । शेष शिक्षा विद्यालय में होगी जो शिक्षक की जिम्मेदारी है । मातापिता और शिक्षक दोनों यदि अपनी जिम्मेदारी छोड देते हैं तो सरकार की बाध्यता बन जाती है । फिर शिक्षा का वही होगा जो आज हो रहा है ।
 
शिक्षा का बहुत बडा अंश घर में होता है । घर में मातापिता की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे के स्वास्थ्य, संस्कार, व्यवहारदृक्षता, कौशल, सामाजिकता आदि सिखायें । शेष शिक्षा विद्यालय में होगी जो शिक्षक की जिम्मेदारी है । मातापिता और शिक्षक दोनों यदि अपनी जिम्मेदारी छोड देते हैं तो सरकार की बाध्यता बन जाती है । फिर शिक्षा का वही होगा जो आज हो रहा है ।
    
=== प्रश्न ४१. आज समाज में चारों और ऐसा क्या क्या नहीं है जो नई पीढी का विकास अवरुद्ध करता हो ? उसकी व्यवस्था कैसे की जा सकती है ? (एक जनप्रतिनिधि का प्रश्न) ===
 
=== प्रश्न ४१. आज समाज में चारों और ऐसा क्या क्या नहीं है जो नई पीढी का विकास अवरुद्ध करता हो ? उसकी व्यवस्था कैसे की जा सकती है ? (एक जनप्रतिनिधि का प्रश्न) ===
'''उत्तर''' १, आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
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'''उत्तर'''
 
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# आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
२. आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये बच्चोंं के पास समय नहीं है ।
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# आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये बच्चोंं के पास समय नहीं है । 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है ।
 
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# घर में एक से अधिक बच्चे नहीं है जिससे उनकी परिवारभावना का विकास हो ।
३. 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है । . घर में एक से अधिक बच्चे नहीं है जिससे उनकी परिवारभावना का विकास हो ।
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# करने के लिये कोई काम नहीं है जिससे उनकी कार्यकुशलता और स्वतन्त्र बुद्धि का विकास हो |
 
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# ऐसा उत्तम मनोरंजन नहीं है जिससे उनके सौन्दर्यबोध और रसिकता का विकास हो ।
४. करने के लिये कोई काम नहीं है जिससे उनकी कार्यकुशलता और स्वतन्त्र बुद्धि का विकास हो |
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# ऐसे रेत और मिट्टी के रास्ते नहीं है और भीड से मुक्त स्थान नहीं हैं जहां वे मुक्त आवनजावन कर सकें ।
 
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# ऐसा भोजन भी नहीं है जिससे उनके शरीर और मन अच्छे बनें ।
५. ऐसा उत्तम मनोरंजन नहीं है जिससे उनके सौन्दर्यबोध और रसिकता का विकास हो ।
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वास्तव में आज के विद्यार्थी विकास के अनेक अवसरों से वंचित हैं । पैसा खर्च करके हमने ये सारी बातें उनसे छीन ली हैं ।
 
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६. ऐसे रेत और मिट्टी के रास्ते नहीं है और भीड से मुक्त स्थान नहीं हैं जहां वे मुक्त आवनजावन कर सकें ।
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७. ऐसा भोजन भी नहीं है जिससे उनके शरीर और मन अच्छे बनें । वास्तव में आज के विद्यार्थी विकास के अनेक अवसरों से वंचित हैं । पैसा खर्च करके हमने ये सारी बातें उनसे छीन ली हैं ।
      
=== प्रश्न ४२. हमारा बालक क्या बनेगा यह कौन निश्चित कर सकता है ? हम, शिक्षक, बालक स्वयं या सरकार ? यदि हमें करना है तो हम कैसे करेंगे? (एक माता का प्रश्र) ===
 
=== प्रश्न ४२. हमारा बालक क्या बनेगा यह कौन निश्चित कर सकता है ? हम, शिक्षक, बालक स्वयं या सरकार ? यदि हमें करना है तो हम कैसे करेंगे? (एक माता का प्रश्र) ===
Line 413: Line 390:  
'''उत्तर''' आप की बात विचार करने योग्य है । बताना तो मातापिता को ही चाहिये । वे ही जिम्मेदार भी हैं और निर्णय करनेवाले भी हैं ।
 
'''उत्तर''' आप की बात विचार करने योग्य है । बताना तो मातापिता को ही चाहिये । वे ही जिम्मेदार भी हैं और निर्णय करनेवाले भी हैं ।
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स्थिति यह है कि मातापिता अत्यन्त व्यस्त होते हैं । उन्हें विचार करने का समय ही नहीं मिलता । पूर्व पीढी का जमाना अब नहीं रहा और उन्हें आज के जमाने की समझ नहीं है ऐसा उन्हें लगता है इसलिये दादादादी की बात वे नहीं मानते । वे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं इण्टरनेट से अंग्रेजी में लिखी गई पाश्चात्य लेखकों की पुस्तकोंसे | वहाँ जो बताया जाता है वह हम जो कहते हैं उससे सर्वथा भिन्न होता है । उनका विश्वास उन बातों पर ही होता है, हमारी बातों पर नहीं। फिर उपाय क्‍या है ?
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स्थिति यह है कि मातापिता अत्यन्त व्यस्त होते हैं । उन्हें विचार करने का समय ही नहीं मिलता । पूर्व पीढी का जमाना अब नहीं रहा और उन्हें आज के जमाने की समझ नहीं है ऐसा उन्हें लगता है इसलिये दादादादी की बात वे नहीं मानते । वे मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं इण्टरनेट से अंग्रेजी में लिखी गई पाश्चात्य लेखकों की पुस्तकोंसे | वहाँ जो बताया जाता है वह हम जो कहते हैं उससे सर्वथा भिन्न होता है । उनका विश्वास उन बातों पर ही होता है, हमारी बातों पर नहीं।
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फिर उपाय क्‍या है ?
    
पहली बात यह है कि हमें अपनी बात पर श्रद्धा बढानी होगी । श्रद्धा का सामर्थ्य बढाना होगा । चाह भी बढानी होगी । धैर्य बढाना होगा । दूसरी बात यह है कि समझाने के प्रयास भी बढ़ाने होंगे । समझाने की पद्धति बदलनी होगी । तीसरी बात यह है कि अनेक मुखों से एक ही बात बार बार बतानी होगी । केवल हमारे बताने से नहीं होगा ।
 
पहली बात यह है कि हमें अपनी बात पर श्रद्धा बढानी होगी । श्रद्धा का सामर्थ्य बढाना होगा । चाह भी बढानी होगी । धैर्य बढाना होगा । दूसरी बात यह है कि समझाने के प्रयास भी बढ़ाने होंगे । समझाने की पद्धति बदलनी होगी । तीसरी बात यह है कि अनेक मुखों से एक ही बात बार बार बतानी होगी । केवल हमारे बताने से नहीं होगा ।
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# अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना ।
 
# अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श देना ।
 
# विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
 
# विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ अध्यापकों का सम्पर्क होना ।
# व्यायाम अनिवार्य बनाना । साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि
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# व्यायाम अनिवार्य बनाना ।
 
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साथ ही प्रबोधनात्मक आग्रह बढ़ने चाहिये जैसे कि..
 
##बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
 
##बाइकसवारी छोड़कर साइकिल का प्रयोग करना ।
 
##तंग कपडों का त्याग करना ।
 
##तंग कपडों का त्याग करना ।
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